एक लड़की...तीन लड्डू! (लघु-कथा)
एक लड़की कुछ बड़ी हुई तो मिठाइयों से सजी दुकाने देखी | रंग-बिरंगी तरह तरह के लड्डू देख कर उसका मन मचलने लगा | कुछ सहेलियों के हाथ में लड्डू देख कर उसे भी लगा कि मेरे भी हाथ में लड्डू हो, और समय आ गया | उस लड़की के लिए भी एक अच्छा सा लड्डू उसके घरवालों ने पसंद किया, जो उसकी झोली में आ गिरा, लेकिन लड़की जब तक उस लड्डू को अपना कह पाती एक…
ContinueAdded by Aruna Kapoor on March 5, 2013 at 12:30pm — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 5, 2013 at 12:30pm — 2 Comments
लहरे कहतीं हैं लहराकर, आगे बढ़ते जाना है |
अथक मेहनत और लगन से, हमको मंजिल पाना है |
कितना भी दूर रहे मंजिल, करीब होगा जाने से |
ऐसे कुछ ना मिलने वाला, हार कर बैठ जाने से |
सोते शेर के मुँह में भी, शिकार खुद ना जाएगा |
कभी ना कभी मिलेगी मंजिल, जो पसीना बहायेगा |…
Added by Shyam Narain Verma on March 5, 2013 at 12:30pm — 1 Comment
जब भी राकेश देर रात तक काम करते हैं रानी कितना ख्याल रखती है | जब तक वो काम करते हैं रानी दोनों बच्चों को मुंह पर उंगुली रख कर चुप कराती रहती है | बीच-बीच में उनको चाय बना के दे आती है | राकेश भी उसे बुला के सामने बैठा लेते हैं –“तुम सामने रहती हो तो काम जल्दी हो जाता है” ये बोल कर कितना लाड दिखाते हैं | जब तक वो काम करते रहते है रानी भी जागती रहती है फिर सुबह जल्दी उठ कर बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज देती है | बच्चे अगर जोर से बोलते हैं तो उन्हें चुप करा देती है “ पापा रात देर से सोये है…
ContinueAdded by Meena Pathak on March 5, 2013 at 10:16am — 24 Comments
वो बात पूछती है अक्सर सहेलियों में
क्या प्यार की लकीरें सच हैं हथेलियों में ||
आया जवाब ऐसा इजहार -ए- मुहोब्बत
ना में जवाब ढूंढो हाँ का पहेलियों में ||
उसकी हसीन सूरत , कैसे बयाँ करूँ मै
हसीन चाँद लाखों जैसे जलें दियों में ||
गुस्ताख ये नजर भी हर सू उसे निहारे
फूलों की शोखियों में रंगीन तितलियों में ||
नाराजगी तुम्हारी मासूमियत भरी हैं
जैसे छुपी मुहोब्बत हो माँ की गालियों में…
Added by Manoj Nautiyal on March 5, 2013 at 12:22am — 3 Comments
कैसे यह सरकार चलेगी कैसे तुम चल पाओगे
घूंट लहू की पीती जनता कैसे तुम बच पाओगे
दिल में थे अरमान बहुत औ लाखों सपने देखे थे
पर तुम उन सपनों को पूरा कैसे अब कर पाओगो
कैसे यह सरकार चलेगी कैसे तुम चल पाओगे
सोंचा था महफूज रहेंगे हंसी खुशी का मंजर होगा
हर लव पर खुशियां चहकेंगी सुखी यहां का जन-जन होगा
लेकिन उल्टा दांव पड़ रहा, गली गली में हरण हो रहा
चौक और चौराहों पर गुंडागर्दी का वरण हो रहा
यूपी की तसवीर यही क्या तुमने मन में ठानी थी
तुमने घर-घर…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on March 4, 2013 at 10:00pm — 2 Comments
Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 4, 2013 at 9:13pm — 2 Comments
Added by Manoj Nautiyal on March 4, 2013 at 8:22pm — 1 Comment
मौलिक एवं अप्रकाशित
मेरे पूर्वज भारत से आये थे इतना सुनकर
मारीच में सोना मिलता है पत्थर पलटकर
उन्नीसवीं सदी का दौर था,
अंग्रेज़ों का कठोर राज था,
हर दिशा हाहाकार मचा था,
बिहार से हर कोई भाग रहा था.
प्रथम पग रखे जब मारीच के रेतीले धरती पर
उन्हें क्या पता कि वे लाये गये ठगकर
बंद कोठरी में वे कितने दिन पड़े थे,
आदमी जानवर की तरह गिने जाते थे,
जिससे डर के इतने दूर भागे…
ContinueAdded by coontee mukerji on March 4, 2013 at 2:18pm — No Comments
मौलिक / अप्रकाशित
दीमक बिच्छू साँप से, पाला पड़ता जाय ।
पाला इस गणतंत्र ने, पाला आम नशाय ।
पाला आम नशाय, पालता ख़ास सँपोला ।
भानुमती…
ContinueAdded by रविकर on March 4, 2013 at 9:22am — 16 Comments
दुखीराम नॆ जब जब दीनानाथ के द्वार पर ख़ुशामद की,,,,नतीज़ा हर बार उनकी पत्नी की कोंख से कन्या रत्न की ही प्राप्ति हुई,,इस तरह शासकीय जन-गणना मॆं चार अंकॊं की बढ़ोत्तरी हो गईं,,,लेकिन दुखीराम की ख़ुशामद परॆड अब तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गई,,,ख़ुशामद करनॆ के स्थान भी अनगिनत हो गये, भगवान तो भगवान अब दुखीराम पंडित, मौलवी, और तुलसी, नीम, पीपल, बरगद,सभी की ख़ुशामद करनॆ लगॆ,,,और आखिरकार इस बार दुखीराम की ख़ुशामद नें अपना रंग दिखाया,,और दुखीराम कॆ घर मॆं कुल का चिराग़ जगमगाया,, दुखीराम कॆ सारे दुख:…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on March 4, 2013 at 3:30am — 14 Comments
युवतियाँ भी सीख रही, युवकों के ही साथ,
जूडो करांटे सीखे, रक्षा खुद के हाथ |
आँख मार मुँह फेरले, खावे मार कपाल,
छेड़-छाड़ अब छोड़ दे, नहीं बचेगी खाल |
अगर बुजुर्ग नहीं करे, कोंई शर्म लिहाज,
इज्जत के बट्टा लगे, समझे अब यह राज…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 3, 2013 at 8:00pm — 3 Comments
आज दि. 03/ 03/ 2013 को इलाहाबाद के प्रतिष्ठित हिन्दुस्तान अकादमी में फिराक़ गोरखपुरी की पुण्यतिथि के अवसर पर गुफ़्तग़ू के तत्त्वाधान में एक मुशायरा आयोजित हुआ. शायरों को फिराक़ साहब की एक ग़ज़ल का मिसरा --तुझे ऐ ज़िन्दग़ी हम दूर से पहचान लेते हैं-- तरह के तौर पर दिया गया था जिस पर ग़ज़ल कहनी थी. इस आयोजन में मेरी प्रस्तुति -
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दिखा कर फ़ाइलों के आँकड़े अनुदान लेते हैं ।
वही पर्यावरण के नाम फिर सम्मान लेते हैं ॥
निग़ाहें भेड़ियों के दाँत सी लोहू*…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on March 3, 2013 at 8:00pm — 65 Comments
Added by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 6:32pm — 18 Comments
मंदिर के बाहर भिखारियों की कतार में वो भी खड़ा था, पर भिखारी नहीं लगता था, उसकी आँखों में खुद्दारी, चेहरे पे आत्मविश्वास था । सेठजी हमेशा की तरह एक घंटे की पूजा की समाप्ति के बाद बाहर आये, चाल में अमीरों वाला रौबीलापन और चेहरे पे दानकर्ता होने का गर्व, जैसे साक्षात् भगवान् लोगों का दुःख दूर करने उतर आये हो, सबसे ज्यादा आकर्षक वो फूली हुई तोंद, शायद संसार के हर पुण्य का हिसाब इसी में हो, साथ में पचास के नोटों की गड्डी लिये बूढ़ा मुनीम, जो कई पुश्तों से सेठजी के सभी काम धंधों का हिसाब किताब…
ContinueAdded by Harjeet Singh Khalsa on March 3, 2013 at 5:30pm — 3 Comments
मौलिक/अप्रकाशित
जब कभी रस्ता चले ।
फब्तियां कसता चले ।।
जान जोखिम में मगर-
मस्त-मन हँसता चले…
Continueमै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
.............................................
.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
पाऊं कान्हा को राधिका बन
..........................................
रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
............................................
प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
..........................................
फैले कण कण में…
ContinueAdded by Rekha Joshi on March 3, 2013 at 11:53am — 20 Comments
कलयुग है भाई ,
यहाँ सबकुछ बिकता है !
घर ,वाहन,ज़मीन को छोड़ो,
यहाँ इंसान बिकता है !!
बस खरीदने वाला चाहिए ,
यहाँ ईनाम बिकता है !
फ़कत चंद नोटों के लिए ,
यहाँ सम्मान बिकता है !!
गरीब की रोटी बिकती है ,
लाचार,नंगा भूखा बिकता है !
जिससे ढकता बदन वह ,
गरीब की वह धोती बिकती है !!
जिसके पास कुछ नहीं ,
स्वाभिमान को छोड़कर !
उस स्वाभिमानी का अब ,
ईमान बिकता है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक…
Added by ram shiromani pathak on March 3, 2013 at 11:35am — 2 Comments
जय अम्बे जय मातु भवानी
जय जननी जय जगकल्यानी
जय बगुला जय विन्ध्यवासिनी
जय वैष्णव जय सिंहवाहिनी
कण कण में है वास तिहारा
तुम जग की हो पालनहारा
करूणा की हो सागर माता…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:32am — 13 Comments
देख धनी बलवान के, चिकने चिकने पात।
दुखिया दीन गरीब के, खुरदुर चिटके पात।।
दुखिया सब संसार है, सुख ढूंढन को जाय।
दूजों का जो दुख हरे, सुख खुद चल के आय।।
अपना कष्ट बिसारि के, औरों की सुधि लेय।
नहीं रीति ऐसी रही, अपनी अपनी खेय।।…
Added by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 9:00am — 17 Comments
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