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March 2022 Blog Posts (55)

वर्चुअल बनाम सच्चाई

सैकड़ो शब्द हमने लिखे लैपटॉप, टैबलेट पर

कलम को जब उठाया लिखने का मज़ा आया

स्काइप और डुओ में कई बार सबको देखा

गले लग के दोस्तों से मिलने का मज़ा आया

 

बेतुकी सी कई बाते चैटिंग में हमने बोली

संग बैठ कर गरियाये बकने का मज़ा आया

गाना और सावन में हज़ारो गाने सुन डाले

ताल ढोलक पर जब लगाया गाने का मज़ा…

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Added by AMAN SINHA on March 9, 2022 at 9:53am — 1 Comment

पलछिन

पलछिन

अम्मा जी को आज अस्पताल में भर्ती हुये दस दिन हो गये थे। दौड़ी आई अलविदा होती अम्मा की बेटी की बातों  और दिन-रात उनकी सेवा करती दोनों बहुओं ने मिलकर अपनी बूढ़ी अम्मा को भला चंगा कर दिया।

झाईयों से झांकती मुस्कान के साथ बेटी-बहुओं  के खिलखिलाते चेहरे… हंसी-मजाक में … सुकून के पल चुराती… एक-दूसरे को देख जैसे कुछ चटककर हंसी में खनखना…

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Added by babitagupta on March 8, 2022 at 2:53pm — No Comments

नवयुग की नारी (गीत)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

यह नवयुग की नारी है, सुमन रूप चिंगारी है।।

अबला औ' नादान नहीं अब।

दबी हुई पहचान नहीं अब।।

खुली डायरी का पन्ना है,

बन्द पड़ा दीवान नहीं अब।।

अंतस स्वाभिमान भरा है, लिए नहीं लाचारी है।।

यह नवयुग की नारी है.....

संघर्षों में तप कर निखरी।

पैमानों पर चोखी उतरी।।*

जितना इसको गया दबाया,

उतना बढ़चढ़ यह तो उभरी।।*

हल्के में मत इस को लो, छिपी हुई दोधारी है।।

यह नवयुग की नारी है.....

इसका साहस जब नभ गाता।

करता…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 7, 2022 at 8:54pm — 8 Comments

परछाई

जब मैं चलता हूँ तो साथ साथ वो भी चलती है

जहां मैं मुड़ा कहीं मेरे साथ वो भी मुड़ जाती है

रूप रंग में हाव-भाव में बिल्कूल मेरे जैसी है

मैं तो दीखता हूँ हर जगह वो कहीं-कहीं छुप जाती है

सूरज हो या चाँद फलक पर इसको फर्क नही पड़ता

खोली हो या हो कोई हवेली इसको डर नहीं लगता

आगे पीछे ऊपर निचे ये कही भी हो सकती है

टेढ़ी मेढी छोटी मोटी ये कैसी भी हो सकती…

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Added by AMAN SINHA on March 7, 2022 at 11:38am — 1 Comment

आंधी

चिड़ियों के चहक में आज कोलाहल था शोर था

उत्तर के पुरे आसमान में काले बादल का ज़ोर था

पेड़ अभी तक शांत खड़े थे धूल की ना कोई रैली थी

सूरज अब तक ढला नहीं था ना तो अंधियारी फैली थी

हवा थमी फिर सूरज चमका गर्मी थोड़ी और बढ़ी

काले बादलों की एक टोली आसमान में और चढ़ी

एक तरफ थे काले बादल एक तरफ उजियरा था

भी कहीं पर चमकी…

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Added by AMAN SINHA on March 5, 2022 at 12:31pm — 1 Comment


सदस्य टीम प्रबंधन
गौ माँ स्तुति (कनक मंजरी छंद )

जय जय संस्कृति स्तम्भ निवासिनि, दैव सुवासिनि हे शुभमा !
जय जय हे पुरुषार्थ प्रकाशिनि, व्याधि विनाशिनि मातु रमा !
.…
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Added by Dr.Prachi Singh on March 5, 2022 at 12:00pm — 2 Comments

क्षणिकाएं ( मार्च 22 ) — डॉo विजय शंकर

हम समझते थे , 

झूठ के करोड़ों प्रकार होते हैं।
यहां तो सच भी हर एक का
अपना अपना हैं। .......... 1. 

तुम बेशक मेरे रास्ते में
रोड़े बिछा सकते हो ,
मेरा नसीब नहीं बदल सकते,
अगर बदल सकते तो
अपनी तक़दीर बदलते ,
दूसरों के रास्ते में यूं
रोड़े नहीं बिछाते रहते।......... 2.

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2022 at 9:59am — 2 Comments

मन का डर

काँप उठता है बदन और धड़कने बढ़ जाती हैं

शब्द अटकते है जुबां पर साँसे भी थम जाती हैं

लाल हो जाती है आंखें भौह भी तन जाती हैं

सैकड़ो ख्याल मन को एक क्षण में घेरे जाती हैं

खून बेअदबी से तन में फिर बेधड़क है भागता

नींद से आँखे भरी पर रात भर है जागता

मन किसी भी काम में फिर कहीं लगता नहीं

अपने हीं विचार पर ज़ोर तब चलता…

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Added by AMAN SINHA on March 4, 2022 at 11:30am — No Comments

सरल जीवन

अब न रहे वो चाँदी से दिन,सोने सी वो रातें हैं 

बाबुल का वो प्यारा अंगना,सपनो की सी बातें हैं 

इसी अंगने मेंभाई बहन संग ,खेल कूद कर बड़े हुए 

संग संग खाना,लड़ना झगड़ना,अब बस मीठी यादें हैं 

चैन न था इक पल जिनके बिन,जाने कैसे बिछुड़ गए 

अब सब अपनी अपनी उलझन अलग अलग सुलझाते हैं 

चाहे कितना हृदय दग्ध हो,चाहे कितना बड़ा हो संकट

हम तो बिल्कुल ठीक ठाक हैं,सदा यही दर्शाते हैं 

इस दिखावटी युग में यदि हम,हृदय खोल सुख दुःख बाटें 

निश्चय सरल…

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Added by Veena Gupta on March 4, 2022 at 12:30am — 2 Comments

युद्ध के दोहे- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

देगा हल क्या ये भला, स्वयं समस्या युद्ध

दम्भी इस को ओढ़ता, तजता सदा प्रबुद्ध।१।

*

युद्ध न लाता भोर है, यह दे केवल साँझ

इस के हर परिणाम से, होती धरती बाँझ।२।

*

सज्जन टाले युद्ध को, दुर्जन दे सत्कार

जो झेले वह जानता, कैसी इसकी मार।३।

*

लोग समझते शांति की, यह रचता बुनियाद

लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।४।

*

इससे बढ़ता नित्य ही, दुख का पारावार

जाने अन्तिम युद्ध कब, होगा इस संसार।५।

*

सदा प्रगति शान्ति का, युद्ध बना अवरोध

लेकिन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 3, 2022 at 2:36pm — No Comments

उल्कापिंड

आसमान से टूटा तारा उल्का बनकर दौड़ चला

अन्धकार के महाशून्य में पाने अपनी राह चला

घर छूटने का तो दुःख था साथ टूटने का ग़म भी

अंतिम बार जो मुड़के देखा उसके नैन हुए नम भी

उसके वेग से महाशून्य में ज़ोर की गर्जन फ़ैल गयी

मिलों तक फिर ऊर्जा फैली अंधियारे को लील गयी

अभी जन्म हुआ था उसका चाल में अभी लड़कपन था

सालो बीते चलते चलते अब आने वाला यौवन था

सिर भागता था आगे उसका पूँछ दूर तक फैली थी

पीछे फैली कई मील तक तुक्ष पिंड की रैली…

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Added by AMAN SINHA on March 3, 2022 at 11:40am — No Comments

मेरा अभिमान

उसकी एक हंसी से बगिया की सारी क्यारी खिल गयी

आज हमारे उदासी घर को ढेर सी खुशियां मिल गयी

दिए जलाओ ख़ुशी मनाओ फूलों का झूला तैयार करो

लक्ष्मी चल कर घर है आई मिलकर उसका सत्कार करो

जिसके कर्म बड़े अच्छे हो बड़े पुण्य के काम किए

कर्म फल उनको है मिलता कन्या का अवतार लिए

जिसके घर में बेटी जन्मी , वो घर स्वर्ग बन जाता है

माँ बाप का पूरा जीवन तभी सफल हो जाता है

उसके घर में ना होने से जग सुना हो जाता है

चाहे भीड़ बरी हो घर में…

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Added by AMAN SINHA on March 2, 2022 at 11:27am — 3 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1222/1222/1222/1222

वही जज़्बा वही लहजा लिए अख़बार आता है

मगर उस हादसे से क्यूँ परे अख़बार आता है ।

चुनावी दौर के वादे मुकम्मल हो न हो लेकिन

तुम्हे भी हो ख़बर घर पर मेरे अख़बार आता है ।

जो भर्तियाँ अटकी हैं उनका क्या हुआ होगा

अभी तो कोर्ट से लड़ते हुए अख़बार आता है ।

यकीनन सच को ही तो सामने आना जरूरी था

अगरचे झूठ के नीचे दबे अख़बार आता है ।

जो उनके पैरहन का रंग भी चर्चा में आ जाए

यहाँ मातम…

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Added by DINESH KUMAR VISHWAKARMA on March 1, 2022 at 6:00pm — No Comments


मुख्य प्रबंधक
दो क्षणिकाएँ

01.ख्वाहिश

साधारण लोग

सहज स्वभाव

छोटी-छोटी बातें

दुःखी कर देती हैं

छोटी-छोटी बातों से

खुश हो जाते हैं

हम तो ख्वाब भी देखते हैं

तो छोटे-छोटे

टुकड़ों में....



नही है ख्वाहिश

आसमान छूने की

इतना चाहते हैं

बस जमीन न छूटे

और न छूटे

अपनों का साथ ।।

02.सनक

कई…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2022 at 1:30pm — 2 Comments

शिवमय दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

भीम, महेश्वर,  शम्भवे,  शंकर,  भोलेनाथ

गंगाधर, श्रीकण्ठ का, सबके सिर पर हाथ।१।

*

गिरिश, कपाली, शर्व ही, शिवाप्रिय, त्रिलोकेश

कृत्तिवासा, शितिकण्ठ का, हिममय है परिवेश।२।

*

वो सर्वज्ञ, परमात्मा, अनीश्वर, त्रयीमूर्ति

हवि,यज्ञमय, सोम हैं, करते इच्छा पूर्ति।३।

*

शूलपाणी , खटवांगी , विष्णुवल्लभ, शिपिविष्ट

भक्तवत्सल,  वृषांक  उग्र,  करते  हरण अनिष्ट।४।

*

तारक,  परमेश्वर,  अनघ,  हिरण्यरेता,  गणनाथ

शशि को धर शशिधर हुए,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2022 at 12:26am — No Comments

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