तारकोल से लगा चिपकने
चप्पल का तल्ला
बिगड़े हैं सुर मौसम के अब
कहे स्वेद की गंगा
फागुन में घर बाहर तड़पे
हर कोई सरनंगा
दोपहरी में जेठ न तपता
ऐसे सौर तपाए
अपनी पीड़ा किसे बताए
नया-नया कल्ला
पेड़ों को सिरहाना देती
खुद उसकी ही छाया
श्वानो जैसी उस पर पसरे
आकर मानव काया
जो पेड़ों को काटे ठलुआ
बढ़कर धूप उगाए
अपनी गलती से वह भी तो
झाड़ रहा…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on March 28, 2024 at 10:41pm — 5 Comments
दोहा पंचक. . . . प्रेम
अधरों पर विचरित करे, प्रथम प्रणय आनन्द ।
चिर जीवित अभिसार का, रहे मिलन मकरंद ।।
खूब हुआ अभिसार में, देह- देह का द्वन्द्व ।
जाने कितने प्रेम के, लिख डाले फिर छन्द ।।
मदन भाव झंकृत हुए, बढ़े प्रणय के वेग ।
अधरों के बैराग को, मिला अधर का नेग ।।
धीरे-धीरे रैन का , बढ़ने लगा प्रभाव ।
मौन चरम अभिसार के, मन में जले अलाव ।।
नैन समझते नैन के, अनबोले स्वीकार ।
स्पर्शों के दौर में, दम…
Added by Sushil Sarna on March 23, 2024 at 2:45pm — 4 Comments
रण भूमी में अस्त्र को त्यागे अर्जुन निःस्तब्ध सा खडा हुआ
बेसुध सा निःसहाय सा केशव के चरणों मे पडा हुआ
कहता था ना लड पायेगा, वार एक ना कर पायेगा
शत्रु का है भेष भले पर वो अपना है जो अडा हुआ
कैसे मैं उनपर प्रहार करूँ, जिनका मैं इतना सम्मान…
ContinueAdded by AMAN SINHA on March 23, 2024 at 5:57am — 1 Comment
कुंडलिया - गौरैया
गौरैया को देखने, हम आ बैठे द्वार ।
गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार ।
सुंदर लगे संसार , धरा पर दाना खाती ।
लेकर तिनके साथ, घोंसला खूब बनाती ।
कह ' सरना ' कविराय, धूप में ढूँढे छैया ।
उसको उड़ते देख, कहें री आ गौरैया ।
सुशील सरना / 21-3-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on March 21, 2024 at 4:00pm — 4 Comments
निभाकर रीत होली में
दिलों को जीत होली में।१।
*
भरें जीवन उमंगों से
चलो गा गीत होली में।२।
*
सभी सुख दुश्मनी छीने
बनो सब मीत होली में।३।
*
बहुत विरही तड़पता है
सफल हो प्रीत होली में।४।
*
किसी को याद मत आये
गयी जो बीत होली में।५।
*
लगे अब रोग कहते हैं
दुखों को पीत होली में।६।
*
गिरा दो रंग बरसाकर
खड़ी हर भीत होली में।७।
*
यही अरदास है पिघलें
दिलों की शीत होली…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 21, 2024 at 6:55am — No Comments
काश कहीं ऐसा हो जाता,
मैं जगता तू सो जाता
मेरी हंसी तुझे मिल जाती
तेरे बदले मैं रो लेता
काश कहीं ऐसा हो जाता
तू चलता मैं थक जाता
पैर तेरे कभी ना रुकते…
ContinueAdded by AMAN SINHA on March 19, 2024 at 6:02am — 1 Comment
दोहा पंचक. . . . .
महफिल में तनहा जले, खूब हुए बदनाम ।
गैरों को देती रही, साकी भर -भर जाम ।।
गज़ब हया की सुर्खियाँ, अलसाए अन्दाज़ ।
सुर्खी सारे कह गई, बीती शब के राज़ ।।
साथी है अब वेदना, विरही मन की यार ।
विस्मृत होता ही नहीं, वो अद्भुत संसार ।।
उसे भुलाने के सभी, निष्फल हुए प्रयास ।
मदन भाव उन्नत हुए, मन में मचली प्यास ।।
कोई पागल हो गया, किसी ने खोये होश ।
आशिक को घायल करे, मदमाती आगोश…
Added by Sushil Sarna on March 18, 2024 at 4:03pm — No Comments
आ जा खेले आँख मिचौली, तू मेरा मैं तेरी हमजोली
बंद करूँ मैं आँखों को तू जाकर कहीं छूप जाए
पर देख मुझे तू सतना ना दूर कहीं छिप जाना ना
ऐसा न हो तू पुकारे मुझे, मैं दूर कहीं खो जाऊं
मैं आऊँ मैं आऊँ…
ContinueAdded by AMAN SINHA on March 16, 2024 at 6:16am — No Comments
221--2121--1221--212
दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही
जी कर भी क्या करोगे जो इज़्ज़त नहीं रही
झूठों की सल्तनत में हुआ सच का सर क़लम
ऐसा भी सब में कहने की हिम्मत नहीं रही
जो फ़ाइलों में पुल था बना, कब का ढह गया
सरकारी काम काज में बरक़त नहीं रही
संसार लेन देन का बाज़ार बन गया
रिश्तों में अब लगाव की क़ीमत नहीं रही
देखो तो काम एक भी हमने कहाँ किया
पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on March 12, 2024 at 5:16am — 1 Comment
दोहा पंचक. . . .
कर्मों के परिणाम से, गाफिल क्यों इंसान ।
ऐसे जीता जिंदगी, जैसे हो भगवान ।।
भौतिक युग की सम्पदा, कब देती आराम ।
अर्थ पाश में जिंदगी , भटके चारों याम ।।
नश्वर तन को मानता, अजर -अमर परिधान ।
बस में समझे साँस को, यह दम्भी इंसान ।।
साथ चली किसके भला, अर्थ दम्भ की शान।
खाक चिता पर हो गई, इंसानी पहचान ।।
कहे स्वयंभू स्वयं को , माटी का इंसान ।
मुट्ठी भर अवशेष बस,मैं -मैं की पहचान ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 10, 2024 at 3:13pm — 2 Comments
1212--1122--1212--22
अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता
ग़ज़ल सुनो! मैं लतीफ़े सुना नहीं सकता
ग़मों के दौर में जो मुस्कुरा नहीं सकता
वो ज़िंदगी से यक़ीनन निभा नहीं सकता
ख़ुद अपने सीने पे ख़ंजर चला नहीं सकता
हर एक दोस्त को मैं आज़मा नहीं सकता
वो जिसकी ताल ही है मेरी धड़कनों का सबब
वही तराना-ए-उल्फ़त मैं गा नहीं सकता
वो आसमाँ का सितारा है, मैं ज़मीं का परिंद
मैं ख़्वाब में भी क़रीब…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on March 10, 2024 at 7:10am — 2 Comments
दोहा पंचक. . . नारी
नर नारी से श्रेष्ठ है, हुई पुरानी बात ।
जीवन के हर क्षेत्र में, नारी देती मात ।।
नर नारी के बीच अब, नहीं जीत अरु हार ।
बनी शक्ति पर्याय अब, वर्तमान की नार ।।
कंधे से कंधा मिला, दे जीवन को अर्थ ।
नारी अब हर क्षेत्र में, लगने लगी समर्थ ।।
अनुपम कृति है ईश की, इस जग का आधार ।
लगे अधूरा सृष्टि का , नारी बिन शृंगार ।।
आसमान छूने चली, कल की अबला नार ।
देख…
Added by Sushil Sarna on March 9, 2024 at 5:35pm — No Comments
2122--1212--22
वोदका, व्हिस्की और कभी रम से
दिल को निस्बत है क़िस्सा ए ग़म से
ख़्वाब झरते हैं चश्मे पुर-नम से
हम बहलते हैं अपने ही ग़म से
उसकी मर्ज़ी ही अपनी मर्ज़ी है
क्यूँ गिला ज़िंदगी को फिर हम से
छूट जाता जो मोह अपनों का
बुद्ध बन जाते हम भी गौतम से
कब तलक देखें हम तेरी तस्वीर
प्यास बुझती नहीं है शबनम से
शाम होने लगी है जीवन की
रंग उड़ने लगे हैं मौसम…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on March 9, 2024 at 8:30am — No Comments
आज गाँव से पाति आई,
माँ के चरणों की मिट्टी लायी
वैसे तो ये बस धूल है लेकिन,
इसमे अपनों की महक समाई
पाति में सबके हिस्से है,
सबके अपने-अपने किस्से है
कहीं प्रेम है, कहीं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on March 8, 2024 at 11:09pm — No Comments
1212 1212
सही सही बता है क्या
भला है क्या बुरा है क्या
न इश्क़ है न चारागर
तो दर्द की दवा है क्या
लहू सा लाल लाल है
ये आँख में जमा है क्या
बुझे बुझे से लोग हैं
ये ज़िंदगी सज़ा है क्या
अजीब कशमकश सी है
ये दिल तुझे हुआ है क्या
सुकून है न चैन है
यूँ जीने में मज़ा है क्या
जो खाक़ हो रहे हैं हम
किसी कि बद्दुआ है क्या
जला दिया तो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on March 6, 2024 at 7:00pm — No Comments
नगर भर चले दौड़ काली हवा
है खुश खूब झकझोर डाली हवा।१।
*
गिरे फूल कलियाँ विवश भूमि पर
बजा पात कहती है ताली हवा।२।
*
कभी दान जीवन सभी को दिया
हुई आज लेकिन सवाली हवा।३।
*
कहाँ से प्रदूषण धरा का मिटे
नहीं सीख पायी जुगाली हवा।४।
*
कँपा शीत में नित बढ़ी जब तपन
गयी लौट कुल्लू मनाली हवा।५।
*
तनिक तो कहीं बात होती है कुछ
किसी की चली कब है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2024 at 11:04am — 6 Comments
दोहा पंचक . . .
बातें करते प्यार की, करें न सच्चा प्यार ।
इस स्वार्थी संसार में, सब मतलब के यार ।।
सच्चे- झूठे सब यहाँ, कैसे हो पहचान ।
कई मुखौटों में छिपा,कलियुग का इंसान ।।
सच्चा मन का मीत वो, सच्ची जिसकी प्रीति ।
वो क्या जाने प्रीति जो, सिर्फ निभाये रीत ।।
छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।
सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।।
कैसे यह अनुबंध हैं, कैसे यह संबंध ।
देह क्षुधा के दौर में,…
Added by Sushil Sarna on March 5, 2024 at 3:45pm — 2 Comments
दोहा सप्तक - जीवन तो अनमोल है
जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग ।
पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग ।1।
जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार ।
कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार ।2।
जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।
अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ ।3।
जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप ।
इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप ।4।
जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।
बहुत कठिन है जानना , इसका अर्थ…
Added by Sushil Sarna on March 3, 2024 at 2:36pm — No Comments
उदार शासक एक वीर योद्धा
कला-प्रतिभा का संरक्षक जिसे कहा
गुप्त वंश एक महान योद्धा, जिसे भारत का नेपोलियन सबने कहा।।
चंद्रगुप्त प्रथम का राजदुलारा
कुमारदेवी का पुत्र रहा
विनयशील जो मृदुलवाणी का, प्रखर बुद्धि का स्वामी हुआ।।
उत्तराधिकारी का प्रबल दावेदार
पराजित अग्रज काछा भी उससे हुआ
विजय अभियान की ख़ातिर जाना जाता, अजय-अभय एक योद्धा रहा।।
गृह कलह को शांत है…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on March 1, 2024 at 4:30pm — No Comments
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