आशा .......
बहुत कोशिश की
मगर हार गई मैं
उस अनुपस्थिति से
जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है
एक खौफ के लिबास में
मुझे ठेंगा दिखाते हुए
भोर से लेकर साँझ तक
दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच
हमेशा झकझोरती है
किसी ग़ैर की मौजूदगी
मेरे अंतःस्थल को
उस की अनुपस्थिति के लिए
निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं
आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर
थकान की पराकाष्ठा पर
जब बदन निढाल होकर…
Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
जगाकर दिल में उम्मीदें दिलों को तोड़ने वालो
हमारा क्या है हम तो बेसहारा हैं सो जी लेंगे
तुम्हारा दिल अगर टूटा तो फ़िर तुम जी न पाओगे
मिरे लख़्त-ए-जिगर सुन लो गमों को पी न पाओगे
जरा सा नर्म रक्खो इस गुमाँ के सख़्त लहजे को
ये चादर फट गयी गर ज़िंदगी की सी न पाओगे
यहाँ हर शय पे रहता है मिरी जाँ वक़्त का पहरा
अगर जो वक़्त बदला तो बचा हस्ती न पाओगे
हमें आदत है पीने की सो हम तो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 30, 2021 at 11:22am — No Comments
बीते कुछ दिनों में लगा
कि हम कुछ बड़े हो गये ,
अहंकार से फूलने लगे
और फूलते...चले गए।
फूले इतना कि हर समस्या
के सामने बौने हो गये।
यकीन नहीं होता कि
आदमी खुद कुछ नहीं होता ,
ये जानने के बाद भी ,
कुछ का ख्याल हैं कि
लूटो-खाओ, पाप-पुण्य
कहीं कुछ नहीं होता ,
भगवान भी कहीं नहीं होता।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on April 30, 2021 at 10:48am — 2 Comments
सायली (कोरोना)
आसुरी
कोरोना मगरूरी
कायम रखें दूरी
मास्क जरूरी
मजबूरी!
*****
महाकाल
कोरोना विकराल
देश पर भूचाल
सरकारी अस्पताल
बदहाल।
*****
चमगादड़ी
कोरोना जकड़ी
संकट की घड़ी
आफत बड़ी
पड़ी।
*****
भड़की
कोरोना कलंकी
चमगादड़ से फड़की
मासूमों की
सिसकी।
*****
लाचारी
कोरोना महामारी
भर रही सिसकारी
दुनिया…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 29, 2021 at 10:18am — 4 Comments
मापनी १२२ १२२ १२२ १२२
नदी का वो बहता हुआ जल किधर है.
सवालों का ऐसे बता हल किधर है.
घुसी जा रहीं आज खेतों में सडकें,
डराता था हमको वो जंगल किधर है.
कहाँ से पवन अब बहे मंद शीतल,
चमेली, ये बेला, ये…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 29, 2021 at 9:26am — 2 Comments
होम-क्वारंटाइन में मैं चेतन और अवचेतन के बीच झूल रहा था I मेरा बड़ा बेटा रमेश रंजन (कुशी) दिन भर ऑक्सीमीटर से मेरा ऑक्सीजन-लेवल और पल्स-रेट चेक करता रहा I चार बजे सायं तक ऑक्सीजन लेवल 91 हो गया I बहुत कम नहीं था पर बेटा चिंता में पड़ गया I उसने सीधे अपने मामा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें हम ‘कुँवर जी’ कहते हैं, उन्हें फोन लगाया I कठिन क्षणों में कुँवर जी और उनका परिवार ही हमेंशा हमारा संकटमोचक रहा है और यही बड़ा विश्वास हमें और हमारे बच्चों को दुविधा की स्थिति में उनके पास ले जाता है…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 29, 2021 at 6:30am — No Comments
किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो
देश बेबस को निवाला कर रहे हो।१।
*
रंग पोते धर्म का बाहर से अपने
आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।
*
निर्वसनता चन्द लोगों को सुहाती
इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।
*
कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब
खून के छींटों से क्योंकर डर रहे हो।४।
*
व्यर्थ है उम्मीद पिघलोगे कभी ये
है पता हर जन्म में पत्थर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments
नर्स ने कोविड मरीज को ऑक्सीमीटर से चेक किया I उसका ऑक्सीजन लेवल 85 और पल्स रेट 60 था I पिछले बारह घंटे से वह ऑक्सीजन पर थाI
‘दादा, कोई तकलीफ ?’- नर्स ने पूछा I
‘हाँ, सूखी खाँसी आती है I गला सूखता है I’- मरीज ने दुर्बल स्वर में कहा I
‘खाँसी जाने में अभी महीना भर लगेगा I साँस लेने में तो कोई परेशानी नहीं है?
‘नहीं, ऑक्सीजन लगने से आराम है I’
‘पर दादा, यह मास्क केवल खाना खाने और पानी पीने के समय ही हटाना I मैंने पानी में ओ.आर.एस. मिला दिया है I धीरे-धीरे उसे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 28, 2021 at 4:30pm — 5 Comments
कौन आँसू पोंछे , कौन सान्त्वना दे ?
स्वजन की मौत पर अकेले ही रोए हैं
आतंकी कोरोना के, मुश्किल हालातों में
स्वयं सांत्वना दी , स्वयं नेत्रनीर धोए हैं
ना ही चेहरा देखा , ना मरघट जा पाए
कैसी विडम्बना ; जो मन को झुलसाए
संचित स्मृतियों को , प्रेमपूर्ण भाव में
सजा लिया है अपने अन्तर के गाँव में
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2021 at 4:00pm — No Comments
पाकीज़गी ......
मैं
जिस्म से रूह तक
तुम्हारी हूँ
मेरी नींदें तुम्हारी हैं
मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं
मेरी आस भी तुम हो
मेरी प्यास भी तुम हो
मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो
मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो
मगर ख़याल रहे
मेरे जिस्म को
दिखावटी पर्दों से नफ़रत है
मेरे पास आना तो
ज़माने के बेबस लिबास को
ज़माने में ही छोड़ आना
क्योंकि
मेरे जिस्म को
पाकीज़गी पसंद है
सुशील सरना
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments
जलता है जिस्म सुर्ख है किंदील के जैसे
इक झील दिन में लगती है किंदील के जैसे
हर शाम उतर आता है ये दरियाओं झीलों पर
मर फ़ासलाई होगी इक खगोलिये इकाई
दिखता भी सुर्ख सुर्ख है घामें लपेटे है
सूरज भी तो जलता है इक किंदील के जैसे
है तीरगी घनी घनी ज़हनों के अंदर तक
सब भूल जायें जात-पात हद-कद और सरहद
सब ख़ाक करके बंदिशें रौशन करें ख़ुद को
मैं भी जलू तू भी जले किंदील के जैसे
चलो मिलके सारे जलते हैं किंदील के जैसे
है धरती के…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 28, 2021 at 10:59am — No Comments
प्रतिभा छुपी हुई है सबमें,करो उजागर,
अथाह ज्ञान,गुण, शौर्य समाहित,तुम हो सागर।
डरकर,छुपकर,बन संकोची,रहते क्यूँ हो?
मन पर निर्बलता की चोटें,सहते क्यूँ हो?
तिमिर चीर रवि द्योत धरा पर ले आता है।
अंधकार से डरकर क्यूँ नहीं छिप जाता है?
पराक्रमी राहों को सुलभ सदा कर देते,
आलस प्रिय जिनको,बहाने बना ही लेते।
तंत्र,मन्त्र,ज्योतिष विद्या,कर्मठ के संगी,
भाग्य भरोसे जो बैठे वो सहते तंगी।
प्रबल भुजाओं को खोलो,प्रशंस्य बनो,…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on April 27, 2021 at 3:00pm — 5 Comments
विदा की वह शाम
प्रबल झंझावात के बाद मानो
दिशा-दिशा आकुल अकथ सुनसान
निस्तब्ध शांत ... और इस पर
दिन से सम्बन्ध तोड़ रही
वैभव-विहीन शाम…
ContinueAdded by vijay nikore on April 27, 2021 at 2:30pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चिन्ता करें जो आम की शासन नहीं रहे
कारण इसी के लाखों के जीवन नहीं रहे।१।
*
हर कोई खेल सकता है पैसों के जोर पर
कानून आज देश में बन्धन नहीं रहे।२।
*
अब हो गये हैं आँख वो भूखे से गिद्ध की
जो थे बचाते लाज को यौवन नहीं रहे।३।
*
आई हवा नगर की तो दीवारें बन गयीं
मिलजुल जहाँ थे बैठते आगन नहीं रहे।४।
*
जीवन का दर्द आँखों में उनकी रहा जवाँ
बेवा हो जिनके हाथों में कंगन नहीं रहे।५।
*
तकनीक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 12:48pm — 4 Comments
मुहब्बत हो जाती है ,
मुहब्बत हो जाती है ,
मुहब्बत हो जाती है ,
ये तो नफ़रतें हैं ,
जिनके लिए टेंडर
निकाले जाते हैं .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on April 25, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२
किसी रात आ मेरे पास आ मेरे साथ रह मेरे हमसफ़र
तुझे दिल के रथ पे बिठा के मैं कभी ले चलूँ कहीं चाँद पर
तुझे छू सकूँ तो मिले सुकूँ तुझे चूम लूँ तो ख़ुदा मिले
तू जो साथ दे जग जीत लूँ तूझे पी सकूँ तो बनूँ अमर
मेरे हमनशीं मेरे हमनवा मेरे हमक़दम मेरे हमजबाँ
तुझे तुझ से लूँगा उधार, फिर, भरूँ किस्त चाहे मैं उम्र भर
कहीं धूप है कहीं छाँव है कहीं शहर है कहीं गाँव…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2021 at 6:10pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने किसी को हर्ष का इक पल नहीं दिया
सूखी धरा को जैसे कि बादल नहीं दिया।१।
*
रूठे तो उससे रोज ही लेकिन मनाया कब
आँसू ढले जो आँखों से आँचल नहीं दिया।२।
*
गंगा से भर के लाये थे पुरखों को तारने
जलते वनों की प्यास को वो जल नहीं दिया।३।
*
कहने पे मन को आपके बंदिश में क्यों रखें
यूँ जब किसी भी द्वार को साँकल नहीं दिया।४।
*
कालिख लगी है इनमें जो सौगात जग की है
आँखों में हम ने एक भी काजल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 25, 2021 at 12:36pm — 6 Comments
14-12
रास्ते सुनसान और घर, कैद खाने हो गये
खुशनुमा इंसान दहशत, के निशाने हो गये
बेबसी का हाल देखा, दिल दहल कर रह गया
मुफ़्लिसी में ज़िंदगी का, ख़्वाब जल कर रह गया
डर से कोरोना के भी, वो भला अब क्या डरे…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 11:30pm — 2 Comments
Added by vijay nikore on April 24, 2021 at 11:30pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
कफ़स में उम्र गुजरी है परिंदा उड़ न पायेगा
जो तुम आज़ाद भी कर दो घर अपने मुड़ न पायेगा
संभल जाना अगर कोई तुम्हें करने ख़ुदा आये
वगरना ऐसे तोड़ेगा कि दिल फ़िर जुड़ न पायेगा
वो चाहे बेड़ियों से हो या फ़िर की हो किसी दिल से
अगर जो पड़ गई आदत तो बंधन छुड़ न पायेगा
लुटेरे हैं ये सब मुफ़्लिस जो तुम विश्वास दिलाते हो
रिवायत बन गया गर ये भरम फ़िर तुड़ न पायेगा
तमाम आज़ी कुछ आदत…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 10:40am — No Comments
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