दोहा मुक्तक.....
अपने कृत्यों से कभी, देना मत संताप ।
माँ के चरणों में कटें, जन्म- जन्म के पाप ।
फर्ज निभाना दूध का , हरना हर तकलीफ -
बेटे को आशीष से, माँ के मिले प्रताप ।
* * * *
भूले से करना नहीं, माता का अपमान ।
देना उसके त्याग को, सेवा से सम्मान ।
मूरत है ये ईश की, ये करुणा की धार -
माँ के चरणों में सदा, सुखी रहे सन्तान ।
सुशील सरना / 10-5-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 10, 2022 at 8:12pm — 5 Comments
1212 - 1122 - 1212 - 112
इबादतों में अक़ीदत की सर-कशी न मिला
महब्बतों में मेरे यार दुश्मनी न मिला
हवाओं में न कहीं अब ये ज़ह्र घुल जाए
फ़ज़ा को साफ़ ही रहने दे शोरिशी न मिला
कहीं नहीं है कोई ग़ैर दूर-दूर तलक
मगर क़रीब भी मुझको मेरा कोई न मिला
सिहर उठा हूँ किया याद वक़्त वो जब जब
चिता को आग लगाने को आदमी न मिला
मिले हैं यूँ तो हज़ारों हसीं ज़माने में
जिसे तलाशता रहता हूँ बस वही…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 10, 2022 at 1:57pm — 10 Comments
ज़मीन पर पड़ा अवशेष
बरगद का मूल आधार शेष
सोचता है आज
कल तक था बरगद विशाल
बरगदी सोच,बरगदी ख्याल
बरगदी मित्र ,मन भी बरगदी
सहयोगी प्रतिद्वंदी बरगदी बरगदी
गर्वित निज का उत्कर्ष रहा
शेष की लघुता पर हर्ष रहा
निज तक की जड़ को नहीं ताका
गैर की छांह को कभी न लांघा
झुकना न सीखा सूखना न जाना
मनना न सीखा रूठना न जाना
आंधी को थकाया
मेघों को रुलाया
जलते सूरज को छतरी…
ContinueAdded by amita tiwari on May 9, 2022 at 9:00pm — 11 Comments
माँ सिर्फ जननी ही नही पालनहार भी होती हैं। संतान के जीवन को परिपूर्णता देने वाला माँ जीवन का संबल साया होता हैं। बच्चों के संघर्ष में कदम-दर-कदम साथ निभाती माँ का भरोसा आत्मविश्वास को कभी कम नही होने देती। अपने बच्चों के इर्द-गिर्द सपने बुनती माँ का स्पर्श तसल्ली देता हैं उसके कहे शब्द ,सीखे संकटमोचक बनकर हिम्मत देते हैं,ढांढस बँधाते हैं। प्यार-दुलार की बारिश करने वाली माँ भावनाओं का ऐसा अथाह सागर हैं माँ शब्द में पूरा संसार समाया हैं।अपने पूरे जीवन को समर्पित करने वाली माँ के त्याग अनमोल…
ContinueAdded by babitagupta on May 8, 2022 at 9:10am — 2 Comments
मुक्तक
आधार छंद - मनोरम
प्यार का इजहार लेकर ।
आस का अंबार लेकर ।
दे रहा आवाज कोई -
श्वास का शृंगार लेकर ।
***
प्रीत का संसार देकर ।
मौन का आधार देकर ।
छल गया विश्वास कोई -
स्पर्श का अंगार देकर ।
***
ख्वाब जो साकार होते ।
दर्द क्यों गुलज़ार होते ।
तिश्नगी को जीत लेते -
आप का हम प्यार होते ।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 6, 2022 at 2:18pm — 4 Comments
तोड़े थे यकीन मैंने मुहल्ले की हर गली में
चैन हम कैसे पाते इतनी आहें लेकर
मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है
ठोकरे हीं हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर
हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया
ज़मी थी सख्त मैं मगर बस धंसता हीं गया
गुनाह जो मैंने किये थे बे-खयाली में
याद करके उन सबको मैं बस गिनता…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 6, 2022 at 12:54pm — 1 Comment
२२१/२१२१/१२२१/२१२
होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी
मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।
*
चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के
समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।
*
माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर
नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।
*
गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ
मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।
*
पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक
लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।
*
चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2022 at 12:31pm — 10 Comments
2122 2122 2122 212
1
औरों के जैसा मुकद्दर यार अपना है कहाँ
अपने दिल का जोर उसके दिल प चलता है कहाँ
2
रात होती है कहाँ और दिन गुज़रता है कहाँ
मन मुआफ़िक़़ ज़िन्दगी में जीना मरना है कहाँ
3
एक दिन में कुछ नहीं पर एक दिन होगा ज़रूर
आदमी ये सब्र तब तक यार रखता है कहाँ'
4
आज तक कोई नहीं यह जान पाया दोस्तो
इस ज़माने को बनाने वाला रहता है कहाँ
5
किस तरह भर लूँ उनींदी आँखों में ख़्वाबों के…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on May 6, 2022 at 10:30am — 8 Comments
दोहा पंचक ....
मन में मदिरा पाप की, तन व्यसनों का धाम ।
मानव का चोला करे, मानव को बदनाम ।।
छोड़ो भी अब रूठना, छोड़ो भी तकरार ।
देखे थे जो आपके , स्वप्न करो साकार ।।
लुप्त हुई संवेदना , मिटा खून का प्यार ।
रिश्तों में गुंजित हुई , बंटवारे की रार ।।
दिख जाएगी देख तू , तुझको अपनी भूल ।
मन के दर्पण से हटा , जमी स्वार्थ की धूल ।।
भेद बढ़ाती प्यार में, बेमतलब की रार ।
खो न दें कहीं रार में, जीवन का…
Added by Sushil Sarna on May 3, 2022 at 11:58am — 4 Comments
तन-मन के दोहे
-------------------
चतुर लालची मन हुआ, भोली देह गँवार
जब तब जैसा मन कहे, होती वह तैयार।१।
*
सहज देह की भूख है, निदिया, रोटी, नीर
जग में पर बदनाम है, मन से अधिक शरीर।२।
*
तन को थोड़ा चाहिए, मन की माग अनंत
कहते मन बस में रखो, इस कारण ही सन्त।३।
*
बढ़े भावना काम की, करें नैन व्यभिचार
केवल साधन देह तो, मन साधक की मार।४।
*
तन से बढ़कर मन रहे, नित्य विषय में लीन
जिस की बातें मानकर, कर्म करे तन हीन।५।
*
विषय मुक्त जो मन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 2, 2022 at 1:59pm — 8 Comments
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