Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 21, 2016 at 9:50am — 13 Comments
पानी नहीं है , प्यास लगी है
मुन्ने को देखो प्यास लगी है
घर के सारे घड़े खाली पड़े है
बाहर के नल भी सूखे पड़े है
मुन्ने को मैं कैसे समझाऊं
प्यास उसकी मैं कैसे बुझाऊं
गर्मी भी तो बढ़ रही है
बस्तियां जैसे जैसे गढ़ रहीं है
वन उपवन हमने काट दिए है
और जाने कितने विनाश किये है
अब भुगत रहे मासूम यह बच्चे
कौन समझें यह तो अक्ल के कच्चे
अक्ल वाले सब कहाँ गए…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 11:00pm — 1 Comment
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 19, 2016 at 5:12pm — 14 Comments
दिल पे दस्तक जो दूँ तो बुला लिजिए
दूर रहने की अब ना सजा दिजिए
मेरे नयनो की आप रोशनी हो बनी
आप बिन कुछ ना देखूँ है खुद से ठनी
ज्योति को यूँ ना दृग से जुदा किजिए
दिल पे दस्तक .......
मद में ही मै भटकता रहा दर-बदर
रास आई तन्हाई मुझे इस कदर
इस तन्हाई को अपना पता दिजिए
दिल पे दस्तक .......
दिल में दर्दे हिज्र की अब तामीर हो रही
ख्वाब में आपके मेरा जिक्र भी नही
दश्ते-बेकसी से अब तो फना किजिए
दिल पे दस्तक…
Added by Pawan Kumar on May 19, 2016 at 11:30am — 8 Comments
ठाकुर सरकार, माफ़ कर दें . मेरी बिटिया अभी नासमझ है .तीन दिन से चूल्हा नहीं जला सरकार .’
‘क्यों चूल्हे को क्या हुआ ?’
‘सरकार, उनका पुलिस चोरी के शक में पकड़ ले गयी , वही कुछ कमा कर लाते थे, घर् में कुछ था ही नहीं तो चूल्हा कैसे जलता?’
‘और---- तेरी बिटिया ने भी तो चोरी ही की है , तुम सब घर भर चोर हो तो माफी कैसी ?’
‘नहीं सरकार, उन्होंने चोरी नहीं की, पुलिस साबित नहीं कर पायी ‘
‘मगर तुम्हारी बेटी तो चोरी करती पकड़ी गयी .’
’हाँ सरकार मगर-----‘
‘अब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 18, 2016 at 9:30pm — 28 Comments
2122--2122--2122--212
पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया
ज़लज़ला कुछ बेबसों के सारे गौहर ले गया
ज़िन्दगी के खुशनुमा लम्हों से वो महरूम है
शाम को जो साथ अपने घर में दफ़्तर ले गया
हौसला, हिम्मत, ज़वानी, ख़्वाहिशें, बे-फिक्र दिल
वक़्त का दरिया मेरा सब कुछ बहा कर ले गया
सारी दुनिया जीत कर भी हाथ खाली ही रहे
वक़्त-ए-रुख़सत इस जहाँ से क्या सिकन्दर ले गया
छु न पाये हाथ उसके जब मेरी दस्तार को
तैश में आकर वो काँधे से…
Added by दिनेश कुमार on May 18, 2016 at 5:30pm — 29 Comments
इंतज़ार ....
ये बादे सबा
आज किसकी सदा लाई है
कुछ कम्पन्न है
कुछ नमी है
कुछ भीगी सी तन्हाई है
शायद ! अधूरे अहसासों ने
ज़हन में करवट ली है
लफ्ज़ लबों की हदों पर
तिश्नगी के अज़ाब में
डूबे नज़र आते हैं
इन साँसों की बेचैनियों में
जाने किस अजनबी का ख़ुलूस
करवटें लेता है
ये मेरी तदब्बुर में
किसके लम्स रक्स करते हैं
कोई तो नाख़ुदा होगा
जो मेरी हयात के सफ़ीने को
साहिल तक ले जाएगा
दबे पाँव आकर
मेरी…
Added by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 4:32pm — 16 Comments
जिन्दगी का सफर खूब है,
मैं हूँ तनहा , मगर खूब है.
जिन्दगी कट रही शान से ,
ये सुहाना सफ़र खूब है .
क्या कहूँ मैं शबे-वस्ल को,
वो जगा रात भर खूब है.
प्यार की इंतिहा हो गई,
बेकरारी उधर खूब है .
हर दिशा में चमकता रहा ,
ये गणित का सिफर खूब है.
खार के साथ हैं फूल भी, ,
कंटकों की डगर खूब है
मानता हूँ मैं "आभा"तुझे,
वाह! तेरी नज़र खूब…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on May 18, 2016 at 8:30am — 11 Comments
Added by Dr T R Sukul on May 17, 2016 at 11:00pm — 10 Comments
बस स्टैंड पर बस से उतरते ही सुखिया का चेहरा खिल उठा। पिताजी टैक्सी वाले से बात करने लगे, तो उसने टोकते हुए कहा- "नहीं बापू, हम पैदल ही चलेंगे, हम शहर घूमते हुए चलेंगे, सामान भी कोई ज़्यादा नहीं है न!"
" न बेटा, टैक्सी वाले ने बताया है कि मानस भवन तो बहुत दूर है! शहर बाद में घुमा देंगे!"-
पिताजी ने कहा।
फिर दोनों टैक्सी पर सवार हो गए। जैसे ही टैक्सी ने रफ़्तार पकड़ी, सुखिया पहले तो सपनों में खो गया, फिर गाड़ियों की आवाज़ों और होर्न के शोरगुल ने उसे बेचैन कर दिया। पिताजी ने उसे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 17, 2016 at 10:00pm — 16 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 17, 2016 at 6:58pm — 11 Comments
Added by kanta roy on May 17, 2016 at 4:57pm — 8 Comments
Added by Rahila on May 17, 2016 at 3:53pm — 13 Comments
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 17, 2016 at 12:42pm — 14 Comments
212 – 212 – 212 – 212 ग़ज़ल
किस तरह आप से मैं कहूं प्यार है
जिक्र से ही हुआ दिल जो गुलज़ार है
आपका साथ है और क्या चाहिए
आप ही का बना दिल तलबगार है
जान लो तुम मुहब्बत तो है इक बला
इस से बचना बड़ा ही तो दुशवार है
रोग उसको अचानक ही समझो लगा
अब बना घूमता वो तो अख़बार है
जब हकीकत समझ आई तो देर थी
जो हुआ सो हुआ अब तो इकरार है
हुस्न ने लूट लाखों लिए सोच कर
हो गया इक नया जख्म सरकार है
मुनीश…
ContinueAdded by munish tanha on May 17, 2016 at 10:30am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 17, 2016 at 10:20am — 14 Comments
२१२२ १२१२ २२/112
गुंचा गुंचा गुलाब हो जाये
सारा पानी शराब हो जाये
उसके वालिद को देख इश्क मेरा
हड्डी वाला कबाब हो जाये
क्या जरूरत है खोलने की लब
जब नजर से जबाब हो जाये
मेरी नजरों के रुख पे पड़ते ही
हाथ उसका नकाब हो जाये
साथ उनके गुजारे जो लम्हे
लिख सकूँ तो किताब हो जाये
साक़िया बात कल की कल होगी
आज का तो हिसाब हो जाये
आज जीभर…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2016 at 9:30am — 20 Comments
चल तौल तराजू रिश्तों को
कुछ अपने पराये नातो को ...
एक तरफ चढा ले माँ को ही
सबसे प्यारा ये रिश्ता है
कचरों के डिब्बों में फिर क्यों
शिशुओं को फेंका जाता है
चल ...........
एक तरफ भाई और बंधू ले
फिर जर जमीन पर क्यों झगड़े है
पैसा धन दौलत पर से क्यों
सर अपनों के काटे जाते है
चल .........
एक तरफ जीवन साथी ले
ये जनम जनम का नाता है
तो तलाक फिर क्यों होते है
संग रहकर भी दुश्मन बनते है
चल…
Added by babita choubey shakti on May 16, 2016 at 10:00pm — 3 Comments
महाकाल दर लगो सिहस्थ है जनमन रहो हर्षाय
उज्जैनी नगरी देखो आज दुल्हनिया सी रही सुहाय
पितृ मिलन खो रेवा आई महाकाल रहे हर्षाय
शिप्रा रानी चरण पखारे., मिलन अनोखा रही कराय
एक और से गोरा रानी, लेय बलैेया नजर उतार
दूजी और गणराज हर्ष के, बहनी को है रहे निहार
कुम्भ मिलन खो सभी देवता सज धज आये खेवनहार
मित्र सुदामा राह तकत है, मित्र मिलन की प्यास जगाये
सांदीपनी घर मनमोहन आये शिक्षा रही यही पे पाय...
ब्रह्म बिष्णु नारद संग, राधे संग श्याम सरकार
सियाराम…
Added by babita choubey shakti on May 16, 2016 at 9:30pm — 4 Comments
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