(1212 1122 1212 22 /112 )
.
परिंदा तिफ़्ल हो उसके भी पर तो रहते हैं
ग़रीब हो भले ख़्वाबों में घर तो रहते हैं
**
भले ही ज़िंदगी हासिल हुई अमीरों सी
मगर उन्हें भी कुछ अन्जाने डर तो रहते हैं
**
हुआ है बंद कभी एक रास्ता मत डर
खुले कहीं न कहीं और दर तो रहते हैं
**
मिला न एक सुबू गाँव में तमन्ना का
भले ही हसरतों के कूज़ा-गर तो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 16, 2020 at 1:30am — 16 Comments
तू मेरी साँसों का परिमल, मैं तेरा उच्छ्वास I
बन उपवन भौरे गुंजन सब
देते है अवसाद I
तृप्ति मुझे मिल जाती है यदि
थोड़ा मिले प्रसाद I
अनुभव के पन्नों में बिखरा, रागायित इतिहास I
जाने कहाँ तिरोहित हैं सब
मान और सम्मान I
घुल जाता है तेरे सम्मुख
पुरुषोचित अभिमान I
अग्नि-खंड यह बन जाता है, मुग्ध प्रणय का दास I
उल्काओं को धूल बनाने
की है तुममें शक्ति I
वही शक्ति…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2020 at 7:50pm — 3 Comments
भूल कर सब प्रेम करुणा त्याग तप बलिदान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा
राम सा आदर्श मानव औ' भरत सा भ्रात मैं हूँ
दुश्मनों के वक्ष पर करता रहा आघात मैं हूँ
मैं प्रतिज्ञा भीष्म की हूँ, मैं युधिष्ठिर धर्मकारी
पार्थ का गांडीव मैं हूँ, मैं सुदर्शन चक्र-धारी
शौर्य है श्रृंगार मेरा, रण-विजय ही गान मेरा
मैं पुरुष हूँ! मात्र इस हित, मत करो अपमान मेरा।।
भूमिका मेरी यहाँ बेटा, पिता, पति, भ्रात की है
माप रखता जो हमेशा…
Added by नाथ सोनांचली on June 15, 2020 at 11:30am — 13 Comments
इस दुनिया में
हर आदमी की
अपनी एक दुनिया होती है।
वह इस दुनिया में
रहते हुए भी अपनी
उस दुनिया में रहता है।
उसी में रह कर रहता है ,
उसी में सोचता है ,
उसी में जीता है।
**************************
वो बेहद खुशनसीब हैं
जो रिश्तों को जी लेते हैं ,
वफ़ा के लिए जी लेते हैं ,
वफ़ा के लिए मर जाते हैं ,
बाकी तो सिर्फ ,इन्हें
निभाते-निभाते मर जाते हैं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2020 at 9:30am — 9 Comments
हे रूपसखी हे प्रियंवदे
हे हर्ष-प्रदा हे मनोरमे
तुम रच-बस कर अंतर्मन में
अंतर्तम को उजियार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो, साकार करो
अभिलाषी मन अभिलाषा तुम
अभिलाषा की परिभाषा तुम
नयनानंदित - नयनाभिराम
हो नेह-नयन की भाषा तुम
हे चंद्र-प्रभा हे कमल-मुखे
हे नित-नवीन हे सदा-सुखे
उद्गारित होते मनोभाव
इनको ढालो, आकार करो
यह प्रणय निवेदित है तुमको
स्वीकार करो साकार करो
मैं तपता…
ContinueAdded by आशीष यादव on June 15, 2020 at 4:30am — 10 Comments
थोड़ा सा आसमान ....
चुरा लिया
सपनों की चादर से
थोड़ा सा
आसमान
पहना दिया
उम्र को
स्वप्निल परिधान
लक्ष्य रहे चिंतित
राह थी अनजान
प्रश्नों के जंगल में
उलझे समाधान
पलकों की जेबों में
अंबर को डाला
अधरों पर मेघों की
बरखा को पाला
व्याकुलता की अग्नि में
जलते अरमान
भोर से पहले हुआ अवसान
धरती पर अंबर की
नीली चुनरिया
पंछी के कलरव की
बजती पायलिया
व्योम क्यूँ…
Added by Sushil Sarna on June 14, 2020 at 9:35pm — 6 Comments
212 /1212 /2
जो नज़र से पी रहे हैं
बस वही तो जी रहे हैं
ये हमारा रब्त देखो
बिन मिलाए पी रहे हैं
कोई रिन्द भी नहीं हम
बस ख़ुशी में पी रहे हैं
इक हमें नहीं मयस्सर
गो सभी तो पी रहे हैं
क्या पिलाएंगे हमें जो
तिश्नगी में जी रहे हैं
वो हमें भी तो पिला दें
जो बड़े सख़ी रहे हैं
बेख़ुदी की ज़िन्दगी है
बेख़ुदी में पी रहे हैं …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 14, 2020 at 9:00pm — 17 Comments
Added by Anvita on June 14, 2020 at 1:18pm — 2 Comments
आओ प्यारे हम सब मिलकर
पर्यावरण बचायें।
हरे भरे हम वृक्ष लगाकर
हरियाली फैलायें।1।
नदियाँ पर्वत झील बावली
और तलाब खुदायें।
महावृक्ष पीपल वट पाकड़
वृक्ष अनेक लगायें।2।
धरा धधकती धक-धक धड़कन
जन-जन की न बढ़ाएं।
पर्यावरण संतुलित होवे
ऐसे कदम उठायें।3।
प्राण वायु जल शीतल निर्मल
प्रकृति प्रेम से पायें।
आज के सुख के खातिर हमसब
भावी कल न मिटायें।4।
सोचो हम क्या देंगे अपनी
आने वाली पीढ़ी को।
सब कुछ दूषित हवा…
Added by Awanish Dhar Dvivedi on June 13, 2020 at 10:52pm — 3 Comments
खंडित नसीब - लघुकथा -
बिंदू का तीन साल का इकलौता बेटा नंदू सुबह से चॉकबार आइसक्रीम खाने की रट लगाये हुए था। पता नहीं किसको देख लिया था चॉकबार आइसक्रीम खाते। इंदू के पास पैसे नहीं थे इसलिये वह बार बार उसे आइसक्रीम खाने के नुकसान समझा रही थी। लेकिन बिना बाप का बच्चा जिद्दी हो चला था। किसी भी तरह बहल नहीं रहा था।
इंदू को बाबू लोगों के घर झाड़ू पोंछा बर्तन का काम करने जाना था लेकिन नंदू उसे जाने नहीं दे रहा था ।
इंदू कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे।फिर उसे याद आया कि…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 13, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
1212, 212, 122, 12 12, 212, 122
बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे
है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे
बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं
हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे
बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे
पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे
क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है
नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर…
Added by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
(1222 1222 1222 1222)
अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में
अबद तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में
तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता
कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में
गले का दर्द सुनते हैं वो पल में ठीक करता है
महारत भी जिसे हासिल है आवाज़ें दबाने में
किसी दिन टूट जाएँगी ये चट्टानें खड़ी हैं जो
लगेगा वक़्त शीशे को हमें पत्थर बनाने में
अजब महबूब है मेरा जो पल में रुठ जाता है
महीने बीत…
Added by सालिक गणवीर on June 13, 2020 at 2:00pm — 12 Comments
Added by Anvita on June 13, 2020 at 1:10pm — 2 Comments
क्रोध तम मद-लोभ ईर्ष्या में पड़ा संसार सारा
आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।
छोड़ अन्तस का शिवालय भ्रम मनुज लाने चला है
शोर के गहरे तमस में मौन को पाने चला है
पास उसके आत्म दर्पण है नहीं जो राह रोके
जी रहा है वह स्वयं की जिन्दगी में कण्ट बोके
सत्य है नेपथ्य में बस मूर्खता मन में अड़ी है
आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।
मस्त सब हैं छोड़कर सिद्धांत सारे सभ्यता के
मन अपाहिज वस्त्र चिथड़े किंतु साधक भव्यता के
जब पलट के…
Added by नाथ सोनांचली on June 12, 2020 at 7:00pm — 4 Comments
वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए
प्यार का क़तल किया दीवान बन गए (1)
देते कभी थे इश्क़ में जन्मो के वास्ते
वो चार रोज़ में ही बेगान बन गए (2)
वादों की और इरादों की लम्बी कतार थी
फहरिस्त उन इरादों के अरमान बन गए (3)
अक्सर वफ़ा की कसमें जो खाते थे बार बार
कल तोड़ के कसम वो बेईमान बन गए (4)
महफ़िल कभी जिनके लिए हमने सजाई थी
आज उनकी महफ़िलों के महमान बन गए (5)
एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें
साहिल…
Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 12, 2020 at 10:18am — 12 Comments
आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ
जन्म से पहले प्राण गए हैं रोष दिखाने आया हूँ
आया हूँ मैं ये प्रण लेकर संताप नहीं ये कम होगा
धोखे से मनु ने प्राण हरे जो लड़ने का न दम होगा
मानव कितना नीच जीव है कहता खुद को सबसे ऊपर
अ हिंसा का भाषण देकर हाथ उठाता मूक जीव पर
दम्भ तुझे किस बात का मानव तू क्यों इतना है इतराता
तेरे खेल की आग में जलकर झुलस गई गज की माता
कैद रहा है तीन माह से क्या…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:33pm — 2 Comments
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ पे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं
रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या
है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या
टोक न दे कोई मुझको मेरी इस…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
एक गीत
----------------
कच्चे आमों जैसा खट्टा
कभी शहद सा होता जीवन |
***
पाया जीवन है जिसने भी
पल पल देनी पड़े परीक्षा |
कैसे भी हालात किसी के
जीवन की मत करें उपेक्षा |
करते अगर भ्रूण की हत्या
या करते हत्या अपनी तुम
पाप हमेशा कहलायेंगे
न्याय करेगा अगर समीक्षा |
अपनी नादानी के कारण
क्यों करते खिलवाड़ मनुज तुम
मिटटी के सम ठोकर मारो
क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 11:30pm — 9 Comments
1212 1122 1212 22
यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1
मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।
वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।
था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2
उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।
जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3
खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।
हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4
निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।
जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है…
Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2020 at 9:06pm — 6 Comments
मिलते वहीँ थे घाट पे करते थे गुफ़्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए
उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए
अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए
चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए
किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 11:23am — 7 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |