अग्नि-परीक्षा
मृत्यु के दानव-से क्रूर-कर्म तक
वक्त और बेवक्त तुम्हें
मेरी अग्नि-परीक्षा करनी थी न?
लो कर लो, देख लो मुझको
जी रही हूँ मैं कब से केवल एक नहीं
तुम्हारी जलाई असंख्य अग्निओं में
जो अभी तक मन…
ContinueAdded by vijay nikore on June 18, 2013 at 12:42pm — 24 Comments
इन चमकती आँखों का फ़साना क्या है
दबे होठो से ये मुस्कुराना क्या है
बता भी दो अब कि क्यों
कटती है रात ख्वाबो में किसी के
बिना नींद के सो जाने का ये बहाना क्या है ...…
Added by Sonam Saini on June 18, 2013 at 12:30pm — 10 Comments
करीब सुबह के दस बजे थे। एक सभ्य कुलीन महिला पुलिस स्टेशन पहुंची। तेज कदमों से वह इंस्पेक्टर की टेबल के सामने जाकर खड़ी हो गई।
“मैं केस दर्ज कराने आई हूँ।‘’ महिला की आँखों में एक अजब-सा आक्रोश था।
“जी कहिए।“ इंस्पेक्टर ने टेबल पर पड़ी फाइलों से अपनी नजर हटाते हुए कहा।
“मेरा बलात्कार किया गया है।“
उसके इन शब्दों को सुनकर इंस्पेक्टर गंभीर हो गया। हाल-फिलहाल की घटनाओं को देखते हुए आला अधिकारियों की तरफ से सख्त निर्देश था कि ऐसे किसी भी मामले पर तुरंत कारवाई की जाए।…
ContinueAdded by Kundan Kumar Singh on June 18, 2013 at 9:30am — 11 Comments
!!! शालिनी छन्द !!!
शालिनी छन्द के प्रत्येक चरण मे 11 वर्ण होते है तथा इसमें एक मगण, दो तगण तथा दो गुरू होते हैं।
-1-
राधे-राधे गीत जो गा रहे हैं।
कृष्णा जैसे मीत वो पा रहे है।।
आत्मा से औचित्य भी भा रहे हैं।
काया के अट्टालिका ढा रहे हैं।।
-2-
भावों से पाया जमीं सार सारा।
बीथीं-बीथीं भाग्य का पार पारा।।
दुःखों से आनन्द का धार* धारा।.......*मार्गं
पश्चातापों से सभी जार* जारा।।......*पाप
-3-
वृक्षों-बृक्षों से फले कामनाएं।
तारों-तारों में…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 18, 2013 at 9:09am — 18 Comments
सुधि पाठकगण,
कनाडा से प्रकाशित हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका “प्रयास” का पंचम (जून २०१३) अंक ’पिता’ विशेषांक के रूप में विश्व के कोटि-कोटि पिताओं को पूरे आदर के साथ समर्पित है। हमें पूरा विश्वास है कि समस्त हिंदी प्रेमियों को यह अंक पसंद आयेगा।
आप इस अंक को www.vishvahindisansthan.com/prayas5 पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। पेज को बड़ा-छोटा करने की सुविधा पेज पर ही उपलब्ध है। पेज की बायीं तरफ़ नीचे (+) व (-) चिन्ह…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on June 18, 2013 at 5:00am — 9 Comments
कभी हम यूँ भी अकेले होंगे ,
भीड़ होगी ,तन्हाई के मेले होंगे ,
याद आएगा एक वह आँगन
जिसमे हम मौज से खेले होंगे !
*
आंधियां,तूफ़ान हों ,ये चाहते हैं हम,…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 17, 2013 at 11:12pm — 12 Comments
उनके जीवन में है दुःख ही दुःख
और हम बड़ी आसानी से कह देते
उनको दुःख सहने की आदत है...
वे सुनते अभाव का महा-आख्यान
वे गाते अपूरित आकांक्षाओं के गान
चुपचाप सहते जाते जुल्मो-सितम
और हम बड़ी आसानी से कह देते
अपने जीवन से ये कितने सतुष्ट हैं...
वे नही जानते कि उनकी बेहतरी लिए
उनकी शिक्षा,…
ContinueAdded by anwar suhail on June 17, 2013 at 8:43pm — 11 Comments
घटाएँ काली-काली हैं
शायद बरसने वाली हैं
वन उपवन हैं प्यासे कब से
तरस रहे हैं पानी बरसे
खेतों और खलिहानों को
मजदूर और किसानों को
आस जगी है अब तो बरसें
बरसों बीत गए हैं बरसे
बरसे तो सबका मन हर्षे
तपन मिटे इस धरती की
हरियाली की चादर फैले
मोर पपीहों का दिल बहले
नाचे लोग घर उपवन में
नव जीवन का संचार हो मन मे
खिलें फूल मुस्काए हर मन
उमड़-घुमड़ कर बरसो…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 17, 2013 at 4:47pm — 16 Comments
चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे बागों व बहारों में
चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे नदी के किनारों पे
चाह नही मुझे कि..
छेड़ो तुम बंसी की तान और
झूमती आऊँ मैं
चाह नही कि..
बैठो तुम कदम्ब की डाल और
नाच के रिझाऊँ मैं
चाह नही कि..
थामूं तुम्हारा हाथ और
निहारूँ तुम्हारी आँखों में
चाह बस इतनी कि..
हे नाथ !!
छू लूँ तुम्हारे…
Added by Meena Pathak on June 17, 2013 at 4:22pm — 23 Comments
इन नदियों की पीठ पर लहरें…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on June 17, 2013 at 1:12pm — 15 Comments
काली घटाओं ने दिल्ली को यूँ घेरा है
दिन में ही देखो छाया कैसा अँधेरा है
दिल क्यों धक धक करे गोरी तेरा है
आज तो ठंडी हवाओं का यहाँ बसेरा है
होगी बारिश खूब,दिल कहे आज मेरा…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on June 17, 2013 at 11:00am — 15 Comments
2212122221212
यह बारिशों का मौसम, कितना हसीन है!
धरती गगन का संगम, कितना हसीन है!
जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की बहार,
बूँदों का नृत्य छम-छम, कितना हसीन है!
बच्चों के हाथ में हैं, कागज़ की किश्तियाँ,
फिर भीगने का ये क्रम, कितना हसीन है!
विहगों की रागिनी है, कोयल की कूक भी,
उपवन का रूप अनुपम, कितना हसीन है!
झूलों पे पींग भरतीं, इठलातीं तरुणियाँ,
लय तान का समागम, कितना हसीन…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on June 17, 2013 at 9:30am — 14 Comments
लो हँसी दूब
बादल जो छलके
बहुत खूब
*
नेह की बूँद
मन पांखुरी पर
गिरी अब,लो
*
मन विभोर
कर गए बदरा
जी सराबोर
*
मुंह चिढाया …
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 16, 2013 at 11:04pm — 9 Comments
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चूल्हा चौंका झाड़ू बरतन,
गगरी पनघट औ पानी रॆ !!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,
अम्मा बाबू कॆ बदना की,
मैं किलकारी थी अँगना की,
तुलसी छॊड़ भई सजना की,
रॊटी जलॆ तवा कॆ ऊपर,
ऎसहिँ जलॆ जवानी रॆ !!१!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,
,
वॊ बचपन की सखी-सहॆलीं,
साथ साथ मॆरॆ सब…
ContinueAdded by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 9:00pm — 11 Comments
काठमांडू नेपाल में होटल शंकर में अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकला मंच मुरादाबाद द्वारा आयोजित दिनांक 8 जून से 11 जून तक हुई अंतराष्ट्रीय हिंदी संगोष्ठी में द्वारा 134 लेखकों को लेकर संपादित की गई पुस्तक त्रिसुगंधि गीत ग़ज़ल व कविताओं का संकलन 296 पृष्ठों की इस पुस्तक का लोकापर्ण करते अतिथिगण , कार्यक्रम के अध्यक्षडॉ हरिराज सिंह नूर पूर्व कुलपति इ .वी .वी, मुख्य अतिथि थे डॉ आर के मित्तल कुलपति टी .एम .यू…
ContinueAdded by asha pandey ojha on June 16, 2013 at 8:30pm — 18 Comments
मित्रॊ,,,,
मॆरा यह किसी बह्र मॆं कहनॆ का प्रथम प्रयास
आप सबकॆ चरणॊं मॆं समर्पित है,ख़ामियां बतानॆ की कृपा करॆं,,,
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मुफ़ाईलुन (हजज़)
वज्न = १२२२, १२२२, १२२२, १२२२
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कहीं हमनॆ सुना था इस, ज़मानॆ मॆं हिफ़ाज़त है !!
यहाँ हर एक कॆ दिल मॆं, अदावत ही अदावत है !!१!!
उठा रक्खा चराग़ॊं नॆं, कभी सॆ आसमां सर पर,
सुना है आँधियॊं सॆ चल, रही उनकी बग़ावत है !!२!!
अदा कॆ साथ दॆतॆ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on June 16, 2013 at 5:30pm — 19 Comments
सघन वृक्ष सा विशाल अडिग,
तपन में शीतलता देता !
तुफानों से हर पल लड़ता ,
फिर भी सदा सहज वो दिखता !
अपनी इन्हीं बातो के कारण ,
वो एक पिता कहलाता !
.
कठोर सा यह दिखने वाला ,
दिल से कोमलता दिखलाता !
बेटी के दर्द से विचलित ,
डान्ट वरी माई डॉटर कहता !
पर उसकी विदाई पर वो ,
खुद को असहाय है पाता !
लाख चाहकर भी वो अपने,
अनवरत आँसू रोक ना पाता !
अपनी इन्हीं बातो के कारण ,
वो एक पिता कहलाता !
.
बात बात पर डाँट…
Added by D P Mathur on June 16, 2013 at 9:00am — 3 Comments
पिता हूँ , शायद कह ना पाऊँ,
माँ सा प्यार ना दिखला पाऊँ !
चाहत है पर मन में इतनी,
प्यार में नम्बर दो कहलाऊँ !
जीवन की हर कठिन डगर में,
साथ खड़ा हो पाऊँ !
जब जब तुम्हें धूप सताये ,
छॉव मैं बन जाऊँ !
माँ तो नम्बर एक रहेगी ,
मैं , नम्बर दो कहलाऊँ !
.
समुंद्र भले ही कोई कहे ,
आँसुओं से बह जाऊँ !
तुम्हारी एक आह पर ,
विचलित मैं हो जाऊँ !
पत्थर हूँ ,
पर ,सुनकर दर्द तुम्हारे ,
मोम सा पिघल जाऊँ…
Added by D P Mathur on June 16, 2013 at 8:30am — 2 Comments
!!! घर की मुर्गी दाल बराबर !!!
कालिमा की घोर नाशक आभा दबे पांव क्षितिज मे अपना आधिपत्य जमाने को उतावली हो रही थी और इधर नित्य क्रिया के फलस्वरूप मुर्गे ने कुकड़ू कूं.............. कुकड़ू कूं........बांग के साथ ही जीवनमय युध्द का बिगुल फूंक दिया। सृष्टि में एक विस्मयकारी, मुग्धकारी और मनोहारी दृश्यों का सजीव प्रस्तुति प्रसारित होने लगा। मुर्गा किशोरवय था। शिकार का हर दांव-पेंच बहुत ही बारीकी से समझता था। इसीलिए आज भी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 16, 2013 at 7:59am — 12 Comments
देखकर लोग बहुत दंग,पूत ,
ढोल बजते औ मृदंग,पूत !
तुमसे अब कौन मुक़ाबिल है
जीत लेते हो खूब जंग ,पूत !
एक बिल्ली थी वो भाग गई,
तुम तो निकले दबंग,पूत !
कौन तुमसे हिसाब मांगेगा ?
डाल दी है कुएं में भंग,पूत !…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 15, 2013 at 11:37pm — 4 Comments
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