झाँका , झाँका , देखो झाँका
चाँद हमारे अँगना
आने वाला है कोई
बाजे मेरा कँगना
हो, हो , हो , हो
झाँका, झाँका , देखो झाँका
सुहाना समां है
खुला आसमां है
करतीं ठिठोली
तारों की टोली
झूमे , झूमे , देखो झूमे
आज हमारे अँगना
आने....
बहे पुरवइया
डोले मन की नैया
मौसम की घड़ियाँ
जादू की छड़ियाँ
फेरें , फेरें , जादू फेरें
आज हमारे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 21, 2020 at 11:35pm — 8 Comments
21.8.20
एकाकी मन........
झूठ है
एकांत में
सिर्फ एकांत होता है
एकाकी मन
वहीं शांत होता है
थक जाता है ये एकाकी मन
ज़िंदगी के जालों को
सुलझाते सुलझाते
अनकहे अहसासों को
दबाते दबाते
भावनाओं की गठरी को
उठाते उठाते
अंधेरों की स्याह चादर में
अपने ही साये
एकाकीपन की देह को
नोचते नज़र आते हैं
सच तो ये है
एकांत में अनचाहे बवंडर
एकाकी मन के
एकाकीपन को लील जाते हैं
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on August 21, 2020 at 7:47pm — 8 Comments
221 1221 1221 122
हर सम्त अंँधेरा है इसे दूर भगाओ
है कोई मुनव्वर तो मिरे सामने आओ
क़ातिल हो तो क़ातिल की तरह पेश भी आओ
घायल हूँ मिरे ज़ख़्म पे मरहम न लगाओ
कोई न उठाएगा यहाँ बोझ तुम्हारा
शानों को ज़रा और भी मजबूत बनाओ
कश्ती को सँभालो न रहो चूर नशे में
गर डूबना है डूबो हमें तो न डुबाओ
काँटों की तो तासीर है वो चुभते रहेंगे
तुम फूल हो ख़ुशबू की तरह फैलते जाओ
ऐसे भी वो करता है सर-ए-आम…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 21, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
2122 2122 2122 212
शायरी अब क्या रूठेगी,सोचता हूं आजकल,
हो रही बुझती अंगीठी,सोचता हूं आजकल।1
शेर मुंहफट हो गए हैं,हर्फ लज्जित हो रहे,
शायरों की सांस फूली,सोचता हूं आजकल।2
मुंह चिढ़ातीं आज बहरें,खुल रहे हैं राज कुछ,
पिट रही कैसी मुनादी? सोचता हूं आजकल।3
राह अब अंधे दिखाते,झूठ ताना दे रहा,
हो रही सच की गवाही, सोचता हूं आजकल।4
शब्द सारे मौन लगते,अर्थ होता गौण है,
चल रही हैं गाली ' - ताली, सोचता हूं…
Added by Manan Kumar singh on August 21, 2020 at 9:30am — 12 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
शीशे को भी रखने वाले पत्थर लोगों नहीं रहे
यौवन के अब पहले जैसे तेवर लोगों नहीं रहे।१।
**
ढूँढा करते हैं गुलदस्ते तितली भौंरे आज यहाँ
काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
**
केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
**
एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
**…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो रही है दिल पे खट-खट मौत की दस्तक है क्या
जा रहे वापस या उसके क़दमों की ठक-ठक है क्या
फिर उठा है हर तरफ़ ये इक धुआँ सा आज क्यों
आग जिससे घर जला था बढ़ गई दिल तक है क्या
भूल बैठा है मुझे तू सुन के या अन्जान है
मेरी आहों की रसाई आज भी तुझ तक है क्या
गुम हुआ हूँ जबसे मैं उसके ख़याल-ओ-ख़्वाब में
बोलता हूँ जब भी कुछ ये सुनता हूंँ बक-बक है…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 20, 2020 at 6:06pm — 15 Comments
पढ़ी - लिखी जो गृहणियाँ
देखें निज परिवार
घर में बूढ़ी सास हैं
और श्वसुर लाचार
शिशु जिनके हैं पालने
सेवा की दरकार
आया पर छोड़ें नहीं
सहें स्वयं सब भार
गढ़ती हैं व्यक्तित्व वह
जिस विधि कोई कुम्हार
खोट सुधार सहन करें
चाहे विघ्न हजार
सदा करें निष्काम हो
सबके सुख की वृद्धि
प्रेम , हर्ष , ऐश्वर्य की
होती तभी समृद्धि
घर कुटुम्ब के हेतु जो
अपना सुख दे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 19, 2020 at 7:24pm — 8 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
किसी की आँख का काँटा न तू होना गँवारा कर
किसी की आँख का तारा स्वयम् को हाँ बनाया कर।१।
**
ये जननी जन्म भूमि तो सभी को स्वर्ग से भी बढ़
गढ़ी हो नाल जिस भूमी उसे हर पल सँवारा कर।२।
**
उतर जाये तो जीवन ये रहे लायक न जीने के
उतरने दे न पानी निज न औरों का उतारा कर।३।
**
जो अपनी नींद सोता हो जो अपनी नींद जगता हो
उसी सा होने की जिद रख उसी को बस सराहा कर।४।
**
हँसी की बात लगती पर हँसी में मत उड़ा देना
अगर दाड़ी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 4:01pm — 3 Comments
सभी पंक्तियाँ 16-16 मात्राभार के क्रम में
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
रोज सवेरे से सिर धुनते
शाम ढले तक याद संभाली
एक सिरा न हाथ में आया
टुकड़े टुकड़े रात खंगाली
आँगन ढूढ़ा कमरा ढूढ़ा
ढूढ़ लिए दालान अटारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी
देख पपीहे की अकुलाहट
आसमान में बादल आये
बुलबुल छेड़े खूब तराना
भँवरे फूलों पे मंडराये
तू भी कोयल बड़ी…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 18, 2020 at 11:00pm — 6 Comments
बहर- 221, 2121, 1221, 212
घर से निकल के आज अदालत में आ गए,
नाज़ुक हमारे रिश्ते मुसीबत में आ गए.
हमने जरा सा आइना उनको दिखा दिया,
अहसान भूल कर वो अदावत में आ गए.
कोने में पेड़ आम का चुपचाप है…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 18, 2020 at 9:00pm — 10 Comments
सावनी दोहे
गुन -गुन गाएं धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यासा -प्यासा प्यार ।।
अनुरोधों के ज्वार हैं, अधरों पर स्वीकार ।
प्रतिबन्धों की हो गई, मूक रैन में हार ।।
सावन में अक्सर बढे़, पिया मिलन की प्यास ।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास । ।
बूंदों की अठखेलियां, नटखट से इंकार ।
बेसुध तन पर प्यार की, पड़ती रही फुहार…
Added by Sushil Sarna on August 18, 2020 at 8:14pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
सुन इश्क जादू-टोने में कुछ वक़्त लगता है/1
ये प्यार-व्यार होने में कुछ वक़्त लगता है
मैं चाहती हूँ रोना बड़ी जोर से मगर/2
दिल खोल कर के रोने में कुछ वक़्त लगता है
ये सर्द रातें दर्द बयां करती है मेरा*
अंधेरे कमरें में मैंने पैकर का घर देखा/3
तन्हा अकेले सोने में कुछ वक़्त लगता है
पड़ जाएं हम किसी के यूं ही इश्क़ में कैसे/4
हमको किसी का होने में कुछ वक़्त लगता है
हम तो ज़मीं पे सोते हैं तारों की छांव में/5
समझो…
Added by Dimple Sharma on August 18, 2020 at 3:04pm — 7 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2020 at 11:05am — 14 Comments
विधि का विधान,निभाने चली।
आज मेरी लाड़ो,पिया घर चली।।
बाबुल के आंगन को, सूना कर चली।
वो ममता के आंचल को, छोड़ के चली।।
विधि का विधान _
वो भाई बहिन के,अनकहे प्यार का।
दिल में समंदर, बसा के चली।।
विधि का विधान_
वो बचपन की सखियां,वो गुड्डे और गुडियां।
मायके की देहरी ,सब छोड़ के चली।।
विधि का विधान_
वो बचपन की रातें,मीठी मीठी यादें।
यादों को जीवन का ,सहारा कर चली ।।
विधि का विधान_
नीता तायल
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Neeta Tayal on August 17, 2020 at 5:38pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on August 15, 2020 at 6:09pm — 10 Comments
आज पुनः जब मना रहे हम, वर्षगाँठ आज़ादी की
आओ थोड़ी चर्चा करलें, जनगण मन आबादी की
जिन पर कविता गीत लिखूँ तो, झर-झर आँसू आते हैं
रोम-रोम में सिहरन होती, भाव सभी मर जाते हैं।।1
ऐसे भी हैं यहाँ कई जो, घर को सर पर ढोते हैं
घोर अँधेरा फुटपाथों पर, बिना बिछौना सोते हैं
गर्मी में तन झुलसे उनका, सर्दी हाड़ कँपाती है
तब जश्ने आज़ादी अपनी, उनको ख़ूब चिढ़ाती है।।2
भूखा प्यासा उलझा बचपन, भटक रहा अँधियारों में
फूटी क़िस्मत खोज रहा वह, कूड़े के गलियारों…
Added by नाथ सोनांचली on August 15, 2020 at 12:07pm — 8 Comments
बह्र-ए-मीर
पतझर में भी गीत बसंती गाऊँ तो
जैसा जग है वैसा ही हो जाऊँ तो
अंदर का अँधियारा क्या छट जायेगा
कोशिश करके बाहर दीप जलाऊँ तो
शायद लौट चले आएं रूठे पलछिन
फूलों से जो उनकी राह सजाऊँ तो
कार्य हमारे भी सारे सध जायेंगे
सुविधा शुल्क लिये ये हाथ बढ़ाऊँ तो
जग सारा देखेगा 'ब्रज' के पांव फटे
जो चादर के बाहर पग फैलाऊँ तो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 14, 2020 at 10:00pm — 14 Comments
"जरा याद उन्हें भी कर लो"
भारत मेरा देश है और
हिन्दी मातृभाषा है।
मैं भारत का प्रेमी हूं,
और प्रेम ही मेरी परिभाषा है।।
सत्य, अहिंसा और प्रेम के,
पथ का जिसने ज्ञान दिया।
करो या मरो का नारा भी,
उस वीर महान ने दिया।।
आज़ादी की खातिर "बोस" जी ,
जमकर करी लड़ाई थी।
खून के बदले आज़ादी की ,
आवाज भी "बोस" ने उठाई थी।।
क्रान्तिकारी "भगत सिंह" ने,
क्रान्ति खूब मचाई थी।
"इन्कलाब जिन्दाबाद" की ,
धूम खूब मचाई थी।।
"सारे…
ContinueAdded by Neeta Tayal on August 14, 2020 at 5:27pm — 3 Comments
बह्रे-रमल मुसद्दस सालिम
2122 / 2122 / 2122
यूँ ख़यालों में सनम आने लगे हैं
दिल को मेरे अब वो महकाने लगे हैं [1]
देखते हैं मेरी जानिब इस तरह से
राज़-ए-दिल जैसे वो बतलाने लगे हैं [2]
इश्क़ से अंजान हैं जो लोग अब तक
है मुहब्बत क्या ये समझाने लगे हैं [3]
वो सियासत-दाँ वतन जिनको था सौंपा
देश की मीरास बिकवाने लगे हैं [4]
वो रहा करते हैं आँखों में कुछ ऐसे
जागते में ख़्वाब दिखलाने लगे हैं…
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on August 13, 2020 at 9:47pm — 12 Comments
ये जो चलते फिरते मशीनी
पुतले हो गए हैं हम ।
अंधेरे जलसों के धुएँ
में खो गए हैं हम ।
किसी के अश्क़ को पानी
सा देखने लगे हैं,
किसी की सिसकियों को
अभिनय कहने लगे है।
ये जो चलते फिरते मशीनी
पुतले हो गए हैं हम ,
संवेदनाओं से मीलों
दूर ,हो गए हैं हम ।
.
मौलिक व अप्रकाशित"
Added by S.S Dipu on August 13, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
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