मेज़ के उपर सब कुछ शांत है
*************************
बड़ी सी मेज , साफ मेजपोश
ताज़े फूलों के गुलदस्तों सजी
करीने से लगी कुर्सियाँ
अदब से बैठे हुये अदब की चर्चा मे मशगूल
सभ्यता और संस्कृति की जीती जागती मूर्तियाँ
सामाजिक बुराइयों से लड़ते जो कभी न थके
सामाजिक उन्नति के नये-नये मानक गढ़ते
सब कुछ कितन भला लग रहा है , मेज के ऊपर
सामान्यतया क़रीब से देखने में
लेकिन ,
जो दूर बैठा है उस मेज से
देख सकता है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 3, 2014 at 1:30pm — 20 Comments
सुरेश रात-दिन कितनी भी शरीर-तोड़ मेहनत कर ले, अपनी पत्नि रजनी और दोनों बच्चों के खर्च के साथ-साथ मोबाईल, मोटर-साइकिल,मकान का किराया सब कुछ वहन नहीं कर सकता. अब पेट काटकर धीरे-धीरे अपना घर बनाना शुरू तो कर दिया पर कभी सीमेंट ख़त्म, तो कभी लोहा.
लेकिन.. जब से सुरेश से कहीं ज्यादा कमाने वाले मित्र, अशोक का उसके यहाँ आना-जाना शुरू हुआ है, तब से घर का काम दिन दोगुना -रात चौगुना चल रहा है. आजकल तो सुरेश अपने घर के बंद दरवाजे के बाहर अशोक के जूतों को देख, अपने नए बन रहे घर कि ओर चला…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 3, 2014 at 12:30pm — 30 Comments
2122 2122 2122 212
*******************************
एक सरकस सी हमारी आज संसद हो गयी
लोक हित की इक नदी जम आज हिमनद हो गयी
**
जुगनुओं से खो गये लीडर न जाने फिर कहाँ
मसखरों की आज इसमें खूब आमद हो गयी
**
‘रेप’ को जोकर सरीखों ने कहा जब बचपना
जुल्म की जननी खुशी से और गदगद हो गयी
**
दे रहे ऐसे बयाँ, जो जुल्म की तारीफ है
क्योंकि सुर्खी लीडरों का आज मकसद हो गयी
**
जुल्म की सरहद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2014 at 9:00am — 26 Comments
" बाऊ , आज त पेट भर खाए के मिली न " लखुआ बहुत खुश था । आज ठकुराने में एक शादी थी और लखुआ का पूरा परिवार पहुँच गया था । पूरा दुआर बिजली बत्ती से जगमग कर रहा था और चारो तरफ पकवानों की सुगंध फैली हुई थी ।
" दुर , दुर , अरे भगावा ए कुक्कुर के इहाँ से " , चच्चा चिल्लाये और दो तीन आदमी कुत्ते को भगाने दौड़ पड़े । लखुआ भी डर के किनारे दुबक गया । तब तक उन लोगों की नज़र पड़ गयी इन पर " ऐ , चल भाग इहाँ से , अबहीं त घराती , बराती खईहैं , बाद में एहर अईहा तू लोगन " । फिर याद आया कि पत्तल भी तो उठवाना…
Added by विनय कुमार on August 3, 2014 at 3:34am — 28 Comments
यात्रा का प्रथम चरण---गहमर से वाराणसी
मैं बाबा बरफानी की यात्रा का मन बना चुका था। परिवार से इजाजत और दोस्तो की सलाह के बाद यह इच्छा और बलवती हो गयी। मैने मन की सुनते हुए 23 जुलाई की तिथी निश्चित किया और अपने काम में लग गया। घर से महज 200 मीटर की दूरी पर भी अारक्षण केन्द्र होने के वावजूद मैं आरक्षण नहीं करा पाया आैर न ही किसी प्रकार की तैयारी कर रहा था।धीरे धीरे 18 जुलाई आ गया तब जा कर मैने अपना आरक्षण कराया, इस दौरान गहमर…
Added by Akhand Gahmari on August 2, 2014 at 10:00pm — 12 Comments
मेरी नज़रें तुमको छूतीं
जैसे कोई नन्हा बच्चा
छूता है पानी
रंग रूप से मुग्ध हुआ मन
सोच रहा है कितना अद्भुत
रेशम जैसा तन है
जो तुमको छूकर उड़ती हैं
कितना मादक उन प्रकाश की
बूँदों का यौवन है
रूप नदी में छप छप करते
चंचल मन को सूझ रही है
केवल शैतानी
पोथी पढ़कर सुख की दुख की
धीरे धीरे मन का बच्चा
ज्ञानी हो जाएगा
तन का आधे से भी ज्यादा
हिस्सा होता केवल…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 2, 2014 at 8:58pm — 26 Comments
कभी कभी
सोचती हूँ मैं
जब हाथ भरा है लकीरों से
कुछ तो मतलब होगा इसका
हरेक के कोई मायने होंगे
कौन कौन सी लकीर किस किस तक़दीर के नाम
यह तो बताये कोई
मुझे समझाए कोई
सुना था...
हाथों की चंद लकीरों का
यह खेल है बस तकदीरों का
अपने हाथ में लकीरें तो बहुत हैं
पर तक़दीर शायद रूठ गई है
आप ठीक कहते थे
बदल जाती हैं तकदीरें
अगर मेहनत से हाथ की लकीरें बदल दी जाएँ
इसीलिए करती हूँ…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on August 2, 2014 at 5:00pm — 14 Comments
होते जो बहुरूपिया, मिले न उनकी थाह |
मन में अंतरघात है, सुर है मधुर अथाह ||
गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात ||
.
जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज ||
किस्मत में जो था मिला, सर फोड़े क्यों रोय |
पूर्व जन्म का कर्म है, अब रोये क्या होय ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:30pm — 21 Comments
मुक्ति- बंधन //कुशवाहा //
---------------------------
पिंजरे में कैद पंछी
निहारता आसमान को
बाहर आने को बेताब
बंधन
अस्वीकार्य
दीवार को पकड
इधर उधर
झांकता
राश्ते की तलाश
आसान नही
मुक्ति/ बंधन
क्रोधित असहाय
चिल्लाता
घायल बदन / घायल आत्मा
छिपता भी तो नहीं
रिसता लहू
गवाह
जंग- ए- आजादी का
खिसियाहट झल्लाहट
बेबसी
फडफडाहट
गति देती
उड़ जाने को
जिंदगी भी तों…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 2, 2014 at 2:45pm — 6 Comments
प्रैस काफ्रेंस देर शाम तक चली। बाल श्रम उन्मूलन के तहत आजाद करवाये बाल श्रमिकों को पुलिस प्रेस के समक्ष लाई थी। फोटो खींचे गए, भाषण दिया गया और थानेदार साहिब का साक्षात्कार भी लिया गया। पत्रकार काफ्रेंस के बाद चाय नाश्ता कर अपने घर की ओर जा रहे थे तो सुबह से भूखे बैठे बाल श्रमिकों की ओर देखकर एक कांस्टेबल धीरे से थानेदार साहिब के कान में फुसफुसाया:
“साहिब! अब इन बच्चों का क्या करना हैे?”
”बड़े साहिब की बिटिया की शादी है अगले हफ्ते, कितना काम होगा वहाँ, छोड़ आयो वहीँ पे इन ससुरों…
Added by Ravi Prabhakar on August 2, 2014 at 11:00am — 19 Comments
212/ 212/ 212/ 212
मुझको तन्हाई अक्सर बुलाती रही
बारहा पास आकर सताती रही
क्या कहूँ आँसुओं का सबब मैं तुझे
तल्खी तेरी ज़बाँ की रुलाती रही
रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा
लौ जलाता रहा वो बुझाती रही
आइना अक्स मेरा बदलता रहा
ज़िन्दगी खुद से मुझको छुपाती रही
मैं न समझा कभी सच यही था मगर
ये ख़िज़ाँ राह मेरी बनाती रही
बादबाँ खुल गये चल पड़ी नाव भी
मेरी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2014 at 11:55pm — 23 Comments
मालूम है कि सांप पिटारे में बंद है
फिर भी वॊ डर रहा है क्यूँ कि अक्लमंद है
.
ये रंग रूप, नखरे,अदा तौरे गुफ्तगू
तेरी हरेक बात ही मुझको पसंद है
.
ये दिल भी एक लय में धड़कता है दोस्तो
सांसो का आना जाना भी क्या खूब छंद है
.
सोचा था चंद पल में ही छू लूँगा बाम को
पर हश्र ये है हाथ में टूटी कमंद है
.
दुश्वारियों से जूझते गुजरी है ज़िन्दगी
अज्ञात फिर भी हौसला अपना बुलंद है
.
मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by Ajay Agyat on August 1, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
Added by seemahari sharma on August 1, 2014 at 7:00pm — 14 Comments
दृष्टि मिलन के प्रथम पर्व में
दृप्त वासना नभ छू लेती
पागलमन को बहलाता सा
जग कहता नैसर्गिक सुख है I
क्या निसर्ग सम्भूत विश्व में
क्या स्वाभाविक और सरल क्या
वाग्जाल के छिन्न आवरण
में मनुष्य की दुर्बलता है I
बुद्धि दया की भीख मांगती
ह्रदय उपेक्षा से हंस देता
मानव ! तेरी दुर्बलता का
इस जग में उपचार नहीं …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2014 at 4:00pm — 21 Comments
“खाना… पानी सब देने के बाद भी जब देखो मुँह उतरा ही रहता है.” तुनकते हुये बहु ने सास के सामने टेबल पर खाने की प्लेट पटक दी...
सास ने अपने बेटे को आंखो की पनियायी कोर से देखा....
वो तो तन्मयता से टीवी पर गंगा में आक्सीजन की कमी से मर रही मछलियों के बारे मे न्यूज़ देख रहा था.
*******************
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Shubhranshu Pandey on August 1, 2014 at 9:30am — 26 Comments
दोहे // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
-------------------------------------
माँ वंदन नित है सदा, किरपा दया निधान
अज्ञानी मै बहुत बड़ा, दे दो मुझको ज्ञान
------------------------------------------
क्षीर सागर शयन किये, लक्ष्मी पति हरिनाथ
सुरमुनि यशोगान करें, जोड़े दोनों हाथ
--------------------------------------------
नवरात्री की अष्टमी , देवी पूजो आय
चरण शरण जगदम्बिका, घर घर बजे बधाय
---------------------------------------------
आशीष आपको सदा,…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 1, 2014 at 9:17am — 23 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |