दिलों को जोड़कर रखता रहा हूँ -
मैं कितनों के लिए पुल सा रहा हूँ -
मैं लम्हा हूँ, मगर सदियों पुरानी
किसी तारीख़ का हिस्सा रहा हूँ -
हजारों मस'अले हैं ज़िन्दगी में
मैं इक इक कर उन्हें सुलझा रहा हूँ-
ग़मे दौरां में ख़ुशियाँ ढूँढ़ना सीख
तुझे कबसे ऐ दिल! समझा रहा हूँ -
नहीं मुमकिन है मेरी वापसी अब
फ़क़त शतरंज का प्यादा रहा हूँ -
तुम्हारे नाम का इक फूल हर साल
क़िताबे दिल में, मैं रखता रहा हूँ -
किनारे…
Added by विवेक मिश्र on August 12, 2013 at 10:30pm — 20 Comments
ल ला ला ला ल ला ला ला ल ला ला ला ल ला ला
वतन की कौन सोचेगा अगर तुम हम नहीं तो
पहन लो हाथ में चूड़ी अगर हो दम नहीं तो
लुटी है आबरू जिसकी वो बिटिया इस चमन की
वो है जल्लाद गर है आँख किंचित नम नहीं तो
हसी मंजर हसी रुत ये भला किस काम के हैं
सफ़र में साथ जब अपने हसी हमदम नहीं तो
मजा क्या आएगा हम को भला इस जिन्दगी का
खुशी के साथ थोडा सा कहीं गर गम नहीं तो
सुखा देती जिगर के घाव तेरी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on August 12, 2013 at 9:49pm — 8 Comments
सांवरी सुन सांवरी
आई मधुर मधुश्रावणी
नभ मीत हृद पर दामिनी
नव ताल से इठला रही
या दिगंबर को उमा
अपनी झलक दिखला रही
सुन सौरभे, हर-गौर,…
Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .
शुभ्रा शर्मा 'शुभ '
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shubhra sharma on August 12, 2013 at 1:30pm — 31 Comments
दरख़्तों से छुपा-छुपी खेलता हुआ
वो तीखी धूप का एक टुकड़ा
मेरे कमरे तक आने को बेचैन
हवा ज्यों तेज़ हो जाती
वो ताक कर मुझे
वापस लौट जाता
इतना रौशन है वो आज कि
उसके ताकने भर से
अँधेरे से बंद कमरे की
आंखें उसकी चमक से
तुरन्त खुल जाती हैं
बहुत नींद में रहता है कमरा
आंखें मिचमिचाता है
कुछ देर तक यूँही देख
फिर आँखें बंद कर लेता है
हम्म ....मुझे लग रहा है
आज धूप का ये टुकड़ा
बारिश…
ContinueAdded by Priyanka singh on August 12, 2013 at 12:13am — 30 Comments
दोस्तों, पिछले डेढ़ महीने, मंच से नादारद था ... एक ताज़ा ग़ज़ल के साथ पुनः हाज़िरी दर्ज करता हूँ ....
प्यास के मारों के संग ऐसा कोई धोका न हो
आपकी आँखों के जो दर्या था वो सहरा न हो
उनकी दिलजोई की खातिर वो खिलौना हूँ जिसे
तोड़ दे कोई अगर तो कुछ उन्हें परवा न हो
आपका दिल है तो जैसा चाहिए…
ContinueAdded by वीनस केसरी on August 11, 2013 at 10:30pm — 16 Comments
Added by Ravi Prakash on August 11, 2013 at 9:00pm — 25 Comments
नींद चीज है बड़ी उंघते रहिए
बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए
आग लगती है लगे हमको क्या
आम दशहरी जनाब चूसते रहिए
मौका मिले तो तंज कर लो
नहीं तो मस्ती में झूमते रहिए
आसां नहीं है अहम को तोड़ना
दुनिया अजब है घूमते रहिए
अदाकार आप खूब है जनाब
सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए
बातें विक्षिप्त की है आपसे बाहर
हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए
"मौलिक…
Added by रौशन जसवाल विक्षिप्त on August 11, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
सूरज के घोड़े चलते हैं निरंतर,
इस कोने से उस कोने तक ताकि
प्रकाश फैले कोने कोने में.
लेकिन घोड़ों के घर ही में रहता है अँधेरा.
प्रकाश उनसे ही रहता है दूर.
लेकिन उन्हें बोलने की इजाजत नहीं
मांगना उन्हें वर्जित है
घोड़े के मुंह में लगा होता है लगाम
उन्हें रूकने, हांफने और सुस्ताने की भी इजाजत नहीं
उन्हें बस चलते रहना है ताकि सूरज चल सके
निरंतर, निर्बाध.
डर है, रुके तो हिनहिना उठेंगे .
उनके आँखों पर लगी होती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 11, 2013 at 7:52pm — 13 Comments
पत्थर चुप हैं
वे ज्यादा बोलते नहीं
ज्यादा खामोश रहते हैं
खामोश रहना
जीवन की
सबसे खतरनाक क्रिया होती है
आदमी पत्थर हो जाता है
खामोशी का कोई भेद नहीं
कोई वर्गीकरण नहीं
बस,
दो शब्दों के
उच्चारण के बीच का अन्तराल
जहां कोई ध्वनि नहीं,
दो अक्षरों के बीच की
खाली जगह
जहां कुछ नहीं लिखा;
कोरा
ऐसे ही पत्थर होते हैं
जहां कुछ नहीं होता
वहां पत्थर…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on August 11, 2013 at 5:00pm — 28 Comments
!!! गीत !!!
तुम राष्ट् के कर्णधार देवदूत हो,
यदि शांति का, मार्ग दर्शन कर सकोगे?
नित नये नूतन किसलय अरूणिमा में,
या सांझ की श्याम धुन बांसुरिया हो।
धूप भी चन्दन लगेगा दोपहरिया में,
राष्ट् को यदि कीर्ति गौरव दे सकोगे? 1
तुम मनुष्य हो कर्म का फल भूल जाओ,
देश-धर्म हित लड़ो स्व भूल जाओ।
प्यार की पवि़त्र गंगा हर कहीं हो,
राष्ट् को यदि एक भगीरथ दे सकोगे? 2
सत्यम आहिंसा प्रेमु धन खूब लुटाओ,
राजपथ का मार्ग…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 11, 2013 at 4:51pm — 14 Comments
मै क्या लिखूं ,ये कैसे लिखूं और वो कितना लिखूं ,क्या शुद्ध है और परिष्कृत है और क्या अस्वीकार्य है? ये वरिष्ठ साहित्यकारों की जमात नहीं मेरे समझने वाले पाठक तय करेंगे तो मुझे खुशी होगी और मेरा सृजन सफल होगा ! मुझे किसी वरिष्ठ पर कोई विश्वास नहीं,हो सकता है वो अपनी आलोचनाओं से मेरी ठीक-ठाक रचना का कबाडा कर दे ! मुझे अपने से जूनियर और अपने समकालीन मित्र से अपनी सृजन पर समीक्षा लिखवाना अच्छा लगता है और इससे मुझे और लिखने का हौसला मिलता है ! मुझे नहीं लगता कि आपके द्वारा सृजित सामग्री को किन्ही…
ContinueAdded by शिवानन्द द्विवेदी सहर on August 11, 2013 at 3:30pm — 73 Comments
निगाहों ने छुपा रखी समन्दर की निशानी है ।
बहा करता है अश्कों में ये जो खारा सा पानी है ।
ये मानो या न मानो तुम कोई सागर तो है दिल में,
उठा करती यहाँ पल पल जो मौजों की रवानी है ।
हज़ारों दर्द सहकर भी मोहब्बत छोड़ ना पाया ,
अकेला दिल नही मेरा ये हर दिल की कहानी है ।
इश्क से रूबरू होकर नए हर दिल के किस्से हैं ,
मगर ये चीज उल्फत तो यहाँ सदियों पुरानी है ।
भले ही दुनियादारी के बड़े नादान पंछी हम ,
मगर दिल…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 3:07pm — 12 Comments
जब अन्धियारा संग संग है,
सब रंगों का एक रंग है।
एक लड़ाई है बाहर तो,
ख़ुद के अन्दर एक जंग है।
शहरों की गलियों से जादा,
गली दिलों की और तंग है।
कुछ करने की चाहत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on August 11, 2013 at 8:00am — 7 Comments
बहर= "रमल मुसम्मन महजूफ"
2122 2122 2122 212
गर दिलों का दर्द उतरे शायेरी बन जाये ये
भूल ना चाहें अगर आवारगी बन जाये ये
मत समझना तुम मुहब्बत खेलने की चीज़ है
दिल्लगी करते हुये दिलकी लगी बन जाये ये
हम समझते ही रहें खुद को शनासा दोस्तों
मार कर हमको हमारी ज़िन्दगी बन जाये ये
दर्द ही मिलते रहें ऐसा नहीं होता अगर
चाह जिसकी वो मिले तो हर ख़ुशी बन जाये ये
तुम न करना इस क़दर बिस्मिल मुहब्बत…
ContinueAdded by Ayub Khan "BismiL" on August 10, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
Added by Admin on August 10, 2013 at 3:00pm — 23 Comments
!!! निरगुन !!!
मन है मेरा गंगा-जमुना,
तन वृन्दावन भाए।
नील गगन से नयनागर मे,
नटवर की छवि पाऊं प्रियतम!
नयन नीर छलकाए।
मन मन्दिर में मनमोहन सी,
मूरत सदा बसाऊं प्रियतम!
मन चंचल भरमाए।
सुध-बुध खोकर बुध्दि विचारूं,
ज्ञान-विराग लुटाऊं प्रियतम!
पग-पग नृत्य कराए।
निश-दिन तेरी ज्योति निहारूं,
लौ आत्मा से पाऊं प्रियतम!
यह तन दीप सुहाए।
प्रेम दया करूणाकर तुम हो,
सदा प्रेम…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 10, 2013 at 2:42pm — 22 Comments
ग़ज़ल . |
क्यूँ कहते हो कोई कमतर होता है ! |
दुनिया में इन्सान बराबर होता है ! |
पाकीज़ा जज़्बात है जिसके सीने में ! |
उसका दिल भरपूर मुनौअर होता है !… |
Added by SALIM RAZA REWA on August 10, 2013 at 9:30am — 19 Comments
सोचने भर से यहाँ कब क्या हुआ
चल पड़ो फिर हर तरफ रस्ता हुआ
जिंदगी तो उम्र भर बिस्मिल रही
मौत आयी तब कही जलसा हुआ
रोटियां सब सेंकने में थे लगे
घर किसीका देखकर जलता हुआ
जख्म देकर दूर सब हो जायेंगे
आ मिलेंगे देखकर भरता हुआ
चाहिए पत्थर लिए हर हाथ को
इक शजर बस फूलता-फलता हुआ
बिस्मिल = ज़ख्मी
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr Lalit Kumar Singh on August 10, 2013 at 6:39am — 16 Comments
सावन की कसम
कसक उठी मन में
तार दिल के झनझना दिये.
बारिश की फुहारों ने
तपते बदन को छू
नस नस में तूफ़ान मचा दिये.
उफ़ ! सावन के इस ग़दर ने
प्रियतम की प्यास बढ़ाकर
मस्तिष्क की तरंगों को
कई गुना शून्य लगा दिये.
अब तुम आ जाओ प्रिये
एक एक पल न गुजर रहे ,
तुम्हे सावन की कसम
जो यदि नज़र फेर चल दिये.
-दिनेश सोलंकी
स्वरचित और अप्रकाशित
Added by dinesh solanki on August 9, 2013 at 5:00pm — 7 Comments
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