Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 7:30pm — 6 Comments
खूँटी पे लटकी
खाली पोटली
मुँह ताक रही है
कोई आएगा
जो झाड़ देगा
इसमें जमी धूल
बिलकुल वैसे ही
जैसे मुक्तिबोध
की कोई कविता
टंगी हो
समीक्षक के
इंतज़ार में
लेकिन उसे नहीं पता
अब कोई नहीं छेड़ेगा
उस खाली पोटली को
क्यूंकि वो एंटीक है
उसे म्यूजियम में रखा जायेगा
प्रदर्शनी की सोभा सा
क्यूँ कोई जीर्ण-उद्धार करेगा
फिर उदाहरण के लिए
क्या दिखाएगा
कुछ भी नहीं
अब तुम दुष्यंत की…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
मेरी सोच
तत्पर सी
जिज्ञासा शून्य
सब कुछ जानती हो जैसे
क्या होगा क्या नहीं ???
शब्दों में बिलबिलाती
भावों में छट-पटाती सी
स्वरों में मचलती सी
तोड़ने को चक्रव्यूह
बिलकुल अभिमन्यु की तरह
भेद जाती है चक्रव्यूह
पहुँच जाती है भीतर
पर लौटते वक़्त
तोड़ देती है दम
कौरवी छल से हुए आक्रमण
और दमन चक्र से
बच नहीं पाती है
"मेरी सोच"
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 2:42pm — 2 Comments
जहाँ जोर ना चले तलवार का
जहाँ मोल ना हो व्यव्हार का
तब सन्देश का माध्यम बन
समस्या करती छू मन्तर
कभी प्रेम प्रसंग का ताना बुन
शब्द लाती मैं चुन चुन
व्याकुल हो जब कोई मन
अंकुश लगाती शंकित मन
सूचक दे छवि विषाद का
आन्तरिक सुख को करूं अपर्ण
वीर रस का जब
ब्खान हूँ करती
मुर्दों में भी जीवन भरती
शब्दों के मैं मोती बना
भावना ऐसी व्यक्त करती
नीरस जीवन में जब
रंग रस मैं भरती
संकोची हृदय की जब व्यथा सुनती
उन्मुक्त…
Added by PHOOL SINGH on August 31, 2012 at 2:00pm — 5 Comments
देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं
सोन चिड़िया की कथा भी स्मरण होती नहीं
हो रहे पत्थर मनुज सब आँख का पानी सुखा
जल रहे हैं आग में लेकिन जलन होती नहीं
मर चुका ईमान सबका बेदिली है आदमी
फिर रहीं बेजान लाशें जो दफ़न होती नहीं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 1:00pm — 10 Comments
कहाँ बदन पर सजी रंगोली
कहाँ हुआ उसका खनन
कब कोई उसमे विलीन हुआ
कहाँ हुआ पूजा हवन
सब युगों युगों तक निशानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कहाँ प्यासे जिस्म में पड़ी दरारें
कहाँ निर्बाध जल में नहाया बदन
कहाँ इंसां ने बंजर बनाया
कहाँ लहलहाया मदमस्त चमन
जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कहाँ मेढ़ों ने करे विभाजन
कहाँ जुड़े सांझे आँगन
कहाँ सुने मिलन के गीत
कहाँ बरसा विरह का सावन
इन…
Added by rajesh kumari on August 31, 2012 at 12:00pm — 15 Comments
मर्यादित आचरण ही,सद्चरित्र व्यवहार,
सद्चरित्र व्यवहार से,हो दर्शन करतार //
कर दर्शन करतार के, सदाचार सोपान,
सदाचार सोपान से, होगा बेडा पार //
होगा बेडा पार तब,परहित तेरे कर्म,
परहित तेरे कर्म हो, उसेही मनो धर्म //
पुरुषोत्तमश्री राम का, है मर्यादित चरित्र,
अनुशासित नित्कर्म, है आचरण पवित्र //
जीवन दर्शन तत्व को,कृष्ण ही समझाय
युक्ति संगत करम को, कर्मयोगी बतलाय //
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:30am — 16 Comments
(१)
कभी फुर्सत में चले आना,हँस के जी लेंगे
ज़िक्र उनका न करेंगे होंठ सी लेंगे
दिल तो आखिर दिल है उदास भी हो सकता है
दर्द गर बढ़ भी गया दिल का,जाम पी लेंगे
(२)
हम मुहब्बत के पुजारी हैं इश्क करते हैं
ग़म के सहरा पे चलनें का दम भरते है
दर्द का रिश्ता तो इस दिल पुराना है दोस्त
हम तो तन्हाई में जीने का हुनर रखते हैं
(3)
बेगुनाही का सबूत हमसे न मांगो यारो
हमने तो चाहा,खता इतनी सी थी…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 31, 2012 at 11:00am — 5 Comments
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०१
चांदनी रात थी,
उजला आकाश था..
नदियों में लहरे,
और नीला प्रकाश था..
मछलियों की वो गुनगुनाहट,
और हर-हराती लहरे..
क्या खूब नज़ारा,
मन क्यों न अब उसपर ठहरे..
बात कुछ ऐसी थी, सपनो में हम खो से गए..०२
फिर शांत हुई लहरे,
मेरा चेहरा सामने आया..
जैसे नदियों ने मुझे,
गोद में था बैठाया..
सुकून इतना मिला,
जैसे पा लिया ईश्वर को.
जैसे मिल…
Added by Pradeep Kumar Kesarwani on August 31, 2012 at 11:00am — 5 Comments
ऐ मालिक ! बता दे तू , कि बहार बनाया क्यों ?
गर बहार बना था , तो उजाड़ बनाया क्यों ?
चमन में खिलती हैं कलियाँ , कली से नेह भौरों को .
पर भंवरे काँप उठे उस वक़्त , आखिर खार बनाया क्यों ?
जुदाई प्यार की मंजिल , तड़पना दिल को पड़ता है .
दिवाना कहती है दुनिया , तो फिर यह प्यार बनाया क्यों ?
मिलन की चाह होती है , मिलन होता मुकद्दर से .
तो मिलकर क्यों बिछड़ते हैं , आखिर दीदार बनाया क्यों ?
अगर मापतपुरी जालिम , तो उस पे कर करम मौला .
ख़ता…
Added by satish mapatpuri on August 31, 2012 at 2:15am — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 10:07pm — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 9:26pm — 4 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 30, 2012 at 8:42pm — 1 Comment
हमको देखे बिना उसने हाँ कह दिया
मेरे खाना-ए-दिल को मकाँ कह दिया
चाँद तारे मयस्सर मुझे हो गए
माँ के दामन को ही आसमाँ कह दिया
आग तडपी तपिश तिल-मिलाने लगी
सर्द से कोहरे को धुआँ कह दिया
छोड़ के…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 30, 2012 at 1:57pm — 8 Comments
सौन्दर्य तुम्हारा प्रियतमे, सप्तसुर संगीत है!
धरती-गगन संयुक्तता सा, प्रेम अपना गीत है!
संसार ये अतिशय है तप्त, मै बहुत संतप्त हूं!
संतप्तता के इस गहर में, संग तुम तो शीत है!
जग क्षितिज पर पाषाणता के, है तुम्हे भी कष्ट दे!
परन्तु उसी जग हेतु तुममे, शेष अति नवनीत है!
तुम नित करो नवनीत वर्षण, जग बदल सकता नही!
पाषाण मानव के ह्रदय में, कृतघ्न एक रीत है!
सत्प्रेमता का इस मनुज में, भाव कोई है नही!
सो…
Added by पीयूष द्विवेदी भारत on August 30, 2012 at 11:30am — 8 Comments
उंगलियाँ हम पे यूँ न उठाया करो
हर बार लिया मजा तुमने, हम भी चखे,
इंतज़ार हमें भी कभी तो कराया करो |
दौलते दिल है ये, इन्हें यूँ न बहाओ,
अंखियों से मोती यूँ न छलकाया करो |
हमने जब भी किया शिकवा,सुना तुमने,
शिकायतों का दौर,खुद भी लगाया करो |
फ़िक्र रहती है तुम्हारी,इस दिल को सदा,
नज़रों से दूर यूँ तुम न जाया करो…
Added by SACHIN on August 30, 2012 at 9:30am — 2 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 10:04pm — 5 Comments
निर्दोषों का वह हत्यारा
जन जन ने उसको धिक्कारा
किया कोर्ट ने ठीक हिसाब
क्या सखि अजमल ? नहिं रे कसाब
वो सबका इन्साफ़ करेगा
नहिं हत्याएं माफ़ करेगा
ख़ून का बदला लेगा ख़ून
क्या सखि मुन्सिफ़ ? नहिं कानून
हुआ आज हर्षित मेरा मन
करूँ ख़ूब उनका अभिनन्दन
काम कर दिया…
Added by Albela Khatri on August 29, 2012 at 4:30pm — 4 Comments
आप से नज़रें मिली दिल आशिकाना हो गया
यार से दिलबर हुए मौसम सुहाना हो गया
लोग अफसाने बना बातें हसीं करने लगे
आपके घर जो मेरा आना-जाना हो गया
छू रहीं साँसे गरम ठंडी ठंडी आह भर
आँख का झुकना बड़ा ही कातिलाना हो गया…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 29, 2012 at 3:00pm — No Comments
काश कोई होता जिसपे मेरा अधिकार होता!
काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!
जिसके बिन मेरा जीवन पतझड़ सा ही सूना है!
पास है मेरे सबकुछ पर वो नहीं तो फिर क्या है!
पतझड़ से सूने जीवन में बनकर बहार होता!
काश कोई होता जिसको मुझसे भी प्यार होता!
प्रेम कहानी, गीत-गज़ल…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on August 29, 2012 at 12:54pm — 6 Comments
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