Added by सुनीता शानू on September 13, 2011 at 11:23pm — 6 Comments
घर शिफ्टिंग के दौरान एक पुरानी diary हाथ लगी और गर्द झाड़ी तो यह रचना नमूदार हुई. इस पर तारीख अंकित थी 12-8-1999...मैने सोचा कच्ची उम्र और कच्ची सोच की यह रचना के सुधि पाठकों की नज़र की जाए.
तुम्हारी जो ख़बर हमें है
वो किसी और के पास कहाँ
देख लेता हूँ कहकहों में भी
आंसू के कतरे
ऐसी नजर किसी और के पास कहाँ
ज़माने ने ठोकरें दी पत्थर समझकर
तुने मुझे सहेज लिया मूरत समझकर
होगी अब हमारी गुजर
किसी और के पास कहाँ
उम्र भर देख लिया
बियाबान में…
Added by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 6:44pm — 6 Comments
Added by Anwesha Anjushree on September 13, 2011 at 4:51pm — 4 Comments
मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ
और खुशी मान के दिल में तेरा ग़म रखती हूँ।
मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।
हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ।
मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ
है तेरा प्यार इबादत मेरी पूजा मेरी
नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ।
दोस्तों से न गिला है न शिकायत है…
Added by siyasachdev on September 13, 2011 at 1:17am — 16 Comments
कोई पल ना बीतें काम के बिन हैं
रस्ते जीवन के बहुत कठिन हैं l
खुशी और गम के घूँट घूँट के
अभिलाषायें मन में अनगिन हैं l
साँस जभी तक आस तभी तक
सिमट रहे हर पल पल-छिन हैं l
काया ठगती है क्षमता घटती है
और बुझती सी साँसें बैरिन हैं l
ना होता हर दिन एक समाना
उम्मीदें भी लगतीं नामुमकिन हैं l
काम बहुत और समय रेत है
सब फिसल रहे हाथों से दिन हैं l
मंजिल है…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on September 13, 2011 at 12:30am — 2 Comments
बस एक छोटी सी कोशिश है लिखने की...
मन को मनाने के अंदाज निराले है
हुए नही वो हम ही उसके हवाले हैं
उसने कसम दी तो न पी अभी तक
हाथ में पकड़े लो खाली प्याले है
दिल की बात जुबां पर लाये भी कैसे
ये भीड़ नही बस उसके घरवाले हैं
बात छोटी सी भी वो समझे नही
चुप रहेंगे भला जो कहने वाले हैं
इन्तजार की भी होती है हद दोस्तों
रूक न पायेंगे हम जो मतवाले हैं
शानू
Added by सुनीता शानू on September 12, 2011 at 11:30pm — 8 Comments
अमावास की रात अब बहुत सुकून देती है
वो भी भादों की अमावास हो तो क्या कहने
उसके अलावा हर रात को…
Added by आशीष यादव on September 12, 2011 at 1:00pm — 16 Comments
बाक़ी रहा न मैं, न ग़मे-रोज़गार मेरे.
अब सिर्फ़ तू ही तू है परवरदिगार मेरे.
यारब हैं सर पे आने को कौन सी बलायें,
क्यूँ आज मेरी क़िस्मत है साज़गार मेरे.
बरसेगी और तुझपे ? उनके करम की बदली,…
ContinueAdded by डॉ. नमन दत्त on September 12, 2011 at 7:30am — 2 Comments
मुझे देख के एक लड़की, बस हौले -हौले हँसती है I
प्रेम - जाल मैं डाल के थक गया, पर कुड़ी नहीं फंसती हैI
रहती है मेरे पड़ोस में वो, कुछ चंचल कुछ शोख है वो I
ना गोरी - ना काली है, सांवली है मतवाली है I
झील सी गहरी आँखें हैं , ज़ुल्फ़ यूँ काली रातें हैं I
लहरों जैसी बल खाती, दुल्हन जैसी शरमाती I
चेहरा चाँद है पूनम का, होंठ सुमन है उपवन का I
नाम है उसका नील कमल, वो है ज़िंदा ताजमहल…
ContinueAdded by satish mapatpuri on September 12, 2011 at 12:00am — 3 Comments
न कोई गिला, न कोई शिकवा,
उनसे न मिलना भी है एक सजा;
न मिले हम उनसे तो दिल डूबा रहता है उनकी यादो में,
मिले अगर हम उनसे तो दिल डूबा रहता है अरमानो में;
डरते हैं हम कि कहीं हम बह न जाएँ इन अरमानो में,
कहीं रह न जाये बस वो मेरे खयालो में;
मेरी जिंदगी में बस यही कशमकश है,
और बस यही मेरी जिंदगी की उलझन है;
जितना उनको खोना है …
Added by Smrit Mishra on September 11, 2011 at 10:29pm — 2 Comments
Added by Smrit Mishra on September 11, 2011 at 10:28pm — No Comments
रमिया बड़ी खुश थी । शहर जो जा रही थी - अपने पोते को देखने जाने का आखिर उसे मौका मिल ही गया था । यह अवसर बनने में समय लग गया और देखते देखते उसका पोता सात साल का हो गया था । महानगर की भागम-भाग भरी जिन्दगी में से न तो उसका बेटा ही समय निकाल पा रहा था और ना ही रमिया गाँव की अपनी खेती गृहस्थी में से समय निकाल पा रही थी । या यूँ कहें कि कुछ अधिक ही व्यस्त थे दोनों ही माँ-बेटे । और रमिया का पोता…
Added by Neelam Upadhyaya on September 11, 2011 at 8:30pm — 13 Comments
हो गगन के चन्द्रमा तुम क्यों अगन बरसा रहे
देख कर बिरही अकेला क्यों मगन मुस्का रहे
मेरी धरती ने तुम्हे आकाश पर पहुंचा दिया
तुम भटकते ही रहे अब तक न तुमने कुछ किया
आज कर लो व्यंग्य कल तुम देख कर जल जाओगे
आज हूँ परदेश में कल पार्श्व में होगी प्रिया
इसलिए आगे बढ़ो जाओ जहाँ तुम जा रहे हो
हो गगन के चन्द्रमा ...........................
विरह में कितनी व्यथा है ये वियोगी जानते हैं
कोई क्या जानेगा केवल भुक्त भोगी…
Added by Yogendra B. Singh Alok Sitapuri on September 11, 2011 at 4:05pm — 4 Comments
मुर्गे की बांग के साथ ही
प्रवेश किया मैंनें तुम्हारी नगरी में .
रुपहरी भोर ,सुनहरी प्रभात से ,
गले लग रही थी
लताओं से बने तोरणद्वार को पारकर आगे बढ़ी,
कलियाँ चटक रही थीं,
फूलों का लिबास…
ContinueAdded by mohinichordia on September 11, 2011 at 2:00pm — 10 Comments
1. छब अपनी
Added by Veerendra Jain on September 11, 2011 at 12:30am — 2 Comments
Added by Shashi Mehra on September 9, 2011 at 9:14pm — 1 Comment
हमने कुछ किया तो उसे फ़र्ज बताया गया
Added by mohinichordia on September 9, 2011 at 9:00pm — 1 Comment
अन्तर्मन में तू रम जाये,
सांस सांस तेरा गुण गाये।
कण कण में तुझको मैं देखूँ,
नज़र पराया कोई न आये।
द्वेष न हो कोई भी मन…
ContinueAdded by Kailash C Sharma on September 8, 2011 at 2:32pm — 3 Comments
दिल्ली जो कि दिलवालों कि नगरी कहलाती है उसपर एक के बाद एक मुसीबते टूटती जा रही है.
यहाँ पर गोलीबारी, लूटपाट, चोरी, अपहरण, हत्या जैसी समस्या आम हो गयी है, जहाँ पर दिल्ली दिलवालों का शहर हुआ करता था वही आज कल यह गुनाहों का शहर बन गया है.
जहाँ पर लोगो को घर से निकलते भी यह सोचना पड़ता है कि वो सही सलामत घर आ भी पाएंगे कि नहीं. अगर हम किसी भी तरह इस मानव निर्मित आपदाओ से बच भी जाये तो प्राकृतिक आपदा भी हमारा पीछा नहीं छोडती है.
ठीक इसी प्रकार कि घटना ०७/०९/२०११ को घटी पहले तो…
Added by Smrit Mishra on September 8, 2011 at 12:36am — No Comments
दीवानगी क्या चीज़ है, मालूम न था;
इश्कियां क्या चीज़, मालूम न था;
क्यों लोग खो जाते है ख्यालो में, मालूम न था;
क्यों हो जाते है लोग स्थिल, मालूम न था;
आज मेरे हर सवालों का जवाब मुझे मिला;
जिन्दगी का एक नया सबक मैंने सिख लिया;
सिख लिए मैंने प्यार करने के तरीके,
और सिख ली मैंने इश्क को जताने के सलीके;
आज एक हौसला दिल में नया जगा;
जिसने जिन्दगी जीने का हौसला दिला दिया;
आज नयी उमंगो ने दी है दिल में दस्तक;
जिनके…
ContinueAdded by Smrit Mishra on September 7, 2011 at 10:25pm — 1 Comment
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