तू समझता है बदौलत तेरी है
मेरे दम से ही ये इज्ज़त तेरी है
यु उजड़ता कब है कोई गुलसितां
लगता है इसमें शरारत तेरी है
तू अमीर -ऐ -शहर था मग़रूर था
हाथ फैला अब ज़रूरत तेरी है
चाहतें किस किस की है दिल में तेरे
मेरे दिल में सिर्फ चाहत तेरी है
इसलिए महफूज़ रखता हु इसे
ज़िन्दगी मेरी अमानत तेरी है
शेर महफ़िल में सुनाता है 'हिलाल '
या खुदा इस पे ये रहमत तेरी है
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
No Comments
बात उनसे कभी हो गयी
ज़िन्दगी ज़िन्दगी हो गयी
दिल्लगी आशिकी हो गयी
आशिकी बंदगी हो गयी
वो तसव्वुर में क्या आ गए
क़ल्ब में रौशनी हो गयी
जब कभी उनसे नज़रें मिली
अपनी तो मैकशी हो गयी
बात फिर से जो होनी न थी
बात फिर से वो ही हो गयी
जब कभी वो खफा हो गए
ख़त्म सारी ख़ुशी हो गयी
बादलो क जब आंसू गिरे
कुल जहाँ में नमी हो गयी
सैकड़ो घोंसले गिर गए
क्यों हवा सरफिरी हो गयी
ध्यान उनका…
Continue
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
5 Comments
बिस्मिल्लाह हिर्रहिमा निर्रहीम
हिलाल वजीरगंजवी (बदायूं )
हिलाल अहमद 'हिलाल ' मेरे सभी शागिर्दों में एक मुनफ़रिद मकाम के हामिल है . हिलाल , आले अहमद 'ज़ौक मुहम्मदी के फरजंद और हाफिज़ अबरार अहमद 'जाहिद मुहम्मदी के भतीजे है उन के दादा मरहूम मौलवी मुहम्मद बक्श साहब बस्ती के मशहूर पाकबाज़ शक्सीयत थे .
ज़ौक मुहम्मदी , जाहिद मुहम्मदी ने भी मुझसे शरफ तलाम्मुज़ हासिल किया और फख्र की बात ये है के मेरा और हिलाल का घराना एक…
Continue
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
No Comments
तेरे हुस्न -ओ -नजाकत का बदल मै लिख नहीं सकता - कि तेरी शान में कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता
तबस्सुम और तेरे गुफ्तार के बारे में क्या लिक्खूं
तेरे सुर्खी भरे रुखसार के बारे मै क्या लिक्खू
तेरी सीरत तेरे किरदार के बारे मै क्या लिक्खू
तेरी पाजेब क़ी झंकार के बारे में क्या लिक्खू - के तेरी शान मै कोई ग़ज़ल मै लिख नहीं सकता
तेरे लहराते आँचल को मै अब तशबीह किस से दूँ
तेरी आँखों के काजल को मै अब तशबीह किस…
Continue
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:30pm —
2 Comments
आशियाँ मेरा रखा है जब शरारों के करीब
कौन दिल बहलाए फिर जाकर बहारों के करीब
कल मेरी कश्ती डुबोने में उन्ही का हाथ था
आज जो अफ़सोस करते है किनारों के करीब
ज़लज़ले में कितने बच्चे हो गए है कल यतीम
देख लो जाकर ज़रा उन बेसहारों के करीब
मेरे घर की मुफलिसी ज़ाहिर न हो दीवार से
इश्तहारों को लगाया है दरारों के करीब
क़त्ल केर दो मुझको लेकिन एक ख्वाहिश है मेरी
दफन करना मुझको मेरे…
Continue
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm —
No Comments
क्यों कहू खुद से मै जुदा तुमको
जब के अपना बना चुका तुमको
तुम तसव्वुर में आ गए फ़ौरन
जब भी चाहा के देखता तुमको
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 3:00pm —
No Comments
अपनी बुराइयाँ जो कभी देखता नही
लगता है उसके पास कोई आईना नही
गुलशन मे रहके फूल से जो आशना नही
उसका तो खुश्बुओ से कोई वास्ता नही
हम सा वफ़ा परस्त वतन को मिला नही
लेकिन हमारा नाम किसी से सिवा नही
मैं उससे कर रहा हू वफाओं की आरज़ू
जिस शक्स का वफ़ा से कोई राबता नही
तुम मिल गये तो मिल गयी दुनिया की हर खुशी
पास आने से तुम्हारे मेरे पास क्या नही
उनका ख्याल आया तो अशआर हो गये
अशआर कहने के लिए मैं सोचता…
Continue
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 2:30pm —
2 Comments
मेहनत के बावजूद जो पंहुचा मै अपने घर ,
वालिद का ये सवाल कमाया है तुने कुछ .
बीवी को और बच्चों को फरमाइशों की लत ,
बस माँ को ये ख्याल के खाया है तुने कुछ .
Added by Hilal Badayuni on September 19, 2010 at 2:30pm —
No Comments
मन में मंदिर होता है
तब मन भी सुंदर होता है
दुःख तो आना जाना है
क्यूँ चिंता करता रोता है
दूजे पर क्यूं हँसता है
वही काटेगा जो बोता है
पाप करेगा भोझ भी उसका
जीवन भर दिल ढोता है
पहले सोचा होता तुने
दाग लगा तब धोता है
रातों को वो जागे है
दिन भर देखो सोता है
Added by abhinav on September 19, 2010 at 2:28pm —
19 Comments
एक लड़की लापता है ...
चिंताग्रस्त ...
हड्डियों के ढाँचे सी दुबली ...
सुना है घर से अकेली निकली है ...
कहती है ज़माना बदलेगी ...
दीवारों पर गुमशुदा का ...
"प्रति" जी का इश्तिहार लगा है ...
नाम छपा मानवता ...
कोई कहे यथार्थवादी डाकू ...
कोई कहे भौतिकता का डाकू ...
उठा ले गया उसे ...
लिखा है गुमशुदा के पोस्टर में ...
किसी सज्जन को मिले तो ले आना ...
मैं बोला भईया…
Continue
Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 19, 2010 at 2:00am —
3 Comments
रोने भी नहीं देते ,
हसने भी नहीं देते ,
मन के माफिक ये तो ,
चलने भी नहीं देते ,
कल तक था मेरे मन में ,
देश के लिए जिऊंगा ,
चल पड़ा सीना ठोक कर ,
देश का सेवा करूँगा ,
देखा एड पढ़ कर भर दी ,
आ गया बुलावा भी ,
दौड़ में मैं आगे निकला ,
गर्व हुआ अपने ऊपर ,
आकर एक जन पूछा मुझसे ,
कौन तुझे भेजा अन्दर ,
मैं डट कर बोला उनसे ,
कोई नहीं हैं मेरे ऊपर ,
बोला चलो बगल में आओ ,
आगे आपना हाथ बढ़ावो ,
ये धागा मैं बांघ देता हु…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on September 18, 2010 at 8:37pm —
No Comments
वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,
सहाद में जहर मिलाकर बर्बाद कर दिया ,
बिस्वास जिनपे किये आखं बंद कर के ,
दुसमन दोस्त अपने लूटे हमदर्द बन के ,
ये काम हिंद के आग्रिम लोग कर दिया ,
वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,
सिखाते हैं ओ हमें अच्छा काम कर लो ,
देश के हित में तू कुछ नाम कर लो ,
क्या पता ओ भी हमें जहर ही पिलायेंगे ,
नाम होगा सहाद का मीठा जहर खिलायेगे ,
फासी पे चढाओ ऐसा घिर्नित काम किया ,
वाह रे जमाना खूब मस्त काम कर दिया ,
Added by Rash Bihari Ravi on September 18, 2010 at 8:00pm —
No Comments
क्या स्वीकार कर पाएगी वह ?
कोयला उसे बहुत नरम लगता है
और कहीं ठंडा ..
उसके शरीर में
जो कोयला ईश्वर ने भरा है
वह अजीब काला है
सख्त है
और कहीं गरम .!
अक्सर जब रात को आँखों में घड़ियाँ दब जाती हैं
और उनकी टिकटिक सन्नाटे में खो जाती है ..
तब अचानक कुछ जल उठता है ..
और सारे सपनों को कुदाल से तोड़
वह न जाने किस खंदक में जा पहुँचती है l
तभी पहाड़ों से लिपटकर
कई बादल…
Continue
Added by Aparna Bhatnagar on September 18, 2010 at 7:00pm —
8 Comments
क़ल्ब ने पाई है राहत आप से मिलने के बाद,
हो गयी ज़ाहिर मोहब्बत आप से मिलने के बाद,
ये इनायत है नवाज़िश है करम है आपका,
बढ़ गयी है मेरी इज़्ज़त आप से मिलने के बाद,
Added by Hilal Badayuni on September 18, 2010 at 2:30pm —
1 Comment
देखो,
यह कलयुगी मानव,
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !
जिसका जीवन यंत्रो जैसा,
आखो में लालच है,
लालच इसकी न चेहरे पर भाव !
झूठ इसकी है बुनियाद !
बईमानी इसकी है आदत !
धोखा इसका है स्वभाव !
हर पल में इसका अभिनय बनता,
बातो में इसके छलावा पन !
हर पल में नया चरित्र है बनता !
देख कर अवसर वार यह करता !
रहता हरदम चोक्न्ना देखो,
यह कलियुगी मानव !
कैसा है ?
यह कलयुगी मानव !!
Added by Pooja Singh on September 18, 2010 at 1:00pm —
1 Comment
क्या हुआ ? ज़िन्दगी ज़िन्दगी ना रही
खुश्क आँखों में केवल नमी रह गई --
तुझको पाने की हसरत कहीं खो गई
सब मिला बस तेरी एक कमी रह गई |
आँधियों की चरागों से थी दुश्मनी
अब कहाँ घर मेरे रौशनी रह गई |
ना वो सजदे रहे ना वो सर ही रहे
अब तो बस नाम की बन्दगी रह गई |
अय तपिश जी रहे हो तो किसके लिए ?
किसके हिस्से की अब ज़िन्दगी रह गई |
Added by jagdishtapish on September 18, 2010 at 12:30pm —
2 Comments
सहसा मेरी नज़र उस विज्ञापन पर पड़ी ,जिसमे क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी बता रहे थे ॥" सिर्फ १४११ बचे है "
उसके नीचे एक बाघ का फोटो ॥
जिन बाघों से हमारे दादा -दादी हमको डराते थे ,आज वे स्वम विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चूके है ॥
भारत में बाघों के संरक्षण एवं प्रजनन को लेकर " टाईगर प्रोजेक्ट " की शुरुयात सन १९७३ में की गई । अब तक देश भर में २७ बाघ अभ्यारण्य काम कर रहे है ॥ वर्ष २०००-२००१ तक भारत के कुल ३७,७६१ वर्ग किलोमीटर में यह फैला हुआ है ।
मुझे कहते हुए गर्व हो रहा है कि बिहार…
Continue
Added by baban pandey on September 18, 2010 at 11:22am —
No Comments
एक अक्षर का एक शब्द ये, कैसे करे हम इसका गान;
सूरज चाँद सितारों से भी बढ़कर रहता जिसका मान|
वन उपवन ये झरनें नदियाँ दे न पते इतना सुख;
एक पल में ही दे देती है माँ वो सुख जितना महान||
माँ न हो तो किसी चीज की कोई भी कल्पना कैसी;
इसके बिना तो जग झूठा है, झूठी है हम सबकी शान|
एक अक्षर का एक शब्द.....................................
सुख हो या दुःख सबमे रखती है अपने बच्चों को खुश;
सब कुछ सहती पर रखती है नित्य प्रति बच्चों का ध्यान |
एक अक्षर का…
Continue
Added by आशीष यादव on September 18, 2010 at 12:04am —
5 Comments
सत्य
संजीव 'सलिल'
*
सत्य- कहता नहीं, सत्य- सुनता नहीं?
सरफिरा है मनुज, सत्य- गुनता नहीं..
*
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी.
सिर्फ कहता रहा, सत्य- चुनता नहीं..
*
आह पर वाह की, किन्तु करता नहीं.
दाना नादान है, सत्य- धुनता नहीं..
*
चरखा-कोशिश परिश्रम रुई साथ ले-
कातता है समय, सत्य- बुनता नहीं..
*
नष्ट पल में हुआ, भ्रष्ट भी कर गया.
कष्ट देता असत, सत्य- घुनता नहीं..
*
प्यास हर आस दे, त्रास सहकर…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on September 17, 2010 at 10:30pm —
2 Comments
ग़ज़ल
by Tarlok Singh Judge
गिर गया कोई तो उसको भी संभल कर देखिये
ऐसा न हो बाद में खुद हाथ मल कर देखिये
कौन कहता है कि राहें इश्क की आसन हैं
आप इन राहों पे, थोडा सा तो चल कर देखिये
पाँव में छाले हैं, आँखों में उमीन्दें बरकरार
देख कर हमको हसद से, थोडा जल कर देखिये
आप तो लिखते हो माशाल्लाह, बड़ा ही खूब जी
कलम का यह सफर मेरे साथ चल कर देखिये
क्या हुआ दुनिया ने ठुकराया है, रोना छोडिये
बन के सपना, मेरी आँखों में मचल कर…
Continue
Added by Tarlok Singh Judge on September 17, 2010 at 9:27pm —
2 Comments