"अंकल जी, बर्थडे का सामान दे दो , ये छोटा वाला केक कितने में मिलेगा ?" - सोनू ने बेकरी वाले से पूछा।
"डेढ़ सौ रुपये का"
जवाब सुनकर सोनू आँखें फाड़े साथियों की तरफ देखने लगा । सभी ने अपनी जेबों से पैसे निकाले। कुछ सिक्के, कुछ पुराने फटे से नोट, कुल जमा पैंतीस रुपये थे। छोटे भाई का बर्थडे तो मनाना ही है।
"लो अंकल जी, पैंतीस रुपये में छोटा सा कोई केक और बाक़ी सामान पैक कर दो !" - सोनू ने निराश हो कर कहा। बेकरी वाले को हँसी आ गई । फटे पुराने से कपड़े पहने हुए बच्चों को देखकर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 11:31am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 28, 2015 at 9:47am — 3 Comments
[आधार छंद : 'विधाता']
1222 1222 1222 1222
कभी अपने मुसीबत में, ज़रा भी काम आये हैं,
जिन्हें समझा नहीं था दोस्त वे नज़दीक लाये हैं।
जिसे माना, जिसे पूजा, उसे घर से भगा कर के,
बुढ़ापे में, जताकर स्वार्थ, ममता को भुलाये हैं।
तुम्हारे पास दिल रख तो दिया गिरवी भरोसे पर,
पता मुझको चला तुमने, हज़ारों दिल दुखाये हैं।
कभी वे फोन पर बातें करेंगी, स्वर बदलकर के,
कभी वे नेट पर चेटिंग, झिलाकर के बुलाये हैं।
न जाने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:30am — 10 Comments
"जिठानी तो बस फसल कटने पे अपना हिस्सा माँगने लगती हैं, खुद शहर की हो गई, हमें बाप-दादाओं की खेती के काम तो चलाना ही है!"- खेत पर हल जोतते हुए माथे का पसीना पोंछ कर सावित्री ने देवरानी मंगला से कहा।
"मर्दों में वो कुव्वत रही नहीं, तो बेटों का मन कैसे लगे ऐसी खेती में !"- मंगला ने एक हाथ से पल्लू ठीक करते हुए अपने घर के मर्दों और ज़मीन के हालात पर कटाक्ष किया।
"लेकिन एक बात तो मानना पड़ेगी, गाँव छोड़के शहर में भले वो अभी झुग्गी झोपड़ी में रह रही है, लेकिन वो अपने बेटों की…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 24, 2015 at 9:00am — 6 Comments
(1)
छंद रच ले
छंद का समारोह
काव्य आरोह।
(2)
मन पसंद
लिख ले कुछ छंद
बिना पैबंद।
(3)
छंद में बंद
भावनायें पसंद
विधान द्वंद।
(4)
छन-छन के
निकलते ये छंद
उत्कृष्ट चंद।
(5)
छंद सुनाओ
सत्य हमें बताओ
चेतना लाओ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2015 at 10:30am — 4 Comments
"चच्चा, लो पियो जे कड़क चाय, लेकिन मेरी कविता ज़रूर पढ़कर जाना" - गुम्मन ने बड़े उत्साह से कहा।
थोड़ी देर बाद वहीद चच्चा बोले- "ओय गुम्मन, तू तो बड़ी अच्छी कविता लिख लेता है, आज पता चली तेरी काबीलियत और तेरा 'असली' नाम।"
"हाँ चच्चा, छुटपन में एक बार ठण्ड के साथ तेज़ बुख़ार होने पे बिना किसी को बताये टेबल पे रखी रजाई की तह में छिपकर सो गया था। घरवाले घण्टों ढूंढते रहे। जब मिला तो "गुम" कहके चिढ़ाने, बुलाने लगे। इस चाय की दुकान पे सब "गुम्मन" कहने लगे। स्कूल छूटा तो असली नाम भी गुम…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
हल्की 'टप्प' की आवाज़ के साथ स्मार्ट फोन की स्क्रीन पर दो बूँदें गिरीं । एक लम्बी साँस लेकर पश्चाताप और आक्रोश की ज्वाला फिर भड़क उठी। यह वही तस्वीर है न, जो शालिनी के बेहद क़रीबी 'दोस्त' ने ली थी, उस दिन मोबाइल पर।फोटो लेते समय ही उसकी आँखें फटी की फटी सी रह गयीं थीं। उस छिछोरे के हाव-भाव ही संदेहास्पद थे। शालिनी ने तो उसे जीन्स या शोर्ट्स पहनकर चलने को कहा था , लेकिन वह सलवार सूट पहन कर ही उस 'आत्म-रक्षा प्रशिक्षण कैम्प' में गई थी। शालिनी का कुशल व्यवहार उसे पसंद था, लेकिन वह समझ न सकी कि…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 17, 2015 at 11:34am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:15pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 2:00pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 9:30pm — 5 Comments
"फोन करने और 'ईद मुबारक़' कहने की क्या ज़रूरत थी ?" शबाना ने एतराज़ जताते हुए कहा।
" तो तुमने इतने सालों बाद भी मेरी आवाज़ पहचान ली थी ! फिर तुमने अपने शौहर को क्यों दे दिया फोन ?" कुछ नाराज़गी के लहज़े में आफताब ने पूछा।
"ग़ैर मर्दों से यूँ फोन पर बातें करना हमारे यहाँ मना है। आवाज़ क्या, तुम्हारी तो रग-रग से वाकिफ हूँ मैं तो !" लम्बी साँस लेते हुए शबाना ने उसे समझाया- " देखो, गढ़े मुर्दे उखाड़ कर ज़ख़म कुरेदने से कोई फायदा नहीं ! तुम्हारे वालिद साहब ही घर आये थे और उन्होंने बहुत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 8:00am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 12, 2015 at 8:48am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 10:39pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2015 at 3:29pm — 5 Comments
अपनी सास और जेठ-जिठानी से पिंड छुड़ाने के बाद, खुद को नये ज़माने की कहने वाली मात्र बारहवीं पास छोटी बहू काजल अब काफी संतुष्ट थी। बेटे को दूध पिलाने के लिए पति को राजी कर एक बकरी भी अब उसने पाल ली थी। गांव की एक लड़की से हर रोज़ की तरह घर की साफ-सफाई और लीपा-पोती करवाने के बाद आज काजल भोजन पकाने की तैयारी कर ही रही थी कि पति की ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। आज फिर पड़ोसी से झगड़ा हो गया था। बेटे को वहीं रसोई में छोड़ फुर्ती से वह बाहर की ओर भागी। जैसे-तैसे झगड़ा शांत कराकर जब वापस…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 9, 2015 at 9:00am — 6 Comments
गीतिका, आधार छंद- वाचिक महालक्ष्मी
(212 212 212)
शब्द अब गीत रचने लगे,
राज़ दिल के बिखरने लगे। /1/
दोस्त दुश्मन सभी दूर हैं
अब स्वयं को समझने लगे। /2/
नौकरी रिश्वतों से मिली,
आज अक्षम चमकने लगे। /3/
ठोकरें दीं सभी ने हमें,
पैर रखकर कुचलने लगे। /4/
प्रेम, दोस्ती रही आज तक,
शक हमें दूर रखने लगे। /5/
युग्म जुड़ कर करेंगे भला,
गीतिका-भाव भरने लगे। /6/
(मौलिक व अप्रकाशित)
_शेख़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 8, 2015 at 8:07am — 9 Comments
क्रिकेट मैच जीतने के बाद मोहल्ले के लड़के जश्न मनाते हुए एक टीले पर बैठे हुए थे। मोटू सोनू ने अपनी टाइट शर्ट के बटन सही करते हुए कहा- "अब मैं करता हूँ आमिर खान की नकल ! टी.वी. पे वो नया विज्ञापन देखा है न....
"हम अब भी वहीं के वहीं खड़े हैं, न हम बदले, न हम मोटे हो रहे हैं।
ये तो कमबख़्त कपड़ों की है शरारत, जो अपने आप छोटे हो रहे हैं! "
"वाह, क्या बात है, इसी पे पैरोडी हो जाये। बोल संजू अब तू बोल "- उनमें से एक ने कहा।
संजू शुरू हो गया- "हम अब भी वहीं खड़े हैं, न हम बदले,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2015 at 11:00am — 6 Comments
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