तुम और तुम्हारी यादें .. दिल से जाती ही नहीं ...
कई बार चाहा तुम चले जाओ..
मेरे दिल से .. मेरे दिमाग से ...
हर मुमकिन कोशिश कर के देख लिया ..
पर नाकाम रहे ...
कभी कभी सोचते हैं ..ऐसा क्या है हमारे बीच ...
जिसने हमें बांध कर रक्खा है ..
हमारा तो कोई रिश्ता भी नहीं ..
फिर क्या है ये ...?
"लेकिन नहीं" हैं न ..हमारे बीच एक सम्बन्ध ..
एहसास का सम्बन्ध ..
ये क्या है ..नहीं बता सकती मैं ..
एहसास को शब्दों में नहीं बाँध सकती मैं…
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Added by Anita Maurya on November 19, 2010 at 6:32pm —
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हम बच्चों को आप बड़ों का प्यार चाहिए.
हमें भी फूलने- फलने का आधार चाहिए.
हम भी फूल इसी बगिया के, फिर बहार से क्यों वंचित हैं?
देश के हम भी नौनिहाल हैं, फिर दुलार से क्यों वंचित हैं?
हमें भी खुलकर हँसने का अधिकार चाहिए.
हमें भी फूलने - फलने का आधार चाहिए.
उस समाज का क्या मतलब, जहाँ हम अनपढ़ रह जाते हैं?
उस किताब की क्या कीमत, जिसको हम पढ़ नहीं पाते हैं?
हम सब को भी शिक्षा का सिंगार चाहिए.
हमें भी फूलने -फलने का आधार…
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Added by satish mapatpuri on November 19, 2010 at 3:30pm —
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वाह री राखी सावंत
कर दिया तूने तंग
ऐसे चिल्लाती हो जैसे
लड़ रही हो जंग
सच बतलाएं मज़ा न आया
बेशक तूने नाम कमाया
देख तिहारी नौटंकी
हुई जाए अखियाँ बंद
नारी हो कुछ शर्म करो
कुदरत के कहर से डरो
इतना चीखना चिल्लाना
एक मर्द को नामर्द बतलाना
कहाँ से इतना ज्ञान पा लिया
हम देख के रह गए दंग
खुद भड़कीले वस्त्र धारणी
उंगली उठाती दूजों पर
राखी के इन्साफ में दिखता
केवल अश्लीलता का रंग
दीपक शर्मा…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2010 at 3:00pm —
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मैं तकरीबन २० साल के बाद विदेश से अपने शहर लौटा था ! बाज़ार में घूमते हुए सहसा मेरी नज़रें सब्जी का ठेला लगाये एक बूढे पर जा टिकीं, बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं उसको पहचान नहीं पा रहा था ! लेकिन न जाने बार बार ऐसा क्यों लग रहा था की मैं उसे बड़ी अच्छी तरह से जनता हूँ ! मेरी उत्सुकता उस बूढ़े से भी छुपी न रही , उसके चेहरे पर आई अचानक मुस्कान से मैं समझ गया था कि उसने मुझे पहचान लिया था ! काफी देर की जेहनी कशमकश के बाद जब मैंने उसे पहचाना तो मेरे पाँव के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई ! जब मैं विदेश गया…
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Added by योगराज प्रभाकर on November 19, 2010 at 2:49pm —
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तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा
एक, नन्हा सा दिया,
बस ठान बैठा, मन में हठ
अंधियार, मैं रहने न दूं,
मैं ही अकेला, लूं निपट
मन में सुदृढ़ संकल्प ले
जलने लगा वो अनवरत,
संत्रास के झोकों ने घेरा
जान दुर्वल, लघु, विनत
दूसरा आकर जुड़ा,
देख उसको थका हारा
धन्य समझूं, मैं स्वयं को
जल मरूं, पर दूं सहारा
इस तरह जुड़ते गए,
और श्रृंखला बनती गयी
निष्काम,परहित काम आयें
भावना पलती गयी
एक होता… Continue
Added by Shriprakash shukla on November 19, 2010 at 2:00pm —
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झबरीली मूंछों वाले लोगों को देख कर मेरा भी कटीली मूँछ रखने का मन हो आया.... अब आप देखें तो मेरी बेटी झलक की ओर से किसी मूंछों वाले के लिए कही गयी नयी बात क्या होगी...
मूँछों के झोंटे ::: ©
ताऊ जी ताऊ जी.....
मेले प्याले-प्याले ताऊ जी..
मेले छुई-मुई छे बचपन को..
लटका कल अपनी मूंछों में..
त्लिप्ती दिया कलो झोंटे देकल..
अनुपम छुन्दल हवादाल झूला..
सदृश्य अनुराग मेली…
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Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 19, 2010 at 1:30pm —
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यह भींगी हुयी शाम ,
और तेरे शहर का भटकता बादल
किस सोच में खो गयी दिल की दुनिया ,
आने लगी याद तेरी ,
और ना जाने
क्या - क्या याद आने लगा
बीता हुआ ,
इस भटकते बादल ने
भींगें मौसम में
दर्द की आग फैलाने लगा //राणा //
Added by Rana Navin on November 19, 2010 at 11:40am —
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बहार की व्यथा
अभी कुछ साल ही तो बीते हैं |
बसंत की तरह निरंतर प्रसन्नचित,
उजड़े चमन को भी खिला देने वाला मै,
साथ लिए चलता था सुरभित मलय पवनों को |
हर-एक गुलशन को चाहत थी मेरी,
मेरे स्पर्शों की, मेरे छुवन की |
हर कली मेरा स्पर्श पाकर फूल होना चाहती थी |
मै भी खुश होता, सबको खुश करता, आगे बढ़ जाता |
धीरे-धीरे सब कुछ बदला |
जगह, समाज, धर्म, मंदिर, मस्जिद,
मतलब सब कुछ |
तब मुझे दुःख नहीं हुआ |
मै क्या जानता था की इस…
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Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 11:00am —
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मै, जो वाकिफ करता हूँ तुमको, तुमसे|
पहचान बताता हूँ तुम्हारी|
क्या हो तुम, किस बात पे गुरुर है तुम्हे,
सब दिखता हूँ मै|
खामियां क्या हैं? झलक रही हैं चेहरे पर,
ये मै ही हूँ, जो तुम्हे दिखता हूँ,
और बताता हूँ की तुम क्या हो|
आओ मेरे सामने, हकीकत बयां करूँगा|
यदि तुम मुझे तोड़ भी दो तो भी
तुम्हारी बुराइयां नहीं छिपेगीं|
मेरे टुकडो के बराबर गुना तुम्हारी खामियां नज़र आएगी|
इतने दूर क्यों खड़े हो?
कितने ऊँचाई पर हो, आओ मै…
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Added by आशीष यादव on November 19, 2010 at 10:43am —
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देश के जाने माने योगगुरू बाबा रामदेव अब राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में हैं। योग की घुट्टी पिलाकर रोग भगाने के बाद अब वे राजनीति की खुराक देंगे। तमाम लोग भी चाहते हैं कि राजनीति में बढ़ती जा रही गंदगी पर रोक लगे या फिर उसका सफाया ही हो जाए। लेकिन क्या बाबा रामदेव की मंशा को पंख लग पाएंगे ?
आए दिन नई बीमारी, नए रोग और उसके निदान के लिए जूझते देश-विदेश के हजारों वैज्ञानिक, डाक्टर। ऐसे में बाबा रामदेव ने प्राचीन युग से चल रहे योग को लोगों के सामने पेश किया, जिसका नतीजा भी लोगों को देखने को…
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Added by ratan jaiswani on November 19, 2010 at 10:00am —
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महंगाई ने जहां एक ओर आम लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है। वहीं आम आदमी को अपने बच्चों के लिए सामान जुटाने में पसीना छूट जाता है। ऐसी महंगाई से निपटने के लिए यह सायकल उन लोगों के लिए कारगर साबित हो सकती है, जो अपने बच्चों को बड़ी कंपनियों की महंगी सायकलें खरीद कर नहीं दे सकते।
जी हां, यह है लकड़ी की सायकल, जिसे पौना गांव के युवक बलिराम कष्यप ने बनाया है। बाजार में बिक रही सायकलों के दाम 3000 रूपए से कम नहीं हैं, लेकिन बलिराम ने जो सायकल बनाई है उसकी लागत मात्र 1000 रूपए है, मजबूती इतनी कि तीन लोग…
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Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 2:51pm —
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निशानेबाजी में देश भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके अभिनव बिंद्रा के नक्शे कदम पर जिले के पुलिस विभाग में पदस्थ आरक्षक मनीष राजपूत भी है, जिसने हाल ही में माना में आयोजित स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक हासिल किया है। राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में इस जवान को अब तक 18 पदक मिल चुके हैं।
पुलिस लाइन जांजगीर में पदस्थ आरक्षक मनीष राजपूत की पहचान एक अच्छे निशानेबाज के रूप में है। इस जवान ने 29 अक्टूबर से 3 नवंबर तक माना रेंज में पुलिस अकादमी व जिंदल स्टील…
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Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 2:26pm —
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कई दिनों तक सोचने के बाद मेरे जेहन में ऐसा कोई विचार नहीं आ रहा था, जिसे मैं लिख सकता। पर अचानक ही सूझा कि देश में बढ़ती गरीबी पर लिखूं। सहसा ही ध्यान आया कि अब तो केवल मालदार गरीबों का ही बोलबाला है। ऐसे मालदार गरीबों से मेरा रोज ही पाला पड़ता है। जब मैं किसी गली से गुजरता हूं तो उनसे मेरा नमस्कार होता है, जिनके पास बंगला, कार समेत सभी एशोआराम के साजो-सामान हैं।
एक दिन मेरे पड़ोसी ने मुझे गरीब बनने की नसीहत दे डाली और वो सारे फण्डे बता डाले, जिससे मालदार होते हुए गरीबी का चोला ओढ़ा जा सके।…
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Added by rajkumar sahu on November 18, 2010 at 1:56pm —
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दीपावली दीप
दीपावलि की धवल पंक्तियाँ, देती आयीं सदा संदेशा I
छाया मिटे क्लेश कुंठा की, जीवन सुखमय रहे हमेशा I
छोटा बड़ा नहीं कोई भी, बीज साम्य के दीपक बोते I
इसी लिए हर घर के दीपक, केवल मिटटी के ही होते I
चाह यही यह दिव्य रश्मियाँ, हर मन को आलोड़ित करदें I
ये प्रकाश की मनहर किरणें, जीवन अंगना आलोकित कर देंI
रहे कामना यही ह्रदय में, मंगलमय हो हर जीवन I
प्रेम और सद्भाव बढायें, मिलकर सभी धनिक निर्धनI
देश प्रेम की प्रवल भावना, भरी… Continue
Added by Shriprakash shukla on November 18, 2010 at 12:30am —
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प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन
Added by Shrddha on November 17, 2010 at 6:00pm —
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अरे ओ नौजवानों ,
अब उठो और
खुद से ये पूछो |
दिया जिसने तुम्हे है सब कुछ
उसी के दिल -
-से आज तुम पूछो
कभी हमसे भी पूछो ,
और लोगों से भी पूछो |
किया तुमने है क्या
उस माँ की खातिर
जिसने तुम्हे ममता परोसी है |
आँचल से लिपटकर जिसके
दुनिया ये सोती है |
जिसका जीवन बना आदर्श
आज फिर , ममता वो रोई है |
जिसने सभी के चेहरों पर
मुस्कान है लायी ,
वो ममता आज फिर
खुद हंस-हंस के रोई है |
जिसने खुद जगकर
हमको…
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Added by Akshay Thakur " परब्रह्म " on November 17, 2010 at 11:18am —
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जब ना तुम होगी, ना तेरा आसरा होगा
अल्लाह ! आने वाले दिन में न जाने क्या-क्या होगा !
सब भूल जाते है साथ में गुजारें लम्हें एक दिन,
वक़्त बदलेगा तो सब कुछ कितना बदल चुका होगा !
सफ़र में नए मोड़ पर कोई मिल जाएगा ही " राणा"
दिल जो मोम का हैं, लोहे में तबतक ढल चुका होगा !!
Added by Rana Navin on November 16, 2010 at 3:06pm —
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महज ढाई फीट कद होने के बावजूद चाम्पा की कचरा बाई का हौसला देख कोई भी एकबारगी सोचने पर विवश हो जायेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि कचरा बाई, हौसले का एक नाम है। एम् ए राजनीति में शिक्षा लेने वाली कचरा बाई हर किसी से जुदा लगती है, क्योंकि उसका कद ढाई फीट है। कुदरत ने कचरा बाई को भले ही कद काठी कम दिया हो, लेकिन उसके हौसले की उड़ान के आगे यह कमजोरी नहीं बन सकी। उसने कंप्यूटर की भी शिक्षा लेकार यह साबित कर दिया है कि जहाँ चाह होती है। वहां राह खुद बन जाती है। लोगों के बीच कचरा बाई को जैसा सम्मान मिलना…
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Added by rajkumar sahu on November 16, 2010 at 12:10pm —
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सर्व शक्तिमान एवं प्रत्यक्ष भगवान सूर्य के उपासना का पर्व छठ पिछले दिनों उत्तर भारत सहित पूरे भारत मे काफी श्रद्धा और उल्लास से मनाया गया, बिहार से सटे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे भी छठ का पवित्र त्यौहार धूम धाम से मनाया गया |
इस त्यौहार की खास बात यह है कि छठ पूजा मे प्रथम अर्ध्य डूबते हुये सूर्य को दिया जाता है तथा दूसरा अर्ध्य उगते हुये सूर्य का किया जाता है, यह परंपरा एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत कि " उगते सूर्य को सभी सलाम करते है तथा डूबते…
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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 9:30am —
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बस इक बार ही चखा था मैंने उठा के
तुम्हारा लम्स अपने ठंडी रूह से लेकिन
बरसों सुलगता रहा वो हिस्सा रूह में
इक चिंगारी की तरह पकiता रहा रूह को
बस इक लम्स की तपिश से जीती रही
चखती रहती रूह उस चिंगारी को धीरे-२
ज्यूँ- ज्यूँ मेरी रूह का दायरा बढ़ता गया
चिंगारी चखने की आदत बढती गयी
पर वक़्त के साथ मधम हो गयी है…
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Added by Venus on November 16, 2010 at 12:30am —
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