गरीब का पेट
बड़ा जालिम होता है
गरीब का पेट
नहीं देता देखने
सुन्दर-सुन्दर सपने
गरीबी के दिनों में
छीन लेता है वह
सपना देखने का हक
जब कभी
देखना चाहती है आंख
सुंदर सा सपना
मागने लगता है पेट
एक अदद सूखी रोटी
आंख ढूंढ ने लगती है तब
इधर उधर बिखरी जूठन
और फैल जाते हैं हाथ
मागने को निवाला
गरीबी के दिनों में
दूसरों के सम्मुख फैले हुए हाथ
सपना देखती आंख के
मददगार नहीं होते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2013 at 6:30am — 10 Comments
यह मोरपंखी मन !
न जाने क्यूँ प्रिये पागल –
हुआ जाता तुम्हारी याद मे यह मोरपंखी मन !
पहाड़ों पर कभी भटके
ढलानों पर कभी घूमे
कभी यह चीड़ के वन से –
घटाओं को बढ़े चूमे ।
यहाँ ठंडी हवाओं मे बढा जाता बहुत सिहरन
न जाने क्यूँ प्रिये पागल अरे यह मोरपंखी मन !
नदी , निर्झर , पहाड़ों पर
भ्रमण करता हुआ जाता
फिज़ाओं मे भटकना अब प्रिये !
पलभर नहीं भाता ।
तुम्हारे बिन हुआ जाता बड़ा सूना मेरा उपवन -
न जाने क्यूँ प्रिये ! पागल अरे यह…
Added by S. C. Brahmachari on December 24, 2013 at 6:57pm — 20 Comments
“एक पोता भी नही दे सकी कलमुंही” वार्ड में सास की आवाज़ गूँजी,
इतने में अंदर आते हुये डॉक्टर ने जब ये सुना तो कहा- “पति के शरीर में एक्स- वाई(X-Y) क्रोमोसोम्स होते हैं, पत्नि के शरीर में एक्स-एक्स(X-X) क्रोमोसोम्स होते हैं, पति का वाई(Y) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटा होता है, पति का एक्स(X) क्रोमोसोम पत्नि के एक्स(X) क्रोमोसोम से मिलता है तो बेटी होती है l
पता नही आपके क्या समझ में आया? लेकिन इतना सच जान लीजिये आपको पोता नही मिला उसका पूरा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 24, 2013 at 10:30am — 38 Comments
स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………
"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"
"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2013 at 8:39pm — 46 Comments
“दाग“
********
मूर्खता है ,
होली में रंगे कपड़ों से
दाग छुड़ाने की कोशिश ।
कोई कहता भी नहीं उसे
दाग दार ।
वो अलग हैं , दागियों…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 23, 2013 at 7:30pm — 33 Comments
अब्रे गम जब दिल पे मेरे छा गया
अश्क का दरिया भी रुख पे आ गया
आइना देखा है जब भी दोस्तों
सामने मेरे मेरा सच आ गया
यूं तो गुल लाखों थे बगिया में मगर
दिल को लेकिन कोई कांटा भा गया
वो हसीं गुल आने वाला है इधर
चूम झोंका खुशबू का बतला गया
हाल उनसे कहते दिल का जब तलक
यार नजरों से ही सब जतला गया
जिसने भर दी खार से ये जिन्दगी
फूल नकली दे के फिर बहला…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on December 23, 2013 at 7:30pm — 18 Comments
बाबा की दहलीज लांघ चली
वो पिया के गाँव चली
बचपन बीता माँ के आंचल
सुनहरे दिन पिता का आँगन
छूटे संगी सहेली बहना भैया
मिले दुलारी को अब सईंया
मीत चुनरिया ओढ़ चली
बाबा की ................
माँ की सीख पिता की शिक्षा
दुलार भैया का भाभी की दीक्षा
सखियों का स्नेह लाड़ बहना का
वो रूठना मनाना खेल बचपन का
भूल सब मुंह मोड चली
वो पिया के ...............
परब त्योहार हमको बुलाना
कभी तुम न मुझको…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 5:30pm — 32 Comments
स्त्री को आजादी वैदिक काल से ही मिली हुई है फर्क सिर्फ इतना है कि आज उस आजादी में कुछ निजी स्वार्थ समा गया है | वर्षों पहले से स्त्री को हर तरह की आजादी मिली हुई है अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने की आजादी.अपने मन मुताबिक़ पति चुनने की आजादी,अपने मर्जी से शिक्षा क्षेत्र चुनने की आजादी यहाँ तक कि वो रण क्षेत्र में भी अपनी मर्जी से जाती थी | उन्हें कोई रोक-टोक नही थी इसके बावजूद वो अपनी पारिवारिक जिम्मदारियां भी बखूबी निभाती थीं और अपने पति के पीछे उनकी प्रेरणा बन के खड़ी रहती थी तो आज ऐसा क्यों नही…
ContinueAdded by Meena Pathak on December 23, 2013 at 2:00pm — 20 Comments
बहर-।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
...
कभी चाँदनी छूने आया करेगी।
सितारों की ज़ीनत बुलाया करेगी॥
...
बदन की मुलायम तहों में समेटे,
नदी पत्थरों को सुलाया करेगी।
...
भटकता फिरेगा कहीं पे अँधेरा,
कहीं रोशनी गीत गाया करेगी।
...
परिंदों की परवाज़ क्या खूब होगी,
हवा जब उन्हें आज़माया करेगी।
...
नई चूड़ियों से खनकती कलाई,
सवेरे-सवेरे जगाया करेगी।
...
ज़रा सी किसी बात पे रो पड़ूँगा,
कभी ज़िंदगानी हँसाया करेगी।
...
कहूँगा…
Added by Ravi Prakash on December 23, 2013 at 1:00pm — 26 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on December 23, 2013 at 11:31am — 30 Comments
हैं कपड़े साफ सुथरे से , पड़ा काँधे दुशाला है
शहर में भेडि़यों ने आ, बदल अब रूप डाला है
कहानी रोज पापों की, उघड़ कर सामने आती
किसी ने झूठ बोला था, ये दुनिया धर्मशाला है
समझ के आम जैसे ही, आमजन चूसे जाते नित
बनी ये सियासत अब, महज भ्रष्टों की खाला है
मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को
है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है
किया सुबह शाम झगड़ा , रखी वाणी में दुत्कारें
'मुसाफिर'…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2013 at 7:30am — 13 Comments
फिर से नई कोपलें फूटीं,
खिला गाँव का बूढ़ा बरगद।
शुभारंभ है नए साल का,
सोच, सोच है मन में गदगद।
आज सामने, घर की मलिका
को उसने मुस्काते देखा।
बंद खिड़कियाँ खुलीं अचानक,
चुग्गा पाकर पाखी चहका।
खिसियाकर चुपचाप हो गया,
कोहरा जाने कहाँ नदारद।
खबर सुनी है,फिर अपनों के
उस देहरी पर कदम पड़ेंगे।
नन्हीं सी मुस्कानों के भी,
कोने कोने बोल घुलेंगे।
स्वागत करने डटे…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 22, 2013 at 10:00am — 31 Comments
कुछ इस तरह पुकारा तुमने
कदम भी मेरे लगे बहकने
कुछ इस .........
दामिनी दमक उठी नैनो मे
सरगम छनक उठी साँसों मे
हृद वीणा सी झंकृत कर दी
जागे से लगने लगे सपने
कुछ .......................
अन्तर्भावों की सुरवलियों मे
उद्गारों की हारावलियों मे
शब्द सुशोभित सज्जित कर दी
मन-कानन सब लगे महकने
कुछ .....................
अप्रकाशित एवं…
ContinueAdded by annapurna bajpai on December 21, 2013 at 9:00pm — 22 Comments
जाओ तुम और दूर चले जाओ...
जहां चाहो वहाँ चले जाओ
मगर जी लो न मन भर
एक बार मेरे साथ ....
मेरे ख्वाब... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....
धीरे से जाना ...
आहट भी न करना
नींद न टूटने पाये मेरी
काँच से नाजुक हैं ये ...
मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब ... मेरे ख्वाब ....
कुछ तुम भी ले जाना
बहुत हसीन हैं ये
दुःख में हँसा देंगे ये
मुझसे भी प्यारे हैं ये ...
मेरे ख्वाब .... मेरे ख्वाब .... मेरे…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on December 21, 2013 at 8:25pm — 8 Comments
दो हमसफर
एक छत
रहे अजनबी की तरह
लब खुले तो टकरार
ना साँसे टकराती
ना बिन्दीयाँ भाती
ना विदाई
ना स्वागत
नजर चुराते
बीती राते
कभी
तन मन साथ
हँसी उमंग चाहत प्यार
लगी नजर
बने नदी के
दो किनारे
बीच में
शक
केवल शक
बाँट दिया प्यार
एक ना सुनते
एक दूजे की बाते
स्वाभिमान
विद्रोह
गुस्से की
ज्वाला जला रही
प्यार…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on December 21, 2013 at 7:55pm — 12 Comments
Added by shashi purwar on December 21, 2013 at 2:00pm — 15 Comments
Added by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 11:30pm — 58 Comments
किसी से प्यार करके देख लो जी
हसीं इकरार करके देख लो जी /१
दवा है या मरज़ क्या है मुहब्बत
निगाहें चार करके देख लो जी /२
सनम हैं सर्दियों की धूप जैसी
जरा दीदार करके देख लो जी /३
हमेशा जी-हुजूरी ठीक है क्या ?
कभी इनकार करके देख लो जी /४
बिकेगी धूप चर्चा है गली में
यही ब्योपार करके देख लो जी /५
बहुत है फायदा आवारिगी में
धुआं घर-बार करके देख लो जी /६
यक़ीनन बेशरम हूँ मैं हवा हूँ
खड़ी दीवार करके देख लो जी…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on December 20, 2013 at 10:00pm — 18 Comments
स्कूटर पर जाती महिला
का सड़क से गुज़रना हो
या गुज़रना हो
काँटों भरी संकड़ी गली से ,
दोनों ही बातें
एक जैसी ही तो है।
लालबत्ती पर रुके स्कूटर पर
बैठी महिला के
स्कूटर के ब्रांड को नहीं देखता
कोई भी ...
देखा जाता है तो
महिला का फिगर
ऊपर से नीचे तक
और बरसा दिए जाते हैं फिर
अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ..
काँटों की गली से गुजरना
इतना मुश्किल नहीं है
जितना…
ContinueAdded by upasna siag on December 20, 2013 at 9:00pm — 12 Comments
प्रेम तृणों से …….
पलक पंखुड़ी में प्रणय अंजन से
सुरभित संसृति का श्रृंगार करो
भ्रमर गुंजन के मधुर काल में
कुंतल पुष्प श्रृंगार करो
तृप्त करो तुम नयन तृषा को
मिलन क्षणों को स्वीकार करो
अपने उर में अपने प्रिय की
अनुपम सुधि से श्रृंगार करो
विस्मृत कर…
Added by Sushil Sarna on December 20, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
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