में दरिया हूँ
प्यार हर दिल के अंदर ढूढता हूँ
नहीं कोई मेरा अपना ठिकाना
मगर घर सबको सुन्दर ढूढता हूँ
टूट जाते हे जब सपने महल के
पिटे खुआबो में खंडहर ढूढता हूँ
भरा दहशत अंदेशो से जमाना
में चेनो अमन के मंजर ढूढता हूँ
नहीं आंधी तूफानों का भरोसा
हरेक कश्ती को लंगर ढूढता…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:41pm — 4 Comments
अथिति देबोभवा
पहले की सोच
अथिति होता था भगवान्
घर में होती थी खुशियाँ
और बनते थे पकबान
बदला अब परिवेश और…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments
इजहारे मुहब्बत
प्यार करना पहिले हिम्मत का काम था
दर्दे दिल लेना मुहब्बत का नाम था
बर्षो करते थे केवल दीदार
हो नहीं पता था प्यार का इजहार
जब चारो और फ़ैल जाती थी, प्यार की खुशबु…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments
बदलते रिश्ते
बचपन की मेरी मेहबूबा
मिली मुझे बाजार में
मियां और बच्चों के संग
बैठी थी बो कार में
नजरे चार हुई तो बो
होले से मुस्कुरा पड़ी
उतर कार से झट फुर्ती से
सम्मुख मेरे आन खड़ी
स्पंदित हुआ तन बदन मेरा
पहले सा अहसास हुआ
सामने थी मेरे बो बाजी
हारा जिससे मुहब्बत का जुआ
किम्कर्ताब्यविमूढ़ खड़ा था में
ध्यान मेरा उसने खीचा
आओ मिलो शौहर से मेरे
आपके हे ये जीजा
दिल में मेरे मचा हुआ था
कोलाहल…
Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,
दर्द भी हासिल रहा है जिंदगी भर,
अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,
मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:07am — 14 Comments
मोती-मोती जोड़ के, गूँथ नौलखा हार।
विश्वपटल पे रख दिया, भारत का आधार॥
भारत का आधार, भरा था जिसमें लोहा,
जय सरदार पटेल, सभी के मन को मोहा।
वापस लाये खींच, देश की गरिमा खोती,
सौ सालों में एक, मिलेगा ऐसा मोती॥
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 15, 2012 at 10:50am — 16 Comments
( कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लिखूं ........लेकिन जब कलम उठाया तो जो लिखा आपके सामने है ....आशा है आपको पसंद आएगी )
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दूर से देखने में जो अच्छा लगे ,
पास आने में वो ना अच्छा लगे ।।
जिन आँखों में चाहत हो प्यार की
कभी देखे या ना देखे अच्छा लगे ।।
जैसे बगिया हो कोई पहरों के बीच
फूल तोड़े ना कोई तो अच्छा लगे ।।
नाम हो रोशनी से बहुत ही भला
काम आये सबको तो अच्छा लगे ।।
चाँद उतरे जमीं पे तो…
Added by श्रीराम on December 15, 2012 at 10:00am — 4 Comments
स्वप्न तिरोहित मेरी आँखें ,
क्या तुमको अच्छी लगती हैं?
कुछ डोरे भूले भटके से ,
नयनो में तिरते रहते हैं.
कुछ पलाश के फूल रखे हैं
सुर्ख लाल गहरे से रंग के
अग्निशिखा की छाया जैसी,
निशा द्वार पर जलते बुझते .
भटको मत अब नयन द्वार पर
भ्रमर भ्रमित से रह जाओगे
निशा भैरवी तान सुनेगी ,
अधर पटल सुन दृग खोलेंगे,
गीले बालों…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:00pm — 13 Comments
कुछ कहना था तुमसे मन की
जब आओगे तब कह दूँगी
कब मन ये मेरे पास रहा,
यादों को बाँध के रख लूँगी
अब दूर देश के…
Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 6:00pm — 2 Comments
आज ऑफिस के लिए निकलते हुए देर हो गयी थी, रास्ते के ट्रेफ्फिक सिग्नलों ने तो नाक में दम कर दिया था, जल्दी से हरे होने का नाम ही नहीं लेते थे, जब ऑफिस को देर होती है तब सारे नियम क़ानून भूल जाते हैं, कही ना कही गलत है मगर ये मानविक भाव है, मगर सिग्नल या सड़क जाम का एक फायदा है , बहुत सारे…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 5:00pm — 2 Comments
व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा
Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 4:00pm — 11 Comments
मन ही सवालों से उलझता है !
मन ही सवालों से कतराता है !
मन ही दर-बदर भटकता है!
मन ही भूलने की बात करता है !
झगड़ता है, चिल्लाता है , कोसता है!
यह मन ही तो है जो रोता है !
अनुभव है ,सच नहीं है,
जाने भी दो, जिंदगी है ,
समझकर सबकुछ खुद को ,
समझाने की कोशिश करता है !
कुछ पल तो शांत बैठता है
और फिर अचानक -
मन ही मन कह उठता है
आह! खट्टे अंगूर !
अन्वेषा
Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 3:30pm — 9 Comments
तुम्हें चुप रहना है
सीं के रखने हैं होंठ अपने
तालू से चिपकाए रखना है जीभ
लहराना नहीं है उसे
और तलवे बनाए रखना है मखमल के
इन तलवों के नीचे नहीं पहननी कोई पनहियाँ
और न चप्पल
ना ही जीभ के सिरे तक पहुँचने देनी है सूरज की रौशनी
सुन लो ओ हरिया! ओ होरी! ओ हल्कू!
या कलुआ, मुलुआ, लल्लू जो भी हो!
चुप रहना है तुम्हें
जब तक नहीं जान जाते तुम
कि इस गोल दुनिया के कई दूसरे कोनों में
नहीं है ज्यादा फर्क कलम-मगज़ और तन घिसने वालों को…
Added by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 3:03pm — 13 Comments
आरक्षण की नेता तुमने
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 14, 2012 at 2:39pm — 8 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 14, 2012 at 12:30pm — 4 Comments
एक्सचेंज मेला
दीपावली में खरीददारी की मची हुई थी जंग
खरीददारी करने गए हम बीबी के संग
बदला पुराना टीबी नया टीबी ले आये
दिल में कई बिचार आये
काश बीबी एक्सचेंज का कोई ऑफर पायें
नई नबेली…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on December 14, 2012 at 12:00pm — 10 Comments
मोटी - मोटी चादर तानी,
फिर भी भीतर घुसकर मानी,
जाड़े की जारी मनमानी,
बूढ़े बाबा की दीवानी,
दादा - दादी,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on December 14, 2012 at 11:24am — 16 Comments
आओ वालमार्ट
स्वागत है आपका
अपनी कमज़ोर हो रही
अर्थव्यवस्था को
मज़बूत करने
आओ
हमारी मज़बूत होती
अर्थव्यवस्था को
कमज़ोर करने
आओ
हमने आपके हथियार नहीं लिए
इस नुक्सान की भरपायी के लिए
नयी संभावनाओं को तलाशने
आओ
किसानों के पसीने निचोड़ने
गरीब जनता का ख़ून चूसने
आओ वालमार्ट
यूनियन कार्बाइड की याद
धुंधली पड़ चुकी है
तुम नयी यादें देने…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on December 14, 2012 at 11:00am — 3 Comments
हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो
पर दिशा मुझे तय करनी है,
पर मैं ही अकेला पथिक नहीं
आशा सच हो ये परखनी है
सुनता ही नहीं कोई मन की
अब खुद से खुद को सुनना है
संयम गर अपना साथी हो
फिर मंजिल पे ही मिलना है
कुछ ख्वाब नहीं सोने देते
हर पल बस करते हैं बातें
शुरुआत लक्छ्य की आज अभी
सूरज की बात ना तकनी है,
वो आता है हर सुबह…
ContinueAdded by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:30am — 9 Comments
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