ये आसमां धुआँ-धुआँ क्यों है?
सुबू शाम बुझा-बुझा क्यों है?
इन्सां बाहर निकलने से डर रहा है
बीमारियों की फ़िज़ा क्यों है?
यह सारा किया उसी ने है
ज़हर फैलाया उसी ने है
बेजान इमारतों के ख़ातिर
वृक्षों को गिराया उसी ने है
कितने अपशिष्ट जलाए उसने?
कितने कारखाने चलाए उसने?
क्या उसे नहीं पता ?
इतनी बद्दुआएँ क्यों हैं?
ये आसमां धुआँ-धुआँ क्यों है?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 21, 2019 at 11:30am — 3 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on November 19, 2019 at 11:00pm — 4 Comments
दो क्षणिकाएँ ...
पुष्प
गिर पड़े रुष्ट होकर
केशों से
शायद अभिसार
अधूरे रहे
रात में
........................
मौन को चीरता रहा
अंतस का हाहाकार
कर गयी
मौन पलों का शृंगार
वो लजीली सी
हार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 19, 2019 at 4:34pm — 8 Comments
तरीफे उनकी क्यूँ लगती
जहर से भरी मीठी बातें
हर पिशुन/चुगलखोर की
झूठी बातें भी सच्ची लगती||
स्वार्थ की तह तक गिर
औछी हरकते करते रहते
भलाई का दामन औढकर
सहकर्मियों की बुराई वो करते||
दूसरों के काम में टांग अड़ाना
आदतों में शुमार उनकी
सहकर्मियों को आपस में भिड़ाकर
फिर निश्छल होने का ढोंग रचाते||
लाभ ना हो जाए कहीं किसी को
बुगले के जैसा ध्यान लगाते
एडी चोटी का ज़ोर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 19, 2019 at 2:56pm — 5 Comments
जले दिवस भर धूप में, चलते - चलते पाँव
क्यों ओ! प्यारी शाम तुम, जा बैठी हो गाँव।१।
रोज शाम को झील पर, आओ प्यारी शाम
गोद तुम्हारी सिर रखूँ, कर लूँ कुछ आराम।२।
जब तक हो यूँ पास में, तुम ओ! प्यारी शाम
थकन भरे हर पाँव को, मिल जाता आराम।३।
बेघर पन्छी डाल पर, बैठा है उस पार
आयी प्यारी शाम है, खोलो कोई द्वार।४।
कितनी प्यारी शाम है, इत उत फैली छाँव
निकले चादर छोड़ कर, जी बहलाने पाँव।५।
आयी प्यारी शाम…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2019 at 6:00am — 10 Comments
दिन ढलते, शाम चढ़ते,
उसका डर बढ़ने लगता है,
क़िस्मत, दस्तक भी देगी और
भीनी यादें तूफान भी उठायेंगी ,
फिर भी होगा कुछ भी नया नहीं,
बस यह अहसास कराते हुए
कि वो किसी और पर मेहरबान है,
उसके पास से धीरे से सरक जाएगी
और चूम लेगी किसी और को।.............1
अटपटा दीवानापन सा,
महसूस तू करवाता है,
हर नए दिन,
हर नई शाम,
यकीन दिलाकर,
तू सिर्फ उसका है,
बाहों में किसी और की,
चला जाता है ।............…
Added by Usha on November 18, 2019 at 8:30am — 5 Comments
आशंका के कगार
जानता हूँ
हर पिघलती सचाई में
फीकी सचाई के पार
कुछ झुठाई भी है
तभी तो आशंका की परतों के बीच
किसी भी परिस्थिति को परखते
किसी का झूठ जानते हुए भी
सचाई की लाश को मानो
थपकियाँ देते
कभी खिड़की का शीशा
कभी मन काआईना
कोना-कोना साफ़ करते
खिसक जाते हैं दिन
ज़िन्दगी हाथ फैलाए
मांगती है…
ContinueAdded by vijay nikore on November 17, 2019 at 6:12pm — 7 Comments
संघे शक्ति
***
पका फल पेड़ पर लटका हुआ था।भालू परेशान था।वह चाहता था कि पका फल उसका रेंगता हुआ बेटा तोड़ लाए जिससे कुल खानदान का यश उजागर हो।पर बेटा वहां तक पहुंचे कैसे,यह यक्ष प्रश्न बना हुआ था। दूसरे भालू,लोमड़ी से बातें हुईं।उम्मीद बंधी।समय मुकर्रर हुआ।भीड़ जुट गई कि स्वर्गवासी भालू काका का पोता आज ऊंचे पेड़ से फल तोड़ लाएगा, भालू भाई और लोमड़ी काकी उसे ऊपर तक पहुंचने में मदद करेंगे। पर यह क्या.....?समय गुजरते निकल गया।न भालू काका आये,न लोमड़ी काकी। बेचारा बाप मन मसोसता रहा। सारे…
Added by Manan Kumar singh on November 17, 2019 at 10:16am — 1 Comment
उन के बंटे जो खेत तो कुनबे बिखर गए,
पंछी जो उड़ चले तो घरौंदे बिख़र गए.
.
सरहद पे गोलियों ने किया रक्स रात भर,
कितने घरों के नींद में सपने बिखर गए.
.
यादों की आँधियों ने रँगोली बिगाड़ दी
बरसों जमे हुए थे वो चेहरे बिखर गए.
.
समझा था जिस को चोर गदागर था वो कोई
ली जब तलाशी रोटी के टुकड़े बिखर गए.
.
तुम जो सँवार लेते तो मुमकिन था ये बहुत
उतना नहीं बिखरते कि जितने बिखर गए .
.
मुझ में कहीं छुपे थे अँधेरों के क़ाफ़िले…
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 16, 2019 at 8:30pm — 13 Comments
उसूल - लघुकथा -
"क्या बात है सर, आज पहली बार आपको व्हिस्की लेते देख रहा हूँ?"
"हाँ घोष बाबू, आज मैं भी कई साल बाद तनाव मुक्त महसूस कर रहा हूँ।"
"मगर सर मैंने आपको कभी हार्ड ड्रिंक लेते नहीं देखा।"
"आप सही कह रहे हैं। मैंने जिस दिन यह कुर्सी संभाली थी, अपने पिता को वचन दिया था कि मैं सेवा निवृत होने तक ड्रिंक नहीं करूंगा। आज रिटायर होने के साथ ही उस बंधन से मुक्त हो गया।"
"लेकिन सर, खैर छोड़िये...........?"
"क्यूँ छोड़िये, आज सब बंधन तोड़ दो। जो भी मन…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on November 16, 2019 at 12:42pm — 6 Comments
उसे स्कूल के दिन याद आ रहे हैं,जब क्लास शुरू होने के पहले,टिफिन में और कभी कभी स्कूल छूटने के बाद भी कबड्डी खेलना कितना पसंद था उन्हें। बुढ़िया कबड्डी में दोनों पक्षों की एक एक बूढ़ी गोल यानी गोल खिंचे हुए दायरे में हुआ करती।प्रत्येक बूढ़ी के आगे विरोधी पक्ष के खिलाड़ी होते। बारी बारी से दोनों पक्ष अपनी अपनी बूढ़ी को मुक्त कराने की कोशिश करते,वह सत्ता की प्रतीक होती;रानी भी कह लें।एक पक्ष का कोई खिलाड़ी "कबड्डी कबड्डी...." करते हुए दौड़ता,विपरीत पक्ष के खिलाड़ी भागते कि कहीं वह…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 16, 2019 at 9:30am — 4 Comments
दोनों पति-पत्नि अपने लव-कुश के साथ खुश थे। माताजी और पिताजी इस छोटे से परिवार में खुश तो थे लेकिन और पैसा कमाने के लिए बेटे समीर को दिन-रात औरों के बेटों की कहानियाँ सुना-सुना ताना देते रहते। रोज़ सुबह और शाम डायनिंग टेबल पर बैठ, एक बयौरा सा देते हुए बताया करते कि फलां के बेटे की तनख़्वाह इतनी हो गयी, फलां के बेटे ने फलैट बुक करवा दिया और फलाने ने तो कैश पेमैंट पर बड़ी गाड़ी खरीद ली।
ये सब सुन-सुनकर समीर परेशान हो गया और अपने ही घर में बेइज्जत होने से थककर बाहर जाने की तैयारी करने…
Added by Usha on November 15, 2019 at 9:00am — 4 Comments
122 122 122 122
न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफर है ।।
मेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राजे दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मकतल सा मंजर हटा जब से चिलमन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 14, 2019 at 5:30pm — 3 Comments
करके वादा,
किसी से न कहेंगे,
दिल का दर्द मेरे जान लिया।
ढोंग था सब,
तब समझे हम कि,
महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए।...........1
पहली नज़र में ही उनपर,
हम दिल अपना हार बैठे,
कहना कुछ चाहा था,
कह कुछ और गए।.......... 2
अक्सर देखा है हमने,
उनको रंग बदलते हुए,
पर हैरान हैं कि,
कोई तो पक्का होता।.......... 3
मौलिक व् अप्रकाशित।
Added by Usha on November 13, 2019 at 7:09pm — 13 Comments
आज वह सोचकर आया था कि पापा से नई घडी और पैंट शर्ट के लिए कह ही देगा. अब तो स्कूल के बच्चे भी कभी कभी चिढ़ाने लगे थे. लेकिन घर की हालत देखकर उसकी कहने की इच्छा नहीं होती थी. जैसे ही वह पापा के कमरे में पहुंचा, पीछे पीछे उसका चचेरा भाई भी आ गया. अभी वह कुछ कहता तभी उसके चचेरे भाई ने अपनी फरमाईस रख दी "बड़े पापा, मेरी साइकिल बिलकुल खचड़ा हो गयी है, इस महीने नई दिला दीजिये".
पापा ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए कहा "ठीक है, इस बार बोनस मिलना है, जरूर खरीद दूंगा. लेकिन संभाल कर चलाना, गिरना…
Added by विनय कुमार on November 13, 2019 at 5:55pm — 4 Comments
प्रेम : विविध आयाम
प्रेम
ठहरा था
बन के ओस
तेरी पलकों पर...
उफ़ तेरी ज़िद
कि बन के झील
वो तुझे मिलता...
प्रेम
काल कोठरी के
मजबूत दरवाजों की
झिर्रियों से झांकती
सुबह की
पहली सुनहरी…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 13, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
उजला अन्धकार ...
होता है अपना
सिर्फ़
अन्धकार
मुखरित होता है
जहाँ
स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार
होता है जिसके गर्भ से
भानु का
अवतार
नोच लेता है जो
झूठ के परिधान का
तार तार
सच में
न जाने
कितने उजालों के
जालों को समेटे
जीता है
समंदर सा
उजला अन्धकार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 13, 2019 at 1:41pm — 8 Comments
कुछ दिए ...
कुछ दिए जलते रहे
बुझ के भी
तेरे नाम के
कुछ दिए जलते रहे
बेनूर से
मेरे नाम के
कुछ दिए जलते रहे
शरमीली
पहचान के
रह गए कुछ दिए
तारीक में
अंजान से
बेनाम से
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 12, 2019 at 8:51pm — 6 Comments
Added by Dr. Geeta Chaudhary on November 10, 2019 at 6:30pm — 8 Comments
कोयल मौसम में समरसता घोल रही थी।लोग उसकी सुमधुर धुन पर थिरक से रहे थे। लग रहा था कि पहले की रही सही रंजिश अब नहीं रही।यह सब कौवे को नागवार लगा।उसने अकस्मात अपनी पूरी कर्कशता से कांव कांव करना शुरू कर दिया।कोयल बिदकी,"यह कर्कशता कैसी भाई?अभी मेल जोल का माहौल है।खुशियां बांटें"।
"कैसा मेल जोल?तू मेरी आवाज बदल सकती है क्या?"
"नहीं।"
"तो फिर? तू अपनी गा, मैं अपना गाऊंगा।"
"ऐसा?"
"और क्या?अपनी आवाज में…
Added by Manan Kumar singh on November 10, 2019 at 7:30am — 5 Comments
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