हवन की अग्नि बुझ चुकी थी
शिक्षा प्राप्ति की आई बात
गुरू द्रोण ने जब इंकार किया तो
भगवान परशुराम की आई याद।।
नीड़ो में था कोलाहल जारी
फूलों से महका उपवन
ज्ञान की जिज्ञासा थी मन में भड़की
निकला खोज में जिसकी कर्ण।।
द्वार तृण-कुटी पर परशु भारी
आभाशाली-भीषण जो भारी भरकम
धनुष-बाण एक ओर टंगे थे
पालाश, कमंडलू, अर्ध अंशुमाली एक पड़ा लौह-दंड।।
अचरज की थी बात निराली
तपोवन में किसनें वीरता पाली
धनुष-कुठार…
Added by PHOOL SINGH on February 11, 2023 at 7:21am — No Comments
करूंगा याद तुम्हें इतना, मुझे भुला ना पाओगे
जपूँगा नाम मैं इतना, कि पानी पी ना पाओगे
हरेक आहट पर ये सोचोगे, मेरी आहट कहीं ना हो
दिखूँगा ख्वाब में इतना, कभी तुम सो ना पाओगे
रहूँगा पास मैं इतना, जुदा तुम हो ना पाओगे
रहूँगा सांस में ऐसे, अकेले रह ना पाओगे
कभी जो छोड़ना चाहो, मुझे तन्हा अंधेरे में
है मेरा वायदा तुमसे, अकेले चल ना…
ContinueAdded by AMAN SINHA on February 11, 2023 at 7:17am — No Comments
पग की गति हो चाहे मन्थर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
सूनापन हो या निर्जन हो।
तमस भले ही बहुत सघन हो।।
विचलित थोड़ा भी ना मन हो।
मत पाँवों में कुछ अनबन हो।।
*
शूल चुभें या कंकड़ पत्थर।।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
जो भी इच्छित क्यों सपना हो।
चाहे जितना भी खपना हो।।
हर नूतन पथ बस अपना हो।
धैर्य न डोले जब तपना हो।।
*
मत करना जीवन में अन्तर।
पथ पर चलते रहो निरंतर।।
*
अंतिम परिणति जैसी भी हो।
जीवन से …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 10, 2023 at 12:24pm — No Comments
सूर्य कहलाएं पिता थे जिसके
माता सती कुमारी
जननी का क्षीर चखा न जिसने
वो वीर अद्भुत धनुर्धारी।।
निज समाधि में निरत रहा जो
स्वयं विकास किया था भारी
पालना बनी थी आब की धारा
बिछौना बनी पिटारी।।
ज्ञानी-ध्यानी, प्रतापी-तपस्वी
जिसका पौरुष था अभिमानी
कोलाहल से दूर नगर के
जो सम्यक अभ्यास का था पुजारी।।
नतमस्त्क करता प्रतिबल को
लगाता घात विजय की खूब दिखा
प्रचंडतम धूमकेतु-सा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on February 10, 2023 at 11:00am — No Comments
रूठे हो बहनों से या फिर, मद में अपने चूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
जल भरकर थाली में माता, हमको तुमसे भले मिलाती।
किन्तु काल्पनिक भेंट हमें ये, थोड़ा भी तो नहीं सुहाती।।
हम बच्चों की इच्छा खेलें, यूँ नित चढ़कर गोद तुम्हारी।
लेकिन तुमको भला बताओ, कब आती है याद हमारी।।
*
कौन काम से निशिदिन इतने, हो जाते मजबूर बताओ।
चन्दा मामा! हम बच्चों से, क्यों हो इतने दूर बताओ।।
*
हमको भी तुम जैसा भाता, ये लुका छिपी का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2023 at 11:07am — 2 Comments
उषा अवस्थी
मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?
वे घर ,जो दिखते नहीं
मिलते हैं धूल में, टिकते नहीं
पर "मैं" कहाँ मानता है?
विचारों के कुरुक्षेत्र में,खाक़ छानता है
एक के पश्चात दूसरा,तत्पश्चात तीसरा
ख़्यालों का समुंदर लहराता है
अनवरत प्रवाह में
डूबता, उतराता है
जीवन और मौत के बीच
झूल - झूल जाता है
मन कैसे-कैसे घरौंदे बनाता है?
मौलिमन क…
ContinueAdded by Usha Awasthi on February 4, 2023 at 7:14pm — 4 Comments
दोहा पंचक. . . .
साथ चलेंगी नेकियाँ, छूटेगा जब हाथ ।
बन्दे तेरे कर्म बस , होंगे तेरे साथ ।।
मिथ्या इस संसार में, अर्थहीन सम्बंध।
देह घरोंदा जीव का, साँसों का अनुबंध ।।
रह जाएगी जगत में, कर्मों की बस गंध ।
इस जग में है जिंदगी, दो पल का अनुबंध ।।
आभासी संसार के, आभासी संबंध ।
मिट जाता जब सब यहाँ, रहती कर्म सुगंध ।।
जब तक साँसें देह में, चलें देह सम्बंध ।
शेष रहे संसार में, जीव कर्म की …
Added by Sushil Sarna on February 3, 2023 at 2:00pm — 4 Comments
121 22 121 22 121 22
सिलाई मन की उधड़ रही साँवरे रफ़ूगर
कि ज़ख्म दिल के तमाम सिल दे अरे रफ़ूगर
उदास रू पे न रंग कोई उदास टांको
करो न ऐसा मज़ाक तुम मसखरे रफ़ूगर
हज़ार ग़म पे छटाक भर की ख़ुशी मिली है
तुझे अभी कुछ पता नहीं मद भरे रफ़ूगर
कहीं पलक से टपक न जाये हरेक आँसू
भला हो तेरा न और दे मशविरे रफ़ूगर
यही भरोसा है एक दिन फिर से आ मिलेंगे
यहीं कहीं खो गये सभी आसरे रफ़ूगर
कि 'ब्रज' इसी इक उधेड़बुन में रहे हमेशा…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 2, 2023 at 9:30pm — 5 Comments
जिस वसंत की खोज में, बीते अनगिन साल
आज स्वयं ही आ मिला, आँगन में वाचाल।१।
*
दुश्मन तजकर दुश्मनी, जब बन जाये मीत
लगते चहुँ दिश गूँजने, तब बसन्त के गीत।२।
*
आँगन में जिस के बसा, बालक रूप वसन्त
जीवन से उसके हुआ, हर पतझड़ का अन्त।३।
*
कहने को आतुर हुए, मौसम अपना हाल
वासन्ती संगत मिली, हुए मूक वाचाल।४।
*
करने कलियों को सुमन, आता है मधुमास
जिसके दम पर ही मिटे, हर भौंरे की प्यास।५।
*
आस बँधा कर पेड़ को, हवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2023 at 1:00pm — 3 Comments
22 22 22 22 22 2
पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।
उनके मन में भी सौ अजगर बैठे हैं।
'ए' की बेटी, 'बी' का बेटा, 'सी' की सास,
दुनियाभर का ठेका लेकर बैठे हैं।
कहाँ दिखाई देती हैं अब वो रस्में,
भाभीमाँ की गोद में देवर बैठे हैं।
मैं दरवाज़े पर ताला जड़ आया हूँ,
दुश्मन घर में घात लगाकर बैठे हैं।
अब हम सब सीसीटीवी की ज़द में हैं,
चित्रगुप्त कब खाते लेकर बैठे हैं।
अदबी…
ContinueAdded by Balram Dhakar on February 1, 2023 at 11:00pm — 8 Comments
Continueदोहा मुक्तक. . . .
दर्द भरी हैं लोरियाँ, भूखे बीते रैन।
दृगजल से रहते भरे, निर्धन के दो नैन ।
हुआ कटोरा भीख का, सिक्कों का मुहताज -
दूर तलक मिलता नहीं,अब निर्धन को चैन ।
*****
आँसू शोभित गाल का, कौन यहाँ हमदर्द ।
सूखे होठों पर जमी , निर्धनता की गर्द ।
पैर पेट से मिल गए, थर - थर काँपे देह -
जीण-क्षीण सा आवरण, लगे पवन भी सर्द ।सुशील सरना…
Added by Sushil Sarna on January 30, 2023 at 3:37pm — 2 Comments
महाराणा प्रताप
चितौड़ भूमि के हर कण में बसता
जन जन की जो वाणी थी
वीर अनोखा महाराणा था
शूरवीरता जिसकी निशानी थी
चित्तौड़ भूमि के हर कण में बसता, जन-जन की जो वाणी थी।।
स्वाभिमान खोए सब राणा जी
किरण चिंता की माथे पर दिखाई दी
महाराणा का जन्म हुआ तो
महल में खुशियाँ छाई थी
चित्तौड़ भूमि के हर कण में बसता, जन-जन की जो वाणी थी।।
बप्पा रावल का शोनित रग-रग में बहता
न सोच सुख-दुःख, क्लेश…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 30, 2023 at 11:30am — No Comments
(22- 22- 22- 22)
जिसको हासिल तेरी सोहबत
क्यों चाहेगा कोई जन्नत
ऐ पत्थर तुझ में ये नज़ाकत
हां वो इक तितली की निस्बत
आप ने आंख से आंख मिलाकर
भर दी हर मंज़र में रंगत
दिल धक-धक करने से हटे तो
खोल के पढ़ लूँ मैं उनका ख़त
उसके हुस्न पे हैरां हूँ मैं
रोज ही बढ़ती जाए हैरत
मैं बिकने वालों में नहीं हूँ
यूँ तुमने कम आंकी कीमत
उसको पाना ही पाना है
कैसा मुकद्दर कौन सी…
Added by Gurpreet Singh jammu on January 29, 2023 at 5:27pm — 6 Comments
2×15
एक ताज़ा ग़ज़ल
टुकड़े टुकड़े में दिन बीता और पहाड़ सी रात कटी।
तेरी उल्फत में जाने जां ज़ीस्त यूँ ही बेबात कटी।
तूने छीन के अँधियारों से मुझको दिया नया जीवन,
तू क्या जाने फिर तेरे बिन कैसे ये सौगात कटी।
इस दुनिया की सबसे पुरानी शर्त है उपयोगी होना ,
उसका मर जाना बेहतर है जिस घोड़े की लात कटी।
चाहत के दो कतरे पीकर जीवन भर सुलगा जीवन,
खुद को लम्हा लम्हा जलाके ये तेरी खैरात कटी।
कैद कर लिया है खुद को बस…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 28, 2023 at 11:25pm — 2 Comments
डर से जिनके थर्र-थर्र कांपे
जो मुगलों की नींव हिला बैठे
हमला करेंगे कब-कहाँ शिवाजी, नींद, उनकी उड़ा बैठे|
जीजा-शाहजी के पुत्र प्यारे
माँ शिवाई के उपासक थे
माता के नाम से शमशीर पास में, नाम उन्हीं से पाये थे|
हृदय सम्राट कहते थे उनको
काम जनता भलाई के करते थे
अष्ट प्रधान दरबार विराजे, जो मंत्रीपरिषद के सदस्य थे|
नारी का सम्मान हमेशा
नारी हिंसा-उत्पीड़न के…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 27, 2023 at 2:30pm — No Comments
गुरु प्रथा को आज यहाँ
मैं काव्य रूप में कहता हूँ
क्षमा माँगता कर जोड़कर
जो कुछ गलत कह जाता हूँ||
शीश झुकाऊँ गुरु चरण में
आज यहाँ गुरु की महिमा कहता हूँ
अंतरात्मा पवित्र है मेरी
जिसे गंगा सी पवित्र बतलाता हूँ||
हिंदू-इस्लाम से अलग धर्म एक
जिसे सिख धर्म बतलाता हूँ
पहले गुरु थे नानकदेव जी
धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ शाहिब’ मैं कहता हूँ||
तलवंडी में जन्म जो पाये
आज ननकाना उसे कहता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 27, 2023 at 12:00pm — No Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
दो तनिक मुझ मूढ़ को भी ज्ञान अब माँ शारदे
चाहता हूँ मारना अभिमान अब माँ शारदे।१।
*
आ गया देखो शरण में शीश चरणों में पड़ा
भाव पूरित शब्द दो अभिदान अब माँ शारदे।२।
*
यूँ असम्भव है समझना ईश के वैराट्य को
कर सकूँ केवल तनिक गुणगान अब माँ शारदे।३।
*
व्याप्त तनमन में अभी तक नष्ट हो ये मूढ़ता
फूँक दो इक मन्त्र देता कान अब माँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 25, 2023 at 11:37pm — 4 Comments
ग़ज़ल - मुहब्बत क्यूँ नहीं करते
1222 1222
मुहब्बत क्यूँ नहीं करते,
शरारत क्यूँ नहीं करते |
बड़े ही बे - मुरव्वत हो,
अदावत क्यूँ नहीं करते ||
अलग अंदाज है उनका,
बगावत यूँ नहीं करते |
बिखर जाए अगर लाली,
वो हसरत भी नहीं करते ||
बड़े अरमान हैं मेरे,
हिफाज़त भी नहीं करते |
शिकायत लाख है उनको,
मुखालिफ वो नहीं करते ||
भरोसा तोड़ देते हैं,
इबादत…
ContinueAdded by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:30pm — 1 Comment
वसन्त
उषा अवस्थी
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 25, 2023 at 6:35pm — 5 Comments
भाव शून्य हो अंतरपट जब,
पराधीन मन बोल रहा है |
मूक शब्द हैं शुष्क नयन पर,
द्रवित हृदय भी डोल रहा है ||
अस्त व्यस्त हैं कर्म हमारे,
बिगड़े हैं संजोग यहाँ पर |
दो दिन की है बची जिंदगी,
समय पहिया बोल रहा है ||
समय हुआ विपरीत कभी तो,
फिर कोई साथ नहीं होगा |
बढ़ते कदमों को मत रोको,
अवलोकन यूँ डोल रहा है ||
अनिता भटनागर(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Anita Bhatnagar on January 25, 2023 at 9:24am — 1 Comment
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