एक बात सब जानते हैं कि जब हम बीमार होते हैं, तब इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं और डॉक्टर नब्ज समझकर इलाज करते हैं। अस्पताल जाने के बाद बीमारी छोटी हो या बड़ी, गरीबों के लिए कुछ ही दिन अस्पताल ठिकाना बन पाता है। गरीबों के लिए ‘गरीबी’ अभिशाप अभी से नहीं है, जमाने से ऐसा ही क्रूर मजाक चल रहा है। हर हालात में गरीब ही बेकार का पुतला होता है, जिसकी ओर देखने की किसी को फुरसत तक नहीं होती, वहीं जब कोई मालदार, अस्पताल की दहलीज पर पहुंचता है, उसके बाद गरीबों को हेय की दृष्टि से देखने वाले भी, उनकी…
ContinueAdded by rajkumar sahu on October 16, 2011 at 4:49pm — No Comments
हमको रहना चाहिए अब सोह्बते तलवार में !
Added by Hilal Badayuni on October 15, 2011 at 5:00pm — 9 Comments
मरना चाहू मर ना पाउ ये क्या किया तू महंगाई ,
Added by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 1:16pm — No Comments
क्रेडिट कार्ड
सपना दिखता हैं ,
पावर दिलाता हैं ,
खर्चे में तो तो पंख लगता हैं ,
ना हो पैसा फिर कम हो जाता हैं ,
लगे की दोस्तों में इज्जत बढ़ता हैं,
बिल जब आता हैं ,
पागल बनाता हैं ,
क्यों ली क्रेडिट कार्ड ,
समझ ना आता हैं ,
भाई ये इज्जत लेकर ही जाता हैं ,
.
.
बैंक ऋण
पहली पहली बार ये ,
झट पट मिल जाता हैं ,
क्यों की अन्दर की बात ,
समझ में ना आता हैं…
ContinueAdded by Rash Bihari Ravi on October 15, 2011 at 11:30am — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on October 15, 2011 at 10:50am — 4 Comments
कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .
गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --
करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.
निठल्ले आईने पर
सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं
जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं
उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..
…
Added by Saurabh Pandey on October 15, 2011 at 9:30am — 20 Comments
कैसा असर दोस्तों?
Added by AVINASH S BAGDE on October 14, 2011 at 7:00pm — No Comments
Added by Shashi Mehra on October 14, 2011 at 10:01am — 1 Comment
पहले मैं अपने पुराने दिनों की याद ताजा कर लेता हूं। जब हम स्कूल में पढ़ा करते थे, उस दौरान शिक्षक हमें यही कहते थे कि प्रधानमंत्री बनोगे तो क्या करोगे ? इस समय मन में बड़े-बड़े सपने होते थे। उस सपने को पाले बैठे, अपन आज बचपन से जवानी की दहलीज में पहुंच गए हैं। हम जैसे देश में न जाने कितने, यह सपना देखते हैं, लेकिन खुली आंख से सपना कहां पूरा होता है ? ये अलग बात है कि कई बार ऐसा होता है, जब व्यक्ति सपना तक ही नहीं देखा रहता और प्रधानमंत्री बन जाता है। बिन मांगे मुराद मिल जाती है और जीवन की…
ContinueAdded by rajkumar sahu on October 14, 2011 at 12:11am — No Comments
अब तो यथार्थ बन आ जाये
उसको पाकर जीवन मे मेरा
मन हर्षित, पुलकित हो जाए
स्वेत वर्ण और केश स्वर्ण हो,
जो देखे चकरा जाये |
सुंदर, कोमल, मधुर, कर्णप्रिय
बोले तो…
Added by Vikram Srivastava on October 13, 2011 at 6:00pm — 12 Comments
क़लम रुक रही है बहर खो रही है,
खड़ी है मुसलसल गज़ल रो रही है।
मुझे यूं ग़ज़ल से मुखातिब कराया,
तरन्नुम से मेरा जहाँ जगमगाया,…
Added by इमरान खान on October 13, 2011 at 11:31am — 5 Comments
Added by Harjeet Singh Khalsa on October 12, 2011 at 11:30pm — 2 Comments
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥
साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥
बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान, पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥
राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये ॥4॥
***************
हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा ||1||
हो खरा…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 11:00pm — 18 Comments
Added by Veerendra Jain on October 12, 2011 at 6:00pm — No Comments
Added by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 8:09am — 9 Comments
Added by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 7:52am — 5 Comments
जो सीने में धड़कता दिल न होता
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥
अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥
किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥
नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥
ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥
:सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥
Added by siyasachdev on October 11, 2011 at 10:29pm — 4 Comments
कब से देखा है,
Added by Aradhana on October 11, 2011 at 9:00am — 5 Comments
मुक्तिका :
भजे लछमी मनचली को..
संजीव 'सलिल'
*
चाहते हैं सब लला, कोई न चाहे क्यों लली को?
नमक खाते भूलते, रख याद मिसरी की डली को..
गम न कर गर दोस्त कोई नहीं तेरा बन सका तो.
चाह में नेकी नहीं, तू बाँह में पाये छली को..
कौन चाहे शाक-भाजी-फल खिलाना दावतों में
चाहते मदिरा पिलाना, खिलाना मछली तली को..
ज़माने में अब नहीं है कद्र फनकारों की बाकी.
बुलाता बिग बोंस घर में चोर डाकू औ' खली को.. …
Added by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2011 at 1:23am — No Comments
ग़ज़ल के बादशाह श्री जगजीत सिह के निधन की खबर सुनते ही आँखे भर आई है. जगजीत सिह जी वो थे जिन्होने मुझ जैसे कई लोगो को ग़ज़ल से परिचित कराया है, जैसे संगीत और शायरी का साथ है, शायरी और ग़ज़ल है, वैसे ही ग़ज़ल और जगजीत सींग जी है, उनकी आवाज़ मे एक जादू था, रागो की आमिजीश के साथ उनकी ग़ज़ले दिल मे उतर जाती थी, दिल को छू जाती थी आज उनके लिए मुझे किसी…
ContinueAdded by Tapan Dubey on October 10, 2011 at 1:30pm — 1 Comment
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