पत्थर को भी फूल सरीखा होना अच्छा लगता है
काँधा अपनेपन का हो तो रोना अच्छा लगता है।१।
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पहले जगकर रोज भोर में सूरज ताका करते थे
अब आँखों को उसी वक्त में सोना अच्छा लगता है।२।
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छीन लिया है वक्त ने चाहे खेत का जो भी टुकड़ा था
बेटे हलधर के हम जिन को बोना अच्छा लगता है।३।
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घोर तमस के बीच भी जो तब चौपालों में रहते थे
उनको…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2020 at 12:31pm — 9 Comments
++ग़ज़ल++ ( 1222 *4 )
न हो किरदार अपना रब गिरी दीवार की सूरत
कभी बिगड़े नहीं या रब मेरे पिंदार की सूरत
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ख़ुदाया ख़म कभी सर हो न मेरा इस ज़माने में
सदा क़ायम रहे हर पल मेरे मेआ'र की सूरत
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दिखाए मुख़्तलिफ़ रंगों में उसने प्यार के जलवे
कभी इक़रार की सूरत कभी इंकार की सूरत
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सितम कर दिल्लगी कर बस ख़याल इतना ज़रा रखना
न हो ये ज़िंदगी ज़िंदान-ए-तंग-ओ-तार की सूरत
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जवानों के नए अंदाज़…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 26, 2020 at 8:30am — 6 Comments
1222 1222 122
निगाहों से हुई कोई ख़ता है ।
जो दिल तुझसे वो तेरा मांगता है ।।
रवानी जिस मे होती है समंदर ।
उसी दरिया से रिश्ता जोड़ता है ।।
हमारी ज़िन्दगी को रफ्ता रफ्ता ।
कोई सांचे में अपने ढालता है ।।
तुम्हारे हुस्न के दीदार ख़ातिर ।
यहाँ शब भर ज़माना जागता है ।।
कभी तुम हिचकियों से पूछ तो लो ।
तुम्हे अब कौन इतना चाहता है ।।
ठहर जाती हैं नज़रें…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:35pm — 4 Comments
2122 2122 212
जाने कैसी तिश्नगी है ज़िंदगी ।
ख्वाहिशों की बेबसी है जिंदगी ।।
हर तरफ़ मजबूरियों का दौर है ।
ज़ह्र कितना पी रही है जिंदगी ।।
फ़िक्र किसको है सियासत तू बता ।
भूख से दम तोड़ती है जिंदगी ।।
दर्दो ग़म मत पूछिए मेरा सनम ।
बेवफ़ा सी हो गयी है ज़िन्दगी ।।
इस वबा के जश्न में तू देख तो ।
क्यूँ बहुत सहमी हुई है ज़िन्दगी ।।
है तबाही का नया मंज़र यहां…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 25, 2020 at 12:27pm — 1 Comment
पञ्चचामर छंद
सूत्र : जगण + रगण + जगण + रगण + गुरु
शरीर लोकतन्त्र तो विरोध एक वस्त्र है
विरोध एक नाम है विरोध अस्त्र शस्त्र है
न अंधकार हो कहीं विरोध वो मशाल है
विरोध एक आग है विरोध क्रांति भाल है।।1
विरोध कीजिए भले, विकास को न रोकिये
विपक्ष पक्ष साथ हो, तुरन्त आप टोकिये
कभी विरोध नाम से यहाँ न तोड़ फोड़ हो
विरोध हो विरोध सा, विरोध में न होड़ हो।।2
अनीति या कुरीति का सदा विरोध कीजिए
भविष्य…
Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2020 at 11:05am — 4 Comments
एक गीत
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न भुज-बल है और न धन-बल ,
मनुज बड़ा सबसे बुद्धि-बल |
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अभिमानी करते हैं केवल नित्य प्रदर्शन अपने धन का |
डर फैलाते चन्द भुजबली रोब दिखाकर अपने तन का |
लक्ष्मी जैसे ही रूठेगी सर्वनाश होना निश्चित है |
मिला स्वयं से शक्तिमान तो गर्व नाश होना निश्चित है |
कहने का बस अर्थ यही है धन-बल भुज-बल हैं अस्थायी,
किन्तु भ्रष्ट नहीं हो जब तक
अक़्ल कभी न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 24, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
वो मेरी ज़िन्दगी है उसे ये पता नहीं,
मैंने सलीके से ही यकीनन कहा नहीं।
ऐसा कोई कोई है ज़माने में दोस्तो,
जो आने वाले कल की कभी सोचता नहीं।
सब अपनी अपनी धुन में बताते हैं उसकी बात,
वो कैसा है, कहाँ है,किसी को पता नहीं।
मजबूरियां हमारी हमारा नसीब है,
चलने की आरज़ू है मगर रास्ता नहीं।
बेकार सर खपाने की आदत का क्या करें,
कोई नया ख्याल मयस्सर हुआ नहीं।
हर फूल को बिछड़ना है डाली से एक दिन, …
Added by मनोज अहसास on April 23, 2020 at 10:30pm — 6 Comments
मत्त गयंद छंद
हाथ रखा जिसने सिर पे वह जीवन सम्बल शक्ति पिता है
प्रेम प्रशासन औ अनुशासन प्यार दुलार विभक्ति पिता है
रीढ़ झुकी उसके तन की पर वज्र दधीचि प्रसक्ति पिता है
तीर्थ बसें जग के जिसमें सब पूजित वो इक व्यक्ति पिता है।।1
खार बिछावन हो अपना सुत सेज रखे पर फूल पिता है
पुत्र हजार करे गलती पर माफ़ करे सब भूल पिता है
होकर आज बड़ा सुत जो कुछ है उसका सब मूल पिता है
पूत कपूत सपूत बने, बनता न कभी प्रतिकूल पिता है।।2
शौक सभी…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on April 23, 2020 at 8:30am — 7 Comments
"आज तो मैं जा के ही रहूंगी, चाहे पुलिस का डंडा ही क्यों न खाना पड़े", उसने एक नजर बिस्तर पर बीमार पड़े पति और भूख से बेचैन दोनों बच्चों को देखते हुए कहा.
बड़े बेटे ने साथ में सुर मिलाया "मैं भी चलूँगा अम्मा, वो तीसरे माले वाली ऑन्टी मुझे कितना मानती हैं".
उसने दृढ़ता से मना कर दिया "मुझे तो शायद छोड़ देंगे लेकिन तुझे नहीं छोड़ेंगे. तू यही छोटे का ख्याल रख, मैं कुछ लेकर आती हूँ".
बाहर निकलकर जैसे ही वह सड़क पर पहुंची, एक पुलिसवाला डंडा फटकारते हुए आया "कहाँ जा रही है, पता नहीं है कि…
Added by विनय कुमार on April 22, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
(1222 *4 )
.
महीना-ए-मुहर्रम में मह-ए-रमज़ान ले आये
ग़रीबों के रुख़ों पर गर कोई मुस्कान ले आये
**
किनारे पर हमेशा बह्र-ए-दिल के एक ख़तरा है
न जाने मौज ग़म की कब कोई तूफ़ान ले आये
**
नहीं है मोजिज़ा तो और इसको क्या कहेंगे हम
ख़ुशी का ज़िंदगी में पल कोई अनजान ले आये
**
ये कैसा वक़्त आया है न जाने कब कोई मेहमाँ
हमारी ज़िंदगी में मौत का सामान ले आये
**
कभी सोचा नहीं था घर बनेगा एक दिन ज़िंदाँ
मगर…
ContinueAdded by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 22, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
अधूरा था
मेरा ज्ञान
सर्वभक्षी के बारे में
मै जानता था
केवल अग्नि है सर्व भक्षी
मगर
सब कुछ खाते थे वे
सांप, झींगुर,कीट –पतंग
यहाँ तक कि चमगादड़ भी
असली सर्वभक्षी तो ये थे
इन्हें पता था
प्रकृति लेती है बदला
पर उन्हें भरोसा था
कि वे बदल देंगे
अपने ज्ञान-विज्ञान से
विनाश की दशा और गति
पर जब हुआ
विनाश का तांडव्
फिर कोई न बचा पाया
और न कोइ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 22, 2020 at 1:30pm — 2 Comments
रक्त वर्ण इन पुष्प गुच्छ से
तुमने जो श्रृंगार किया
तपती गर्म दोपहरी को भी
है तुमने रसधार किया
लू के गर्म थपेड़ों से
बच रहने का उपचार किया
नारंगी और पीत रंग के
भावों से मनुहार किया
पथिकों को विश्राम , पंछियों को
आश्रय , उपहार दिया
जिस धरती से अंकुर फूटा
उसका कर्ज़ उतार दिया
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 22, 2020 at 12:45pm — No Comments
(212 1222 212 1222)
बेच कर ज़मीर उसको फ़ायदा हुआ होगा
ज़िंदगी में फिर उसके जाने क्या हुआ होगा
क़त्ल तो यक़ीनन था पर बयान आया है
फिर बहस छिड़ी है कि हादसा हुआ होगा
बदहवास पत्ते फिर ज़र्द पड़ गये सारे
कल ख़िज़ाँ के मौसम पर फैसला हुआ होगा
रौशनी में जंगल भी जगमगा रहा होगा
चांँद पेड़ की टहनी पर टंँगा हुआ होगा
बोझ से मांँ तसले के दोहरी हुई होगी
पीठ पर कोई बच्चा भी बंँधा हुआ…
Added by सालिक गणवीर on April 22, 2020 at 9:30am — No Comments
2122 2122 2122 2
एक ग़ज़ल मीठी सुनाकर बैठ जाऊँगा
मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा
वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो
राह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा
सामने सबके कहूँगा प्यार है तुझसे
ये न सोचो मैं…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 21, 2020 at 5:30pm — 4 Comments
फूल-सी सुकोमल,सुकुमारी
कौन-सा फूल तेरी बगिया की
न्यारी-प्यारी माँ-बाबा की दुलारी
मुस्कराती ,बाबा फूले ना समाते
फूल-से झङते माँ होले-से कहती
पर दादी झिङकती-फूल कोई-सा होवे
पर सिर पर ना ,चरणों में चढाये जावे
उस समय कोमल मन को समझ ना आई
जब किसी के घर गुलदान की शोभा बनी
तब बात समझ आई
नकारा,छटपटाई,महकना चाहती थी
टूटकर अस्तित्वहीन नहीं होना था
पर असफल रही,दल-दल छितर-बितर गया
सोचती,मैं फूल तो हूँ
चंपा,चमेली,चांदनी,पारिजात नहीं
गुलाब…
Added by babitagupta on April 21, 2020 at 4:32pm — No Comments
२१२२/ २१२२/ २१२२
आप कहते आपदा में योजना है
सत्य में हर भ्रष्ट को यह साधना है।१।
**
बाढ़ सूखा ऐपिडेमिक या हों दंगे
चील गिद्धों के लिए सद्कामना है।२।
**
घोषणाएँ हो रही हैं नित्य जो भी
वह गरीबों के लिए बस व्यंजना है।३।
**
बँट रहा है ढब खजाना सत्य है यह
किंतु किसको मिल रहा ये जाँचना है।४।
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हो गई है हर जिले में अब व्यवस्था
शौक से लूटे जिसे भी लूटना …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 21, 2020 at 7:00am — 4 Comments
( 212 1212 1212 1212 )
गर बढ़ा असर किसी भी रोग के इ'ताब का
है पलटना तय तुरंत ज़िंदगी के बाब का
**
जिन्न एक सैंकड़ों हयात क़त्ल कर रहा
इंतज़ार है ख़ुदा सदाओं के जवाब का
**
हसरतें न दिल की हों दिमाग़ पर कभी सवार
इख़्तियार हो नहीं लगाम पर रिकाब का
**
बैठ कर ये सोचना हुज़ूर इतमिनान से
क्या किया है हश्र प्यार के हसीन ख़्वाब का
**
सोच अम्न-ओ-चैन की रहे हर एक दिल में गर
देखना पड़े न…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 20, 2020 at 8:30pm — 4 Comments
2212/ 1211/ 2212/ 12
चेहरा छुपा लिया है सभी ने नका़ब में,
परदा नशीं बने हैं सभी इस अ़ज़ाब में।
आक़ा हो या अ़वाम सभी फ़िक्रमन्द हैं,
अब घिर चुकी है पूरी जमाअ़त इताब में।
फ़ाक़ाकशी न कर दे कहीं ज़िन्दगी फ़ना,
सब लोग मुब्तिला हैं इसी इज़्तिराब में।
करता रहा ग़रूर सदा जिस ग़िना पे तू ,
क़ुदरत न कुछ है आज तेरे इस निसाब में।
क्या ये अ़ज़ाब है या कोई इम्तिहान है ?,
ये …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 20, 2020 at 5:30pm — 5 Comments
Added by विनय कुमार on April 20, 2020 at 3:40pm — 4 Comments
एक नज़्म-कोरोना
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ये साफ़ नहीं है कोरोना कितनी ज़ालिम बीमारी है
मालूम नहीं है दुनिया को ये किसकी कार-गुज़ारी है
**
कुछ लोग अज़ाब इसे कहते कुछ कहते कि महामारी है
आसेब हक़ीक़त में अब ये सारी दुनिया पर भारी है
**
हल्के में मत लेना इसको ये रोग शरर भी शोला भी
बच्चों बुड्ढों की ख़ातिर यह क़ुदरत की आतिश-बारी है
**
हैरान परेशां कर डाला दुनिया के लोगों को इसने
घर को ज़िन्दान बनाना अब हर इंसां की…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 19, 2020 at 2:30pm — 6 Comments
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