Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 10, 2015 at 11:08am — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2015 at 6:20pm — 10 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2015 at 1:10pm — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 9, 2015 at 6:27am — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 6, 2015 at 9:53pm — 10 Comments
दोनों की अपनी अपनी व्यस्त दिनचर्या। बच्चों को सुबह स्कूल बस स्टॉप पर छोड़ने के बाद थोड़ी सी चहलक़दमी से थोड़ा सा साथ, थोड़ा सा वार्तालाप, शायद रिश्तों में छायी बोरियत दूर कर दे।
"तुम्हें जानकर शायद ख़ुशी हो कि फेसबुक और साहित्यिक वेबसाइट में कुल मिलाकर सत्तर लघु कथाएँ, दो ग़ज़लें, दो गीत, कुछ छंद..... मेरा मतलब तकरीबन हर विधा में विधि-विधान के साथ मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।" - लेखक ज़हीर 'अनजान' ने बीच रास्ते में अपनी बीवी साहिबा से कहा। लेकिन सब अनसुना करते उन्होंने एक…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 4, 2015 at 8:30am — 11 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 5:09pm — 1 Comment
"अंकल जी, बर्थडे का सामान दे दो , ये छोटा वाला केक कितने में मिलेगा ?" - सोनू ने बेकरी वाले से पूछा।
"डेढ़ सौ रुपये का"
जवाब सुनकर सोनू आँखें फाड़े साथियों की तरफ देखने लगा । सभी ने अपनी जेबों से पैसे निकाले। कुछ सिक्के, कुछ पुराने फटे से नोट, कुल जमा पैंतीस रुपये थे। छोटे भाई का बर्थडे तो मनाना ही है।
"लो अंकल जी, पैंतीस रुपये में छोटा सा कोई केक और बाक़ी सामान पैक कर दो !" - सोनू ने निराश हो कर कहा। बेकरी वाले को हँसी आ गई । फटे पुराने से कपड़े पहने हुए बच्चों को देखकर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 11:00pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 11:31am — 7 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 28, 2015 at 9:47am — 3 Comments
[आधार छंद : 'विधाता']
1222 1222 1222 1222
कभी अपने मुसीबत में, ज़रा भी काम आये हैं,
जिन्हें समझा नहीं था दोस्त वे नज़दीक लाये हैं।
जिसे माना, जिसे पूजा, उसे घर से भगा कर के,
बुढ़ापे में, जताकर स्वार्थ, ममता को भुलाये हैं।
तुम्हारे पास दिल रख तो दिया गिरवी भरोसे पर,
पता मुझको चला तुमने, हज़ारों दिल दुखाये हैं।
कभी वे फोन पर बातें करेंगी, स्वर बदलकर के,
कभी वे नेट पर चेटिंग, झिलाकर के बुलाये हैं।
न जाने…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:30am — 10 Comments
"जिठानी तो बस फसल कटने पे अपना हिस्सा माँगने लगती हैं, खुद शहर की हो गई, हमें बाप-दादाओं की खेती के काम तो चलाना ही है!"- खेत पर हल जोतते हुए माथे का पसीना पोंछ कर सावित्री ने देवरानी मंगला से कहा।
"मर्दों में वो कुव्वत रही नहीं, तो बेटों का मन कैसे लगे ऐसी खेती में !"- मंगला ने एक हाथ से पल्लू ठीक करते हुए अपने घर के मर्दों और ज़मीन के हालात पर कटाक्ष किया।
"लेकिन एक बात तो मानना पड़ेगी, गाँव छोड़के शहर में भले वो अभी झुग्गी झोपड़ी में रह रही है, लेकिन वो अपने बेटों की…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 24, 2015 at 9:00am — 6 Comments
(1)
छंद रच ले
छंद का समारोह
काव्य आरोह।
(2)
मन पसंद
लिख ले कुछ छंद
बिना पैबंद।
(3)
छंद में बंद
भावनायें पसंद
विधान द्वंद।
(4)
छन-छन के
निकलते ये छंद
उत्कृष्ट चंद।
(5)
छंद सुनाओ
सत्य हमें बताओ
चेतना लाओ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2015 at 10:30am — 4 Comments
"चच्चा, लो पियो जे कड़क चाय, लेकिन मेरी कविता ज़रूर पढ़कर जाना" - गुम्मन ने बड़े उत्साह से कहा।
थोड़ी देर बाद वहीद चच्चा बोले- "ओय गुम्मन, तू तो बड़ी अच्छी कविता लिख लेता है, आज पता चली तेरी काबीलियत और तेरा 'असली' नाम।"
"हाँ चच्चा, छुटपन में एक बार ठण्ड के साथ तेज़ बुख़ार होने पे बिना किसी को बताये टेबल पे रखी रजाई की तह में छिपकर सो गया था। घरवाले घण्टों ढूंढते रहे। जब मिला तो "गुम" कहके चिढ़ाने, बुलाने लगे। इस चाय की दुकान पे सब "गुम्मन" कहने लगे। स्कूल छूटा तो असली नाम भी गुम…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 18, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
हल्की 'टप्प' की आवाज़ के साथ स्मार्ट फोन की स्क्रीन पर दो बूँदें गिरीं । एक लम्बी साँस लेकर पश्चाताप और आक्रोश की ज्वाला फिर भड़क उठी। यह वही तस्वीर है न, जो शालिनी के बेहद क़रीबी 'दोस्त' ने ली थी, उस दिन मोबाइल पर।फोटो लेते समय ही उसकी आँखें फटी की फटी सी रह गयीं थीं। उस छिछोरे के हाव-भाव ही संदेहास्पद थे। शालिनी ने तो उसे जीन्स या शोर्ट्स पहनकर चलने को कहा था , लेकिन वह सलवार सूट पहन कर ही उस 'आत्म-रक्षा प्रशिक्षण कैम्प' में गई थी। शालिनी का कुशल व्यवहार उसे पसंद था, लेकिन वह समझ न सकी कि…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on October 17, 2015 at 11:34am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — No Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2015 at 8:27pm — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 10:15pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 2:00pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 9:30pm — 5 Comments
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