पहाड़ी नारी
कुदरत के रंगमंच का
बेहद खूबसूरत कर्मठ किरदार
माथे पर टीका नाक में बड़ी सी नथनी
गले में गुलबन्द ,हाथों में पंहुची,
पाँव में भारी भरकम पायल पहने
कब मेरे अंतर के कैनवास पर
चला आया पता ही नहीं चला
पर आगे बढने से पहले ठिठक गई मेरी तूलिका
हतप्रभ रह गई देखकर
एक ग्रीवा पर इतने चेहरे!!!
कैसे संभाल रक्खे हैं
हर चेहरा एक जिम्मेदारी के रंग से सराबोर
कोई पहाड़ बचाने का
कोई जंगल बचाने…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 4, 2018 at 7:30pm — 21 Comments
1222 1222 1222 1222
हक़ीक़त की जुबाँ होकर सदाक़त की सदा होकर
मिला क्या जिंदगी तुझको बता यूँ आइना होकर
उड़ा कर ले गई आँधी सभी अरमाँ सभी सपने
लुटे हम तो ज़माने में मुहब्बत के ख़ुदा होकर
मुहब्बत के चमन में गुल मुक़द्दस खिल नहीं पाये
तगाफ़ुल और रुसवाई मिली बस बावफ़ा होकर
तआरुफ अब मिला जाकर हमें अपनी मुहब्बत का
बनेगी दास्तां सच्ची फ़क़त अब तो फ़ना होकर
हुई सब आम वो बातें जिन्होंने लांघ दी चौखट
तमाशा बन गये आँसू इन…
Added by rajesh kumari on December 24, 2017 at 5:58pm — 20 Comments
2122 1122 1122 22
इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए
इश्क़ करने की चलो आज सजा हो जाए
बेवफाई का तो दस्तूर निभाया तुमने
अब कोई रस्म जुदाई की अदा हो जाए
लो झुका दी है जबीं आप निकालो अरमां
आज पूरी ये चलो दिल की रज़ा हो जाए
कू ब कू हो कोई चर्चा यहाँ अपना वल्लाह
शह्र में फिर कोई बदनाम वफ़ा हो जाए
जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते जाना
साथ जिनके मेरा हर ख़्वाब फ़ना हो जाए
---मौलिक एवं…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 12, 2017 at 10:09am — 20 Comments
गीत
धरती अम्बर पर्वत नदियाँ,सबके ताने सुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये, इस जीवन में चुनने हैं
सर्दी गर्मी की मार सही
या बिन मौसम बरसात सही
चंदा तारों से जगमग हों
या काली नीरव रात सही
हमको तो अभिलाषाओं के,ताने बाने बुनने हैं
हमने जितने कंटक बोये,इस जीवन में चुनने हैं
इक मजहब की दीवार मिले
या वर्ण वर्ग की रार मिले
तेरे मेरे की खाई हो
या द्वेष जलन का हार मिले
हमको तो रिश्तों के मानक ,खामोशी से गुनने…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 2, 2017 at 7:00pm — 11 Comments
२१२२ १२१२ २२
कोंचती है ये धूल कहता है
किस नफ़ासत से फूल कहता है
मख़मली ये लिबास चुभते हैं
रास्ते का बबूल कहता है
जिन्दगी से निबाह करती हूँ
आइना जब क़ुबूल कहता है
अपने दम पे मक़ाम हासिल कर
मुझसे मेरा उसूल कहता है
चाहो मंजिल तो आबले न गिनो
हर कदम पे रसूल कहता है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:46am — 25 Comments
२१२२ २१२२ २१२
थोड़े थोड़े में गुजारा हो गया
मुश्तभर किस्सा हमारा हो गया
कहकशाँ में ढूँढती बेबस नज़र
ख़्वाब अपना इक सितारा हो गया
चाँद की चाहत कभी हमने न की
एक जुगनू ही सहारा हो गया
छटपटाती देख बेघर सीपियाँ
दिल समन्दर का किनारा हो गया
बेवफा इस जिन्दगी ने फिर ठगा
इश्क इससे क्यूँ दुबारा हो गया
बातों बातों हार बैठे दिल को हम
बेखुदी में बस ख़सारा हो…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 12, 2017 at 8:29pm — 22 Comments
“तुमने ठीक से शूट किया न?”रियान ने पूछा|
“येस येस ऑफकोर्स बड्डी, पूरा शूट कर लिया" कैमरा दिखाते हुए डोडो ने कहा |
" लेकिन एक बात बता व्हाई डिड यू चूज हिम ओनली? इसे ही क्यों चुना तुमने?”डोडो ने आगे पूछा |
“ ही वाज़ एन इन्डियन यार.... क्या फर्क पड़ता है कोई अपना थोड़े ही था और मेरे इस लास्ट टास्क में यही ऑर्डर था कि विदेशी होना चाहिए पर ये शूट करना अब तो बंद कर यार अभी भी क्यूँ ऑन किया हुआ है कैमरा” रियान बोला|
ठांय ठांय ठांय...”सॉरी बड्डी मेरा भी…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 2, 2017 at 11:06am — 8 Comments
२२ २२ २२ २
खुद ही काटे अपने पर
क्या धरती अब क्या अम्बर
कोई खिड़की न कोई दर
कितना उम्दा अपना घर
दुनिया तेरी धरती पर
अपनी हद बस ये गज भर
बंद कफ़स हो चाहे खुला
तुझको अब कैसा है डर
सारा आलम रख ले तू
मेरी अब परवाह न कर
मेरी अपनी मंजिल है
तेरी अपनी राह गुज़र
बेजा अब हैं तीर तेरे
तन पत्थर है मन पत्थर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by rajesh kumari on October 29, 2017 at 8:44pm — 17 Comments
२१२२ १२१२ २२
जिन्दगी से जबाब माँगेगा
लम्हा लम्हा हिसाब माँगेगा
जिसमे लिक्खा हुआ गणित तेरा
वक़्त ऐसी किताब माँगेगा
देख तेरा खुला हुआ वो सबू
खाली प्याला शराब माँगेगा
रंग बदले भले कई मौसम
फूल अपना शबाब माँगेगा
कैद जिसके लिए किया जुगनू
कल वही माहताब माँगेगा
पाक नीयत से देखना उसको
चाँद वरना निकाब माँगेगा
कैद तेरी किताब में अबतक
अपनी खुशबू गुलाब…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 12, 2017 at 9:11am — 34 Comments
बहर-ए-रमल मुसम्मिन मक्सूर व मह्जूफ़
2122 2122 2122 2121
किसके चेह्रे पर लिखा है कौन दुश्मन यार कौन
क्या पता है आड में गुल की छुपा है ख़ार कौन
हक़ है किसका सिर पे पहने है मगर दस्तार कौन
चाँद निकला छत पे किसकी कर रहा दीदार कौन
मतलबी हैं आज रिश्ते खो गया है एतबार
इस जहां में दिल से सच्चा आज करता प्यार कौन
मर गया है मुफ़्लिसी में भूख से देखो अनाथ
सब ही खाते थे तरस लेकिन उठाता भार कौन
पेट भरने के लिए…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 7, 2017 at 9:30pm — 15 Comments
2122 2122 2122 212
जिंदगी की जुस्तज़ू में आ गई जाने किधर
अजनबी इस भीड़ में ढूँढे किसे मेरी नजर
बे-नियाज़ी की यहाँ दीवार कैसे आ गई
'हम नफ़स अह्ल-ए-महब्बत कुछ इधर हैं कुछ उधर
साथ साया भी रहेगा जब तलक है रोशनी
कौन किसका साथ देता बेवजह यूँ उम्रभर
लौट कर आती नहीं ये खूब जीले जिंदगी
इक सितारा कह गया यूँ आसमां से टूटकर
खींच लाई झोंपड़ी को जब महल की रोटियाँ
एक दिन आकर अना ने ये कहा जा डूब मर
कोई…
Added by rajesh kumari on October 5, 2017 at 10:46am — 14 Comments
बहरे रमल मुसम्मिन मख़बून महजूफ़ मक़तूअ--
2122 1122 1122 22
एक चेह्रे पे कई चेह्रे लगा रक्खे हैं
इस ज़माने से कई राज़ छुपा रक्खे हैं
अश्क आँखों में लिये और हँसी चेह्रे पर
दर्द हमने कई सीने में दबा रक्खे हैं
टूट जाएँ न कहीँ अश्क जमीं पर गिरकर
अपनी पलकों पे करीने से सजा रक्खे हैं
इस ज़माने को कभी ख्वाब मेरे रास आएँ
सोचकर…
Added by rajesh kumari on October 1, 2017 at 1:31pm — 15 Comments
2122 1212 22
.
दिल को फिर बेकरार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
कत्ल का दिन अगर मुकर्रर है ज़िन्दगानी से प्यार कौन करे … |
Added by rajesh kumari on September 25, 2017 at 12:30pm — 39 Comments
122 122 122 12
अना का जो खुर्शीद ढलने लगा
क़मर हसरतों का निकलने लगा
हटे मकड़ियों के वो जाले सभी
मेरा खस्ता घर भी सँभलने लगा
मुहब्बत का छोटा सा दीपक मेरा
ग़मों का अँधेरा निगलने लगा
मेरे आंसुओं की बनी झील में
पशेमान सूरज पिघलने लगा
चमन पर हुआ अब्र ज्यों महरबां
खजाँ का तभी रुख़ बदलने लगा
खुदा का करम चार हाथों से ये
सफीना मेरा आज चलने…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 22, 2017 at 2:46pm — 6 Comments
१२२२ १२२२ १२२
चढ़े सूरज तलक सोए हुए हैं
किसी की याद में खोए हुए हैं
ग़ज़ल लिक्खी हुई है आंसुओं से
कहें किससे कि हम रोये हुए हैं
तभी भीगा हुआ तकिया मिला है
इसे अश्कों से हम धोये हुए हैं
कमर टूटी ज़फ़ा की चोट खाकर
मगर फिर भी वफ़ा ढोए हुए हैं
वहाँ चर्चा हमारा हो रहा है
न जाने हम कहाँ खोए हुए हैं
तुम्हारे दाग ज्यों के त्यों दिखेंगे
भले ही आईने धोए हुए…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 20, 2017 at 5:00pm — 20 Comments
२१२२ १२१२ २२
खामशी की जबान समझो ना
अनकही दास्तान समझो ना
सामने हैं मेरी खुली बाहें
तुम इन्हें आस्तान समझो ना
ये गुजारिश सही मुहब्बत की
तुम खुदा की कमान समझो ना
स्याह काजल बहा जो आँखों से
हैं वफ़ा के निशान समझो ना
बस गए हो मेरी इन आँखों में
इनमें अपना जहान समझो ना
झुक गया है तुम्हारे कदमों में
ये मेरा आसमान समझो…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 21, 2017 at 10:43am — 42 Comments
2122 1212 22
(१)
ये जो इंसान आज वाले हैं
कुछ अलग ही मिजाज वाले हैं
रास्तों पर अलग अलग चलते
एक ही ये समाज वाले हैं
दस्तख़त से बनें मिटें रिश्तें
कागजी ये रिवाज वाले हैं
रावणों की मदद करें गुपचुप
लोग ये रामराज वाले हैं
रोज खबरों में हो रहे उरियाँ
ये बड़े लोकलाज वाले हैं
मुंह छुपाते विदेश में…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 9, 2017 at 1:05pm — 29 Comments
छंद – विजया घनाक्षरी(मापनीमुक्त वर्णिक)
विधान 32 वर्णों के चार समतुकांत चरण, 16 16 वर्णों यति अनिवार्य
8,8,8,8 पर यति उत्तम अंत में ललल अर्थात लघु लघु लघु या नगण अनिवार्य ।
सूखे कूप हैं इधर ,गंदे स्रोत हैं उधर,प्यासे वक़्त के अधर,मीठा नीर है किधर|
मैली गंग है उधर,देखें नेत्र ये जिधर,रोयें धरा ये अधर,जाए शीघ्र ये सुधर|
कोई भाव है न रस,कैसे शुष्क हैं उरस,वाणी नहीं है सरस,शोले रहे हैं बरस|
बातों बात ये…
ContinueAdded by rajesh kumari on August 1, 2017 at 10:44pm — 4 Comments
2222 2222 ,2222 222
यह भी खाया वह भी खाया ,कब तक खाता जाएगा
एक दिवस तो उगलेगा सब ,कब तक पेट पचाएगा
अपनी ढपली अपना दुखड़ा ,कब तक राग सुनाएगा
यह करता हूँ वह करता हूँ ,कब तक ढोल बजाएगा
झूठी बातों झूठे वादों ,से कब तक बहलाएगा
परख रही है जनता तुझको,कब तक मूर्ख बनाएगा
शेर खड़े हैं दरवाजे पर,छुपकर तू बैठा चूहे
हिम्मत है तो बाहर आजा,कब तक नाक कटवाएगा
सरहद…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 29, 2017 at 12:00pm — 18 Comments
२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 11, 2017 at 8:30am — 36 Comments
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