Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2015 at 11:00am — 16 Comments
1 धन बल का मद
धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन
दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |
हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया
सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया
सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के
थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के |
(2) दुर्लभ मानव जीवन
मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,
तन मन धन हमको…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 11:30am — 11 Comments
महिला दिवस पर रचित -
घनाक्षरी – 16-15 वर्ण
कंधें से कंधा मिला काम करे जो खेत में,
भोर में उठ, देर रात तक जगती है |
खुद का वजूद भूल मान रखे आदमी का,
सर्वस्व समर्पण को तैयार रहती है |
शादी कर अनजान घर बसाने, कोख में,
नौ माह तक पीड़ा भी सहती रहती है |
फिर भी स्वयं का नही कोई वजूद मानती,
नाम बच्चें को भी वह बाप का ही देती है |
सर्दी गर्मी वर्षा सहती अंग भी झुलसाती,
दूजे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2015 at 12:30pm — 18 Comments
जनमत जिसके साथ में, उसकी होती जीत,
अहंकार जिसने किया, जनता करे न प्रीत |
जनता करे न प्रीत, जीत न उसे मिल पाए
जो भी चाहे जीत, काम जनता के आए
कह लक्ष्मण कविराय, मिटावे दिल से नफरत
जनहित की हो सोच, उसे ही मिलता जनमत |
दिल में भाव अभाव है,कोरा है वह चित्र
दुख में कभी न छोड़ता,वह है सच्चा मित्र |
वह है सच्चा मित्र, श्रेय न कभी वह लेता
कपट धूर्तता बैर, पास न फटकने देता
लक्ष्मण देती साथ,ह्रदय से पत्नी इसमें
रहे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:30pm — 19 Comments
ऋतु बसंत का आगमन,शीतल बहे सुगंध,
खलिहानों से आ रही, पीली पीली गंध |
जाडा जाते कह रहा, आते देख बसंत,
मधुर तान यूँ दे रही, बनकर कोयल संत |
वन उपवन सुरभित हुए, वृक्ष धरे श्रृंगार
माँ वसुधा का मनिएँ, बहुत बड़ा आभार |
कलरव करते मौर अब, देखें उठकर भोर,
अद्भुत कुदरत की छटा, करती ह्रदय विभोर |
फूलों पर मंडरा रहे, भँवरे गुन गुन गान
मतवाला मौसम सुने, कुहू कुहू की तान |
पुष्प जड़ी चुनरियाँ…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 4, 2015 at 12:30pm — 21 Comments
कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें
बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे
कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं
बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |
(2)
सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात |
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी
रेन…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 6:30pm — 14 Comments
दो हजार पंद्रह मने, योग लिए है आठ,
मानो यह नव वर्ष भी,लेकर आया ठाठ |
नए वर्ष का आगमन, खुशिया मिले हजार,
सबको दे शुभ कामना, दूर करे अँधियार |
रश्मि करे अठखेलियाँ, आता तब नववर्ष
प्राची में सौरभ खिले, सुखद धूप का हर्ष |
अच्छे दिन की आस रख, ह्रदय रहे सद्भाव
दूर करे नव वर्ष में, रिश्तों से अलगाव |
स्वागत हो नव वर्ष का,लेता विदा अतीत,
प्रथम दिवस के भोर से, शुभ हो समय व्यतीत…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2014 at 12:30pm — 10 Comments
धरती माँ की गोद में, फिर आया नववर्ष,
प्यार मिला माँ बाप से, जीवन में उत्कर्ष |
भाई सब देते रहे, मुझको प्यार असीम,
मित्र मिले संसार में, रहिमन और रहीम |
आई बेला साँझ की, समय गया यूँ बीत,
इतने वर्षों से यही, समय चक्र की रीत |
बचपन बीता चोट खा, माँ बापू बेचैन,
पूर्व जन्म के कर्म थे, भोगूँ मै दिन रेन |
मिला मुझे संयोग से,सात जन्म का प्यार,
मेरे घर परिवार से, दूर हुआ अँधियार…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2014 at 6:00am — 18 Comments
अविनाशी प्रभु अंश ही, कृष्ण रहे बतलाय
मोह रहे न कर्म सधे, कर्म सधे फल पाय
कर्म सधे फल पाय, राह चलकर पथ पाते
हर पल चाहे लाभ, निभे क्या रिश्ते नाते
लक्ष्मण कहते संत, रहे मानव मितभाषी
आत्मा छोड़े देह, जो है अमर अविनाशी |
गंगा मात्र नदी नहीं, समझे इसका सार
गंगा माँ को मानते जीवन का आधार |
जीवन का आधार, इसी से भाग्य जगा है
कूड़ा कचरा डाल, मनुज ने किया दगा है
कह लक्ष्मण कविराय, रहोगे तन से चंगा
धोते सारे पाप, रखे…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 8, 2014 at 6:20pm — 17 Comments
(गीतिका छंद)
14-14 मात्राए
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 3, 2014 at 10:30am — 12 Comments
पुष्य नक्षत्र की शुभ बेला में, श्री लक्ष्मी का अवतार हुआ
महक फैलाती आई कमला, तो गुरु नक्षत्र भी धन्य हुआ|
दाता भी है रिद्धि सिद्दी के, सुख सम्रद्धि जो लेकर आये
माँ शारदे भी संग बैठी, ज्ञान पिपासू प्यास बुझायें |
बरकत करती धन वैभव की, जो धन धान्य से घर भरदें
दीपो का त्यौहार मनाते, आँगन माँड़ रँगोली सज दे |
घर लक्ष्मी प्रसन्न जब रहती, तब लक्ष्मी का वरदान मिले
बिन गणपति और ज्ञानेश्वरी, फिर उल्लू ही साक्षात् मिले…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2014 at 12:00pm — No Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2014 at 10:30am — 9 Comments
कुण्डलिया छंद (हिंदी दिवस पर विशेष)
हिंदी निज व्यवहार में, भरती मधुर सुगंध,
देवनागरी में मिले, संस्कृति की चिरगंध |
संस्कृति की नवगंध, और सुगन्ध सी वाणी
सीखे नैतिक मूल्य, पढ़े जो हिंदी प्राणी ||
लक्ष्मण कर सम्मान, सजे माथे जो बिंदी
करती रहे प्रकाश, सरस यह भाषा हिंदी ||
(2)
आता है हिन्दी दिवस, जाने को तत्काल
अपनी भाषा का सदा उन्नत रखना भाल |
उन्नत रखना भाल,करे विकास तब भाषा
हिंदी में हो बात, रहे क्यों भाव…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2014 at 3:55pm — 5 Comments
तेरी मेरी बात पर फँस जाता इन्सान,
धन दौलत को देखकर, खो देता ईमान |
अग्नि परीक्षा दे रही कितनी सीता आज,
दुष्ट दुशासन लूटते, नित श्यामा की लाज |
रिश्ते नातो में भरो मधुर प्रेम का सार
प्यार भरे व्यवहार से मिटते कष्ट हजार |
संस्कारी परिवार में, बच्चें ही जागीर,
ह्रदय प्रेम उमड़े सदा, दिल से रहे अमीर |
भावुकता वरदान हो, समझे मन की पीर,
गलत काम का खौफ हो, खुशियों में हो सीर |
(मौलिक व…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 10, 2014 at 6:00pm — 9 Comments
मन में सद्विचार रहे, नेक करे वह काम,
फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करे निष्काम
कर्म करे निष्काम, भाव संतोषी पाते
काम क्रोध मद लोभ स्वार्थ के रंग दिखाते
कर लक्षमण सद्कर्म नम्रता रहे वचन में
गीता में सन्देश, रहे निश्छलता मन में ||
(2)
करे प्रशंसा स्वयं की, और स्वयं से प्रीत,
आत्म मुग्ध के आग्रही, ये दर्पण के मीत
ये दर्पण के मीत, संग चमचों के रहते
अपने को सर्वोच्च अन्य को तुच्छ समझते
कह लक्ष्मण कविराज इन्हें भाती…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 18, 2014 at 2:00pm — 19 Comments
ईद मनाये हम सभी गले मिले सब आज
सर्व धर्म सद्भाव के अकबर थे सरताज |
अकबर थे सरताज, सभी का मान बढाया
नवरत्नों के साथ, गर्व से राज चलाया
सभी तीज त्यौहार सुखद अनुभूति कराये
बढे ह्रदय सद्भाव सभी अब ईद मनाये |…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 29, 2014 at 10:30am — 10 Comments
सामाजिक सुरक्षा को तरसे
एकल परिवारों में जो पले,
आर्थिक सुरक्षा और -
स्नेह भाव मिले
संयुक्त परिवार की ही
छाया तले |
घर परिवार में
हर सदस्य का सीर
बुजुर्ग भी होते भागीदार,
बच्चो की परवरिश हो,
संस्कार या व्यवहार |
अभिभावक व माता पिता
जताकर समय का अभाव
नहीं बने
अपराध बोध के शिकार,
संयुक्त परिवार तभी
रहे और चले |
प्रतिस्पर्था से भरी
सुरसा सामान…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 22, 2014 at 10:30am — 10 Comments
पत्नी की म्रत्यु के २ वर्ष बाद ही बीमार रहने लगे मथुरा के संभ्रांत और संपन्न परिवारके श्री काशी प्रसाद जी का
८५ वर्ष की उम्र में देहांत हो गया | रात को शौक जताने आयेरिश्तेदार दुःख की घडी में सांत्वनाजता रहे थे, तभी
उस परिवार की बहुएँ…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 2, 2014 at 9:30am — 18 Comments
बेटी बिन क्या हो सके, विकसित कभी समाज
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 18, 2014 at 8:00pm — 18 Comments
विरह तुम्हारा सह न पाऊं, कैसे मै मन को समझाऊ
तुमसे ही मै जीवन पाऊं, तुमबिन न स्वागत कर पाऊं
बिछे ह्रदय में पलक-पाँवड़े,मेंह बाबा मै तुम्हे रिझाऊं
ताल तलैया जग के सूखे,स्वर्ग लोक से…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2014 at 6:00pm — 16 Comments
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