काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।
और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।
रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।
जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।
मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।
अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।
निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।
कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।
धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।
बात नही यह दोहरी, है यही गूढ ज्ञान ।
धन…
Added by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 10:00pm — 7 Comments
ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को ।
हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को ।
है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने ।
सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 6:30pm — 10 Comments
हे भाग्य विधात्री, जन सुख दात्री, मातु भारती, वंदन है ।
मां माटी तोरी, सौंधी भोरी, रज कण माथे, चंदन है ।।
गिरि हिम आच्छादित, करते प्रमुदित, मुकुट मणी सा, सोहत है ।
धरा मनोहारी, मातु तुम्हारी, हरि हर को भी, मोहत है।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on June 29, 2014 at 9:14am — 10 Comments
आदमी से आदमीयत, खो गई है रे कहां ।
आदमी से आदमी को, डर तभी तो है यहां ।।
आदमी में जो पड़ा है, स्वार्थ का साया जहां ।
आदमी अब आदमी से, बच नही पाये यहां ।।
आदमी आतंकवादी, उग्रवादी जो बने ।
आदमी के हाथ दोनो, खून से ही हैं सने ।।
मर्द जो है आदमी में, वो बलत्कारी लगे ।
गोद की बेटी उसे तो, ना दिखे अपने सगे ।।
आदमी को आदमी जो, है बनाना फिर कहीं ।
आदमी में तो जगाओ, आदमीयत फिर वही ।।
आदमी जो आदमी से, प्रेम करने फिर लगे…
Added by रमेश कुमार चौहान on June 17, 2014 at 11:00pm — 6 Comments
छप्पय छंद
बेटी होना पाप, त्रास में जीवन सारा ।
जन्म पूर्व ही घात, उसे कितनों ने मारा ।।
कंपित होती सांस, वायु है दूषित सारी ।
छेड़ छाड़ हर पाद, नगर गांव बलात्कारी ।।
गली गली में भेडि़या, नोचें बेटी मांस को ।
जीवित होकर लाश हैं, बेटी सह इस त्रास को ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on June 5, 2014 at 3:00pm — 14 Comments
मेरे अजीज दोस्त, अमर मै अकबर है तू ।
मै तो तेरे साथ, साथ तो हरपल है तू ।।
रहना हमे सचेत, लोग कुछ हमें न भाये ।
हिन्दू मुस्लिम राग, छेड़ हम को भरमाये ।।
मेरे घर के खीर, सिवइयां तेरे घर के ।
खाते हैं हम साथ, बैठकर तो जी भर के ।।
इस भोजन का स्वाद, लोग वो जान न पाये ।
बैर बीज जो रोप, पेड़ दुश्मनी का लगाये ।। रहना हमे सचेत ....
यह तो भारत देश, लगे उपवन फूलों का ।
माली न बने चोर, कष्ट दे जो शूलों का ।।
रखना हमको ध्यान, बांट वो हमें न…
Added by रमेश कुमार चौहान on May 3, 2014 at 6:00pm — 6 Comments
ताँका पाँच पंक्तियों और 5,7,5,7,7= 31 वर्णों के लघु कविता
1.हर चुनाव
बदले तकदीर
नेताओं का ही
सोचती रह जाती
ये जनता बेचारी ।।
2.लूटते सभी
सरकारी संपदा
कम या ज्यादा
टैक्स व काम चोर
इल्जाम नेता सिर ।।
3.उठा रहे है
नजायज फायदा
चल रही है
सरकारी योजना
अमीर गरीब हो ।।
4.जनता चोर
नेता है महाचोर
शर्म शर्माती
कदाचरण लगे
सदाचरण सम ।।
5.जल भीतर
अटखेली करती…
Added by रमेश कुमार चौहान on April 30, 2014 at 11:00pm — 4 Comments
कौन करे है ?
देश में भ्रष्टाचार,
हमारे नेता,
नेताओं के चम्मच
आम जनता
शासक अधिकारी
सभी कहते
हाय तौबा धिक्कार
थूक रहे हैं
एक दूसरे पर
ये जानते ना कोई
नही नही रे
मानते नही कोई
तुम भी तो हो
मै भी उनके साथ
बेकार की है बात ।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on April 30, 2014 at 2:18pm — 6 Comments
मनहरण घनारक्षरी छंद -31 वर्ण चार चरण 8,8,8,7 पर यति चरणांत गुरू
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झूठ और फरेब से, सजाये दुकानदारी ।
व्यपारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।
वादों के वो डाले दाने, जाल कैसे बिछायें है ।
शिकारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।
जात पात धरम के, दांव सभी लगायें हैं ।
जुवारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।
तल्ख जुबान उनके, काट रही समाज को ।
कटारी बने हैं नेता, आज मेरे देश में ।।…
Added by रमेश कुमार चौहान on April 28, 2014 at 6:30pm — 7 Comments
अनुष्टुप छंद 4 चरण प्रत्येक चरण 8-8 वर्ण
विषम चरण - वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ क्रमशः लघु, गुरू, गुरू, गुरू
सम चरण - वर्ण क्रमांक पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ क्रमशः लघु, गुरू, लघु, गुरू
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मदिरापान कैसा है, इस देश समाज में ।
अमरबेल सा मानो, फैला जो हर साख में ।।
पीने के सौ बहाने हैं, खुशी व गम साथ में ।
जड़ है नाश का दारू, रखे…
Added by रमेश कुमार चौहान on March 26, 2014 at 4:38pm — 4 Comments
होली है .............
तुम रचाओं रास, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
राधा बुलाओ खास, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
हम होली मनाये आज, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
भक्त गाये फाग, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
उड़े हे रंग गुलाल, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
ब्रज लगे हमारे गांव, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
तुम रचाओं रास, रे कृष्णा
तुम रचाओ रास
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on March 16, 2014 at 5:53pm — 1 Comment
कह मुकरियां
1.
श्याम रंग तुम्हरो लुभाये ।
रखू नैन मे तुझे छुपाये ।
नयनन पर छाये जस बादल ।
क्या सखि साजन ? ना सखि काजल ।
2.
मेरे सिर पर हाथ पसारे
प्रेम दिखा वह बाल सवारे ।
कभी करे ना वह तो पंगा ।
क्या सखि साजन ? ना सखि कंघा
3.
उनके वादे सारे झूठे ।
बोल बोले वह कितने मिठे ।
इसी बल पर बनते विजेता ।
क्या सखि साजन ? ना सखि नेता ।।
4.
बाहर से सदा रूखा दिखता ।
भीतर मुलायम हृदय रखता ।।
ईश्वर भी…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 17, 2014 at 9:28pm — 11 Comments
Added by रमेश कुमार चौहान on February 14, 2014 at 10:54pm — 9 Comments
मंदिर मस्जिद द्वार
बैठे कितने लोग
लिये कटोरा हाथ
शूल चुभाते अपने बदन
घाव दिखाते आते जाते
पैदा करते एक सिहरन
दया धर्म के दुहाई देते
देव प्रतिमा पूर्व दर्शन
मन के यक्ष प्रश्न
मिटे ना मन लोभ
कौन देते साथ
कितनी मजबूरी कितना यथार्थ
जरूरी कितना यह परिताप
है यह मानव सहयातार्थ
मिटे कैसे यह संताप
द्वार पहुॅचे निज हितार्थ
मांग तो वो भी रहा
पहुॅचा जो द्वार
टेक रहा है माथ
कौन भेजा उसे यहां पर
पैदा…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 11, 2014 at 12:08pm — 6 Comments
बहर - 2122, 2122, 2122, 212
प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है ।
प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।।
वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है ।
जीव में जीवन भरे यह, प्रेम से ही प्राण है ।।
पुत्र करते प्रेम मां से, औ पिता पु़त्री सदा ।
नींव नातो का यही फिर, प्रेम क्यो अनुदान है ।।
बालपन से है मिले जो, प्रेम तो लाचार है ।
है युवा की क्रांति देखो, प्रेम आलीशान है ।।
गोद में तुम तो रहे जब , मां पिता कैसे…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 7:30pm — 1 Comment
दें बिदाई आज तुम्हे, है परीक्षा की घड़ी ।
सीख सारे जो हमारे, तुम्हरे मन में पड़ी ।।
आज तुम्हे तो दिखाना, काम अब कर के भला ।
नाम होवे हम सबो का, हो सफल तुम जो भला ।।
हर परीक्षा में सफल हो, दे रहे आशीष हैं।
हर चुनौती से लड़ो तुम, काम तो ही ईश है ।।
कर्म ही पूजा कहे सब, कर्म पथ आगे बढो ।
जो बने बाधा टीलाा सा, चीर कर रास्ता गढ़ो ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:00am — 12 Comments
(बहर - 2122,2122,212)
पैर में क्यो गुदगुदी होने लगी
याद तेरी बेबसी होने लगी
वक्त काफी हो गया तुम से मिले
तेरी सूरत अजनबी होने लगी
अपने हाथो घाव ताजा कर रहा
जख्म स्याही लेखनी होने लगी
ये इबारत प्यार का है चेहरा
हर नए गम से खुशी होने लगी
तू नही तेरी निशानी ही सही
देख लो संजीवनी होने लगी
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मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 5, 2014 at 10:00pm — 7 Comments
हे भवानी आदि माता, व्याप्त जग में तू सदा ।
श्वेत वर्णो से सुशोभित, शांत चित सब से जुदा ।।
हस्त वीणा शुभ्र माला, ज्ञान पुस्तक धारणी ।
ब्रह्म वेत्ता बुद्धि युक्ता, शारदे पद्मासनी ।।
हे दया की सिंधु माता, हे अभय वर दायनी ।
विश्व ढूंढे ज्ञान की लौ, देख काली यामनी ।।
ज्ञान दीपक मां जलाकर, अंधियारा अब हरें ।
हम अज्ञानी है पड़े दर, मां दया हम पर करें ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 4, 2014 at 6:00pm — 11 Comments
मदिरा सेवन जो करे, तन मन करते खाक ।
मान सम्मान बेचकर, बोल रहे बेबाक ।।
धर्म कर्म जाया करे, करते मदिरा पान ।
बीबी बच्चें रो रहे, देखो खोटी शान ।।
सुख दुख का साथी कहे, मदिरा को सम्मान ।
सुख में दुख पैदा करे, उसे कहां है भान ।।
पार्टी सार्टी है करे, जो हैं अप टू डेट ।
बाटली साटली रखे, कुछ करते अपसेट ।।
गरीब अमीर दास है, मदिरा है भगवान ।
वंदन करते शाम को, लगा रहे जी जान…
Added by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 8:00pm — 7 Comments
छप्पय छंद (रोला+उल्लाला)
हिन्दी अपने देश, बने अब जन जन भाषा ।
टूटे सीमा रेख, हमारी हो अभिलाषा ।।
कंठ मधुर हो गीत, जयतु जय जय जय हिन्दी ।
निज भाषा के साथ, खिले अब माथे बिन्दी ।।
भाषा बोली भिन्न है, भले हमारे प्रांत में ।
हिन्दी हम को जोड़ती, भाषा भाषा भ्रांत में ।।
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मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 4:07pm — 8 Comments
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