उषा अवस्थी
जहाँ अपना कुछ नहीं
सब पराया है
न जाने कौन सा
आकर्षण समाया है?
चारों ओर मारा-मारी है
धन-दौलत की खुमारी है
प्रतिस्पर्धा तारी है
अहंकार पर सवारी है
प्रति पल बदलाव है
न ही ठहराव है
इच्छित वस्तु प्राप्त हो जाए
फिर आगे क्या?
सब यहीं छोड़ जाना है
पाँच तत्वों का ताना-बाना है
कहीं स्थिरता नहीं
केवल आना है,जाना है
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 16, 2022 at 10:46am — 1 Comment
1222 1222 122
बड़ी दिल-जू रही सूरत हमारी
उदासी खा गई सूरत हमारी
ग़मों को एक चहरा चाहिए था
उन्हें भी भा गई सूरत हमारी
सभी हैरान होकर देखते हैं
लगे सबको नई सूरत हमारी
न जाने कौन शब भर ख़्वाब में था
किसे अच्छी लगी सूरत हमारी
हमारे लब भले चुप हो गये 'ब्रज'
कहे हर अनकही सूरत हमारी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 15, 2022 at 6:30pm — 18 Comments
भावों के सागर को जब-जब
अमृत घट बंधन में बाँधा-
क्षणभंगुर सा स्वप्न सजीला, छन से टूटा...बिखर गया
तड़प-तड़प प्राणों ने ढूँढा, लेकिन जाने किधर गया ?
भीतर-भीतर अंतःमन में जन्मे जाने कितने सपने,
लिए रवानी एहसासों की लगे सदा जो बिल्कुल अपने,
मदहोशी में खोया-खोया अपने ही सपनों में जीता,
अपने ही मद में डूबा मन अपनी ही मदिरा को पीता,
घट फूटा तंद्रा भी टूटी,
घट की हर आकृति भी झूठी-
सुध-बुध छलता मनहर हर घट, रीता देखा...…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 14, 2022 at 11:55pm — 3 Comments
हम मिलें या ना मिलेंं, चाहे फूल ना खिलें
लेकिन इन हवाओं में, हमारा वजूद होना चाहिए
हम चलें जिस राह में, मंज़िलों की चाह में
गर मिल सके ना कारवाँ से
राहपर अपने मगर, निशान होने चाहिए …
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 12, 2022 at 2:00pm — 1 Comment
वज़्न -1222 1222 1222 1222
ये बर्फीली हवाएंँ तेज़ तूफ़ाँ ये मिज़ाजी ठंड
मुक़ाबिल तुमको पाकर हो गई कितनी गुलाबी ठंड
तुम्हारी याद की इक गुनगुनी सी धूप के दम पर
सुखाए कितने ग़म हमने बिताई कितनी भारी ठंड
अलावों की न थी कोई कमी उसको मगर फिर भी
ज़मीं ने देखकर सूरज को ही अपनी गुज़ारी ठंड
तुम्हारे प्यार के धागों की मैंने शॉल जब ओढ़ी
लगी है तब मुझे सारे हसीं मौसम से प्यारी ठंड
मैं अक्सर सोचती हूंँ काश फिर…
ContinueAdded by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 11, 2022 at 9:41pm — 11 Comments
2122 1212 22
फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना
आज फिर दिल हुआ है दीवाना
यूँ तो हर आँख में नशा लेकिन
उनकी आँखों में पूरा मयखाना
जबसे आये हैं उनको महफ़िल में
भूल बैठे…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on December 11, 2022 at 9:30pm — 2 Comments
उषा अवस्थी
लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं
भाव भरे, विभिन्न रस सिंचित
वह जीवन को गहती हैं
जुड़े रहें सम्बन्ध आपसी
प्रेम प्रगाढ़ विरचती हैं
परिवारों के रिश्ते-नाते
नेह- स्वरों से भरती हैं
प्रीति- पगे सुन्दर वचनो से
हो उत्फुल्ल गमकती हैं
सामाजिक समरसता के
शुभ ताने-बाने बुनती हैं
लोक -कथाएँ "कुछ" कहती हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on December 10, 2022 at 7:17pm — 2 Comments
कोई रोए, दुःख में हो बेहाल
असहाय, असुरक्षित, अभावग्रस्त
टोटा संगी-साथी, हो कती कंगाल
अत्याचार, अव्यवस्था से त्रस्त
किसी को क्या फर्क पड़ता है ।
यहां-वहां घूमे, दुःख के आंसू पीए
गिड़गिड़ाए, झुके, करे…
Added by आचार्य शीलक राम on December 8, 2022 at 8:00pm — 1 Comment
2122 2122 2122 212
मैं अँधेरी रात हूंँ और शम्स के अनवर-से आप
शाम-सी मुझ में उदासी, सुब्ह के मंज़र-से आप
जाने कैसे मिलना होगा अपना इक मे'यार पर
मैं ज़मीं की ख़ाक-सी हूंँ चर्ख़ के मिम्बर-से आप
जो भी आया चल दिया वो मुझ से हो कर आप तक
मैं अधूरी रहगुज़र हूँ और मुकम्मल घर-से आप
क्यों पसंद आये किसी को भी कभी होना मेरा
मैं कि अनचाही सी बेड़ी क़ीमती ज़ेवर-से आप
आपके बिन इस जहांँ में कुछ…
ContinueAdded by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 8, 2022 at 6:00pm — 13 Comments
रूठ रही नित गौरय्या भी, देख प्रदूषण गाँव में।
दम घुटता है कह उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
*
बीते युग की बात हुए हैं
घास-फूँस औ' माटी के घर।
सूने - सूने, फीके - फीके
खेतों खलिहानों के मञ्जर।।
*
अन्तर जैसे पाट दिया है, आज नगर औ' गाँव में।
दम घुटता है अब उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
*
शेष हुए हैं देशी व्यञ्जन,
और विदेशी रीत हुए।
तीजों - त्यौहारों से गायब,
परम्परा के गीत हुए।।
*
लगता जैसे आन बसे हों, किसी विदेशी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2022 at 6:45am — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
अभी बस पर ही टूटे हैं अभी अंबर नहीं टूटा
परिंदा टूटा है बाहर अभी अंदर नहीं टूटा /1
सितारा यूंँ तो टूटा है मेरी तक़दीर का लेकिन
ख़ुदा का शुक्र है तदबीर का अख़्तर* नहीं टूटा /
हमारे ख़ैर ख़्वाहों ने बहुत चाहा मगर अब तक
हमारे दिल में है उम्मीद का जो घर नहीं टूटा /3
सियासत के सताने पर भी बोला जो हमेशा सच
वो जाने कैसी मिट्टी का है ज़र्रा भर नहीं टूटा /4
कई मख़्लूक़* की है ज़िंदगी…
ContinueAdded by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 6, 2022 at 10:13pm — 3 Comments
नर हूँ ना मैं नारी हूँ, लिंग भेद पर भारी हूँ
पर समाज का हिस्सा हूँ मैं, और जीने का अधिकारी हूँ
जो है जैसा भी है रुप मेरा, मैंने ना कोई भेष धरा
अपने सांचें मे कसकर हीं, ईश्वर ने मेरा रुप गढ़ा
माँ के पेट से जन्म लिया, जब पिता ने मुझको गोद लिया
मेरी शीतल काया पर ही, शीतल मेरा नाम दिया
जैसे-जैसे मैं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 5, 2022 at 1:26pm — 1 Comment
सोचा था हो बच्चा मन
लेकिन पाया बूढ़ा मन।१।
*
नीड़ सरीखा आँधी में
तिनका तिनका टूटा मन।२।
*
किस दामन को भाता है
सारी रात बरसता मन।३।
*
तन की मंजिल पास हुई
मीलों लम्बा रस्ता मन।४।
*
शूल चुभा सब कहते हैं
मत रख पत्थर जैसा मन।५।
*
पीर अगर नाचे आँगन में
तब किसका घर होगा मन।६।
*
कहकर कितना रोयें अब
दुख में भी मुस्काता मन।७।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2022 at 8:00am — 9 Comments
1212 1122 1212 22/112
हैं ख़ाक फिर भी उठाकर जो सर खड़े हैं पहाड़
तो हौसला रखो क्या हमसे भी बड़े हैं पहाड़ /1
है इनके दिल में नदी-सी बड़ी नमी लेकिन
मुग़ालता* है कि वालिद-से ही कड़े हैं पहाड़़/2
पहाड़ कह के कोई तंज़ गर करे इन पर
तो आबशार बने अश्क से झड़े हैं पहाड़ /3
पहाड़ जैसी मुसीबत उठा के हम यूंँ चले
कि हम को देखते ही शर्म से गड़े हैं पहाड़ /4
हम अपने पैर गँवा कर भी चढ़ गए इन पर
हमारे जैसे…
Added by Anjuman Mansury 'Arzoo' on December 2, 2022 at 8:13pm — 6 Comments
मौन
आचार्य शीलक राम
सरल-सहज है तुम्हारी सूरत
देवलोक की जैसे कोई मूरत
मूरत होकर भी अमूर्त लगती…
Added by आचार्य शीलक राम on December 1, 2022 at 9:31pm — 1 Comment
स्वप्न अधूरे, भूखा पेट
होने को है, मटियामेट
कड़ी मेहनत, कड़े प्रयास
फिर भी बची न कोई आस।1
अनगिनत ग्रंथ, आंखें फोड़ी
मम जीवन, सम फूटी कौड़ी
सब कुछ किया, व्यर्थ जा रहा
कौन दुःख, मैंने न सहा । 2
देर तक पढ़ना, ऊंचे अंक
बेरोजगारी के, फंसा हूं पंक
कर्म का नियम, बना है निष्फल
हर पैड़ी पर, हुआ हूं असफल ।3
ऊंची-ऊंची, उपाधि अर्जित
अभिनव किया, बहुत कुछ सृजित
फिर भी यहां, नकारा बना हूं
अभाव, दुःखों से, कती सना हूं । 4
घर बैठा हूं,…
Added by आचार्य शीलक राम on December 1, 2022 at 9:30pm — No Comments
१२२२/ १२२२/१२२२
*
कठिन जैसे नगर में धूप के दर्शन
हमें वैसे तुम्हारे रूप के दर्शन।१।
*
कभी वो नीर का साधन रहा होगा
मगर होते नहीं अब कूप के दर्शन।२।
*
सुना है नृत्य करते हैं तेरे आँगन
बहुत दुर्लभ हमें तो भूप के दर्शन।३।
*
कभी थोथा उड़ा कर सार गहते थे
नये युग में गुमें हैं सूप के दर्शन।४।
*
जलन दूजे से होती हो जहाँ बोलो
किसी मुख पर हो कैसे ऊप के दर्शन।५।
*
यहाँ रूठी हुई छत नींव बागी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2022 at 12:30pm — 6 Comments
"बारहमासा"
"चैत्र" मे चित चिंतित, चंचल चहु चकोर।
प्रिया बिन सब सूना लगे, ना सुझे कौर॥
"वैशाख" वैरी विष समान, वल्लरी बन विलगाय।
दोबारा फूल खिलेंगे तभी, अनुकूल रितु को पाय॥…
Added by आचार्य शीलक राम on November 30, 2022 at 9:00pm — 4 Comments
2122/2122/212
*
हर तरफ झण्डे गढ़े हैं नाम के
पर नहीं हैं आदमी वो काम के।1।
*
वोट खातिर पैर पकड़े जिसने भी
वो हुए ना एक पल भी आम के।2।
*
नाम पर उन के मचाते लूट सब
कौन चलता है यहाँ पथ राम के।3।
*
लोक ने अनमोल आँका था जिन्हें
आज देखो वो बिके बिन दाम के।4।
*
क्या पता भटका हुआ लौटे कोई
दीप कोई तो जलाये शाम के।5।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 30, 2022 at 8:12am — 6 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
*
राह में शूल अब तो बिछाने लगे
हाथ दुश्मन से साथी मिलाने लगे।१।
*
जो अघाते न थे कह सहारे हमी
गाल वो भी दुखों में बजाने लगे।२।
*
दुश्मनों की जरूरत हमें अब कहाँ
जब स्वयं को स्वयं ही मिटाने लगे।३।
*
हाथ सबका ही तोड़े यहाँ फूल को
सोच माली भी काँटे उगाने लगे।४।
*
बात उसको बता कर्म की साथिया
सेज सपनों की जो भी सजाने लगे।५।
*
वोट पाने की खातिर कभी रोये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2022 at 11:30pm — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
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