सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१
प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२
प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३
रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४
अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को…
Added by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:30pm — 32 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
इल्म की रोशनी नहीं होती ,
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |
एक कोना दिया है बच्चों ने ,
और कुछ बेबसी नहीं होती |
रंग आये कि सेवई आये ,
तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |
दिल के टूटे से शोर होता है ,
ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |
सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,
दिल में भी सादगी नहीं होती |
माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,
बाप से बंदगी नहीं होती…
ContinueAdded by Abhinav Arun on September 13, 2013 at 5:30am — 44 Comments
१२२२...१२२२
नज़र दर पर झुका लूँ तो
मुहब्बत आज़मा लूँ तो
तेरी नज़रों में चाहत का
समन्दर मैं भी पा लूँ तो
बदल डालूँ मुकद्दर भी
अगर खतरा उठा लूँ तो
सियह आरेख हाथों का
तेरे रंग में छुपा लूँ तो
तेरी गुम सी हर इक आहट
जो ख़्वाबों में बसा लूँ तो
तुम्हारे संग जी लूँ मैं
अगर कुछ पल चुरा लूँ तो
न कर मद्धम सी भी हलचल
मैं साँसों को…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 13, 2013 at 9:30am — 55 Comments
एक शाम
उदास सी थी
निस्तेज , निशब्द , निस्पंदित
निहारती सी
दूर तलक शून्य मे।
कर्तव्य विहीन, कर्म विहीन
अचेतन जड़ हो गए जो
पुकारती सी
दूर तलक शून्य मे ।
नेपथ्य से कुछ सरसराहट
वैचारिक या मौन
विजयी पर प्रसन्न नहीं
श्रोता सी
दूर तलक शून्य मे ।
अन्तर्मन के क्रंदन को
छिपा मुख मण्डल पर खेलती जो
अलौकिक आभा थी
दूर तलक शून्य मे ............... ।
अप्रकाशित…
ContinueAdded by annapurna bajpai on September 13, 2013 at 5:39pm — 26 Comments
अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,
आलस्य घुला है, नींद सघन है.
प्रजा बेखबर, सत्ता मदहोश है,
विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?
रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,
फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.
जो चाकर है, वही स्वामी है
जो स्वामी है, वही भृत्य है .
ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?
बिसात बिछी सियासी चौसर की
शकुनी के हाथों फिर पासा है .
अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता…
ContinueAdded by Neeraj Neer on September 15, 2013 at 4:30pm — 16 Comments
अनुभव
आज फिर दिन क्यूँ चढ़ा डरा-डरा-सा
ओढ़ कर काला लिबास उदासी का ?
घटना ? कैसी घटना ?
कुछ भी तो नहीं घटा
पर लगता है ... अभी-अभी अचानक
आकाश अपनी प्रस्तर सीमायों को तोड़
शीशे-सा चिटक गया,
बादल गरजे, बहुत गरजे,
बरस न पाये,
दर्द उनका .. उनका रहा ।
सूखी प्यासी धरती, यहाँ-वहाँ फटी,
ज़ख़मों की दरारें ..... दूर-दूर तक
घटना ? .... कैसी घटना…
ContinueAdded by vijay nikore on September 17, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
1 2 1 2 / 2 2 1 2 / 1 2 1 2 / 2 2 1
न रंज करना ठीक है, न तंज करना ठीक
जो दौर बीता उससे यूँ, न फिर गुज़रना ठीक.
कि आखिरी सच मौत, इससे क्यों हमें हो खौफ़
यूँ डर के इससे हर घड़ी, न रोज़ मरना ठीक .
हर्फे आखिरी है जो खुदा ने लिख भेजा किस्मत में,
बने जो आका फिरते, उनसे क्यों हुआ ये डरना ठीक.
कोशिश ही बस में तेरे, खुदा के हाथ अंजाम,
भला लगे तो अच्छा है, बुरा भी वरना ठीक.
लाजिम है वज़न बात…
ContinueAdded by shalini rastogi on September 18, 2013 at 5:30pm — 20 Comments
बहुत चर्चा हमारा हो रहा है
इशारों में इशारा हो रहा है /१
लकीरें हाथ की बेकार हैं सब
समझिये बस गुजारा हो रहा है /२
न जाने रूह पर गुजरी है क्या क्या
बदन का खून खारा हो रहा है /३
गगन के तारे क्यूँ जलने लगे हैं
कोई जुगनू सितारा हो रहा है /४
तुम अपनी धड़कनों को साधे रखना
तुम्हारा दिल हमारा हो रहा है/५
.............................................
बह्र : १२२२ १२२२ १२२
*सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
Added by Saarthi Baidyanath on September 18, 2013 at 6:00pm — 36 Comments
मंज़िल पे खड़ा हो के सफ़र ढूँढ रहा हूँ
हूँ साए तले फिर भी शजर ढूँढ रहा हूँ
औरों से मफ़र ढूँढूं ये क़िस्मत कहाँ मेरी?
मैं खुद की निगाहों से मफ़र ढूँढ रहा हूँ
दंगे बलात्कार क़त्ल-ओ-खून ही मिले
अख़बार मे खुशियों की खबर ढूँढ रहा हूँ
शोहरत की किताबों के ज़ख़ायर नही मतलूब
जो दिल को सुकूँ दे वो सतर ढूँढ रहा हूँ
ना जाने हक़ीक़त है वहम है की फ़साना
वाक़िफ़ नही मंज़िल से मगर ढूँढ रहा हूँ
ये हिंदू का शहर है…
ContinueAdded by saalim sheikh on September 18, 2013 at 5:32pm — 14 Comments
Added by Admin on September 19, 2013 at 9:00am — 3 Comments
याद है !!
जब तुम्हारा जन्म हुआ था
एक नर्म तौलिये में लपेट
मुझे तुम्हारी एक
झलक दिखलाई थी
तुम्हे देखते ही
भूल गयी थी दर्द सारा
खों गयी थी
गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में
कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा
नर्म
बिलकुल रुई के फाहों जैसा
खुश थी छू के तुम्हे
तुम मद मस्त नींद में
लग रहा था
लम्बा सफ़र तय किया है तुमने
कितने दिनों के थके हो जैसे
जब तुमने
आँखें खोली पहली बार
इस नयी दुनिया को देखने की…
Added by Meena Pathak on September 5, 2013 at 8:27pm — 47 Comments
रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय
जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय
आमादा तो है नस्लकुशी पर अमीरे शह्र
डरता भी है कि उसका पसीना उबल न जाय
अजदाद से मिला जो…
ContinueAdded by Sushil Thakur on August 31, 2013 at 9:39am — 16 Comments
काल के चूल्हे पर
काठ की हांडी
चढ़ाते हो बार बार .
हर बार नयी हांडी
पहचानते नहीं काल चिन्ह को
सीखते नहीं अतीत से .
दिवस के अवसान पर
खो जाते हो
तमस के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 31, 2013 at 9:07am — 26 Comments
दुमहले के ऊँचे वातायन से
हलके पदचापों सहित
चुपके से होती प्रविष्ट
मखमली अंगों में समेट
कर देती निहाल
स्वयं में समाकर एकाकार कर लेती
घुल जाता मेरा अस्तित्व
पानी में रंग की तरह
अम्बर के अलगनी पर
टांग दिए हैं वक्त ने काले मेघ
चन्द्रमा आवृत है , ज्योत्सना बाधित
अस्निग्ध हाड़ जल रहा
सीली लकड़ियों की तरह
स्मृति मञ्जूषा में तह कर रखी हुई हैं
सुखद स्मृतियाँ.....
.. नीरज कुमार…
ContinueAdded by Neeraj Neer on August 24, 2013 at 3:30pm — 23 Comments
2 1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2
हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे
यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे
कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे
दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे
तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे
चल दिये हैं सफ़र में…
Added by sanju shabdita on August 24, 2013 at 5:00pm — 25 Comments
सांवरी सुन सांवरी
आई मधुर मधुश्रावणी
नभ मीत हृद पर दामिनी
नव ताल से इठला रही
या दिगंबर को उमा
अपनी झलक दिखला रही
सुन सौरभे, हर-गौर,…
Added by राजेश 'मृदु' on August 12, 2013 at 4:00pm — 19 Comments
पावस के कुछ दोहे-
तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.
मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन…
Added by राजेश शर्मा on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
तुम्हें रोने की आज़ादी
तुम्हें मिल जाएंगे कंधे
तुम्हें घुट-घुट के जीने का
मुद्दत से तजुर्बा है
तुम्हें खामोश रहकर
बात करना अच्छा आता है
गमों का बोझ आ जाए तो
तुम गाते-गुनगुनाते हो
तुम्हारे गीत सुनकर वो
हिलाते सिर देते दाद...
इन्ही आदत के चलते ये
ज़माना बस तुम्हारा है
कि तुम जी लोगे इसी तरह
ऎसे बेदर्द मौसम में
ऎसे बेशर्म लोगों में.....
इसी तरह की मिट्टी से
बने लोगों की खासखास…
Added by anwar suhail on August 1, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए
रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए
प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए
मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो…
Added by Rana Pratap Singh on August 1, 2013 at 9:23pm — 36 Comments
इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…
ContinueAdded by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments
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