मोबाइल पर मेल का नोटिफिकेशन देख मोहन की आँखें चमक उठीं।शायद पायल का मेल हो।जल्दी से मेल खोला..हाँ ,ठीक 17 दिन बाद पायल का मेल था।अक्सर मेल नोटिफिकेशन देख खिल जाता है मोहन लेकिन अक्सर मायूसी ही हाथ लगती।खैर देखूं तो सही क्या लिखा है...अपने चश्मे को ठीक करता हुआ मोहन मेल पढ़ने लगा।"56 को हो गईं हूँ मैं और आप भी 60-65 तो होंगे ही,अब तो बता दो क्या मायने रखती हूँ मैं?और क्यों?" पिछले 40 सालों से ये सवाल कई बार पूछा था पायल ने लेकिन "कुछ सवालों को लाजबाब रहने दो" कह कर हर बार टाल गया मोहन।पर…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 22, 2018 at 5:30pm — 20 Comments
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
हूँ बहुत हैरान पिछले कुछ दिनों से
ज़ीस्त है हलकान पिछले कुछ दिनों से
चाँद भी है आजकल कुछ खोया खोया
रातें हैं वीरान पिछले कुछ दिनों से
आदमी हूँ आदमी के काम आऊँ
है यही अरमान पिछले कुछ दिनों से
कौड़ियों के भाव बिकती हैं अनाएं
मर गया ईमान पिछले कुछ दिनों से
जोश में है भीड़ 'ब्रज' आक्रोश भी है
बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 12, 2018 at 5:00pm — 13 Comments
धीरे धीरे आओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
होंठों पर मुस्कान सजाये
सोया है मृग छौना
आहट से तेरी टूटेगा
उसका ख्वाब सलोना
बात समझ भी जाओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
तुम चलते हो पीछे पीछे
चलते हैं सब तारे
और तुम्हारी सुंदरता पर
इठलाते हैं सारे
तुम तो मत इतराओ चन्दा
धीरे धीरे आओ
ऐसे भी कुछ घर आँगन हैं
बसते जहाँ अँधेरे
भूख वहाँ करताल बजाये
संध्या और सबेरे
उस दर भी मुस्काओ चन्दा
धीरे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 8, 2018 at 6:30pm — 18 Comments
2122 2122 2122 212
दर्द दिल के आशियाँ में इस क़दर पाले गये
आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये
रोटियों से भूख की इतनी अदावत बढ़ गई
पेट में सूखे निवाले ठूंस के डाले गये
इस क़दर उलझे हुये हैं आलम-ए-तन्हाई में
मकड़ियां यादों की चल दी भाव के जाले गये
मुफ़लिसी की आँधियाँ थीं याद के थे खंडहर
नीव भी कमजोर थी सो टूट सब आले गये
ख़्वाब की आँखों से 'ब्रज' घटती नहीं हैं दूरियां
बात दीगर है सभी पलकों तले पाले गये…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 30, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
122 122 122 122
गम-ए-दिल उठाऊँ,अज़ीमत नहीं है
मगर बच निकलने की सूरत नहीं है
सुनो बख़्श दो मुझको वादों वफ़ा से
यहाँ अब किसी की जरुरत नहीं है
परेशां रहा हूँ मैं अहल-ए-सितम से
तुम्हारी भी क़ुर्बत की नीयत नहीं है
ओ महताब तू है तो ग़ज़लें हैं रौशन
वगरना सुख़नवर की अज़्मत नहीं है
सरेआम 'ब्रज' की ग़ज़ल गुनगुनाना
ये है और क्या गर मुहब्बत नहीं है
अज़ीमत-इरादा
अहल-ए-सितम-तानाशाह…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:30pm — 20 Comments
121 22 121 22 121 22 121 22
कभी जरा सा मैं मुस्कुरा लूँ कभी तो दिल को करार आये
कभी तो भूले से इस चमन में उतर के फ़स्ल-ए-बहार आये
कि इससे पहले ये साँस टूटे सफ़ीना डूबे ये ज़िन्दगी का
चले भी आओ सनम कहीं से कहाँ कहाँ हम पुकार आये
बड़ी अदा से नजर झुकाये वो पूछते हैं कहाँ थे अब तक
सुनाये कैसे वो आपबीती वो ज़िन्दगी जो गुजार आये
हजार लम्हे हजार बातें जिन्हें तड़पता ही छोड़ आया
वो शाम वो गेसुओं के साये वो याद फिर बेशुमार…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 26, 2018 at 10:00am — 24 Comments
विश्व कविता दिवस पर महाभारत युद्धकाल में भगवान के वचनों को अपने शब्दों में पिरोने की कोशिश
रे रे पार्थ ये क्या करते हो?
धनु धरा पर क्यों धरते हो?
ओ शूरवीर मत हो अधीर
नैनों में क्यों भरते हो नीर
जीवन तो आना जाना है
चिरकाल किसे रह जाना है
मन में यूँ न मोह धरो
गांडीव उठाओ कर्म करो
मृत्यु बंन्धन से मुक्ति है
किस बात की आसक्ति है
धर्म विमुख हो पाप न कर
रक्षा कर संताप न कर
हे धनंजय हे महारथी
मत भूलो 'मैं' तेरा…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 4:30pm — 12 Comments
22 22 22 2
खन खन करता कंगन है
साँसों में भी कम्पन है
मैं पत्थर हूँ राहों का
तू खुश्बू है चन्दन है
आहट है किन कदमों की
उर में कैसा स्पंदन है
आँखों ने क्या कह डाला
आकुल ये मन वंदन है
मन मन्दिर में आ जाओ
स्वागत है अभिनन्दन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 17, 2018 at 8:30am — 20 Comments
पता नहीं उस मिटटी के बड़े से आले में क्या तलाश रहा था थका मायूस आठ बर्षीय मोहन?कुछ गंदे फटे पुराने कपड़े और नाना की टूटी पनय्यियों के सिवा कुछ भी तो नहीं था उस आले में।अचानक उसके उदास चेहरे पे एक तेज चमक उभरी..कुछ मिला था उसे..लेकिन ये वो चीज नहीं है जिसे वो मासूम तलाश रहा था ।परंतु शायद उससे भी ज्यादा जरुरी था वो धूल मिटटी से सना हुआ रोटी का टुकड़ा।लगता है किसी चूहे ने यहाँ छोड़ा होगा।चोर निगाहों से उसने दांये बांये देखा..नहीं कोई नहीं देख रहा है..अगले ही पल वो रोटी का टुकड़ा उसकी निकर की जेब…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 12, 2018 at 10:30am — 10 Comments
1222 1222 1222 1222
अभी ये आँखें बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है
न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है
सितारो क्यों परेशां हो अगर है चाँद पोशीदा
तुम्हारी जाँ-फ़िशानी से उदासी हर सू तारी है
चरागों सा जले फिर भी अँधेरा कम नहीं होता
धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है
ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम
कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है
गुजारी ज़िन्दगी कैसे बताएं किस तरह अय…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2018 at 11:30pm — 12 Comments
22 22 22 22 22 22 2
जब भी तेरी यादें जानां कम हो जाती हैं
मेरी आँखें और जियादा नम हो जाती हैं
दर्द संभालूँ आहें रोकूँ दिल को समझाऊँ
अश्क़ों की बरसातें बेमौसम हो जाती हैं
राह तुम्हारी तकते तकते आँखें पथराईं
साँसें भी चलते चलते मद्धम हो जाती हैं
रफ़्ता रफ़्ता रात चली और सवेरा आया
फिर ये होता है सोचें बरहम हो जाती हैं
उस दर पे दम तोड़ गई हर एक सदा मेरी
और सभी उम्मीदें 'ब्रज' बेदम हो जाती…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 8, 2018 at 7:30pm — 14 Comments
1222 1222 1222 1222
गुलाबों से किताबों तक समाईं धूल की परतें
जरा देखो तो अब माथे पे आईं धूल की परतें!!
ये किस आगोश ने सारे शहर को घेर के रक्खा
घना है कोहरा या फिर हैं छाईं धूल की परतें?
गया इक वक़्त वो आया न तो सन्देश ही आया
हमीं ने रिश्ते नातों पर चढ़ाईं धूल की परतें
गिला इस बात का उनसे करें भी तो करें कैसे
गमे दिल ने मेरे लब पर सजाईं धूल की परतें
बड़े ही फख्र से छोड़ी थीं अपने गाँव की गलियां
मगर 'ब्रज'…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 21, 2018 at 7:00pm — 23 Comments
मुतदारिक सालिम मुसम्मन बहर
212 212 212 212
आँख आँसू बहाती रही रात भर
दर्द का गीत गाती रही रात भर
आसमां के तले भाव जलते रहे
बेबसी खिलखिलाती रही रात भर
बाम पे चाँदनी थरथराने लगी
हर ख़ुशी चोट खाती रही रात भर
रूह के ज़ख्म भी आह भरने लगे
आरजू छटपटाती रही रात भर
प्यार की राह में लड़खड़ाये कदम
आशकी कसमसाती रही रात भर
आह भरते हुये राह तकते रहे
राह भी मुँह चिढ़ाती रही रात भर …
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 6, 2018 at 5:30pm — 31 Comments
1222 1222 1222 1222
हमें जब आज़माता है तुम्हारी याद का मौसम
सुकूँ भी साथ लाता है तुम्हारी याद का मौसम
ग़मों ने कोशिशें तो लाख कीं पलकें भिंगोने की
लबों पर मुस्कुराता है तुम्हारी याद का मौसम
हमारे रूबरू ठहरो कभी पल भर तो समझाएं
हमें कितना सताता है तुम्हारी याद का मौसम
इसे मैं छोड़ आता हूँ कहीं सुनसान सहरा में
मगर फिर लौट आता है तुम्हारी याद का मौसम
वहाँ तुम हो तुम्हारी पुरकशिश कमसिन अदाएं हैं
यहाँ 'ब्रज'…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2017 at 11:00pm — 26 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 14, 2017 at 6:30pm — 23 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2017 at 6:00pm — 28 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 30, 2017 at 8:39pm — 7 Comments
सभी पंक्तियों का मात्रा भार
2122 2122 2122 212 के क्रम में
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
वेदना में याचना के
शब्द गीले हो गए
यातना के काफिलों से
पथ सजीले हो गए
आँसुओं की बेबसी में
दर्द की मनुहार पर
गीत क्रंदन कर उठे हैं
भावना के द्वार पर
आदमी में आदमी सा
क्या बचा है सोचिये?
पीर क्या है मुफलिसों की?
ये कभी तो पूछिये
हो रही फाकाकशी हर
तीज पर त्यौहार पर
गीत क्रंदन कर उठे…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 19, 2017 at 1:00pm — 16 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 8, 2017 at 7:00pm — 18 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 29, 2017 at 5:30pm — 7 Comments
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