करे वोट से चोट जो हैं लुटेरे, खरे मानकों पे चुनें आप नेता
खड़ा सामने भ्रात हो या भतीजा, भले जो लगे आपको वो चहेता
नहीं वोट देना उसे ज़िन्दगी में, कभी आपको जो नहीं मान देता
सदा जो करे पूर्ण निःस्वार्थ सेवा, उसे ही यहाँ पे बनाएँ विजेता।1।
कहीं जाति की है लड़ाई बड़ी तो, कहीं सिर्फ है धर्म का बोलबाला
इसे मुल्क में भूल जाएं सभी तो, चुनावी लड़ाई बने यज्ञशाला
अकर्मी विधर्मी तथा भ्रष्ट जो है, वही देश का है निकाले दिवाला
चुनें वोट दे के उसी आदमी को, दिखे जो प्रतापी…
Added by नाथ सोनांचली on May 4, 2019 at 9:41pm — 7 Comments
खड़ा आपके सामने हाथ जोड़े, लिए स्नेह आशीष की कामना को
करूँ शिल्पकारी सदा छंद की मैं, न छोड़ूँ नवाचार की साधना को
लिखूँ फूल को भी लिखूँ शूल को भी, लिखूँ पूर्ण निष्पक्ष हो भावना को
कभी भूल से भी नहीं राह भूलूँ, लिखूँ मैं सदा राष्ट्र की वेदना को
शिल्प -यगण ×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on May 1, 2019 at 6:38pm — 6 Comments
धरें वेशभूषा तपस्वी सरीखा, जियें किन्तु जो ऐश की जिंदगानी
सने हाथ हैं खून से भी उन्हीं के, सदा बोलते जो यहाँ छद्म बानी
पता ही नहीं मूल क्या ज़िन्दगी का, लगे एक सा जिन्हें आग पानी
उन्हें आप यूँ ही मनस्वी न बोलो, जुबाँ से भले वे लगें आत्म ज्ञानी।।
शिल्प -यगण ×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on April 28, 2019 at 2:36pm — 6 Comments
नहीं वक़्त है ज़िन्दगी में किसी की, सदा भागते ही कटे जिन्दगानी
कभी डाल पे तो कभी आसमां में, परिंदों सरीखी सभी की कहानी
ख़ुशी से भरे चंद लम्हे मिले तो, गमों की मिले बाद में राजधानी
सदा चैन की खोज में नाथ बीते, किसी का बुढ़ापा किसी की जवानी।।
शिल्प-लघु-गुरु-गुरु (यगण)×8
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by नाथ सोनांचली on April 25, 2019 at 6:47am — 8 Comments
अरकान-1222 1222 122
किनारा हूँ तेरा तू इक नदी है
बसी तुझ में ही मेरी ज़िंदगी है।।
हमारे गाँव की यह बानगी है
पड़ोसी मुर्तुज़ा का राम जी है।।
ख़यालों का अजब है हाल यारो
गमों के साथ ही रहती ख़ुशी है।।
घटा गम की डराए तो न डरना
अँधेरे में ही दिखती चाँदनी है।।
मुकम्मल कौन है दुनिया में यारो
यहाँ हर शख़्स में कोई कमी है।।
बनाता है महल वो दूसरों का
मगर खुद की टपकती झोपड़ी…
Added by नाथ सोनांचली on February 4, 2019 at 7:00am — 9 Comments
( १४ मात्राओं का सम मात्रिक छंद सात-सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)
कर जोड़ के, है याचना, मेरी सुनो, प्रभु प्रार्थना।
बल बुद्धि औ, सदज्ञान दो, परहित जियूँ, वरदान दो।।
निज पाँव पे, होऊं खड़ा, संकल्प लूँ, कुछ तो बड़ा।
मुझ से सदा, कल्याण हो, हर कर्म से, पर त्राण हो।।
अविवेक को, मैं त्याग दूँ, शुचि सत्य का, मैं राग दूँ।
किंचित न हो, डर काल का, विपदा भरे, जंजाल का।।
लेकर सदा, तव नाम को, करता रहूँ, शुभ…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 30, 2019 at 11:01am — 4 Comments
(14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद, सात सात मात्राओं पर यति, चरणान्त में रगण अर्थात गुरु लघु गुरु)
जागो उठो, हे लाल तुम, बनके सदा, विकराल तुम ।
जो सोच लो, उसको करो, होगे सफल, धीरज धरो।।
भारत तुम्हें, प्यारा लगे, जाँ से अधिक, न्यारा लगे।
मन में रखो, बस हर्ष को, निज देश के, उत्कर्ष को।।
इस देश के, तुम वीर हो, पथ पे डटो, तुम धीर हो।
चिन्ता न हो, निज प्राण का, हर कर्म हो, कल्याण का।।
हो सिंह के, शावक तुम्हीं, भय हो तुम्हें,…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 16, 2019 at 6:00am — 8 Comments
कर जोड़ प्रभो विनती अपनी, तुम ध्यान रखो हम दीनन का।
हम बालक बृंद अबोध अभी, कुछ ज्ञान नहीं जड़ चेतन का
चहुओर निशा तम की दिखती, मुख ह्रास हुआ सच वाचन का
अब नाथ बसों हिय में सबके, प्रभु लाभ मिले तव दर्शन का ।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by नाथ सोनांचली on January 6, 2019 at 1:06pm — 2 Comments
उस देश धरा पर जन्म लिया, मकरंद सुप्रीति जहाँ छलके।
वन पेड़ पहाड़ व फूल कली, हर वक़्त जहाँ चमके दमके।
वसुधा यह एक कुटुम्ब, जहाँ, सबके मन भाव यही झलके
सतरंग भरा नभ है जिसका, उड़ते खग खूब जहाँ खुलके।।1।।
अरि से न कभी हम हैं डरते, डरते जयचंद विभीषण से।
मुख से हम जो कहते करते, डिगते न कभी अपने प्रण से
गर लाल विलोचन को कर दें, तब दुश्मन भाग पड़े रण से
यदि आँख तरेर दिया अरि ने, हम नष्ट करें उनको गण से।।2।।
हम काल बनें विकराल बनें, निकलें जब…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 6, 2019 at 1:03pm — 6 Comments
नवीन वर्ष को लिए, नया प्रभात आ गया
प्रभा सुनीति की दिखी, विराट हर्ष छा गया
विचार रूढ़ त्याग के, जगी नवीन चेतना
प्रसार सौख्य का करो, रहे कहीं न वेदना।।1।।
मिटे कि अंधकार ये, मशाल प्यार की जले
न क्लेश हो न द्वेष हो, हरेक से मिलो गले
प्रबुद्ध-बुद्ध हों सभी, न हो सुषुप्त भावना
हँसी खुशी रहें सदा, यही 'सुरेन्द्र' कामना।।2।।
न लक्ष्य न्यून हो कभी, सही दिशा प्रमाण हो
न पाँव सत्य से डिगें, अधोमुखी न प्राण हो
विवेकशीलता लिए,…
Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 8:30pm — 8 Comments
कल घटना जो भी घटी, नभ थल जल में यार
उसे शब्द में बाँधकर, लाता है अखबार
लाता है अखबार, बहुत कुछ नया पुराना
अर्थ धर्म साहित्य, ज्ञान का बड़ा खजाना
पढ़के जिसे समाज, सजग रहता है हरपल
सबका है विश्वास, आज भी जैसे था कल।1।
जैसा कल था देश यह, वैसा ही कुछ आज
बदल रही तारीख पर, बदला नहीं समाज
बदला नहीं समाज, सुता को कहे अभागिन
लूटा गया हिज़ाब, कहीं जल गई सुहागिन
कचरे में नवजात, आह! जग निष्ठुर कैसा
समाचार सब आज, दिखे है कल ही…
Added by नाथ सोनांचली on November 11, 2018 at 5:00pm — 6 Comments
बात लिखूँ मैं नई पुरानी, थोड़ी कड़वी यार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
झेल रहा है बचपन देखो,
बस्तों का अभिशाप
सदा प्रथम की हसरत पाले,
दिखते हैं माँ बाप।।
पढ़ो रात दिन नम्बर पाओ, कहना छोड़ो यार
सही गलत क्या आप परखना, विनती बारम्बार।।
गुंडे और मवाली के सिर,
सजे आजकल ताज
पढ़े लिखे हैं झोला ढोते,
पर है मौन समाज।।
सबको चिंता एक यहाँ बस, हो स्वजाति सरकार
सही गलत क्या आप परखना, विनती…
Added by नाथ सोनांचली on September 25, 2018 at 7:30pm — 13 Comments
कच्चे धागों से जुड़ा, रक्षाबंधन पर्व
बहना बाँधे डोर जब, भैया करता गर्व
भैया करता गर्व, नेग बहना को देकर
प्रण जीवन रक्षार्थ, वचन खुश बहना लेकर
रेशम बाँधे प्रीत, सनातन रिश्ते सच्चे
बाँटे खुशी अपार, भले हैं धागे कच्चे।1।
सावन में बदरा घिरे, बहने लगी बयार
प्यार बाँटने आ गया, राखी का त्योहार
राखी का त्योहार, सजीं चहुओर दुकानें
ट्रांजिस्टर पर खूब, बजें राखी के गाने
जात धर्म से दूर, भाव है कितना पावन
बँधे स्नेह की डोर, मास आये…
Added by नाथ सोनांचली on August 26, 2018 at 1:00pm — 19 Comments
कहीं बनाते हैं सड़क, कहीं तोड़ते शैल
करते श्रम वे रात दिन, बन कोल्हू के बैल।1।
नाले देते गन्ध हैं, उसमें इनकी पैठ
हवा प्रवेश न कर सके, पर ये जाएँ बैठ।2।
काम असम्भव बोलना, सम्भव नहीं जनाब
पलक झपकते शैल को, दें मुट्ठी में दाब।3।
चना चबेना साथ ले, थोड़ा और पिसान
निकलें वे परदेश को, पाले कुछ अरमान।4।
सुबह निकलते काम पर, घर से कोसों दूर
भूमि शयन हो शाम को, होकर श्रम से चूर।5।
ईंट जोड़…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on May 7, 2018 at 5:30pm — 24 Comments
"अरे रमेश ये कैसे हुआ? और बेटे की हालत कैसी है? मुझे तो जैसे ही खबर लगी,भागा-भागा चला आ रहा हूँ" आई सी यू के बाहर खड़े रमेश से रतन ने पूछा।
रतन को देखते ही रमेश रो पड़ा। फिर अपने को संभालते हुए बोला-"क्या बताऊँ तुम्हें, मेरे घर के पास जो हाई वोल्टेज तार का खम्बा लगा हुआ था, वही कल अचानक गिर गया। और फिर ये…."
बोलते-बोलते वह फफक पड़ा।
रतन ढाँढस देते हुए बोला- "मित्र हिम्मत न हारो। सब कुछ ठीक हो जाएगा। .....डॉक्टर्स क्या कह रहे…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on March 27, 2018 at 7:44am — 16 Comments
देख दुर्दशा यार वतन की, गीत रुदन के गाता हूँ
कलम चलाकर कागज पर मैं, अंगारे बरसाता हूँ
कवि मंचीय नहीं मैं यारों, नहीं सुरों का ज्ञाता हूँ
पर जब दिल में उमड़े पीड़ा, रोक न उसको पाता हूँ
काव्य व्यंजना मै ना जानूँ, गवई अपनी भाषा है
सदा सत्य ही बात लिखूँ मैं, इतनी ही अभिलाषा है
आजादी जो हमे मिली है, वह इक जिम्मेदारी है
कलम सहारे उसे निभाऊं, ऐसी सोच हमारी है
काल प्रबल की घोर गर्जना, लो फिर मैं ठुकराता हूँ
देख…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 11, 2018 at 6:18am — 9 Comments
अरकान-1212 1122 1212 22
तुम्हारे ख़त जो मेरे नाम पर नहीं आते
तो दुश्मनों के भी चहरे नज़र नहीं आते
सतर्क आप रहें हर घड़ी निगाहों से
लुटेरे दिल के कभी पूछ कर नहीं आते
भला भी वक़्त तुम्हारे लिये बुरा होगा
सलीक़े जीने के तुमको अगर नहीं आते
बदल दिए हैं हमीं ने मिजाज मौसम के
भिगोने अब्र हमें बाम पर नहीं आते
हमेशा पीछे भी क्या देखना जमाने में
समय जो बीत गए लौट कर नहीं…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:51pm — 8 Comments
कभी पेट पर लेकर अपने, हमें सुलाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
छाया देते घने पेड़ सी, लड़ते वो तूफानों से
हो निष्कंटक राह हमारी, उनके ही बलिदानों से
विपरीत रहें हालात मगर, कभी नहीं घबराते हैं
ओढ़ हौसलों की चादर को, हँसते और हसाते हैं
हँसकर तूफानों से लड़ना, हमें सिखाते पापा जी
कभी बिठा काँधे पर हमको, खूब घुमाते पापा जी
बोझ लिए सारे घर का वो, दिन भर दौड़ लगाते हैं
हम सबके सपनो की…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 6:16pm — 14 Comments
साजन मेरे मुझे बताओ, कैसे दीप जलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
इंतिजार में तेरे साजन, लगा एक युग बीता
हाल हमारा वैसा समझो, जैसे विरहन सीता
सूनी सेज चिढ़ाए मुझको, अखियन अश्रु बहाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज सजाऊँ
वे सुवासित मिलन की घड़ियाँ, लगता साजन भूले
बौर धरे हैं अमवा महुआ, सरसो भी सब फूले
सौतन सी कोयलिया कूके, किसको यह बतलाऊँ
घर आँगन है सूना मेरा, किस विधि सेज…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on February 3, 2018 at 11:30am — 20 Comments
जगण+रगण+जगण+रगण+जगण+गुरु
करे विचार आज क्यों समाज खण्ड खण्ड है
प्रदेश वेश धर्म जाति वर्ण क्यों प्रचण्ड है
दिखे न एकता कहीं सभी यहाँ कटे हुए
अबोध बाल वृद्ध या जवान हैं बटे हुए
अपूर्ण है स्वतन्त्रता सभी अपूर्ण ख़्वाब हैं
जिन्हें न लाज शर्म है वहीं बने नवाब हैं
अधर्म द्वेष की अपार त्योरियाँ चढ़ी यहाँ
कुकर्म और पाप बीच यारियां बढ़ी यहाँ
गरीब जोर जुल्म की वितान रात ठेलता
विषाद में पड़ा हुआ अनन्त दुःख…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 29, 2018 at 2:10pm — 5 Comments
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