आदरणीय सम्पादक जी,
सादर नमस्कार.
OBO हेतु मेरी स्वरचित,अप्रकाशित,अप्रसारित एक ताज़ा रचना आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ.कृपया निर्णय से अवगत करावें.
भवदीय--
-- अशोक पुनमिया.
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आहट है किसी की,
कोई दस्तक दे रहा है…
ContinueAdded by अशोक पुनमिया on June 16, 2011 at 5:29pm — 6 Comments
Added by Prabha Khanna on June 20, 2011 at 9:00am — 9 Comments
(१) यमुना साहित्य… |
Added by Admin on June 19, 2011 at 10:00am — 53 Comments
नवगीत:-
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
टेसू तुम क्यों लाल हुए?
फर्क न कोई तुमको पड़ता
चाहे कोई तुम्हें छुए.....
*
आह कुटी की तुम्हें लगी क्या?
उजड़े दीन-गरीब.
मीरां को विष, ईसा को
इंसान चढ़ाये सलीब.
आदम का आदम ही है क्यों
रहा बिगाड़ नसीब?
नहीं किसी को रोटी
कोई खाए मालपुए...
*
खून बहाया सुर-असुरों ने.
ओबामा-ओसामा ने.
रिश्ते-नातों चचा-भतीजों…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:00pm — 4 Comments
नवगीत/दोहा गीत:
पलाश...
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बाधा-संकट हँसकर झेलो
मत हो कभी हताश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
समझौते करिए नहीं,
तजें नहीं सिद्धांत.
सब उसके सेवक सखे!
जो है सबका कांत..
परिवर्तन ही ज़िंदगी,
मत हो जड़-उद्भ्रांत.
आपद संकट में रहो-
सदा संतुलित-शांत..
शिवा चेतना रहित बने शिव
केवल जड़-शव लाश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on June 15, 2011 at 1:23pm — 2 Comments
- 80 बरस बाद दोहराई गई परंपरा
- केरा गांव के लोगों का अनूठा कार्य
- तालाबों के अस्तित्व को बचाने की मुहिम
- जल संरक्षण की दिशा में ग्रामीणों का अहम योगदान
- ‘जल ही जीवन है’, ‘जल है तो कल है’ का संदेश
भारतीय संस्कृति में संस्कार का अपना एक अलग ही स्थान है। सोलह संस्कारों में से एक होता है, विवाह संस्कार। देश-दुनिया में चाहे कोई भी वर्ग या समाज हो, हर किसी के अपने विवाह के तरीके होते हैं। मानव जीवन में वंश वृद्धि के लिए भी विवाह का महत्व सदियों से कायम…
Added by rajkumar sahu on June 15, 2011 at 1:52am — 1 Comment
Added by satish mapatpuri on June 13, 2011 at 2:00am — 9 Comments
Added by rajkumar sahu on June 9, 2011 at 2:51pm — 1 Comment
Added by Ravi Prabhakar on January 2, 2011 at 4:35pm — 8 Comments
भ्रष्टाचार के विरोध में हम भी खड़े हैं इस छोटी सी कविता के साथ
विरोध कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
कि कायम रहे
अणुओं का कंपन
अणुओं का कंपन कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
विद्रोह का तापमान
वरना ठंढा होते होते
हर पदार्थ
अंततः विरोध करना बंद कर देता है
और बन जाता है अतिचालक
उसके बाद
मनमर्जी से बहती है बिजली
बिना कोई नुकसान झेले
अनंत काल तक
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 5, 2011 at 10:19pm — 4 Comments
Added by Saurabh Pandey on June 6, 2011 at 1:20am — 6 Comments
मंज़र खींचातानी का
अनशन है बाबा जी का
राहुल बाबा गायब हैं
लगता सब फीका फीका
गायब है चालीस खरब
सवा अरब की कंट्री का
काला धन आये वापस
मुंह काला हो दोषी का
दस मारो और एक गिनो
नशा हिरन हो लोभी का
Added by वीनस केसरी on June 4, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
ओबीओ पर आप दोस्तों ने मेरा कलाम पढ़कर हमेशा मेरी हौसला-अफ़्ज़ाई की है । आप क़द्रदानों के लिये मैं अपनी ताज़ा ग़ज़ल को, जोकि "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ में शामिल हुई थी, अपनी ख़ुद की आवाज़ में पेश कर रहा हूं । इसे सुनने के लिये नीचे दिये बॉक्स के प्ले बटन को क्लिक करें :…
Added by moin shamsi on June 1, 2011 at 2:30pm — 14 Comments
आदरणीय साथियों,
आप सभी का ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के प्रति समर्पण और विश्वास अब मिडिया की नज़रों में भी आने लगा है, लखनऊ से प्रकाशित प्रसिद्ध हिंदी समाचार पत्र जन सन्देश टाइम्स ने ओ बी ओ के बारे में एक बड़ा सा Article छापा है | आप सभी को बधाई |…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 1, 2011 at 12:00am — 20 Comments
निम्नांकित पद्यों में घनाक्षरी छंद है, ‘कवित्त’ और ‘मनहरण’ भी इसी छन्द के अन्य नाम हैं। इसमें चार पंक्तियाँ होती है और प्रत्येक पंक्ति में ३१, ३१ वर्ण होते हैं। क्रमशः ८, ८, ८, ७ पर यति और विराम का विधान है, परन्तु सिद्धहस्त कतिपय कवि प्रवाह की परिपक्वता के कारण यति-नियम की परवाह नहीं भी करते हैं। यह छन्द यों तो सभी रसों के लिए उपयुक्त है, परन्तु वीर और शृंगार रस का परिपाक उसमें पूर्णतया होता है। इसीलिए हिन्दी साहित्य के इतिहास के चारों कालों में इसका बोलबाला रहा है। मैं इस छन्द को छन्दों का…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on May 31, 2011 at 8:19am — 9 Comments
(1)
(भ्रूण हत्या)
जैसे बेटा पैदा होना, इक वरदान कहा,
घर में न बेटी होना, एक बड़ा श्राप है !
होती न जो बेटियां तो, होते कैसे बेटे भला
इन्ही की वजह से तो, शिवा है - प्रताप है !
पैदा ही न होने देना, कोख में ही मार देना,
हर मज़हब में ये, घोर महापाप है !
महामृत्युंजय सम, वंश के लिए जो बेटा,
उसी तरह कन्या भी, गायत्री का जाप है…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on May 30, 2011 at 9:20pm — 20 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 25, 2011 at 5:00pm — 83 Comments
अहबाब ऐतबार के काबिल नहीं रहे
ये कैसे सर हैं ..! दार के काबिल नहीं रहे
जज़्बात इफ्तेखार के काबिल नहीं रहे
अब नवजवान प्यार के काबिल नहीं रहे
हम बेरुखी का बोझ उठाने से रह गए
कंधे अब ऐसे बार के काबिल नहीं रहे
ज़ागो ज़गन तो खैर, तनफ्फुर के थे शिकार
बुलबुल भी लालाज़ार के काबिल नहीं रहे
पस्पाइयौं के दौर में यलगार क्या करें
कमज़ोर लोग वार के काबिल नहीं रहे
कांटे पिरो के लाये हैं अहबाब किस लिए
क्या हम गुलों के हार…
Added by Azeez Belgaumi on May 25, 2011 at 12:15am — 7 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 23, 2011 at 10:50pm — 3 Comments
दिल की बात आँखों से बताना अच्छा लगता है.
झूठा ही सही पर आपका बहाना अच्छा लगता है.
छू जाती है धडकनों को मुस्कराहट आपकी,
फिर शरमा के नज़रे झुकाना अच्छा लगता है.
मुरझे फूलों में ताजगी आती है आपको देखकर,
आप संग हो तो मौसम सुहाना अच्छा लगता है.
बिन बरसात के ही अम्बर में घिर आते है बादल,
आपकी सुरमई जुल्फों का लहराना अच्छा लगता है.
जंग तन्हाई के संग हम लड़ते है रात-दिन,
देर से ही सही पर आपका आना अच्छा…
ContinueAdded by Noorain Ansari on May 24, 2011 at 1:00pm — 3 Comments
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