अपने अधरों से ....
अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना
अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना
श्वास सुरों में स्पंदन तुम्हारा
स्मृति भाल पे चंदन तुम्हारा
प्रेम पंथ की मन कन्दरा में
कोई विरह प्रथा न लिख जाना
अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना
अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना
संचित पलों की मृदुल अनुभूति
अभी रक्ताभ अधरों पर जीवित है
तुम नीर भरे नयनों के भाग्य…
Added by Sushil Sarna on July 23, 2015 at 5:23pm — 4 Comments
चाँद मेरा आया है....
क्यों अपने रूप पे
ऐ चाँद तूं इतराया है
आसमां के चाँद सुन
मेरे चाँद का तू साया है
अक्स पानी में तेरा तो
इक हसीँ छलावा है
अक्स नहीं हकीकत है वो
जो इन बाहों में समाया है
वो ख़्वाब है मेरी नींदों का
हकीकत में हमसाया है
अपने हाथों से ख़ुदा ने
महबूब को बनाया है
एक शबनम की तरह
वो हसीं अहसास है
देख उसके रूप ने
तेरे रूप को हराया है
किसकी ख़ातिर बेवज़ह
देख तू शरमाया है
मुझसे मिलने चांदनी…
Added by Sushil Sarna on July 12, 2015 at 10:43pm — 4 Comments
चेप्टर-२ - विविध दोहे
बिना समर्पण भाव के , प्रीत न सच्ची होय
छल करता जो प्रीत में , दुखी सदा वो होय
ढोंगी या संसार में, मिला न अपना कोय
वर्तमान की प्रीत में, बस धोखा ही होय
न्यून वस्त्र में आ गयी, वर्तमान की नार
लोक लाज बिसराय के, करें नैन तकरार
औछे करमन से भला, कैसे सदगति होय
जैसी संगत साथ हो, वैसी ही मति होय
पुष्प छुअन में शूल से, कैसे दर्द न होय
टूट के डारि से भला,…
Added by Sushil Sarna on July 9, 2015 at 3:30pm — 13 Comments
सिर्फ देखा है जी भर के …
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
ज़िंदगी भर हम ग़ुलामी करेंगे मगर
रुख़ से चिलमन ज़रा ये हटा दीजिये
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न इतनी सज़ा दीजिये
हम फ़कीरों का दर कोई होता नहीं
हर दर पे फ़कीर कभी सोता नहीं
अब खुदा आपको हम बना बैठे हैं
अब पनाह दीजिये या मिटा दीजिये
सिर्फ देखा है जी भर के हमने तुम्हें
इस ख़ता पे न…
Added by Sushil Sarna on July 7, 2015 at 4:15pm — 18 Comments
चेप्टर -1 - दोहे
निंदा को आतुर रहें, करें नहीं गुणगान
मैल हिया में देख के ,रूठ गए भगवान
मालिक कैसा हो गया , तेरा ये इंसान
बन्दे तेरे लूटता , बन कर वो भगवान
तेरा अजब संसार है,हर कोई बेहाल
हर मानव को यूँ लगे, जग जैसे जंजाल
संस्कार सब खो गए , बढ़ने लगी दरार
जनम जनम के प्यार का, टूट गया आधार
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 3, 2015 at 4:01pm — 22 Comments
संशोधित दोहे :
कर्म बिना मेवा नहीं, बिन मान नहीं शान
विधवा सी लगती सदा,सुर बिन जैसे तान
पैसा काम न आयेगा, जब आएगा काल
रह जाएगा सब यहीं , काहे करे मलाल
काया माया का भला , काहे करे गुमान
नश्वर ये संसार है , क्षण भर का अभिमान
ममता को बिसरा दिया ,भूल गया हर फ़र्ज़
चुका न पाया दूध का , जीवन में वो क़र्ज़
मानव दानव बन गया, किया खूब संहार
पाप कर्म से कर लिया, पापी ने…
Added by Sushil Sarna on June 24, 2015 at 4:30pm — 18 Comments
चेहरे की रेखाओं में …
जाने कैसी बेरहम हो तुम
सिसकने की वजह देकर
खामोशी से चली जाती हो
चेहरे की रेखाओं में
दर्द के रंग भर जाती हो
स्मृति के किसी कोने में कुछ दृश्य
मेरे अन्तःमन को विचलित कर जाते हैं
और मैं बेबस निरीह सा
अपने सर को झुकाये
काल्पनिक लोक के दृश्यों से
स्वयं को जोड़ने का
बेवजह प्रयत्न करता हूँ
जानता हूँ कि उन दृश्यों से
एकाकार असंभव है
फिर क्योँ तेरी प्रतीक्षा करूं
क्योँ तुझसे स्नेह करूं
ऐ नींद…
Added by Sushil Sarna on June 18, 2015 at 3:30pm — 6 Comments
1.
थोड़ा सा झूठा हूँ ....
थोड़ा सा झूठा हूँ थोड़ा सा सच्चा हूँ
थोड़ा सा बुरा हूँ थोड़ा सा अच्छा हूँ
भुला देना दिल से मेरी गल्तियों को
दिल से तो यारो मैं थोड़ा सा बच्चा हूँ
सुशील सरना
......................................................
2.
तेरे अल्फ़ाज़ों से....
तेरे अल्फ़ाज़ों से हसीन जज़्बात बयाँ होते हैं
तेरे ख़तूत में कुछ बीते लम्हात निहाँ होते हैं
हर शब तेरे जिस्म की बू से लबरेज़ होती है
हर ख़्वाब में बस तेरे…
Added by Sushil Sarna on June 13, 2015 at 1:30pm — 4 Comments
आओ न !
मेरे शब्दों को सांसें दे दो
हर क्षण तुम्हारी स्मृतियों में
मेरे स्नेहिल शब्द
तुम्हें सम्बोधित करने को
आकुल रहते हैं
गयी हो जबसे
मयंक भी उदासी का
पीला लिबास पहन
रजनी के आँगन में बैठ
तुम्हारे आने का इंतज़ार करता है
न जाने अपने प्यार के बिना
तुम कैसे जी लेती हो
यहाँ तो हर क्षण तुम्हारी आस है
तुम बिन हर सांस अंतिम सांस है
तुम नहीं जानती
तुम्हारी न आने की ज़िद क्या कहर ढायेगी
जिस्म रहेंगे मगर
जिस्मों से…
Added by Sushil Sarna on June 9, 2015 at 2:44pm — 16 Comments
लघु कथा - ऊंचाई
''पापा पापा जल्दी आओ, आफिस में देर हो रही है। ''
'' ओफ्फो ! एक मिनट तो रुको। ज़रा चप्पल तो पहन लूँ। द्वारका प्रसाद ने घर भीतर से आवाज़ दी। ''
''आ गया आ गया मेरे बेटे। ''
''इतनी देर कहाँ लगा दी पापा आपने। "
''वो बेटे पहले तो चप्पल नहीं मिली और मिले तो पहनते ही उसका स्टेप निकल गया बस इसी में थोड़ी देर हो गयी। द्वारका प्रसाद ने आँखों के चश्मे को ठीक करते हुए कहा। ''
''राहुल ने चमचमाती नयी गाड़ी का दरवाजा खोला और कहा चलो जल्दी बैठो। ''
वृद्ध…
Added by Sushil Sarna on June 6, 2015 at 4:00pm — 40 Comments
मुलाकात......
आजकल ग़मों में भी
बरसात कहाँ हो पाती है
सब से हो जाती है
पर खुद से बात कहाँ हो पाती है
फुर्सत ही नहीं इस तेज रफ्तार
जिन्दगी की राहों में
कि रुक कर
खुद से चंद लम्हे बात करें
कोई नहीं होता
जब रात के अँधेरे में
कैद से रिहा होते
अँधेरे से सवेरे में
बावजूद अकेला होने के
पलक कहाँ सो पाती है
दिल के निहाँखाने से
कहाँ ख़ुद की रिहाई हो पाती है
धीरे धीरे ज़िंदगी
कहीं गर्द में खो जाती है
बंद होते…
Added by Sushil Sarna on June 4, 2015 at 6:41pm — 10 Comments
गुलदस्ता - ........३ मुक्तक
हर लम्हा ....
जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस पास होता है
मेरी तन्हाई को साँसे देने वाले
हर लम्हा तेरा अहसास होता है
..............................................
तमाम सांसें .....
आपकी हर अदा को सलाम करते हैं
अपनी मुहब्बत .आपके नाम करते हैं
वजह बन गए हैं जो हमारे ख़्वाबों की
तमाम सांसें .हम उनके नाम करते…
Added by Sushil Sarna on May 25, 2015 at 1:30pm — 17 Comments
कितना सुहाना होगा ………..
अपने अपने दंभों को समेटे
हम इक दूसरे की तरफ
पीठ करके चल दिए
बिना इसका अनुमान लगाये कि
मुंह मोड़ के हम
उन स्नेहिल पलों का
अनजाने में क़त्ल कर रहे हैं
जो हमने
तारों की छाँव में
चांदनी की बाहों में
नशीली निगाहों में
इक दूसरे के कन्धों पर सिर रख कर
इक दूसरे की उँगलियों में उंगलियाँ डालकर
इक दूसरे के केशों से खेलते हुए
निशा में अपने अस्तित्व को
इक दूसरे में विलीन करके संजोये थे
और हाँ…
Added by Sushil Sarna on May 20, 2015 at 2:17pm — 9 Comments
न स्याम भई न श्वेत भयी …
न स्याम भई न श्वेत भयी
जब काया मिट के रेत भयी
लौ मिली जब ईश की लौ से
भौतिक आशा निस्तेज भयी
यूँ रंग बिरंगे सारे रिश्ते
जीवन में सौ बार मिले
मोल जीव ने तब समझा
जब सुख छाया निर्मूल भयी
सब थे साथी इस काया के
पर मन बृंदाबन सूना था
अंश मिला जब अपने अंश से
तब तृषा जीवन की तृप्त भयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 17, 2015 at 12:30pm — 16 Comments
प्यासी देह .....
मन की कंदराओं में किसने .......
अभिलाषाओं को स्वर दे डाले .......
किसकी सुधि ने रक्ताभ अधरों को ......
प्रणय कंपन के सुर दे डाले//
मधुर पलों का मुख मंडल पर ........
मधुर स्पंदन होने लगा .........
मधुर पलों के सुधीपाश में ........
मन चन्दन वन होने लगा//
नयन घटों के जल पर किसकी .......
स्मृति से हलचल होने लगी ........
भाव समर्पण का लेकर काया .......
मधु क्षणों में खोने लगी//
किसको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 15, 2015 at 9:53am — 26 Comments
आँखों में बेबस मोती है …
रात बहुत लम्बी है
ज़िंदगी बहुत छोटी है
पत्थरों के बिछोने पे
लोरियों की रोटी है
अब वास्ता ही नहीं
हाथों की लकीरों से
भूख बिलखती है पेट में
मुफलिसी साथ सोती है
आते ही मौसम चुनाव का
होठों पे हँसी होती है
राजनीति की जीत हमेशा
हम जैसों से ही होती है
हर चुनाव के भाषण में
नाम हमारा ही होता है
कुर्सी मिलते ही फिर से
फुटपाथ पे तकदीर होती है
संग होते हैं श्वान वही
वही भूखी रात…
Added by Sushil Sarna on May 4, 2015 at 4:00pm — 14 Comments
तन्हाईयों में लौट जाएगी......
किसको सदायें देते हो
कोई रूह को चुराये जाता है
यादों के खंज़र से
आज खामोशी का दामन
तार- तार हुआ जाता है
हवाओं में
साँसों की सरगोशियों का शोर है
आँखों की मुंडेरों पर
दर्द के मौसम आ बैठे है
धड़कनें ज़ंजीरों में कैद हैं
भला दिल की सदा
कौन सुन पायेगा
ये पत्थरों का शहर है
यहां दिल शीशे सा टूट जायेगा
हर मौसम का यहां
अलग मजाज़ है
हर मौसम अब यहां
चश्मे सावन में डूब जाएगा…
Added by Sushil Sarna on April 27, 2015 at 8:04pm — 14 Comments
चलो
लौट चलो
फिर उसी झील के किनारे
जहां आज तक
लहरों पे चाँद मुस्कुरता है
किनारों की कंकरियां
झील में सुप्त अहसासों को
जगाने के लिए आतुर हैं
वो शिला जिस पर बैठ कर
हमने दृग स्पर्शों से
मौनता का हरण किया था
आज एकान्तता में
उन्ही मधु पलों को जीने के लिए
कसमसा रहा है
हाँ और न के अंतर्द्वंद से
स्वयं को निकालो
प्रणय पलों के स्पंदन से
यूँ आँख न चुराओ
लौट आओ
हम अपने अस्तित्व को
अमर पहचान देंगे
अपने…
Added by Sushil Sarna on April 18, 2015 at 7:01pm — 8 Comments
जीवन का आधार प्रीत है ...........
जीवन का आधार प्रीत है
स्वप्न का श्रृंगार प्रीत है
जलते रहना दीप लौ पर
शलभ की निस्वार्थ प्रीत है
विरह में बरसात की बूंदें
सावन का रूठा संगीत है
लहरों पे वो छवि मयंक की
नयन बिम्ब की तरल प्रीत है
मधुर पलों का मौन समर्पण
अधरों पर अधरों की जीत है
भुजबंधन का तरुण स्पन्दन
आसक्त पलों की मधुर प्रीत है
आवारापन वो तिमिर-केश का
मधुप…
Added by Sushil Sarna on April 10, 2015 at 1:51pm — 8 Comments
दाग दार न करे ........
बहुत् हाय हाय मचेगी रे राम सुख ! तुम देखत रहो, इहाँ - बहुत मारामारी होवेगी। ई ससुरी कुर्सी की खातिर हमका न जाने कौन कौन से पहलवानी करनी पड़ेगी। सरकार,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on March 31, 2015 at 3:30pm — 8 Comments
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