(फाइलातुन -फाइलातुन -फाइलातुन - फाइलुन /फाइलात )
शाम होते ही सितम ढाए सदा तेरा ख़याल |
दिल से बाहर ही न निकले दिलरुबा तेरा ख़याल |
देखता हूँ जब भी मैं नाकाम दीवाना कोई
यक बयक आता है मुझको बे वफ़ा तेरा ख़याल |
उम्र भर कैसे निभेगा साथ मुश्किल है यही
है अलग मेरा तसव्वुर और जुदा तेरा ख़याल |
हो न हो तुझको यकीं लेकिन है सच्चाई यही
किस ने आख़िर है किया मेरे सिवा तेरा ख़याल |
ढोंग तू फिरक़ा परस्ती को…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on August 17, 2017 at 8:30pm — 10 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on August 4, 2017 at 8:13am — 12 Comments
ग़ज़ल(सुन तो ले दास्ताने बर्बादी )
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(फाइलातुन-मफ़ाइलुन-फेलुन )
सुन तो ले दास्ताने बर्बादी |
घर के बाहर खड़ा है फर्यादी |
लोग करते रहे विकास मगर
हम बढ़ाते रहे हैं आबादी |
पी रहा हूँ उन्हें भुलाने को
मैं नहीं हूँ शराब का आदी |
सिर्फ़ ग़म है यही जिसे चाहा
साथ उसके न हो सकी शादी |
क्या दुआ दें तुम्हें सिवा इसके
हो मुबारक ये खाना आबादी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 22, 2017 at 5:41pm — 12 Comments
(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फऊलन)
मेरे प्यार का शम्स ढलने से पहले |
कोई आ गया दम निकलने से पहले |
बहुत होगी रुसवाई यह सोच लेना
रहे इश्क़ में साथ चलने से पहले |
तेरे ही चमन के हैं यह फूल माली
कहाँ तू ने सोचा मसलने से पहले|
कहे सच हर इक आइना सोच लेना
बुढ़ापे में इसको बदलने से पहले |
ख़यालों में आ जाओ कटती नहीं शब
मिले चैन दिल को मचलने से पहले |
अज़ल से है उल्फ़त का दुश्मन ज़माना …
Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 16, 2017 at 12:30pm — 30 Comments
ग़ज़ल --ईद (ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो )
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(बह्र हिन्दी --मुत्क़ारिब ,मुसम्मन ,मुज़ायफ )
रस्म गले मिलने की निभा कर हाथ मिलाएंगे यारो |
ईद मुबारक बोल के फिर हम ईद मनाएंगे यारो |
ख़ुद ही निकल जाएगी पुरानी सारी कड़वाहट दिल की
आज सिवैयाँ घर पे तुम्हें हम इतनी खिलाएंगे यारो |
सदक़ा और फितरे से ही यह अपनी ईद मनाते हैं
ईद के इस अहसान को मुफ़लिस कैसेभुलाएंगे यारो…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on June 27, 2017 at 3:58pm — 14 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 19, 2017 at 9:18pm — 17 Comments
ग़ज़ल
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(फअल-फऊलन-फेलुन-फेलुन )
सिर्फ़ वो महफ़िल से निकला था |
कब वो मेरे दिल से निकला था |
दिलबर के दीदार का मंज़र
चश्म से मुश्किल से निकला था |
रास्ता मेरी मंज़िल का भी
उनकी ही मंज़िल से निकला था |
जिसने बचाया बद नज़रों से
वो जादू तिल से निकला था |
हरफे निदा जो बना अदावत
ज़ह्ने मुक़ाबिल से निकला था |
आ ही गया वो फिर मक़्तल में
बच के जो क़ातिल से निकला था…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 13, 2017 at 12:44pm — 16 Comments
ग़ज़ल
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(फऊलन-फऊलन -फऊलन -फऊलन )
लगी को बुझाने को जी चाहता है |
तुम्हें कब से पाने को जी चाहता है |
यक़ीनन बड़ी मुज़त् रिब है शबे ग़म
मगर मुस्कराने को जी चाहता है |
समुंदर से गहरी हैं आँखें तुम्हारी
यहीं डूब जाने को जी चाहता है |
तेरे नाम में भी बहुत है हलावत
इसे लब पे लाने को जी चाहता है |
तेरे अहदे माज़ी से वाक़िफ़ हैं फिर भी
नयी चोट खाने को जी चाहता है |
मुसलसल…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 4, 2017 at 9:59pm — 16 Comments
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2017 at 8:34pm — 18 Comments
ग़ज़ल
फ ऊलन -फ ऊलन- फ ऊलन- फ ऊलन
.
ये हसरत मुकम्मल कभी हो न पाई।
मिले वह मगर दोस्ती हो न पाई ।
मुलाक़ात का सिलसिला तो है जारी
मगर इब्तदा प्यार की हो न पाई ।
त अज्जुब है बदले हैं महबूब कितने
मगर काम रां आशिक़ी हो न पाई।
गए वह तसव्वुर से जब से निकल कर
खुदा की क़सम शायरी हो न पाई ।
करें नफ़रतें भूल कर सब मुहब्बत
अभी तक ये जादूगरी हो न पाई ।
मुसलसल वो करते रहे बे…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 26, 2017 at 7:30pm — 8 Comments
फाइलुन -फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन
वक़्ते तन्हाई मेरा गुज़र जाएगा |
तू अगर साथ शब भर ठहर जाएगा |
मुझको इज़ने तबस्सुम अगऱ मिल गई
तेरा मगरूर चेहरा उतर जाएगा |
मालो दौलत नहीं सिर्फ़ आमाल हैं
हश्र में जिनको लेकर बशर जाएगा |
उसके वादों पे कोई न करना यक़ी
वो सियासी बशर है मुकर जाएगा |
देखिए तो मिलाकर किसी से नज़र
खुद बखुद ही निकल दिल से डर जाएगा |
आप खंजर का एहसान लेते है…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 22, 2017 at 12:00pm — 13 Comments
ग़ज़ल (मुहब्बत ही निभाई दोस्तों )
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2122 -2122 -2122 -212
आँख उसने जब भी नफ़रत की दिखाई दोस्तों |
मैं ने बदले में मुहब्बत ही निभाई दोस्तों |
रुख़ तअस्सुब की हवा का भी अचानक मुड़ गया
जिस घड़ी शमए वफ़ा हम ने जलाई दोस्तों |
गम है यह इल्ज़ाम साबित हो नहीं पाया मगर
आज़माइश फिर भी क़िस्मत में है आई दोस्तों |
बन गया दुश्मन अमीरे शह्र मेरा इस लिए
हक़ की खातिर ही क़लम मैं ने…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2017 at 12:07pm — 15 Comments
ग़ज़ल (दोस्तों की महरबानी हो गई )
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फ़ाईलातुन--फ़ाईलातुन --फाइलुन
यूँ न उनको बदगुमानी हो गई |
दोस्तों की महरबानी हो गई |
भूल बचपन के गये वादे सभी
उनको हासिल क्या जवानी हो गई |
नुकताची को क्या दिखाया आइना
उसकी फ़ितरत पानी पानी हो गई |
यूँ नहीं डूबा है मुफ़लिस फ़िक्र में
उसकी बेटी भी सियानी हो गई |
अजनबी के साथ क्या कोई गया
ख़त्म उलफत की कहानी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 18, 2017 at 8:48pm — 6 Comments
ग़ज़ल
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(फऊलन -फऊलन -फऊलन -फअल )
क़ियामत की वो चाल चलते रहे |
निगाहें मिलाकर बदलते रहे |
दिखा कर गया इक झलक क्या कोई
मुसलसल ही हम आँख मलते रहे |
यही तो है गम प्यार के नाम पर
हमें ज़िंदगी भर वो छलते रहे |
मिली हार उलफत के आगे उन्हें
जो ज़हरे तअस्सुब उगलते रहे |
तअस्सुब की आँधी है हैरां न यूँ
वफ़ा के दिए सारे जलते रहे |
असर होगा उनपर यही सोच कर
निगाहों से आँसू…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 15, 2017 at 8:51pm — 16 Comments
(मफ़ाईलुन-मफ़ाईलुन-फऊलॅन)
हसीनों में मुहब्बत ढूंढता है |
ज़मीं पर कोई जन्नत ढूंढता है |
दगा फ़ितरत हसीनों की है लेकिन
कोई इन में मुरव्वत ढूंढता है |
समुंदर से भी गहरी हैं वो आँखें
जहाँ तू अपनी चाहत ढूंढता है |
मिलेगा तुझको असली लुत्फ़ गम में
फरह में क्यूँ लताफत ढूंढता है |
हैं काग़ज़ के मगर हैं खूबसूरत
तू जिन फूलों में नकहत ढूंढता है |
सियासी लोग होते हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 4, 2017 at 9:00pm — 10 Comments
ग़ज़ल
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(मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन)
किया है अपनों ने जब किनारा |
दिया है अग्यार ने सहारा |
करम हुआ दोस्तों का जब से
वफ़ा का गर्दिश में है सितारा |
अगर गिला है तो सिर्फ़ है यह
न दे सके साथ वो हमारा |
हुआ है दीदार जब से उनका
लगे न मंज़र कोई भी प्यारा |
हसीन रुख़ में ज़रूर कुछ है
जो देखे हो जाए वो तुम्हारा |
हो और मज़बूत अपनी यारी
कहाँ ज़माने को है गवारा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 4, 2017 at 9:42pm — 6 Comments
ग़ज़ल(दीप जला कर रखना)
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फाइलातुन -फइलातुन-फइलातुन-फेलुन
इसको दुनिया की नज़र बद से बचा कर रखना |
अपने दिल में ही मुहब्बत को छुपा कर रखना |
नीम शब आऊंगा मैं कैसे तुम्हारे घर पर
जाने मन बाम पे इक दीप जला कर रखना |
क्या खबर ख्वाब की ताबीर बदल जाए कब
मेरी तस्वीर को सीने से लगा कर रखना |
डर है बद ज़न कहीं अह्बाब न कर दें उनको
अपने जज़्बात को दिल में ही दबा कर रखना…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 6, 2017 at 10:50pm — 15 Comments
ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )
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(फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन)
क़ौले उलफत निभाना नये साल में |
मुझ को मत भूल जाना नये साल में |
क्यूँ हैं बाहर खड़े घर में आ जाइए
कीजिए मत बहाना नये साल में |
हाथ ही मिल सके अपने बीते बरस
दिल को दिल से मिलाना नये साल में |
इक कॅलंडर नया घर की दीवार पर
है ज़रूरी लगाना नये साल में |
सिर्फ़ गमगीन आशिक़…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2017 at 5:50pm — 16 Comments
ग़ज़ल (दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा )
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फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन
दिल के आगे हमें सर झुकाना पड़ा |
इक सितम गार से दिल लगाना पड़ा |
चश्मे नम से न खुल जाए राज़े वफ़ा
सोच कर यह हमें मुस्कराना पड़ा |
प्यार की इक नज़र की ही उम्मीद में
उम्र भर संग दिल से निभाना पड़ा |
दर्स ज़ालिम ले अंज़ामे फिरओन से
ज़ालिमों को भी दुनिया से जाना पड़ा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 30, 2016 at 8:25pm — 9 Comments
(मफाईलुन---मफाईलुन ----फऊलन )
ज़माना दुश्मने दिल हो गया है |
मुहब्बत करना मुश्किल हो गया है |
सफ़ीना बच गया तूफां से लेकिन
बहुत ही दूर साहिल हो गया है |
यह क्या कम है जुदा थी राह जिसकी
वो साथी क़ब्ले मंज़िल हो गया है |
खिलाफे ज़ुल्म कोई लब न खोले
जिसे देखो वो बुज़दिल हो गया है |
निगाहें बोलती हैं यह किसी की
ये दिल अब उनके क़ाबिल हो गया है |
किसी की खूब रूई का है जादू …
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 19, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
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