ऊद्धव कन्हैया से जाकर सिर्फ इतना बता दीजियेगा ।
हे कृष्ण प्रेमी जनों की अब कुछ तो खबर लीजियेगा ।
उनकी खातिर दिलों जाँ लुटाया ।
और ज़माने को दुश्मन बनाया ।
उनके पीछे ये दुनिया भुलायी ।
उनकी राहों में पलकें बिछायी ।
उनके बिन बृज में क्या हो रहा है हाल सारा सुना दीजियेगा ।
हे कृष्ण प्रेमी जनों की अब कुछ तो खबर लीजियेगा ।
उनके बिन अपनी हालत न पूछो ।
कैसी है दिल में चाहत न पूछो ।
हम तो मर मर के जीने लगे हैं ।…
Added by Neeraj Nishchal on July 6, 2013 at 8:00am — 4 Comments
चाँद सितारों संग, महकी बहारों संग,
देखो चुपके से रात चली है ।
गहरी खामोशी में, ऐसी मदहोशी में ,
दिल में फिर तेरी बात चली है ।
चाँद का जब दीदार करूँ तो ।
दिल के झरोखे से प्यार करूँ तो ।
यादों की महकी बारात चली है ।
पूछो ना काटी कैसे तनहाई ।
याद जो आये वो तेरी जुदाई ।
आँखों से मेरे बरसात चली है ।
थाम के बाहें बाहों में ऐसे ।
चले दो राही राहों में ऐसे ।
जैसे संग सारी कायनात चली है ।
प्यार…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on June 30, 2013 at 12:00pm — 15 Comments
नए रंग खिले नए फूल खिले ,
जीवन में जब से तुम आये |
आँखों से घटाएं बरस रहीं ,
ये प्रेम के सागर लहराए |
कभी पत्थर जैसे जीते थे |
बेहोशी में दिन बीते थे |
जीवन को बोझ सा ढोते थे |
तनहाई में अक्सर रोते थे |
मायूस मेरा दिल नाच उठा ,
जब देख हमे तुम मुस्काये |
सूना इस दिल का आँगन था |
कहीं भटका भटका सा मन था |
औरों को अपना कहते थे |
खुद से ही खफा हम रहते थे…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 27, 2013 at 3:00pm — 9 Comments
जो गीत ह्रदय से निकला हो , कागज़ पे लिखो बेमानी है ।
वो गीत ह्रदय पर लिखना, ही जीवन की प्रेम कहानी है |
जब दिल में प्रेम उमड़ता है, आँखों से आंसू बहते हैं ,
मोती हैं समझने वालों को, नासमझो को तो पानी है ।
हर प्रेमी अपने प्रियतम को, हर हाल में पान चाह रहा ,
नासमझ भला ये क्या जाने, प्रेम तो तो एक कुर्बानी है ।
जब प्रेम दिलों में फूटे तो, वो सबके लिए बराबर हो ,
पर प्रेम में भेद भी होता है, इस बात पे ही है…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 27, 2013 at 2:35pm — 19 Comments
इतना मुझे बता दो , मै कौन हूँ तुम्हारा ।
तेरी ओर बहती जाये , मेरी ज़िन्दगी की धारा ।
साँसों से बन्ध के जैसे , कोई डोर खींचती है ।
जाने मुझे क्यों पल पल , तेरी ओर खींचती है ।
हर सांस में सिसक कर, दिल ने तुम्हे पुकारा ।
तेरी ओर बहती जाये , मेरी ज़िन्दगी की धारा ।
मैकश अगर मै कोई , तू मेरा मैकदा है ।
पीता हूँ जाम तेरे , मुझको तेरा नशा है ।
आँखों में तैरता है , तेरे प्यार का नज़ारा ।
तेरी ओर बहती जाये , मेरी ज़िन्दगी…
Added by Neeraj Nishchal on May 24, 2013 at 2:54pm — 19 Comments
वजहों के बोझों तले क्यों , बेवजह है ज़िन्दगी |
जीने वालों के लिए , जैसे सज़ा है ज़िन्दगी |
साँसों के संग ही चल रही साँसों के संग थम जायेगी ,
आती जाती सांसो का एक सिलसिला है ज़िन्दगी |
हमने बनाये जो यहाँ खो जायेंगे वो सब मकाँ
जिसकी मंजिल मौत है वो रास्ता है ज़िन्दगी |
हम जी रहे हैं आज में और सोचते कल की सदा ,
इस जगह को छोड़कर क्यों उस जगह है ज़िन्दगी |
ये दिल हमारा है मगर यहाँ ख्याल है किसी और का…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 22, 2013 at 11:30am — 11 Comments
समन्दर में बसी मछली, समन्दर ढूढ़ती है क्यों ।
जो उसके हर तरफ फैला, उसे ना देखती है क्यों ।
वो सागर से पूछती है, बता तेरा पता है क्या ।
बताये कैसे ये सागर, बताने को भला है क्या ।
जहाँ पर वो वही सागर ,नही ये सोचती है क्यों ।
समन्दर में बसी मछली............................|
ना जाने कौन सा सागर, लिए बैठी ख़यालों में ।
वो लहरों में भटकती है, फसा करती है जालों में ।
वो पल पल जी रही जिसमे, उसी को भूलती है क्यों…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 18, 2013 at 11:30pm — 6 Comments
चाँद बादल में छुपा, परछाइयाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।
चुप्पियों की बाढ़ आयी , सारे मेले बह गये ।
महफ़िलों की गोद में भी , हम अकेले रह गये ।
खामोश मेरे हाल पर , खामोशियाँ भी हो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।
अब तो कोई दर्द कोई गम भी बाकी ना रहा ।
मेरी इस…
Added by Neeraj Nishchal on May 18, 2013 at 11:00pm — 16 Comments
जब दर्द गुजरता हो दिल से , वो पल नज़दीक भी होने दो |
जब छोड़ के जाएँ लोग मुझे , अब वो तकलीफ भी होने दो |
तूफ़ान मै सारे सह जाऊं , बहने दो अगर मै बह जाऊं |
अब ये परवाह नही मुझको , मै मिटूँ या बाकी रह जाऊं |
न रोको मेरे इन अश्कों को बीती यादों को धोने दो |
जब दर्द गुजरता हो दिल से.........................|
सब सहकर भी…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 17, 2013 at 11:00am — 12 Comments
तूफ़ान जोरों पर था , बादलों की घुमड़ घुम भी शुरू हो चुकी थी , पतझड़ के मौसम में सारी पत्तियां झड़ चुकी थीं , उनका तिनकों से बना घोंसला मुझे साफ़ नज़र आ रहा था , वो हवा में डोलती डालों पर सहमे सहमे बैठे कभी अपने घोंसलों को देखते तो कभी इस तूफानी मंज़र में अपनी नज़र इधर उधर दौड़ाते , एकाएक मै उन परिंदों की भाव वेदना में डूब सा गया , कितने बेसहारा, कितने असुरक्षित , कितना निर्दोष भाव ,कोई शिकायत नही , ये कैसा समर्पण , लगा कि कहर भी परमात्मा ढा रहा हो और उसे झेल भी परमात्मा ही रहा हो , दो…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on May 16, 2013 at 9:34pm — 10 Comments
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