दोस्ती - लघुकथा -
श्रद्धा एक मध्यम वर्गीय परिवार की मेधावी छात्रा थी।वह इस साल एम एस सी जीव विज्ञान की फ़ाइनल में थी। शिक्षा का उसका पिछला रिकार्ड श्रेष्ठतम था।इस बार भी उसका इरादा यूनीवर्सिटी में अब्बल आने का था।
मगर इंसान की मेहनत और इरादे से भी ऊपर एक चीज़ होती है भाग्य।जिस पर ईश्वर के अलावा किसी अन्य का जोर नहीं चलता। श्रद्धा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
वह उस दिन क्लास रूम से बाहर निकल रही थी कि चक्कर खाकर गिर गयी।अफ़रा तफ़री मच गयी। सभी साथी सहपाठी चिंतित और परेशान हो…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 9, 2018 at 8:06pm — 12 Comments
राजा चोर है - लघुकथा –
"आचार्य,इस चोर राजा के शासन से मुक्ति का कोई तो उपाय बताइये। प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है।"
"वत्स, सर्वप्रथम तो अपनी वाणी को नियंत्रित करो।"
"गुरू जी, आपका आशय क्या है।"
"जब तक राजा का अपराध प्रमाणित नहीं होता, उसे सम्मान देना अनिवार्य है।"
"राजा का अपराध कैसे प्रमाणित होगा?"
"यह जाँच द्वारा सुनिश्चित करना दंडाधिकारी का कार्य है, जो कि विधि द्वारा स्थापित न्याय प्रणाली के तहत कार्य करता है।"
"दंडाधिकारी यह जाँच…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2018 at 8:30pm — 16 Comments
परवरिश - लघुकथा –
आज फिर शुभम और सुधा में गर्मागर्म बहस हो रही थी। मुद्दा वही था कि बाबूजी के कारण बिट्टू उदंड और जिद्दी होता जा रहा है।
"सुधा, बिट्टू उनकी संगत में जिद्दी नहीं तार्किक और जिज्ञासु हो गया है। हम इस विषय में कितनी बार बात कर चुके हैं कि अस्सी साल की उम्र में मैं अपने पिता को अलग नहीं रख सकता।"
"तो मैं बिट्टू के साथ कहीं और चली जाती हूँ। इतना तो कमा ही लेती हूँ कि दोनों का गुजारा हो सके।"
"सुधा तुम्हें पता है, मेरी माँ की मृत्यु के समय मैं केवल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 28, 2018 at 9:00am — 10 Comments
दुर्गा - लघुकथा –
शुरू में मैंने दुर्गा को एक महीने के लिये ट्रायल पर रखा था क्योंकि उसे देखकर लगता नहीं था कि काम वाली बाई है। खूबसूरत और जवान तो थी ही लेकिन साथ ही गज़ब की स्टाइलिश और फ़ैशनेबिल। चटकीली सुर्ख लिपस्टिक, गॉगल, मोबाइल, बड़ा सा लेडीज पर्स भी रखती थी।
मुझे बहुत तनाव रहता था जब वह पतिदेव की उपस्थिति में आती थी। ऐसे में मुझे अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ती थी। हालाँकि पतिदेव का इतिहास साफ सुथरा था। पर मर्द जात का क्या भरोसा। ऊपर से दुर्गा के लटके झटके। एक बार तो मैंने उसे कह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 22, 2018 at 12:07pm — 10 Comments
अंधा कानून - लघुकथा –
"सर, पिछले महिने मैंने आपकी कंपनी में इंटरव्यू दिया था। आपने खुद मुझे बधाई देकर बताया था कि इस पद के लिये मेरा चयन हो गया है। हफ़्ते दस दिन में नियुक्ति पत्र डाक द्वारा मिल जायेगा"।
"हाँ, यह सच है मिस ज्योति लेकिन...."।
"लेकिन क्या सर"?
"मुझे खेद है कि यह पद किसी और को दे दिया गया"।
"सर, क्या किसी मंत्री का फोन आगया था"?
"नहीं मिस ज्योति, हमारे यहाँ सिफ़ारिश नहीं चलती"।
"फिर सर, रातों रात इस परिवर्तन का कोई तो वाजिब…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 1:30pm — 10 Comments
औक़ात - लघुकथा –
"सलमा, यह किसके बच्चे को लेकर जा रही हो"।
"चचाजान, आप पहचान नहीं पाये इन्हें, अपने अर्जुन हैं"।
"अरे वाह, बहुत बड़े हो गये। पर इनको यह क्या पोशाक डाल रखी है"।
"इनको एक सीरियल में कान्हा का किरदार करना है। उसी के लिये लेकर जा रही हूँ"।
"बहुत खूब, संभल कर जाना"।
अभी सलमा चार क़दम ही चली थी कि एक कट्टरपंथी ग्रुप ने उसे घेर लिया। उसे बच्चा चोर बताकर पुलिस थाने ले गये।
"दरोगा जी,बड़ा तगड़ा केस लाये हैं,आज तो आपके दोनों हाथों में लड्डू…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 7, 2018 at 7:01pm — 14 Comments
छुट्टी का दिन था तो विवेक सुबह से ही लैपटॉप में व्यस्त था| कुछ बैंक और इंश्योरेंश के जरूरी काम थे, वही निपटा रहा था| बीच में एक दो बार चाय भी पी| विवेक सुबह से देख रहा था कि आज वसुधा का चेहरा बेहद तनाव पूर्ण था। आँखें भी लाल और कुछ सूजी हुई सी लग रहीं थीं। जैसा कि अकसर रोने से हो जाता है|
घर के सारे काम निपटाकर जैसे ही वसुधा कमरे में आकर अपने बिस्तर पर लेटने लगी।
"क्या हुआ वसुधा, तबियत तो ठीक है ना"?
"मुझे क्या होगा, मैं तो पत्थर की बनी हुई हूँ"।
"अरे यह कैसी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on September 7, 2018 at 2:00pm — 10 Comments
अनुसरण- लघुकथा –
माँ भारती अपनी संध्याकालीन पूजा अर्चना से निवृत होकर जैसे ही प्रांगण में आयीं। उन्होंने देखा कि उनके बच्चे दो गुट में बंटे हुए एक दूसरे पर तमंचों से गोलियाँ दाग रहे थे। एक गुट हर हर महादेव के जयकारे लगा रहा था और दूसरा गुट अल्ला हो अकबर के नारे लगा रहा था। माँ भारती स्तब्ध रह गयीं।
उन्होंने तुरंत बच्चों को रोका,"बच्चो, यह क्या कर रहे हो तुम लोग"?
"माँ, हम लोग हिंदू मुसलमान खेल रहे हैं"।
"पर यह खेल कौन सा है"?
"यह हिंदू मुस्लिम दंगा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 25, 2018 at 12:08pm — 8 Comments
घूंघट - लघुकथा –
"बहू, जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए शादी को और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये"।
"माँ जी, यह आप क्या कह रहीं हैं? मैं कुछ समझी नहीं"?
"अरे वाह, चोरी और सीना जोरी"।
"माँ जी, आप मेरी माँ समान हैं। मुझसे कोई गलती हुयी है तो बेशक डाँटिये फटकारिये मगर मेरी गलती तो बताइये"।
"क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें अपने ससुर और जेठ का आदर सम्मान करना नहीं सिखाया"?
"माँ जी, मैं तो पिता जी और बड़े भैया का पूरा सम्मान करती हूँ"।
"तुम्हें क्या…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 18, 2018 at 11:01am — 9 Comments
चक्रव्यूह - लघुकथा –
"ए लड़की, क्या झाँक रही हो की होल से अंदर"?
सरकारी शाँती बालिका कल्याण संस्थान की व्यस्थापक सुमित्रा देवी गोमती को चोटी से पकड़ कर लगभग घसीटते हुए अपने कार्यालय ले गयीं। गोमती पीड़ा से बेचेन होकर छटपटा रही थी। वह लगातार रोये जा रही थी।
“क्या ताक झाँक कर रही थी वहाँ”? सुमित्रा जी ने लाल आँखें दिखाते हुए पुनः वही प्रश्न दोहराया।
"मैडम, मेरी बहिन को उस कमरे में एक सफ़ेद कुर्ता धोती वाला नेताओं जैसा आदमी पहले तो बहला फ़ुसला कर ले जाना चाह रहा था।…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 10, 2018 at 12:40pm — 10 Comments
मेरा घर - लघुकथा –
"हद हो गयी, अभी तीन दिन पहले ही साफ किया था जाला। फिर बना लिया"।
कमला झाड़ू लेकर मकड़ी के जाले को जैसे ही साफ करने लगी।
मकड़ी गिड़गिड़ाते हुये बोली,"क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा। क्यों मेरा घर संसार उजाड़ रही हो"?
"अरे वाह, मेरे ही घर में बसेरा कर लिया और मुझे ही ज्ञान दे रही हो"।
"हर कोई किसी ना किसी पर आश्रित है। संसार की यही रीति है"।
"होगी, पर मुझे तो नहीं पसंद। और यह तुम्हारा घर संसार। क्या है इसमें? जीवन भर की क़ैद। उम्र भर…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 3, 2018 at 4:38pm — 8 Comments
पिता के बार बार आग्रह करने पर रोहन उनके मित्र की इकलौती बेटी चेतना से एक बार मिलने को राजी हो गया। हालाँकि वह पिता से स्पष्ट कह चुका था कि यदि आपको चेतना पसंद है तो मुझे शादी मंजूर है| इसके बावज़ूद पिता की इच्छा थी कि रोहन एक बार चेतना से अवश्य मिले। शायद वे अकेले निर्णय करने से बचना चाहते थे।
चेतना दिल्ली में एम बी ए कर रही थी अतः हॉस्टल में रहती थी। उन दोनों ने रेस्त्रां में मिलना तय किया। औपचारिक मुलाक़ात के बाद मुद्दे की बात शुरू हुई। पहल चेतना ने की,
"क्या तुम एक बलात्कार…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 1, 2018 at 9:30am — 8 Comments
संताप - लघुकथा –
"माधव, मुझे शाँति चाहिये। मेरा मन बहुत व्याकुल है।इस युद्ध के लिये मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट्ती है"?
"क्या हुआ अर्जुन, तुम इतने निर्बल कैसे हो गये"?
"मित्र, युद्ध की विनाश लीला मुझे धिक्कारती है? मेरी आँखों के सामने उस विनाश की समस्त वीभत्स घटनांयें एक सैलाब की तरह मेरे मस्तिष्क को घेरे रहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मेरे समूचे अस्तित्व को बहा ले जायेंगी और मुझे नेस्तनाबूद कर देंगी”?
“स्वयं को संभालो अर्जुन। तुम कायरों जैसा व्यवहार कर रहे…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 28, 2018 at 8:06pm — 10 Comments
साँझा चूल्हा - लघुकथा –
"रज्जो, यह तेरा देवर रोज रोज हमारी रसोई में थाली लिये बैठा क्यों दिखता है"?
"क्योंजी, क्या वह आपका भाई नहीं है "?
"मेरी बात का सीधा जवाब दे? बात को घुमा मत"?
"आप भी ना, दो रोटी खा जाता है और क्या करते हैं रसोई में"?
"वह तो मुझे भी पता है। पर हमारी रसोई में क्यों"?
"उसके दो रोटी खाने से हम कंगाल हो जायेंगे क्या"?
"बात रोटी की नहीं है , बात उसूल की है"?
"वह कहता है कि उसकी घरवाली के हाथ में स्वाद नहीं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 23, 2018 at 1:17pm — 16 Comments
सम्मान - लघुकथा –
एक माँ के चार बेटे थे। बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। अतः माँ ने उनके पालन पोषण में कुछ ज्यादा ही प्यार दिखाया और अतिरिक्त सावधानी बरती। इसका नतीजा यह हुआ कि बच्चे उदंड और शरारती हो गये।
माँ काम काज के लिये घर से बाहर रहती थी। और बच्चे सारे दिन मुहल्ले में हुल्लड़बाजी और दबंगयी दिखाते रहते थे। कभी किसी का काँच तोड़ देना या कभी किसी का सिर फोड़ देना। किसी का सामान उठा लाना। किसी स्त्री को छेड़ देना। यह उनका रोज़मर्रा का काम था।
आज दिन भर हंगामा करके…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 21, 2018 at 11:52am — 12 Comments
समाज - लघुकथा –
गौरीशंकर जी की आँख खुली तो अपने आप को शहर के सबसे बड़े अस्पताल के वी आई पी रूम में पाया। उनकी तीस जून को रिटायरमेंट थी। सारा विद्यालय तैयारी में लगा था क्योंकि वे विद्यालय के लोकप्रिय हैड मास्टर जो थे।
"कैसे हो मित्र"? उनके परम मित्र श्याम जी ने प्रवेश किया।
"भाई, मैं यहाँ कैसे"?
"कोई खास बात नहीं है? रिटायरमेंट वाले दिन मामूली सा अटैक आया था| चक्कर आये थे। बेहोश हो गये थे"?
"यार, मुझे तो कभी कोई शिकायत नहीं थी"?
"अरे यार कुछ बातें…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 17, 2018 at 11:24am — 10 Comments
खरा सोना - लघुकथा –
आज मेरा अखबार नहीं आया था तो सुबह नाश्ते के बाद अपने मित्र जोगिंदर सिंह के घर अखबार पढ़ने की गरज़ से टहलते टहलते पहुँच गया।
जैसे ही लोहे का गेट खोल कर अंदर घुसा तो देखा कि जोगिंदर का बेटा धूप में खड़ा किताब पढ़ रहा था।
मैं उससे इसकी वज़ह पूछने ही वाला था कि जोगिंदर ने आवाज़ लगा दी,"आजा भाई मलिक, क्या सही वक्त पर आया है। चाय आ रही है"।
मैंने कुर्सी जोगिंदर के पास खींचते हुए पूछा,"भाई, यह तेरा छोरा इतनी तेज़ धूप में क्यों पढ़ रहा है। इससे क्या दिमाग तेज़…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 16, 2018 at 10:14pm — 16 Comments
निकम्मा - लघुकथा –
धर्मचंद जी शिक्षा विभाग से रिटायर अधीक्षक थे। चार बेटे थे। सभी पढ़े लिखे थे। सबसे बड़ा डाक्टर था जो अमेरिका में बस गया था। दूसरा इंजीनियर आस्ट्रेलिया में था। तीसरा दिल्ली में प्रोफ़ेसर था। चौथा बेटा भी पूर्ण रूप से शिक्षित था। जॉब भी मिल रहे थे मगर दूसरे शहरों में। लेकिन वह माँ बापू को अकेले छोड़ने के पक्ष में नहीं था।अतः वह इसी प्रयास में था कि उसे अपने ही शहर में नौकरी मिले।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंततः उसने पिता की सलाह पर मकान के बाहरी हिस्से में एक मेडीकल स्टोर खोल…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 10, 2018 at 1:21pm — 15 Comments
समय बड़ा बलवान - लघुकथा –
माँ मरणासन्न स्थिति में चारपाई पर पड़ी थी। संजीव चारपाई के पास बैठा आँसू बहा रहा था।
"क्यों रोये जा रहा है पगले? जाना तो सभी को एक दिन पड़ता ही है"।
"माँ, मैं इसलिये नहीं रो रहा हूँ। मेरे रोने की वज़ह कुछ और है"?
"अरे सब भूल जा अब। मेरा आखिरी वक्त है, खुशी खुशी विदा कर दे”|
"नहीं माँ, मैं जीवन भर सुशीला को माफ़ नहीं कर सकूंगा"?
"ओह, तो तू अपनी घरवाली सुशीला से नाराज है क्योंकि वह तेरे साथ मुझे देखने नहीं आई"?
"माँ, तू बहुत…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 5, 2018 at 5:16pm — 16 Comments
थप्पड़ - लघुकथा –
आज तीन साल बाद सतीश जेल से छूट रहा था। उसे सोसाइटी के मंदिर में चोरी के इल्ज़ाम में सज़ा हुई थी| घरवालों ने गुस्से में ढंग से केस की पैरवी भी नहीं की थी। । पिछले तीन साल के दौरान भी कोई उसे मिलने नहीं गया था। इसलिये घर में सब किसी अनहोनी के डर से आशंकित थे|
जेल से जैसे ही सतीश बाहर आया तो देखा कि उसे जेल पर लेने कोई नहीं आया । उसने कुछ दोस्तों को फोन किये, जो चोरी के माल में ऐश करते थे। लेकिन सब बहाना बना कर टालमटोल कर गये।
घर पर पहुंच कर पता चला कि…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 2, 2018 at 4:30pm — 16 Comments
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