काम से तो रोज घूमे काम बिन भी घूम बन्दे |
नाम में कुछ ना धरा गुमनाम होकर झूम बन्दे ||
बेवजह ही बेसबब भी दूर तक बेफिक्र टहलो -
कुछ करो या ना करो हर ठाँव को ले चूम बन्दे ।|
बेवफा है जिंदगी इसको नहीं ज्यादा पढो अब -
दर्शनों में आजकल मचती रही यह धूम बन्दे ।|
दे उड़ा…
ContinueAdded by रविकर on December 3, 2012 at 8:54pm — 2 Comments
21 2221 2221 2221 2
यह जुबाँ कहती जुबानी, जो जवानी ढाल पर ।
क्या करे शिकवा-शिकायत, खुश दिखे बदहाल पर ।|
आँख पर परदे पड़े, आँगन नहीं पहले दिखा -
नाचते थे उस समय जब रोज उनकी ताल पर ।।
कर बगावत हुश्न से जब इश्क अपने आप से -
थूक कर चलता बना बेखौफ माया जाल पर ।।
आँच चूल्हे में घटी घटते सिलिंडर देख कर
चाय काफी घट गई अब रोक ताजे माल पर ।।
वापसी मुश्किल तुम्हारी, तथ्य रविकर जानते
कौन किसकी इन्तजारी कर…
Added by रविकर on December 2, 2012 at 9:24pm — 15 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2
टिप्पणी भी अब नहीं छपती हमारी ।
छापते हम गैर की गाली-गँवारी ।
कक्ष-कागज़ मानते कोरा नहीं अब-
ख़त्म होती क्या गजल की अख्तियारी ।
राष्ट्रवादी आज फुर्सत में बिताते -
कल लड़ेंगे आपसी वो फौजदारी ।
नाक पर उनके नहीं मक्खी दिखाती-
मक्खियों ने दी बदल अपनी सवारी ।
ढूँढ़ लफ्जों को, गजल कहना कठिन है-
चल नहीं सकती यहाँ रविकर उधारी ।।
Added by रविकर on November 26, 2012 at 8:00pm — 12 Comments
बुरे काम का बुरा नतीजा |
चच्चा बाकी, चला भतीजा ||
गुरु-घंटालों मौज हो चुकी-
जल्दी ही तेरा भी तीजा ||
गाल बजाया चार साल तक -
आज खून से तख्ता भीजा ||
लगा एक का भोग अकेला-
महाकाल हाथों को मींजा |
चौसठ लोगों का शठ खूनी -
रविकर ठंडा आज कलेजा ||
Added by रविकर on November 21, 2012 at 8:45pm — 4 Comments
बीत गया भीगा चौमासा । उर्वर धरती बढती आशा ।
त्योहारों का मौसम आये। सेठ अशर्फी लाल भुलाए ।|
विघ्नविनाशक गणपति देवा। लडुवन का कर रहे कलेवा
माँ दुर्गे नवरात्रि आये । धूम धाम से देश मनाये ।
विजया बीती करवा आया । पत्नी भूखी गिफ्ट थमाया ।
जमा जुआड़ी चौसर ताशा । फेंके पाशा बदली भाषा ।।
एकादशी रमा की आई । वीणा बाग़-द्वादशी गाई ।
धनतेरस को धातु खरीदें । नई नई जागी उम्मीदें ।
धन्वन्तरि की जय जय बोले । तन मन बुद्धि निरोगी होले ।
काली पूजा बंगाली की ।…
Added by रविकर on November 12, 2012 at 5:17pm — 3 Comments
सकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
नकारात्मक छोड़िये, रखिये मन में धीर |
रखिये मन में धीर, जलधि-मन मंथन करके |
देह नहीं जल जाय, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो जग का कल्याण, सही सिद्धांत सकारा ||
Added by रविकर on November 8, 2012 at 6:35pm — 7 Comments
अय्यासी में हैं रमे, रोम रोम में काम ।
बनी सियासी सोच अब, बने बिगड़ते नाम ।
बने बिगड़ते नाम, मातृ-भू देती मेवा ।
मँझा माफिया रोज, भूमि का करे कलेवा ।
बेंच कोयला खनिक, बनिक बालू की राशी ।
काशी में क्यूँ मरे, स्वार्गिक जब अय्यासी ।।
Added by रविकर on November 8, 2012 at 12:30pm — 8 Comments
खींचा-खींची कर रहे, इक दूजे की चीज ।
सोम सँभाले स्वयं सब, भूमि रही है खीज ।
भूमि रही है खीज, सभी को रखे पकड़ के ।
पर वारिधि सुत वारि, लफंगा बढ़ा अकड़ के ।
चाह चाँदनी चूम, हरकतें बेहद नीची ।
रत्नाकर आवेश, रोज हो खींचा खींची ।।
Added by रविकर on November 7, 2012 at 9:14am — 3 Comments
आभार आदरणीय सौरभ जी -
2 2 2 2 2
हारे हो बाजी ।
छोड़ो लफ्फाजी ।|
होती है गायब -
वो कविताबाजी ।।
पल में मर जाती
रचनाएं ताज़ी ।।
दिल्ली से लौटे -
होते हैं हाजी ।।
पाजी शहजादा
मुश्किल में काजी ।।
रिश्वत पर आधी ।
रविकर भी राजी ।।
मोटी-चमड़ी पतला-खून ।
नंगा भी पहने पतलून ।
भेंटे नब्बे खोखे नोट -
भांजे दर्शन अफलातून ।
भुना शहीदी दादी-डैड
*शीर्ष-घुटाले लगता चून ।
*सिर मुड़ाना / चोटी के घुटाले
पंजा बना शिकंजा खूब-
मातु-कलेजी खाए भून ।
मिली भगत सत्ता पुत्रों से
लूटा तेली लकड़ी-नून ।
दस हजार की रविकर थाल
उत फांके हों दोनों जून ।
Added by रविकर on November 3, 2012 at 5:00pm — 10 Comments
गुण-सूत्रों की विविधता, बहुत जरूरी चीज |
गोत्रज में कैसे मिलें, रखिये सतत तमीज ||
गोत्रज दुल्हन जनमती, एकल-सूत्री रोग |
दैहिक सुख की लालसा, बेबस संतति भोग ||
नहीं चिकित्सा शास्त्र में, इसका दिखे उपाय |
गोत्रज जोड़ी अनवरत, संतति का सुख खाय ||
गोत्रज शादी को भले, भरसक दीजे टाल |
मंजूरी करती खड़े, टेढ़े बड़े सवाल ||
परिजन लेवे गोद जो, कर दे कन्या-दान |
उल्टा हाथ घुमाय के, खींचें सीधे कान ||
मिटते दारुण दोष पर, ईश्वर अगर सहाय |
सबसे…
Added by रविकर on October 31, 2012 at 8:48am — 5 Comments
मत्तगयन्द सवैया
नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।
कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।
सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।
जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई…
ContinueAdded by रविकर on October 16, 2012 at 9:45am — 9 Comments
(1)
(तालिबानी फरमान न मानने वाली छात्रा बिटिया मलाला को समर्पित)
सुंदरी सवैया
उगती जब नागफनी दिल में, मरुभूमि बबूल समूल सँभाला ।
बरसों बरसात नहीं पहुँची, धरती जलती अति दाहक ज्वाला ।
उठती जब गर्म हवा तल से, दस मंजिल हो भरमात कराला ।
पढ़ती तलिबान प्रशासन में, डरती लड़की नहीं ढीठ मराला ।।
(2)…
ContinueAdded by रविकर on October 13, 2012 at 8:30am — 12 Comments
अपनी प्रिया को छोड़ के प्रीतम अगर गया |
नन्हा सा कैमरा कहीं चुपके से धर गया ||
आया हमारे मुल्क में व्यापार के लिए
सोने की चिड़िया लेके जाने किधर गया ||
रुपये की खनक गूंजती बाज़ार में अभी
डालर के सामने मगर चेहरा उतर गया ||
बनकर मसीहा गाँव में घूमे जो माफिया ,
दस्खत कराना आज उसका सबको अखर गया ।।
कोयले से आजकल हम दांतों को रगड़ते-
तपकर दुखों की आंच में कुछ तो निखर गया ।।
Added by रविकर on October 3, 2012 at 2:00pm — 2 Comments
पौधा रोपा परम-प्रेम का, पल-पल पौ पसरे पाताली |
पौ बारह काया की होती, लगी झूमने डाली डाली |
जब पादप की बढ़ी उंचाई, पर्वत ईर्ष्या से कुढ़ जाता -
टांग अडाने लगा रोज ही, बकती जिभ्या काली गाली |
लगी चाटने दीमक वह जड़, जिसने थी देखी गहराई -
जड़मति करता दुरमति से जय, पीट रहा आनंदित ताली |
सूख गया जब प्रेम वृक्ष तो, काट रहा जालिम सौदाई -
आज ताकता नंगा पर्वत, बिगड़ चुकी जब हालत-माली |
लगी खिसकने चट्टानें अब , भूमि स्खलित होती हरदम -
पर्वत की…
ContinueAdded by रविकर on September 28, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
Added by रविकर on August 23, 2012 at 7:30pm — No Comments
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