महालक्ष्मी छंद
घूस से जो खड़ा हो गया
क्या सभी से बड़ा हो गया?
आग में जो तपा झूठ की
एक थोथा घड़ा हो गया
ज्ञान वाला यहाँ हारता
मूर्ख बाजी यहाँ मारता
मार देता वही साँच को
झूठ का वेष जो धारता
आज का हाल क्या हो रहा
क्यूँ युवा देश का खो रहा
सूखती पौध आशा भरी
मूल में क्या नशा बो रहा
सोचता है युवा क्यूँ पढूँ
है कहाँ राह आगे बढूँ
हो न पूरे यहाँ जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 18, 2016 at 9:09pm — 12 Comments
1212 1122 1212 112/22
बह्र –मुजतस मुसम्मन मख्बून मक्सूर
तनाव से ही सदा टूटता समाज कोई
लगाव से ही सदा फूलता रिवाज कोई
पढ़ेगी कल नई पीढ़ी उन्हीं के सफ्हों को
क़िताब ख़ास लिखी जाएगी जो आज कोई
न ख़्वाब हो सकें पूरे कहीं बिना दौलत
बना सकी न मुहब्बत गरीब ताज कोई
सियासतों में बगावत नई नहीं यारों
कभी चला कहाँ आसान राजकाज कोई
सभी मिलेंगे यहाँ छोड़कर शरीफों को
कोई फरेबी यहाँ और चालबाज…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 13, 2016 at 1:00pm — 40 Comments
२१२२ २१२२ २१२
मजहबों के बीच जो दीवार है
डालती उस नींव को सरकार है
हाथ में जिसके किताबें चाहिए
आज उसके हाथ में हथियार है
जिन्दगी इक बार मिलती है यहाँ
मर रहा इंसान सौ सौ बार है
ख्वाहिशें बच्चों की पूरी क्या करें
जेब में सहमा हुआ इतवार है
पढ़ नहीं सकता यहाँ इक हर्फ़ जो
बेचता सड़कों पे वो अखबार है
राम रहिमन बिक रहे बाजार में
फल रहा बस धर्म का व्यापार…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 10, 2016 at 10:30am — 36 Comments
2122 2122 212
बह्र –रमल मुसद्दस महजूफ़
काश हर दिन ही मुक़द्दस ईद हो
और उनकी इस बहाने दीद हो
दिल ही दिल में प्यार हम करते उन्हें
हो न हो उनको भी ये उम्मीद हो
चाँद मेरा सामने आये जहाँ
शर्म से छुपता हुआ खुर्शीद हो
एक पल भी रह न पाए बिन मेरे
ख़्वाब में मेरी उन्हें ताकीद हो
चाँद तारे दे गवाही साथ में
यूँ हमारे इश्क़ की तज्दीद…
Added by rajesh kumari on July 3, 2016 at 10:33pm — 12 Comments
“अरे..अरे रे रे .... ये क्या कर रहे हो दिमाग तो खराब नहीं हो गया आप लोगों का... किराए दार होकर बिना बताये मेरे ही घर में ये तोड़ फोड़ क्यूँ?” घर के मुख्य द्वार जिसपर उसके स्वर्गीय पति का नाम लिखा था मजदूरों द्वारा हथौड़े से तोड़ते हुए देखकर आपा खो बैठी सावित्री|
“अरे कोई कुछ बोलता क्यूँ नहीं बंद करो ये सब वरना अभी पुलिस को बुलाती हूँ”
“हाँ बुला लीजिये आंटी जी ताकि आज आपको भी पता लगे किरायेदार कौन है वो तो मेरे सास ससुर ने अब तक मेरा व् मेरे पति का मुँह बंद कर रखा था आज कल…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 1, 2016 at 10:00am — 10 Comments
१२२ १२२ १२२ १२२ नया दर्द कोई जगा भी नहीं है |
न करना अभी बंद अपनी ये पलकें |
मुसलसल धड़कता कहीं जिस्म में दिल … |
Added by rajesh kumari on June 27, 2016 at 10:30am — 17 Comments
मुक्त कर तम से जकड़ती मुट्ठियाँ
भोर की पहली किरण को भींच ले
व्योम से तुझको पटक कर
पस्त करके होंसलो को
चिन रही है गेह तुझमे
भावनाएँ हीन गुपचुप
मार सूखे का हथौड़ा
तोड़ कर तेरी तिजौरी
बाँध खुशियों की गठरिया
जा रहा है मेघ…
Added by rajesh kumari on June 20, 2016 at 11:30am — 12 Comments
2122 2122 212
जिंदगी में जीत भी कुछ हार भी
और यारो प्यार भी तकरार भी
लोग दरिया से उतारें पार भी
छोड़ देते बीच कुछ मजधार भी
हर कदम पे ही मिले हमको सबक
राह में कुछ फूल भी कुछ ख़ार भी
हम भले फुटपाथ पर धीमे चले
पार करने को बढ़ी रफ़्तार भी
जो मिले पैसे उसी में सब्र था
बीस आये हाथ में या चार भी
हम सदा खेला किये बस गोटियाँ
खेल में खंजर मिले तलवार…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 19, 2016 at 11:10am — 9 Comments
‘भूकंप’
“सेठ साहब, ये बुढ़िया रोज आती है और इस दीवार को छू छू कर देखती है फिर घंटो यहाँ बैठी रहती है मैं तो मना कर-कर के थक गया लगता है कुछ गड़बड़ है जाने सेंध लगवाने के लिए कुछ भेद लेने आती है क्या” चौकीदार ने कहा |
“माई, कौन है तू क्या नाम है तेरा और तेरा रोज यहाँ आने का मकसद क्या है”? साहब ने पूछा |
“जुबैदा हूँ सेठ साहब, आपने तो नहीं पहचाना पर आपके कुत्ते ने पहचान लिया अब तो ये भी बड़ा हो गया साहब देखिये कैसे पूंछ हिला रहा है”|
सेठ दीन दयाल भी ये देखकर…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 13, 2016 at 10:00am — 22 Comments
२१२२ २१२२ २१२
ढाल बन अकड़ा रहा जिनके लिए
जगमगाये दीप कुछ दिन के लिए
घोंसला भी साथ उनके उड़ गया
रह गया वो हाथ में तिनके लिए
फूल को तो ले गई पछुआ हवा
रह गई बस डाल मालिन के लिए
फूल चुनकर बांटता उनको रहा
खुद कि खातिर ख़ार गिन गिन के लिए
क्या मिला उसको बता ऐ जिन्दगी
सोचकर उनके लिए इनके लिए
अपने आंगन में खिले अपने नहीं
फूल जंगल में खिले किन के…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 7, 2016 at 10:47am — 14 Comments
2212 2212 2212 2212
नखरे ततैय्ये से अजी इनको मिले भरपूर हैं
अपनी करें मन की खुदी खुद में बड़े मगरूर हैं
मतलब पड़े तारीफ़ करते हैं मगर सच बात ये
जोरू इन्हें मुर्गी, पड़ोसन सारी लगती हूर हैं
अंदाज इनके देख के गिरगिट भरें पानी यहाँ
पल में करेले नीम से पल में लगें अंगूर हैं
वादा करें ये तोड़ के देंगे फ़लक से चाँद को
माँगें अगर साड़ी कहें जानम दुकानें दूर हैं
गाते चुराकर गीत ये चोरी की…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 4, 2016 at 5:19pm — 10 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २
हँसते दर्पण जब जब तेरी आँखों के
रफ़्ता रफ़्ता महके गुलशन साँसों के
धीमे धीमे होती है ये रात जवाँ
ख़्वाब मचलते हैं प्यासे पैमानों के
कैसे डूबे भँवरों में किश्ती नादां
सिखलाते हमको गड्ढे रुखसारों के
गोया नभ से चाँद उतर आया कोई
चेह्रे से हटते ही साए बालों के
पार उतर आये हम तूफां से बचकर
मस्त सफीने पाए तेरी बाहों के
खूब शफ़ा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 25, 2016 at 8:00pm — 19 Comments
२१२२ १२१२ २२
हुस्न गर बावफ़ा नहीं होता,
दिल कभी आशना नहीं होता
खेलना दिल से तोड़ देना फिर
ये कोई कायदा नहीं होता
दिल्लगी से हुए तमाशे का
हर कहीं तज़करा नहीं होता
जान पाता कभी नहीं उसको
,मैं अगर आइना नहीं होता
मार देती ये तिश्नगी मुझको,
काश ये मयकदा नहीं होता
मुश्किलों से निजात पाने को,
मौत ही रास्ता नहीं होता
छेड़ता वो न बारबार इसको,
जख्म मेरा…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 21, 2016 at 11:18am — 8 Comments
उसके गले में गोया सहस्त्रों केक्टस उग आये हों
थोड़ी थोड़ी देर में उनको निगलने की कोशिश में
गले की कोशिकाएँ कभी खिंच रही थी
कभी फूल रही थी
साँसें नियंत्रण खो रही थी
आँखों में दर्द के लाल डोरे उभर आये थे
मुझे ऐसा लगा मैं बहते दरिया को बाँध से रोकते हुए देख रही हूँ
जो कितना तकलीफ देह है
कुछ देर और देखती रहूंगी तो वो मेरी आँखों
के रास्ते बह चलेगा
क्यूँ नहीं उस दरिया को मुक्त किया जा रहा
भावनाओं पर नियंत्रण…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 11, 2016 at 10:24am — 2 Comments
१२२२ १२२२ १२
जदल से ऊबती मेरी ग़ज़ल
मुहब्बत ढूँढती मेरी ग़ज़ल
कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ
कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल
कदूरत के समंदर चार सू
किनारा ढूँढती मेरी ग़ज़ल
न खिड़की है न रोशनदान है
जिया बिन सूखती मेरी ग़ज़ल
सुलगते तल्खियों के अर्श पे
सितारे गूँथती मेरी ग़ज़ल
लिखे हर बार लफड़े रोज के
कसम से टूटती मेरी ग़ज़ल
अमन का रंग गर मिलता यहाँ
दिलों को लूटती मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:16am — 26 Comments
बह्र --हजज मुसद्दस सालिम
१२२२ १२२२ १२२२
गुलाबी रंग दो रुख्सार होली में
खुमारी भंग की हो यार होली में
मिटा दो दुश्मनी मिलकर गले यारो
मुहब्बत का करो इजहार होली में
कहानी प्रीत की फिर से नई लिक्खो
पुरानी भूल कर तकरार होली में
अनेकों रंग मिलकर एक हो जाओ
करो मत धर्म का व्यापार होली में
खुले दिल से बिना डर के खिलें कलियाँ
हटाओ रास्ते से ख़ार होली में
मिटाकर दूरियाँ…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 22, 2016 at 10:10am — 4 Comments
“हे भोले भंडारी, कुछ कर बहुत परेशान कर रक्खा है मेरी सास ने जीना दूभर हो गया है हर वक़्त कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर टें टें करती रहती है मैं क्या करूँ?”
“बहुत बार समझा चुका हूँ तुम दोनों को वो माँ जैसी और तुम बेटी जैसी हो एक दूसरे की अहमियत समझो और सम्मान करो महिला होकर महिला का सम्मान नहीं करोगी तो किसी और से क्या उम्मीद करोगी किन्तु मुझे तुम्हारा कोई समाधान नजर नहीं आता हर बार अपना वादा तोड़ देती हो अच्छा बताओ क्या चाहती हो”?
“हे प्रभु कुछ ऐसा करो कि मेरी सास बोल न सके उसे गूंगी…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 8, 2016 at 3:13pm — 12 Comments
2122 1122 1122 22
शाम को झील के रुख़सार गुलाबी होना
मिलके खुर्शीद से जज्बात रूहानी होना
उन्स की मय से लबालब है ग़ज़ल का सागर
, डूबकर उसमे सुखनवर का शराबी होना
बिन कहे छोड़ के जाना यूँ अकेले लिल्लाह
मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना
पाक उल्फत या मुहब्बत या इबादत समझो
कृष्ण की चाह में मीरा का दिवानी होना
वो मुहब्बत है कहाँ आज वो दिलदार कहाँ
चुन के दीवार में चुपचाप कहानी होना…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 1, 2016 at 8:40pm — 26 Comments
बेवजह बात जिरह करके बढाता क्यूँ है एक मासूम पे इल्जाम लगाता क्यूँ है
खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है
…
Added by rajesh kumari on January 24, 2016 at 6:03pm — 7 Comments
२१२२ १२१२ २२
भूख हड़ताल बारहा रखिये
हुक्मरानों पे दबदबा रखिये
बह रही है हवा सियासत की
किस तरफ बस यही पता रखिये
शह्र में चैन हो न हो ठंडक
गर्म मुद्दा कोई नया रखिये
सूखने पर कोई न पूछेगा
जख्म दिल का सदा हरा रखिये
लोग मरते रहें भले पीकर
हर गली एक मयकदा रखिये
क्या करेगा धुआँ धुआँ ही तो है
आप बेख़ौफ़ सिलसिला रखिये
इश्क के साथ दिल्लगी करना
नाम फिर…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 18, 2016 at 9:40pm — 14 Comments
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