नदी जीवन देती है
नदी पालती है
नदी सींचती है
नदी बहना सिखाती है
नदी सहना सिखाती है
नदी बदलाव समझाती है
नदी ठहराव समझाती है
नदी हंसना सिखाती है
नदी अंत तक साथ देती है.
पहाड़, धरती, प्रकृति भी
हमें यही सब सिखाते हैं,
लेकिन हम क्या कर रहे हैं?
हम नदी को धीरे धीरे,
तिल तिल कर मार रहे हैं,
हम अपना सारा कचरा
बेदर्दी से इसमें उड़ेल रहे हैं,
हम प्रकृति को बर्बाद कर रहे हैं
हम धरती को बंजर बना रहे हैं
हम पहाड़ों को…
Added by विनय कुमार on May 12, 2021 at 3:59pm — 2 Comments
हम सांस लेते हैं, हम जीते हैं
और एक दिन आखिरी सांस लेते हैं
इस आखिरी सांस के पहले
हमारे पास वक़्त होता है
अपनों के लिए कुछ करने का
समाज को कुछ लौटाने का
ऐसी वजह बनाने का
जिससे लोग याद रखें
आखिरी सांस लेने के बाद भी,
मगर अमूमन हम
बस अपने लिए ही जीते हैं
और अंत में मर जाते हैं
बिना किसी के लिए कुछ किये.
हम पेड़ पौधों से नहीं सीखते
हम तमाम जानवरों से भी नहीं सीखते
हम नहीं सीखते औरों के लिए जीना
हमारी दुनिया वास्तव में…
Added by विनय कुमार on May 11, 2021 at 6:10pm — 6 Comments
22 22 22 22 22 22 22
माँ की ममता सारी खुशियों से प्यारी होती है
माँ तो माँ है माँ सारे जग से न्यारी होती है
मैंने शीश झुकाया जब चरणों में माँ के जाना
माँ के ही चरणों में तो जन्नत सारी होती है
दुनिया भर की धन दौलत भी काम नहीं आती जब
माँ की एक दुआ तब हर दुख पे भारी होती है
माँ से ही हर चीज के माने माँ से ही जग सारा
माँ ख़ुद इक हस्ती ख़ुद इक ज़िम्मेदारी होती है
और बताऊँ क्या मैं तुमको आज़ी माँ की…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on May 9, 2021 at 3:29pm — 6 Comments
अनजाना उन्माद
मिलते ही तुमसे हर बार
नीलाकाश सारा
मुझको अपना-सा लगे
बढ़ जाए फैलाव चेतना के द्वार
कण-कण मेरा पल्लवित हो उठे
कि जैसे नए वसन्त की नई बारिश
दूर उन खेतों के उस पार से ले आती
भीगी मिट्टी की नई सुगन्ध
कि जैसे कह रही झकझोर कर मुझसे ....
मानो मेरी बात, तुम जागो फिर एक बार
सुनो, आज प्यार यह इस बार कुछ और है
और तुम ...…
ContinueAdded by vijay nikore on May 9, 2021 at 2:30pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर
आये जो गोद में तो उछाला सँभाल कर।१।
*
कोई बुरी निगाह न पलभर असर करे
काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।
*
बरतन घरों के माज के पाया जहाँ कहीं
लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।
*
सोये अगर तो हाल भी चुप के से जानने
हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।
*
माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ
घर को बनाया एक शिवाला सँभाल कर।५।
*
सुख दुख में राह देता…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2021 at 6:59am — 10 Comments
22 22 22 2
जग में नाम कमाना है
इक दिन तो मर जाना है. (1)
अपना दर्द छुपा कर रख
दिल में जो तहख़ाना है. (2)
ग़ैर समझता है मुझको
जिसको अपना माना है. (3)
मार नहीं सकती है भूख
गर क़िस्मत में दाना है. (4)
नई सुराही ले आए
पानी मगर पुराना है. (5)
चिड़िया उड़ जाए न कहीँ
इक पिंजरा बनवाना है. (6)
शक्ल ज़रा सी है बदली
पर जाना-पहचाना है. (7)
*मौलिक…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on May 8, 2021 at 9:00am — 6 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on May 6, 2021 at 4:00pm — 4 Comments
सपूत को स्कूल वापिसी पर उदास देखा
चेहरा लटका हुआ आँखों में घोर क्रोध रेखा
कलेजा मुंह को आने लगा
कुछ पूछने से पहले जी घबराने लगा
आखिर पूछना तो था ही
जवाब से जूझना तो था ही
जवाब मिला
ग्लोबल वार्मिंग !!
ग्लोबल वार्मिंग ??
माथा ठनका !
बेचारी उषमिता ने ऐसा क्या कर दिया
कि लाल को इतना लाल कर दिया
जवाब जारी था कि
आपकी पीढी का सब किया कराया है
पारे को इतना ऊपर पहुँचाया…
ContinueAdded by amita tiwari on May 4, 2021 at 9:30pm — 3 Comments
दूसरी मुहब्बत के नाम
मेरे दूसरे इश्क़,
तुम मेरे जिंदगी में न आते तो मैं इसके अँधेरे में खो जाता, मिट जाता। तुम मेरी जिन्दगी में तब आये जब मैं अपना पहला प्यार खो जाने के ग़म में पूरी तरह डूब चुका था। पढ़ाई से मेरा मन बिल्कुल उखड़ चुका था। स्कूल बंक करके आवारा बच्चों के साथ इधर-उधर घूमने लगा था। घर वालों से छुपकर सिगरेट और शराब पीने लगा था। आशिकी, पुकार और भी न जाने कौन-कौन से गुटखे खाने लगा था। मेरे घर के पीछे बने ईंटभट्ठे के मजदूरों के साथ जुआ खेलने लगा था। दोस्तों के साथ मिलकर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 3, 2021 at 10:30pm — No Comments
पृथ्वी सम्हलती नहीं
मंगल सम्हालेंगे
यहाँ ऑक्सीजन नष्ट की
वहाँ डेरा डालेंगे
बहुत मनाईं देवियाँ
बहुत मनाए देव
कर्म-लेख मिटता कहाँ ?
भाग्य लिखा सो होय
बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं
समस्त जीवन के अनुभवों की
अलिखित किताब होते हैं
बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on May 3, 2021 at 8:04pm — No Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
किस्मत कहें न कैसे सँवारी गयी बहुत
हर दिन नजर हमारी उतारी गयी बहुत।१।
*
जो पेड़ शूल वाले थे मट्ठे से सींचकर
पत्थर को चोट फूल से मारी गयी बहुत।२।
*
भूले से अपनी ओर न आँखें उठाए वो
जो शय बहुत बुरी थी दुलारी गयी बहुत।३।
*
धनवान मौका मार के ऊँचा चढ़ा मगर
निर्धन के हाथ आ के भी बारी गयी बहुत।४।
*
बेटी का ब्याह शान से करने को बिक गये
ऐसे भी बाजी मान की …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2021 at 9:25pm — No Comments
आशा .......
बहुत कोशिश की
मगर हार गई मैं
उस अनुपस्थिति से
जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है
एक खौफ के लिबास में
मुझे ठेंगा दिखाते हुए
भोर से लेकर साँझ तक
दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच
हमेशा झकझोरती है
किसी ग़ैर की मौजूदगी
मेरे अंतःस्थल को
उस की अनुपस्थिति के लिए
निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं
आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर
थकान की पराकाष्ठा पर
जब बदन निढाल होकर…
Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
जगाकर दिल में उम्मीदें दिलों को तोड़ने वालो
हमारा क्या है हम तो बेसहारा हैं सो जी लेंगे
तुम्हारा दिल अगर टूटा तो फ़िर तुम जी न पाओगे
मिरे लख़्त-ए-जिगर सुन लो गमों को पी न पाओगे
जरा सा नर्म रक्खो इस गुमाँ के सख़्त लहजे को
ये चादर फट गयी गर ज़िंदगी की सी न पाओगे
यहाँ हर शय पे रहता है मिरी जाँ वक़्त का पहरा
अगर जो वक़्त बदला तो बचा हस्ती न पाओगे
हमें आदत है पीने की सो हम तो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 30, 2021 at 11:22am — No Comments
बीते कुछ दिनों में लगा
कि हम कुछ बड़े हो गये ,
अहंकार से फूलने लगे
और फूलते...चले गए।
फूले इतना कि हर समस्या
के सामने बौने हो गये।
यकीन नहीं होता कि
आदमी खुद कुछ नहीं होता ,
ये जानने के बाद भी ,
कुछ का ख्याल हैं कि
लूटो-खाओ, पाप-पुण्य
कहीं कुछ नहीं होता ,
भगवान भी कहीं नहीं होता।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on April 30, 2021 at 10:48am — 2 Comments
सायली (कोरोना)
आसुरी
कोरोना मगरूरी
कायम रखें दूरी
मास्क जरूरी
मजबूरी!
*****
महाकाल
कोरोना विकराल
देश पर भूचाल
सरकारी अस्पताल
बदहाल।
*****
चमगादड़ी
कोरोना जकड़ी
संकट की घड़ी
आफत बड़ी
पड़ी।
*****
भड़की
कोरोना कलंकी
चमगादड़ से फड़की
मासूमों की
सिसकी।
*****
लाचारी
कोरोना महामारी
भर रही सिसकारी
दुनिया…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 29, 2021 at 10:18am — 4 Comments
मापनी १२२ १२२ १२२ १२२
नदी का वो बहता हुआ जल किधर है.
सवालों का ऐसे बता हल किधर है.
घुसी जा रहीं आज खेतों में सडकें,
डराता था हमको वो जंगल किधर है.
कहाँ से पवन अब बहे मंद शीतल,
चमेली, ये बेला, ये…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 29, 2021 at 9:26am — 2 Comments
होम-क्वारंटाइन में मैं चेतन और अवचेतन के बीच झूल रहा था I मेरा बड़ा बेटा रमेश रंजन (कुशी) दिन भर ऑक्सीमीटर से मेरा ऑक्सीजन-लेवल और पल्स-रेट चेक करता रहा I चार बजे सायं तक ऑक्सीजन लेवल 91 हो गया I बहुत कम नहीं था पर बेटा चिंता में पड़ गया I उसने सीधे अपने मामा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें हम ‘कुँवर जी’ कहते हैं, उन्हें फोन लगाया I कठिन क्षणों में कुँवर जी और उनका परिवार ही हमेंशा हमारा संकटमोचक रहा है और यही बड़ा विश्वास हमें और हमारे बच्चों को दुविधा की स्थिति में उनके पास ले जाता है…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 29, 2021 at 6:30am — No Comments
किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो
देश बेबस को निवाला कर रहे हो।१।
*
रंग पोते धर्म का बाहर से अपने
आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।
*
निर्वसनता चन्द लोगों को सुहाती
इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।
*
कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब
खून के छींटों से क्योंकर डर रहे हो।४।
*
व्यर्थ है उम्मीद पिघलोगे कभी ये
है पता हर जन्म में पत्थर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments
नर्स ने कोविड मरीज को ऑक्सीमीटर से चेक किया I उसका ऑक्सीजन लेवल 85 और पल्स रेट 60 था I पिछले बारह घंटे से वह ऑक्सीजन पर थाI
‘दादा, कोई तकलीफ ?’- नर्स ने पूछा I
‘हाँ, सूखी खाँसी आती है I गला सूखता है I’- मरीज ने दुर्बल स्वर में कहा I
‘खाँसी जाने में अभी महीना भर लगेगा I साँस लेने में तो कोई परेशानी नहीं है?
‘नहीं, ऑक्सीजन लगने से आराम है I’
‘पर दादा, यह मास्क केवल खाना खाने और पानी पीने के समय ही हटाना I मैंने पानी में ओ.आर.एस. मिला दिया है I धीरे-धीरे उसे…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 28, 2021 at 4:30pm — 5 Comments
कौन आँसू पोंछे , कौन सान्त्वना दे ?
स्वजन की मौत पर अकेले ही रोए हैं
आतंकी कोरोना के, मुश्किल हालातों में
स्वयं सांत्वना दी , स्वयं नेत्रनीर धोए हैं
ना ही चेहरा देखा , ना मरघट जा पाए
कैसी विडम्बना ; जो मन को झुलसाए
संचित स्मृतियों को , प्रेमपूर्ण भाव में
सजा लिया है अपने अन्तर के गाँव में
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2021 at 4:00pm — No Comments
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2020
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2012
2011
2010
1999
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