Added by सालिक गणवीर on June 20, 2021 at 10:54pm — 6 Comments
2222 - 2222
हो के पशेमाँ याद करोगे
रो कर भी फ़रियाद करोगे
याद करोगे जब भी हमको
अश्क़ अपने बरबाद करोगे
ज़ख़्म लगेंगे जब फूलों से
तुम हमको तब याद करोगे
घर तो बसा लोगे यारो पर
दिल कैसे आबाद करोगे
उतनी दुआएं दूँगा तुमको
जितना मुझे बरबाद करोगे
बज़्म तुम्हारी हुक्म तुम्हारा
जो चाहे इरशाद करोगे
मेरी ख़ातिर छोड़ो भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2021 at 9:00pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है
सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।
*
वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही
आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।
*
मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब
माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।
*
सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ
वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।
*
हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई
जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।
*
ये खेल ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 17, 2021 at 8:30pm — 5 Comments
तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा
तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।
*
तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के
रोड़ा न अब के कोई रवानी में आयेगा।२।
*
सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं
कब देश अपना यार जवानी में आयेगा।३।
*
सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये
जब दौर सुनहरा सा किसानी में आयेगा।४।
*
देती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे
केवल जगत में शौक से नेकी बचा रहे।१।
*
हम को कहो न आप गुनाहों का देवता
पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।
*
चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की
इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे।३।
*
माना बुरे हैं दाग भी हमको लगे हैं पर
वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।
*
अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो
अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।
*
झगड़ा न…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments
122 122 122 122
उठाकर शहंशह क़लम बोलता है
चढ़ा दो जो सूली पे ग़म बोलता है
ये फरियाद लेकर चला आया है जो
ये काफ़िर बहुत दम ब दम बोलता है
जुबाँ काट दो उसकी हद को बता दो
बड़ा कर जो कद को ख़दम बोलता है
गँवारों की वस्ती है कहता है ज़ालिम
किसे नीच ढा कर सितम बोलता है
बिठाता है सर पर उठाकर उसी को
जो कर दो हर इक सर क़लम बोलता है
बड़ी बेबसी में है जीता वो ख़ादिम
बड़ाकर जो…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 15, 2021 at 4:30pm — 6 Comments
ख़ुद को ऐसे सँवार कर जागा
यानी उस को पुकार कर जागा.
.
एक अरसा गुज़ार कर जागा
ख्व़ाब में ख़ुद से हार कर जागा.
.
तेरी दुनिया बहुत नशीली थी
जिस्म को अपने पार कर जागा.
.
आंखें तस्वीर की बिगाड़ी थीं
उनका काजल सुधार कर जागा.
.
ख़ुद-परस्ती में मैं उनींदा था
फिर अना अपनी मार कर जागा.
.
शम्स ने तीरगी पहन ली थी
सुब’ह चोला उतार कर जागा.
.
रात भर आईने की आँखों में
दर्द अपने उभार कर जागा. …
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 15, 2021 at 9:30am — 8 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 14, 2021 at 4:00am — 4 Comments
गुमनाम अंधेरे में देखो भारत का भविष्य पल रहा
दो जून रोटी की खातिर कोमल बचपन सुबक रहा
कलम चलाने वाले नन्हे हाथ झूठन साफ कर रहे
बस्ते उठाने वाले कंधे परिवार का बोझ उठा रहे
माँ के आंचल का फूल दरबदर की गाली खा रहा
भूखे पेट अपमान का घूंट पीकर जीवन गुजार रहा
हंसने-खेलने-पढ़ने की उम्र में मजदूर बन गये
बचपन की किलकारी खो गई मांझते-धोते
निरीह तरस्ती ऑखें उठ रही कुछ आस में...
इंसानियत के ठेकेदारों नियमों को मान लो
मंझवाने से अच्छा कल का भविष्य मांझ…
Added by babitagupta on June 10, 2021 at 3:30pm — No Comments
1222 1222 1222 1222
अज़ीब इस दिल की बातें हैं अज़ीब इसके तराने हैं
अज़ीब ही दर्द है इसका अज़ीब ही दास्तानें हैं
अज़ीब अंज़ाम है इसका अज़ीब आग़ाज़ करता है
अगर जो टूट भी जाये तो ना आवाज़ करता है
कभी सुरख़ाब करता है कभी बेताब करता है
दिल ए नादाँ............. दिल ए नादाँ...........
दिल ए नादाँ हर इक ख़्वाहिश को ही आदाब करता है
ये करतब कितनी आसानी से यारो दिल ये करता है
कभी ये ज़ख़्म देता है,…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 10, 2021 at 10:23am — 2 Comments
दिल लगाएँ, दिल जलाएँ, दिल को रुसवा हम करें
चार दिन की ज़िन्दगी में और क्या क्या हम करें?
.
एक दिन बौनों की बस्ती से गुज़रना क्या हुआ
चाहने वो यह लगे क़द अपना छोटा हम करें.
.
हाथ बेचे ज़ह’न बेचा और फिर ईमाँ बिका
पेट की ख़ातिर भला अब और कितना हम करें?
.
चाहते हैं हम को पाना और झिझकते भी हैं वो
मसअला यानी है उनका ख़ुद को सस्ता हम करें.
.
इक सितम से रू-ब-रु हैं पर ज़ुबां ख़ुलती नहीं
ये ज़माना चाहता है उस का चर्चा हम करें.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on June 8, 2021 at 12:00pm — 8 Comments
एक आयु के उपरान्त
प्रेम मुदित तुम्हारा लौट आना
गुज़रती साँसों को मानो
संजीवनी की बूटी से
साँस नई दे देना
स्नेह का यह फल मीठा
और अति आनन्ददायक था…
ContinueAdded by vijay nikore on June 7, 2021 at 1:00pm — 8 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो
लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।
**
कहता था हम से देश को आया सँभालने
पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।
**
महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी
सेठों को मुफ्त बाँटता हर दम ईनाम वो।३।
**
केवल उड़ायी नींद हो ऐसा नहीं हुआ
सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।
**
समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी
करता है मन की बात बहुत बेलगाम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments
आपाधापी, व्यस्तता, लस्त-पस्त दिन-रात
छोड़ इन्हें, आ चल सुनें, कली-फूल की बात ।
मन मारे चुप आज मैं.. सोचूँ अपना कौन..
बालकनी के फूल खिल, ढाँढस देते मौन !!
सांत्वना वाले हुए.. हाथ जभी से दूर ..
लगीं बोलने डालियाँ, 'मत होना मज़बूर' !!
जाने आये कौन कब, मन की थामे डोर
तुलसी मइया पोंछना, नम आँखों की कोर
फिर आया सूरज लिये, नई भोर का रूप
उठ ले अब अँगड़ाइयाँ, निकल काम पर धूप !
मन-जंगल उद्भ्रांत है, इसे चाहिए त्राण…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on June 5, 2021 at 5:30pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की
कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)
उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए
कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)
अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए
लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)
उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे
पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)
सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर
ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की…
Added by सालिक गणवीर on June 5, 2021 at 9:00am — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२२
गीत में सद् भावना का ज्वार कम है
सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।
**
दे रहे सब सान्त्वना पर जानता हूँ
शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।
**
सिद्ध कैसे झट से होगी योग माया
आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।
**
सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब
हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।
**
हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता
किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।
**…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा
लाया मगर अमल में अँधेरों ने जो कहा।१।
**
बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को
समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।
**
देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है
जाना अमर है सत्य हवाओं ने जो कहा।३।
**
सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये
आया असर न एक दुआओं ने जो कहा।४।
**
इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को
सच कह रही है देह दवाओं ने जो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments
2122 1122 22
लाओ जंजीर मुझे पहना दो
मेरी तकदीर मुझे पहना दो
तुम ख़ुदा हो तो ये डर कैसा है
मेरी तहरीर मुझे पहना दो
जो भी चाहो वो सज़ा दो मुझको
जुर्म ए तामीर मुझे पहना दो
पहले काटो ये ज़ुबाँ मेरी फिर
कोई तज़्वीर मुझे पहना दो
मुफ़्लिसी ज़ुर्म अगर है मेरा
सारी ताजी़र मुझे पहना दो
आज आया हूँ मैं हक की खातिर
कोई तस्वीर मुझे पहना दो
मौलिक व…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 2, 2021 at 12:30pm — 9 Comments
ग़जलः
2122 2122 2122 212
मुन्तज़िर थे हम मगर मिलना मयस्सर ना हुआ
वस्ल तो तय थी नसीबा पर हमारा ना हुआ
चाँद रातों में तड़पता वस्ल की खातिर कोई
वो मुहर लब पर हुई कब वो नज़ारा ना हुआ
चाँदी की दीवारें आड़े आईं आशिक प्यार के
मुफलिसों को प्यार का या रब सहारा ना हुआ
जो पहुँचना था हमें अफलाक की ऊँचाइयों,
रह गये बैठे जमीं कोई हमारा ना हुआ ।
टूटती साँसे रही मकतल बना अस्पताल अब,
ज़िन्दगी तेरा भरोसा…
Added by Chetan Prakash on June 2, 2021 at 11:30am — 4 Comments
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