2122 2122 2122 212
बह्रे रमल मुसम्मन महफूज़:
हिब्ज जिसको राजधानी क्या ज़रूरत धाम की !!
सारी दुनिया है उसी की कब रज़ा हुक्काम की !!
ज़िन्दगी तो दोस्त बस जिन्दादिली का नाम है,
मौज़िजा हो जायेगा यारा इबादत राम की !!
साथ जीते भारती हम मत करें नाहक मना,
अन्त भी होगा यहीं या रब मलानत जाम की !!
आइना टूटा हुआ है, यार देखोगे क्या तुम ?
इल्म की छाया नही है हर खिताबत नाम की !!
कब…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 8:53pm — No Comments
2122 2122 2122 212
बह्रे रमल मुसम्मन महफूज़:
हिब्ज जिसको राजधानी क्या ज़रूरत धाम की !!
सारी दुनिया है उसी की कब रज़ा हुक्काम की !!
ज़िन्दगी तो दोस्त बस जिन्दादिली का नाम है,
मौज़िजा हो जायेगा यारा इबादत राम की !!
साथ जीते भारती हम मत करें नाहक मना,
अन्त भी होगा यहीं या रब मलानत जाम की !!
आइना टूटा हुआ है, यार देखोगे क्या तुम ?
इल्म की छाया नही है हर खिताबत नाम की !!
कब…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 8:09pm — No Comments
212 212 212 212
जो चला वो नमाज़ी फँसा रह गया !
दूरियाँ घट गयीं फासला रह गया !!
ज़िन्दगी बंदगी हो सकी गर खुदा,
दूर था प्यार वो पास आ रह गया !!
ना रहा कोई अपना जहाँ दोस्त जाँ,
जीस्त होती रही दिल जला रह गया !
क्या हुआ गर तुम्हारा वो सर झुक गया,
झूठ का दम रहा बेमज़ा रह गया !!
साजिशें चाहे जितनी करे कोई याँ,
सर मरासिम का पर बारहा रह गया !
बख्श…
ContinueAdded by Chetan Prakash on July 6, 2021 at 4:08pm — No Comments
अपर्याप्त तो सोचना, किए बिना प्रयास। हो प्रयास उसके लिए, पूरी तब हो आस॥ |
इच्छाएँ सीमित रहें, दें प्रकृति को मान। |
तन को ढकने के… |
Added by Om Parkash Sharma on July 4, 2021 at 11:30pm — 8 Comments
1222 1222 122
खबर झूठी उड़ाना चाहता हूँ,
तेरी यादें छुपाना चाहता हूँ।
तुम्हारे पास थोड़ा वक्त हो तो,
मैं हाले दिल सुनाना चाहता हूँ।
रकीबों की गली में आ गया हूँ,
तेरे घर में ठिकाना चाहता हूँ।
जो मेरी जान के दुश्मन बने हैं,
उन्हीं के हाथ आना चाहता हूँ।
बवंडर क्यों उठा है सरहदों पर,
मैं सबको सच बताना चाहता हूँ।
सियासत ,घर के झगड़े, दिल की बातें
मैं सब से दूर जाना…
Added by मनोज अहसास on July 3, 2021 at 8:39pm — 2 Comments
ग़ज़ल-221 1222 22 221 1222 22
इस बहर में मेरी ये पहली ग़ज़ल है यह मतला लगभग 2 वर्ष पहले हुआ था लेकिन यह ग़ज़ल पूरी नहीं हो रही थी इसका कारण यह है कि मैं इस बहर में सहज महसूस नहीं कर रहा था यह बहर मेरी समझ में ही नहीं आ रही आज किसी तरह यह पूरी हुई है जानकार लोग बताएं कि क्या यह बहर ठीक से निभाई गई है या नहीं....
मरने का बहाना मिल जाता, जीने की सज़ा से बच जाते,
इक बार कभी वो आ जाते जो आ न सके आते आते ।
महसूस कभी होता कैसे वो दर्द का रिश्ता टूट गया…
ContinueAdded by मनोज अहसास on July 3, 2021 at 12:06am — 7 Comments
221 - 2121 - 1221 - 212
है कौन ऐसा जिसको यहाँ आज ग़म नहीं
हर दिल में याद यादों के नश्तर भी कम नहीं
दहलाता हर किसी को ये मंज़र है ख़ौफ़नाक
साँसें हुईं मुहाल कि मसला शिकम नहीं
ग़म को वसीह करते ये अटके हुए बदन
नदियों के तट भी गोर-ए-ग़रीबाँ से कम नहीं
आई वबा ये कैसी कि मातम है हर तरफ़
ग़मगीन चहरे लाशों पे लाशें भी कम नहीं
मस्कन भी थी ये गंगा है मद्फ़न भी आज…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 11:15pm — 17 Comments
1222 - 1222 - 1222 - 1222
(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम)
जगह दिल में तुम्हारे अब भी थोड़ी सी बची है क्या
मेरे बिन ज़िन्दगी में जो कमी सी थी वही है क्या
अभी तक आरज़ू जो दफ़्न कर रक्खी है सीने में
तड़प उसकी जो सुनता हूँ वो तुमने भी सुनी है क्या
तेरे साँसों की गर्मी से पिघल कर रह गया हूँ मैं
जो हालत हो गई मेरी वही तेरी हुई है क्या
मिले हो जब भी…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 2, 2021 at 6:04pm — 7 Comments
कौन कहता घाव अपने सी रहा है आदमी
आजकल तो खून अपना चूसता है आदमी।१।
*
देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन
आदमी की पाँत से ही लापता है आदमी।२।
*
जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो
आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।
*
प्यास होने पर मरुस्थल छान लेता नीर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments
स्वयं को आजमाने को
तू खुलकर आ जमाने में
बहुत अनमोल है जीवन
गवाँता क्यों बहाने में
नदी के पास बैठा है
दबा के प्यास बैठा है
तुझे मालूम है, तुझमें
कोई एहसास बैठा है
किनारे कुछ न पाओगे
मिलेगा डूब जाने में
तुम्हारे सामने दुनिया
सुनो रणभूमि जैसी है
स्वयं का तू ही दुश्मन है
स्वयं का तू हितैषी है
कहीं पीछे न रह जाना
स्वयं से ही निभाने में
कहाँ दसरथ की दौलत …
Added by आशीष यादव on July 1, 2021 at 2:30am — 4 Comments
221-2121-1221-212
अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या
हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।
*
राजा से पूछा करता जो डंके की चोट पर
जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।
*
हट कर खबर के पृष्ठों से सम्पादकीय में
जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।
*
जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक
निष्पक्ष सत्य सुर्खी में आता सदा है क्या।४।
*
पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई
नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments
आंखें आंखें अद्भुत आंखें,नित नए रूप बदलती आंखें
सबकुछ कहतीं पर चुप रहतीं,नित नए रूप दिखाती आंखें
कहीं तो ज्वालामुखी हैं आँखें,कहीं झील सी गहरी आंखें
मंद मंद मुस्काती आँखें,कहीं उपहास उडा़ती आंखें
हिरनी सी चंचल ये आँखें,डरी डरी सहमी सी आंखें
लज्जा से भरी अवगुंठित आँखें,फिर टेढी चितवन वाली आंखें
कहीं प्यार बरसाती आंखें,कहीं पर सबक सिखाती आंखें
ममता भरी वो भीगी आँखें,सजदे में झुक जाती आंखें
क्रोध से लाल धधकती आँखें,मेघों सी वो बरसती…
ContinueAdded by Veena Gupta on June 29, 2021 at 6:54pm — 4 Comments
2×15
वक़्त गुज़र जाएगा ये भी पल पल का घबराना क्या?
जो आँखों में ठहर न पाये उन सपनों से रिश्ता क्या?
अपनी मर्ज़ी का जीवन हो ज्यादा हो या थोड़ा हो,
मरना तो सबको है इक दिन घुट घुट कर फिर जीना क्या?
सोच समझ कर कदम बढ़ाना हर रस्ते पर धोखा है,
घर के किस्से,देश की बातें ,दीन धर्म का झगड़ा क्या?
पहली दफा जब मिले थे तुमसे वो दिन तो अब याद नहीं,
लेकिन अब तक सोच रहे हैं टूट गया वो रिश्ता क्या?
सबका भला करने की कोशिश कभी नहीं…
ContinueAdded by मनोज अहसास on June 29, 2021 at 12:40am — No Comments
221/2121/1221/212
पत्थर जमाना बोये जो काटों की खेतियाँ
छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।
*
कर लेंगे ये भी शौक से बेटे किसान के
लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।
*
ये जो है लोकतंत्र का धोखा मिला हमें
बन्धक रखी हैं वोट दे हाथों की खेतियाँ।३।
*
बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को
किस्मत पे छाप छोड़ती कर्मों की खेतियाँ।४।
*
उजड़े नगर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments
गड़गड़ाकर
खाँसता है
एक बूढ़ा ट्रैक्टर
डगडगाता
जा रहा है
ईंट ओवरलोड कर
सरसराती कार निकली
घरघराती बस…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2021 at 9:21pm — 11 Comments
भारत की जब बात है होती,ज्योति मेरे दिल की है जलती
कितना सुंदर देश है मेरा,कितनी पावन रीति यहाँ की
घर घर मंदिर गुरुद्वारा है,सबके बीच परस्पर प्रीती
संतोष बड़ा धन है जीवन में,सिखलाती ये अपनीसंस्कृती
नहीं थोपते धर्म किसी पर,ना ज़िद कोई विश्व विजय की
खुश हैं हम अपनी धरती पर,नहीं चाहिए ज़मीं दुजे की
स्वयं जियो और जीने दो,भारत का सिद्धांत यही
विश्व संस्कृती को अपनाते,वसुधैव कुटुंबकम है येही
मौलिक/अप्रकाशित
वीणा
Added by Veena Gupta on June 24, 2021 at 9:48pm — 5 Comments
1222 1222 1222 1222
ज़ुमुररुद कब किसी मुफ़्लिस के घर चूल्हा जलाता है
मिरी जाँ ये तो बस शाहों कि पोशाकें सजाता है
रिआया भी तो देखो कितनी दीवानी सी लगती है
उसी को ताज़ कहती है जो इनके घर जलाता है
नगर में नफ़रतों के भी महब्बत कौन समझेगा
ए पागल दिल तू वीराने में क्यों बाजा बजाता है
हमारे हौसले तो कब के आज़ी टूट जाते पर
ये नन्हा सा परिंदा है जो आशाएँ जगाता है
कोई बेचे यहाँ आँसू तो कोई…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on June 24, 2021 at 6:00pm — 8 Comments
2122/2122/2122/212
है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए
जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।
*
स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो
भावना की कूचियाँ हों रंग भरने के लिए।२।
*
ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर
भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।
*
खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम
रंग लेता है समय कुछ यूँ उभरने के लिए।४।
*
मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं
जिन्दगी का लोभ काफी यार …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 22, 2021 at 11:30pm — 3 Comments
Added by Mamta gupta on June 22, 2021 at 1:22pm — 10 Comments
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