पाकीज़गी ......
मैं
जिस्म से रूह तक
तुम्हारी हूँ
मेरी नींदें तुम्हारी हैं
मेरे ख़्वाब तुम्हारे हैं
मेरी आस भी तुम हो
मेरी प्यास भी तुम हो
मेरी साँसों का विश्वास भी तुम हो
मेरे प्राणों का मधुमास भी तुम हो
मगर ख़याल रहे
मेरे जिस्म को
दिखावटी पर्दों से नफ़रत है
मेरे पास आना तो
ज़माने के बेबस लिबास को
ज़माने में ही छोड़ आना
क्योंकि
मेरे जिस्म को
पाकीज़गी पसंद है
सुशील सरना
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on April 28, 2021 at 12:57pm — No Comments
जलता है जिस्म सुर्ख है किंदील के जैसे
इक झील दिन में लगती है किंदील के जैसे
हर शाम उतर आता है ये दरियाओं झीलों पर
मर फ़ासलाई होगी इक खगोलिये इकाई
दिखता भी सुर्ख सुर्ख है घामें लपेटे है
सूरज भी तो जलता है इक किंदील के जैसे
है तीरगी घनी घनी ज़हनों के अंदर तक
सब भूल जायें जात-पात हद-कद और सरहद
सब ख़ाक करके बंदिशें रौशन करें ख़ुद को
मैं भी जलू तू भी जले किंदील के जैसे
चलो मिलके सारे जलते हैं किंदील के जैसे
है धरती के…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 28, 2021 at 10:59am — No Comments
प्रतिभा छुपी हुई है सबमें,करो उजागर,
अथाह ज्ञान,गुण, शौर्य समाहित,तुम हो सागर।
डरकर,छुपकर,बन संकोची,रहते क्यूँ हो?
मन पर निर्बलता की चोटें,सहते क्यूँ हो?
तिमिर चीर रवि द्योत धरा पर ले आता है।
अंधकार से डरकर क्यूँ नहीं छिप जाता है?
पराक्रमी राहों को सुलभ सदा कर देते,
आलस प्रिय जिनको,बहाने बना ही लेते।
तंत्र,मन्त्र,ज्योतिष विद्या,कर्मठ के संगी,
भाग्य भरोसे जो बैठे वो सहते तंगी।
प्रबल भुजाओं को खोलो,प्रशंस्य बनो,…
Added by शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप" on April 27, 2021 at 3:00pm — 5 Comments
विदा की वह शाम
प्रबल झंझावात के बाद मानो
दिशा-दिशा आकुल अकथ सुनसान
निस्तब्ध शांत ... और इस पर
दिन से सम्बन्ध तोड़ रही
वैभव-विहीन शाम…
ContinueAdded by vijay nikore on April 27, 2021 at 2:30pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चिन्ता करें जो आम की शासन नहीं रहे
कारण इसी के लाखों के जीवन नहीं रहे।१।
*
हर कोई खेल सकता है पैसों के जोर पर
कानून आज देश में बन्धन नहीं रहे।२।
*
अब हो गये हैं आँख वो भूखे से गिद्ध की
जो थे बचाते लाज को यौवन नहीं रहे।३।
*
आई हवा नगर की तो दीवारें बन गयीं
मिलजुल जहाँ थे बैठते आगन नहीं रहे।४।
*
जीवन का दर्द आँखों में उनकी रहा जवाँ
बेवा हो जिनके हाथों में कंगन नहीं रहे।५।
*
तकनीक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 12:48pm — 4 Comments
मुहब्बत हो जाती है ,
मुहब्बत हो जाती है ,
मुहब्बत हो जाती है ,
ये तो नफ़रतें हैं ,
जिनके लिए टेंडर
निकाले जाते हैं .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on April 25, 2021 at 10:00pm — 2 Comments
११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२
किसी रात आ मेरे पास आ मेरे साथ रह मेरे हमसफ़र
तुझे दिल के रथ पे बिठा के मैं कभी ले चलूँ कहीं चाँद पर
तुझे छू सकूँ तो मिले सुकूँ तुझे चूम लूँ तो ख़ुदा मिले
तू जो साथ दे जग जीत लूँ तूझे पी सकूँ तो बनूँ अमर
मेरे हमनशीं मेरे हमनवा मेरे हमक़दम मेरे हमजबाँ
तुझे तुझ से लूँगा उधार, फिर, भरूँ किस्त चाहे मैं उम्र भर
कहीं धूप है कहीं छाँव है कहीं शहर है कहीं गाँव…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2021 at 6:10pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने किसी को हर्ष का इक पल नहीं दिया
सूखी धरा को जैसे कि बादल नहीं दिया।१।
*
रूठे तो उससे रोज ही लेकिन मनाया कब
आँसू ढले जो आँखों से आँचल नहीं दिया।२।
*
गंगा से भर के लाये थे पुरखों को तारने
जलते वनों की प्यास को वो जल नहीं दिया।३।
*
कहने पे मन को आपके बंदिश में क्यों रखें
यूँ जब किसी भी द्वार को साँकल नहीं दिया।४।
*
कालिख लगी है इनमें जो सौगात जग की है
आँखों में हम ने एक भी काजल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 25, 2021 at 12:36pm — 6 Comments
14-12
रास्ते सुनसान और घर, कैद खाने हो गये
खुशनुमा इंसान दहशत, के निशाने हो गये
बेबसी का हाल देखा, दिल दहल कर रह गया
मुफ़्लिसी में ज़िंदगी का, ख़्वाब जल कर रह गया
डर से कोरोना के भी, वो भला अब क्या डरे…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 11:30pm — 2 Comments
Added by vijay nikore on April 24, 2021 at 11:30pm — 3 Comments
1222 1222 1222 1222
कफ़स में उम्र गुजरी है परिंदा उड़ न पायेगा
जो तुम आज़ाद भी कर दो घर अपने मुड़ न पायेगा
संभल जाना अगर कोई तुम्हें करने ख़ुदा आये
वगरना ऐसे तोड़ेगा कि दिल फ़िर जुड़ न पायेगा
वो चाहे बेड़ियों से हो या फ़िर की हो किसी दिल से
अगर जो पड़ गई आदत तो बंधन छुड़ न पायेगा
लुटेरे हैं ये सब मुफ़्लिस जो तुम विश्वास दिलाते हो
रिवायत बन गया गर ये भरम फ़िर तुड़ न पायेगा
तमाम आज़ी कुछ आदत…
ContinueAdded by Aazi Tamaam on April 24, 2021 at 10:40am — No Comments
आशाओं , आकांक्षाओं की
जीवन की और प्रतिभाओं की
इस लोकतन्त्र के मन्दिर में
बलि नित्य चढ़ाई जाती है
कोरोना की महमारी में
त्रासद स्थिति, लाचारी में
लाशों पर राजनीति करके
जनता भरमाई जाती है
जिस समय मुसीबत ने घेरा
चँहु ओर काल का है डेरा
वीभत्स घड़ी में आन्दोलन
रैली करवाई जाती है
नज़रें गड़ाए सब वोटों पर
टिकती निगाह बस नोटों पर
शासन में भागीदारी की
कामना जगाई जाती…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 24, 2021 at 9:47am — 4 Comments
याद तुम्हारी क्या बतलाऊँ
कैसे कैसे आ रही है
चलने का अंदाज़ ठुमक कर
मचल-मचल कर और चहक कर
हाथों को लहरा-लहरा कर
अदा-अदा से और विहँस कर
तेरी सुंदर-सुंदर बातें
मन हर्षित है गाते-गाते
मैं कब से आवाज दे रहा
आ जाते हँसते-मुस्काते
तेरे गालों वाले डिम्पल
याद आते हैं मुझको पल-पल
मिसरी में पागे होठों के
नाज़ुक चुम्बन कोमल-कोमल
एक छवि मुस्कान बटोरे
मुझको अपने परितः घेरे
सुंदर सुखद समीर…
एक ग़ज़ल
चूड़ी भरी कलाईयाँ, कँगना बसंत है.
सिंदूर भर के मांग में सजना बसंत है.
चारों तरफ घिरी रहें यादों की बदलियाँ,
फिर उनके साथ रात में जगना बसंत है.
बिखरी हुई हो चाँदनी नदिया के तीर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 22, 2021 at 8:28pm — 4 Comments
बिना बात की बात बनाते,
लोग यहाँ दिख जाते हैं
जैसे उल्लू सीधा होता,
वैसे ही बिक जाते हैं।
धर्म नहीं जानें क्या होता,
क्या जानें परिभाषा को
रिश्तों को अब मान नहीं है,
स्थान नहीं कुछ आशा को।
दशरथ घर से बाहर हैं अब,
पूत वहाँ का राजा है,
देकर वचन भूल जाना बस,
यही समय से साधा है
सरयू को अपमानित करते,
गंगा दूषित होती है
देख नज़ारा प्रतिदिन का यह,
भारत भू अब रोती है।
राम नहीं है घट में लेकिन,
झंडों पर…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 21, 2021 at 2:46pm — 2 Comments
जो पहले मौत दे, फिर जिंदगानी कौन देता है
मेरे किरदार को ऐसी कहानी कौन देता है
यहां तालाब नदियां जब कई बरसों से सूखे हैं
खुदा जाने हमें पीने को पानी कौन देता है
हमारी जिंदगी ठहरी हुई इक झील है लेकिन
ये उम्मीदों के दरिया को रवानी कौन देता है
जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन
नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है
परिंदे भी समझते हैं कि पर कटने का खतरा है
इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता…
Added by atul kushwah on April 20, 2021 at 5:30pm — 6 Comments
नानी की कमी जीवन पर्यन्त याद आएगी ,
आंखें मेरी क्षण-क्षण अक्षुओं से भर आएंगी
खाये जिनके बनाये गर्मियों में चांवल और दाल,
छोड़ के हम नाती-पोतों को कब दूर चली जाएगी…
ContinueAdded by Rohit Dubey "योद्धा " on April 20, 2021 at 11:00am — No Comments
Added by Sushil Sarna on April 19, 2021 at 8:30pm — 4 Comments
मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२
धवल हैं वस्त्र, नीयत के मगर गंदे बहुत हैं
चिरैया देख! दाने कम उधर फंदे बहुत हैं
मचा है शोर मँहगाई का चारों ओर लेकिन
यहाँ बस आदमी के भाव ही मंदे बहुत हैं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2021 at 12:35pm — 4 Comments
सुनसान सड़क, सुनसान रात है, सुनसान सबके अन्तर्मन
कैसे विपदा आन पड़ी ये, दुख, तड़प और है उलझन ||
चिराग भुझ रहे हर पल, हर क्षण, लगा दो चाहे तन, मन, धन
कड़ा समाधान न मिला अभी तक, जकड़ रहा है गहरा तम ||
भूख, प्यास और खाली है घर, रोजी रोटी भी हो गई बंद
वायु में जैसे विष घुला है, कैसा संकट ये कैसा कष्ट ||
हर पीड़ित अब यही पूछता, भूख लगने पर हो बंधन
पापी-खाली पेट तो मान रहा न, कैसे इच्छापूर्ति करेगा रंक ||
हाथ…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on April 18, 2021 at 10:00am — No Comments
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