2122--1212--22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 21, 2016 at 8:00pm — 9 Comments
2122 1212 22
उनकी नज़रों से जो उतर जाए |
आसरा ढूंढ़ने किधर जाए |
कर लिया है यक़ीन उनपे मगर
डर है यह भी न वो मुकर जाए |
जो ज़ुबां कर न पाए उल्फ़त में
आँख चुप चाप उसको कर जाए |
भीड़ आए नज़र क़ियामत सी
शोख़ उनकी नज़र जिधर जाए |
मिल गया जब खिताबे दीवाना
उनके कूचे से कौन घर जाए |
जिसके घर का पता नहीं कोई
कैसे उस तक कोई ख़बर जाए |
दिन में तस्दीक़ आए रात…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 20, 2016 at 9:00pm — 14 Comments
रिजर्वेशन (लघु कथा )
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हामिद का थर्ड ए सी का टिकट कन्फर्म हो चूका था , ट्रैन के आते ही वह पत्नी के साथ जयपुर के लिए रवाना हो गया | उसकी सीट के सामने 9 और 12 नंबर की बर्थ थीं जिन पर लेटे यात्री आगे से आरहे थे | अगले स्टेशन पर दो महिलाएं कोच में चढ़ गयीं ,आते ही कहने लगीं कि बर्थ 9 और 12 हमारी हैं दो महीने पहले से रिजर्वेशन करवा रखा है | इतना सुनते ही दोनों यात्री सकते में आगये। ......... बहस शुरू हो गयी , दोनों यात्रियों ने मोबाइल पर कन्फर्म मेल…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2016 at 9:43pm — 2 Comments
ग़ज़ल (ज़िंदगी का यही तो साहिल है )
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2122 -------1212 --------22
किस लिए मौत से तू ग़ाफ़िल है |
ज़िंदगी का यही तो साहिल है |
जो बचाता है बद नज़र से उन्हें
उनके रुख़ का सियाह वह तिल है |
वह सफ़र में नहीं है साथ अगर
मेरे किस काम की वो मंज़िल है |
जितनी आसां है राह उल्फत की
उसकी मंज़िल भी उतनी मुश्किल है |
मेरी आँखों से देखिये उनको
वह…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2016 at 9:05pm — 2 Comments
रोटी (लघु कथा )
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ऑफिस में लंच का वक़्त होते ही आज़ाद ने खाना खाने के बाद रोज़ की तरह बाहर आकर एक मिट्टी के बर्तन में पानी भरके पास में बाजरे के दाने डाल दिए ,ताकि चिड़ियाँ भी अपनी भूक और प्यास बुझ सकें | सामने दो कुत्ते भी इंतज़ार में खड़े हुए थे , आज़ाद ने बची हुई रोटी के दो टुकड़े करके उनकी तरफ फेंक दिए | ....... अचानक बड़ा कुत्ता एक टुकड़ा मुंह में दबा कर दूसरे टुकड़े की तरफ बढ़ने लगा , यह देख कर छोटा कुत्ता फ़ौरन आगे बढ़ा ,...... देखते ही देखते दोनों कुत्ते आपस में…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2016 at 12:16pm — 16 Comments
ग़ज़ल (क़ियामत से पहले )
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122 --122 --122 --122
जुदा हो गए हैं वो क़ुरबत से पहले |
क़ियामत उठी है क़ियामत से पहले |
तड़प आह ग़म अश्क वह इम्तहाँ हैं
जो होंगे मुहब्बत कि जन्नत से पहले |
कहीं बाद में हो न अफ़सोस तुम को
अभी सोच लो तरके उल्फ़त से पहले |
ख़ुशी ज़िंदगी भर भला किसने पाई
कई कोहे ग़म हैं मुसर्रत से पहले |
न इतराओ करके तसव्वुर किसी का
अभी ख़्वाब…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 1, 2016 at 9:35pm — 20 Comments
ग़ज़ल(एतबार न कर )
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2122 ----1212 -----112
मान मेरी सलाह प्यार न कर |
हुस्न वालों का एतबार न कर |
हो न जज़्बात जाएँ बेक़ाबू
जानेजां हद वफ़ा की पार न कर
बेच दी जिन सुख़नवरों ने क़लम
उनके जैसा मुझे शुमार न कर|
हुस्न वाले वफ़ा नहीं करते
तू यक़ीं उनपे बार बार न कर |
आँख भीगी है और हंसी लब पर
राज़े उल्फ़त को आशकार न कर |
वक़्ते रुख़सत निगाह नम…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 13, 2016 at 9:20pm — 12 Comments
ग़ज़ल (मुहब्बत से किनारा कर रहा है )
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1222 --------1222 --------122
मुहब्बत से किनारा कर रहा है |
हमें वह बे सहारा कर रहा है |
तुम्हारा देखना रह रह के मुझको
वफ़ा को आश्कारा कर रहा है |
न कोई देख ले यह डर मुझे है
वो खिड़की से इशारा कर रहा है |
युं ही क़ायम रहे यह दोस्ताना
कहाँ आलम गवारा कर रहा है |
वो लाके ग़ैर को महफ़िल में…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2016 at 1:08pm — 19 Comments
बेटा ख़ानदान का चराग़ और बुढ़ापे का सहारा होता है , बेटियां पराया धन हैं दूसरे के घर चली जाती हैं | शान्ती की यही सोच ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हो चुकी थी | ..... इकलौते बेटे को प्राइवेट कॉलिज में और बेटियों को सरकारी कालिज में पढ़ाया ,यही नहीं ज़ेवर बेचकर बेटे को एम बी ए कराया और बेटी इस से महरूम रह गयी | घर का खर्चा पति की पेंसन और सिलाई करने से चल रहा था मगर हाय क़िस्मत बेटा भी बहू के बहकावे में आकर माँ और बहनों को बेसहारा छोड़ गया। ...... पति ज़िंदा होते तो यह दिन देखने न पड़ते | शान्ती दुखों…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 6, 2016 at 10:00pm — No Comments
ग़ज़ल (पास है वह कहाँ दूर है )
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212 -------212 --------212
जो तसव्वुर में मामूर है |
पास है वह कहाँ दूर है |
आइने पर न तुहमत रखो
वह तो पहले से मग़रूर है |
मुस्करा उनके हर ज़ुल्म पर
यह ही उल्फ़त का दस्तूर है |
उनके दीदार का है असर
मेरे रुख पे न यूँ नूर है |
बे वफ़ाई है वह हुस्न की
जो ज़माने में मशहूर है |
छोड़ जाये गली किस…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 9:04pm — 10 Comments
दिन ढलने का वक़्त क़रीब आरहा था कि अचानक रास्ते पर सामने से कारवां की तरफ कोई आदमी भागता हुआ नज़र आया | वह हांफता हुआ पास आकर बोला ,आगे ख़तरा है मेरा क़ाफ़ला लुट चूका है | सालारे कारवां ने बिना सोचे समझे उसकी बातों पर यक़ीन करके वहीँ पर क़याम करने का हुक्म देदिया ,हामिद ने लाख कहा इस पर यक़ीन मत करो , मुझे इसकी आँखों में फ़रेब नज़र आरहा है | ...... मगर सब बेकार गया | रात को जब क़ाफ़ले वाले बेख़बर सो रहे थे ,हामिद की आँखों से नींद गायब थी | ...... यकबयक उसे घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दी…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on March 1, 2016 at 7:30am — 12 Comments
ग़ज़ल ( क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की )
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2122 ------1212 ------22
फ़ितरते बर्क़ है जलाने की /
ख़ैर क्या मांगें आशियाने की /
जाँ अगर लेनी थी बता देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कराने की /
उनकी आदत है जुल पे जुल देना
और अपनी फ़रेब खाने की /
छिन गई नींद लुट गया है सुकूं
ये सज़ा पायी दिल लगाने की /
पास जाके भी देखते कैसे
उनकी आदत है मुंह…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 18, 2016 at 10:02pm — 12 Comments
ग़ज़ल ( निभा रहे हैं )
12122 ----12122)
फरेब उल्फ़त में खा रहे हैं /
सितमगरों से निभा रहे हैं /
घटाएं हों क्यों न पानि पानी
वो छत पे ज़ुल्फ़ें सुखा रहे हैं /
हुई है मुद्दत ये सुनते सुनते
वो मुझको अपना बना रहे हैं /
शराब ख़ोरी तो है बहाना
किसी को दिलसे भुला रहे हैं /
लगाके इल्ज़ाम दूसरों पर
वो अपनी ग़लती छुपा रहे हैं /
मेरे लिए बज़्म में वो आये
मगर सभी फ़ैज़ पा…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on February 14, 2016 at 11:47am — 10 Comments
ग़ज़ल (पत्थर निकला ) -------------------------
- 2122 ---1122 ---1122 --22
मेरि बर्बाद मुहब्बत का ये मंज़र निकला /
जिसको उल्फत का ख़ुदा समझा वो पत्थर निकला /
दिल को तस्कीन तो हासिल हुई हमदर्दी से
पर निगाहों से नहीं ग़म का समुन्दर निकला /
ज़ुल्म ने जब भी ज़माने में उठाया है सर
लेके ख़ुद्दार क़लम अपना सुख़नवर निकला /
नीम शब मिलने की तदबीर भी बेकार गयी
सुबह होते ही गली कूचे में महशर निकला…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2016 at 12:56pm — 21 Comments
रंगों की दुनिया में असुरक्षा का माहौल बनता देख लाल ,पीले और नीले रंग के मंत्रियों ने सफ़ेद रंग के सरदार से आपात मीटिंग बुलाने को कहा /हर तरह के रंगों को आमंत्रित किया गया /.... मीटिंग शुरू हुई --मुद्दा था ऐसा क्या करें कि हर वर्ग हमें प्यार से देखे /..... लाल और पीले रंग बोल उठे ,हमारे रंग को हिन्दुओं ने पसंद कर लिया ,मुसलमान हमारी तरफ अजीब नज़रों से देखते हैं /.... नीले और पीले एक साथ कहने लगे हम दोनों से बने हरे रंग को मुसलमानों ने अपना लिया , हिन्दू हमें नफरत की नज़र से देखते हैं /.....…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2016 at 10:00am — 7 Comments
2122 ----2122 -----2122 ----212
आप की गलियों के कुछ मंज़र हमें अच्छे लगे
ठोकरें खाते हुए पत्थर हमें अच्छे लगे
सुनके हर्फ़े आरज़ू माथे पे शिकनें पड़ गयीं
हुस्न के बिगड़े हुए तेवर हमें अच्छे लगे
इस तरफ आहो फ़ुग़ाँ और उस तरफ रंगीनियाँ
अहलेज़र से मुफ़लिसों के घर हमें अच्छे लगे
नर्म गद्दों के बजाये सो गए इक टाट पर
फ़ाक़ाकश मज़दूर के बिस्तर हमें अच्छे लगे
वक़्ते रुख़सत ग़म के मारे आगये जो आँख…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 10, 2016 at 7:00pm — 17 Comments
122 122 122 12
हमें मत भुलाना नये साल में
मुहब्बत निभाना नये साल में
ख़ुदा से दुआ आप मांगें यही
बढ़े दोस्ताना नये साल में
सुख़नवर फ़क़त तू हि बेहतरनहीं
न यह भूल जाना नये साल में
तुम्हारी ख़ुशी में ख़ुशी है मेरी
न आंसू बहाना नए साल में
खफ़ा हैं कई साल से यार जो
उन्हें है मनाना नए साल में
गये साल पूरी न हसरत हुई
गले से लगाना नये साल…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2016 at 6:00pm — 7 Comments
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