2122 -1212- 112
कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या
फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या
आदमीयत के मोल जो मिली हो
दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या
और के काम आ सके न कभी
ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या
भाग के गर मुसीबतों से कहीं
बच ही जाये तो ऐसी जान भी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 10:00am — 40 Comments
22- 1212- 1122
हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में
इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में
कुछ आज मखमली सी लगी धूप
क्या बात है न जाने सहर में
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में
यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग
है मेरा नाम आज खबर मे
हर शै पे हर मुकाम पे तू थी
तन्हा हुआ न तेरे नगर में
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2013 at 1:34pm — 44 Comments
एक बार हमें भी लगा कि हमें शायर बनना चाहिये हमने शुरुआत की, हमने शुअरा को पान खाते देखा तो हमें लगा यह भी शायर बनने के लिये ज़रूरी है सो हमने शुरुआत यहीं से की l
आनन फानन कुछ अशआर लिख मारे और छपवाने के लिये मशहूर अखबार के दफ़्तर गये जहाँ हमें हमारी शख़्सियत को देखते हुये संपादक से मिलने का सौभाग्य मिला l
संपादक महोदय ने ऊपर से नीचे तक हमें देखा और हमारे हाथ से लेकर हमारी रचनाये पढ़ने के बाद संपादक महोदय ने कुछ कहने की भी जहमत नही उठाई, वो अपने मनहूस लैपटॉप पर कोई फिल्म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 4, 2013 at 9:00am — 28 Comments
11212- 11212- 11212- 11212
मेरी चाहतें यूँ निखार दे, मेरी शाम कोई सँवार दे
सरे बाम चाँदनी है खिली, मेरे दिल पे कोई उतार दे
करे रौशनी इन अँधेरो मे, ये चिराग यूँ जले उम्र भर
वो ज़िया सा ताब दे ऐ खुदा, उसे चाँद सा तू वक़ार दे
उसे देखता हूँ चमन-चमन, कि रविश-रविश मैं करूँ कियाम
कभी खुश्बुएँ वो बिखेर दे, मुझे शबनमी सी फुहार दे
वो खुली ज़मीन खिला चमन, वो हवा, महकती हुई फ़िज़ा
वही साअतें करे फिर अता, मुझे फिर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 17, 2013 at 6:06pm — 38 Comments
1212 1122 1212 22
सियाह रात के पर्दे में है निहाँ सा कुछ
ज़मीं से आज उठे है धुआँ-धुआँ सा कुछ
ये ज़ोर शम्अ का है जो बुझी नही शब भर
गया करीब से तूफान बदगुमाँ सा कुछ
न जाने कौन खिरामां सफ़र में था मेरे
तमाम राह चला साथ कारवाँ सा कुछ
चिराग सा कभी, आतिशबजाँ लगे है गाह
वो टिमटिमाता अँधेरों में इक मकाँ सा कुछ
ये बदलियाँ जो हटीं चाँद भी खिला तनहा
इक अर्से बाद नज़र आया शादमाँ सा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on November 5, 2013 at 9:00am — 16 Comments
बह्रे रमल मुसम्मन सालिम(2122 2122 2122 2122)
संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता
ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता
तूने ऐ जज़्बा-ए-दिल मुझको सँवारा ही न होता
आइने में लफ़्ज़ के तुझको उतारा ही न होता
रह गया था मैं कहीं खो कर जहां की वुसअतों मे वुसअत= व्यापकता
गर मुहब्बत की न होती तो सहारा ही न होता
रात की जल्वागरी होती अधूरी रौनकें भी
चाँद की जो बज़्म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 4, 2013 at 4:00pm — 31 Comments
अकीदत का करो रौशन चिरागाँ काम से पहले
खुदा को याद कर लेना कभी आलाम से पहले आलाम =तकलीफों
तुम्हारे दम से कायम ज़िन्दगी का है निशां यारब
झुके सजदे में सर मेरा किसी ईनाम से पहले
छुपा आगोश में माँ हमपे ममता की करे बारिश
हमें करुणा की ठण्डक दे कभी आराम से पहले
दुआओं की तेरी तासीर इतनी फ़ैज़ इतना माँ तासीर =प्रभाव, फ़ैज़= अनुकम्पा
महक जायें मेरी ये रहगुज़र हर गाम से…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2013 at 11:53pm — 14 Comments
सूखा दरख्त जो मेरे आँगन में था
जब तक था लड़ता रहा
कभी गर्म लू के थपेड़ों को
बरसात, खून जमाने वाली
ठंड को सहता रहा
सूखा दरख्त जो मेरे आँगन में था
उसकी शाखों को काट- काट कर
लोगों ने घरों के दरवाज़े बनाये
खिड़कियाँ बनाई खुद को छुपाने के लिये
जुल्म की आग में वो जलता रहा
सूखा दरख्त जो मेरे आँगन में था
उम्र कोई उसकी कम न कर सका
जब तक जीना था वो जिया
जब तक हरा भरा जवान था
हवा व छांव…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 8, 2013 at 3:30pm — 16 Comments
वज्न: 2122 1122 1122 22/112
कोई याद अब करे है मुझको भुलाने के बाद
नक्श ढूँढे वो मेरा हस्ती मिटाने के बाद
हो गया गर्क़ सफीना मेरा इक तूफां में
चुप है अब मौजे-तलातुम यूँ डुबाने के बाद
लगती है बोली परस्तिश को अकीदत की यहाँ
अब यकीं लुटता है बाज़ार में आने के बाद
रोये क्यूं अपनी तबाही पे अब ऐ नादां तू
खुद मुदावे को गया जान से जाने के बाद
ऐ बशर अब न पशेमां हो नई सांस ले यूँ
इक नई…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 7, 2013 at 10:59am — 28 Comments
वज्न- 2122 1212 112
कब से बेकल है ये बहार बहुत
रोज़ो-शब तेरा इंतज़ार बहुत
इश्क कामिल न हो सका किसी का
आये दुन्या में जाँनिसार बहुत
रंग लायेगा आशिकी का जुनूँ
सुर्ख है अब के रसनो-दार बहुत
आदमीयत से है गुरेज़ जिन्हें
अम्न गुज़रे है…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2013 at 10:00pm — 14 Comments
वज्न - 2122 1122 22
महफिलें यूँ ही सजाये रखना
हौसला अपना बनाये रखना
चाँद के पहलू में अन्धेरा है
इन चिरागों को जलाये रखना
रविशे-आम आज हरीफ़ाना है
संग हाथों में उठाये रखना
अपनी यादों के वही दिलकश पल
इन निगाहों में छिपाये रखना…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 18, 2013 at 10:00am — 19 Comments
ग़ज़ल लिखने का एक प्रयास और किया है मैने, प्रकृति की सुंदरता का हमेशा से ही कायल रहा हूँ इसलिए मेरी रचना प्रकृति के आस पास ही रहती है.
वज्न -1222 1222 1222
हजज मुसद्दस सालिम
सुहाने ख्वाब से मुझको उठा गुज़री
वो लहराती हुई बादे सबा गुज़री
दिखी थी पैरहन वो धूप की लेकर
कभी शबनम की वो ओढ़े कबा गुज़री
फ़िज़ा सरशार भीगी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 15, 2013 at 1:00pm — 7 Comments
वज्न 2122 2122 2122 212
बह्र ए रमल मुसम्मन महज़ूफ
लमहा-लमहा याद कोई दिल को आने क्यूँ लगे
रफ़्ता-रफ़्ता वर्क़े-माज़ी वो हटाने क्यूँ लगे
इस मरासिम लफ़्ज़ से ही आजिज़ी होने लगी
फ़ासिले हम को रिफ़ाकत में रुलाने क्यूँ लगे
बेगुमाँ भाग आए थे जिनसे निगाहें हम बचा …
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on July 5, 2013 at 10:30am — 24 Comments
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