भक्षक (लघु कथा )
साहब मेरी बेटी कहाँ है ?हरिया ने हाथ जोड़कर स्थानीय थाने में बैठे दरोगा से गिड़ गिडाते हुए पूछा |अब होश आया तुझे दो दिन हो गये तेरी बेटी को नहर से निकाला था,हाँ आत्महत्या का प्रयास करने से पहले तेरे पास भी तो आई थी अपनी ससुराल वालो के अत्याचार का दुखड़ा रोने करी थी क्या तूने उसकी मदद ,अब आया बेटी वाला |आत्म हत्या भी जुर्म है केस चलेगा अभी लाकअप में बंद है कल आना वकील के साथ लिखत पढ़त करके छोड़ देंगे|पर साहब इन कोठरियों में तो दिखाई नहीं !!!उसकी बात पूरी होने से…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 29, 2012 at 12:30pm — 16 Comments
Added by kavita vikas on April 29, 2012 at 12:00pm — 3 Comments
आंदोलित विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने अपनी मांगे सरकार से मनवाने हेतु व्यस्ततम चौराहे को मानव श्रृंखला बना कर घेर दिये थे, मेरे नेर्तित्व में भी एक संगठन नारेबाजी और रास्ता अवरुद्ध करने मे संलग्न था, भीड़ में कुछ मरीजों के परिजन अपनी गाड़ियों को आगे जाने देने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, राधे बाबू जोर जोर से सभी को निर्देशित कर रहे थे कि एक व्यक्ति को भी आगे नहीं जाने देना है, चाहे कुछ हों जाए | एकाएक राधे बाबू का स्वर बदला और कहने लगे कि जाने दो भाई मरीजों की गाड़ियों…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 28, 2012 at 4:03pm — 18 Comments
अरुणिम सूरज जिस दिन मुझसे शर्त लगा झुक जाएगा,
जिस दिन सपनों के कानों में कोई सर्द आह भर जाएगा,
उस दिन भारत को भेंट करेंगे कफन एक सो जाने को,
जिस दिन बहता शोणित अपना क्षार क्षार हो जाएगा।।
तब तक चुप कैसे हम हों जब तक छाती में गर्मी है,
जब तक स्वप्न बाँध पैरों में भावों में सरगर्मी है,
तब तक बेकल इंतजार करता…
ContinueAdded by Neeraj Dwivedi on April 28, 2012 at 8:30am — 6 Comments
स्नेही मित्रों, सुना है, 8 मई को मदर्स ' डे मनाया जाता है...यानि कि साल का एक दिन माँ के नाम...इस की शुरुआत कब और क्यूँ हुई, ये मुझे नहीं पता , न जानना चाहती हूँ..बस अचम्भा इस बात का होता है कि मदर्स ' डे की शुरुआत करने वाले ने यह नहीं बताया कि साल के बाकी दिनों में माँ के लिए कौन से जज़्बात रखने हैं...
अगर किसी और दिन माँ को याद करना हो या अपने उद्गार व्यक्त करने हों तो कही उस के लिए कोई सज़ा तो निर्धारित नहीं है...फिलहाल मुझे…
Added by Sarita Sinha on April 27, 2012 at 8:00pm — 18 Comments
मैं कौन हूँ ?
अनंत आकाश या अन्तरिक्ष का मौन हूँ
धरती का श्रृंगार हूँ पाताल का आधार हूँ
पर्वतों में हूँ शिखर पाषाण में भगवान हूँ
नदियों का पाट हूँ निर्बाध उसका बहाव हूँ
झरने सा पतन मेरा झर झर आवाज हूँ…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 27, 2012 at 6:29pm — 11 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 27, 2012 at 5:30pm — 10 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 27, 2012 at 5:30pm — 2 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on April 27, 2012 at 5:00pm — 12 Comments
Added by kavita sinha gupta on April 27, 2012 at 4:30pm — 4 Comments
माधुर्य
(वाणी का माधुर्य)
वाणी का माधुर्य-
देता है जीवन को विस्तार
जहाँ प्रेम है
वहां लेन-देन नहीं है
देना ही देना है
कोई व्यापार नहीं है |
.…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 27, 2012 at 4:00pm — 6 Comments
'ग़ज़ल'
दुआओं से किसी की फल रहा हूँ
निगाहों में तुम्हारी खल रहा हूँ
किसी को भी नहीं मैं छल रहा हूँ
न तो रहमोकरम पर पल रहा…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on April 27, 2012 at 1:00pm — 15 Comments
कुछ खरी-खरी
Added by rajesh kumari on April 27, 2012 at 12:00pm — 14 Comments
आखिर पुलिस ने उस दुर्दांत आतंकवादी को मार गिराया, उसे मार गिराने वाले पुलिस अफ़सर की बहादुरी की भूरि भूरि प्रशंसा हो रही थी तथा उसके लिए बड़े बड़े सम्मान देने की घोषणाएं भी हो रहीं थी. मीडिया का एक बड़ा दल भी आज उसका साक्षात्कार लेने आ रहा था. इसी सिलसिले में वह बहादुर अफ़सर तैयारियों का जायजा लेने पहुँचा.
"सब तैयारियां हो गईं?" उसने एक अधीनस्थ से पूछा
"जी सर !"
"क्या किसी ने लाश की शिनाख्त की:"
"नहीं सर, चेहरा इतनी बुरी तरह से…
Added by योगराज प्रभाकर on April 26, 2012 at 12:13pm — 39 Comments
मैं हूँ स्वछन्द ,नीर की बदरी, जहां चाहे बरस जाऊँगी …
ContinueAdded by rajesh kumari on April 26, 2012 at 9:00am — 13 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 26, 2012 at 7:00am — 20 Comments
पेश है हाइकु....
Added by AVINASH S BAGDE on April 25, 2012 at 1:12pm — 13 Comments
लघु कथा :- गिद्ध…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2012 at 11:46am — 42 Comments
कौन हूँ मैं...
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आज फिर से वो ही ख्याल आया हैं,
आत्मा से उभर के एक सवाल आया हैं,
कि मैं कौन हूँ...??
कौन हूँ मैं... ?
हैं रंगमंच जो दुनिया ये,
क्यूँ अपने किरदार को भूल रहा,
जीना था औरो की खातिर,
क्यूँ अपने दुखों में झूल रहा,
क्यूँ मुझमें हैं अनबुझी प्यास,
क्यूँ खुशियों को मैं ढूँढ रहा,
अनभिज्ञ हूँ…
Added by praveen on April 24, 2012 at 9:00pm — 10 Comments
ज्वालाशर छंद
१६ ,१५ पर यति अंत में दो गुरू (२२)
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संकीर्णताओं से बचाती, निष्काम कर्म भावना ही.
हो जायें प्रवृत्त मनुज सभी, अधार हो सदभावना ही.
कर्तव्य का बस बोध होवे,इच्छा न कुछ पाने की हो,
संकल्पना कहती सदा ये,आशा सुधर जाने की हो.
कोई मार्ग खोजें मुक्ति का,आशय जीवन का यही है.
सद्कर्म से सम्भव बने यह,विचार दर्शन का सही…
ContinueAdded by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 23, 2012 at 3:30pm — 14 Comments
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