रमिया बड़ी खुश थी । शहर जो जा रही थी - अपने पोते को देखने जाने का आखिर उसे मौका मिल ही गया था । यह अवसर बनने में समय लग गया और देखते देखते उसका पोता सात साल का हो गया था । महानगर की भागम-भाग भरी जिन्दगी में से न तो उसका बेटा ही समय निकाल पा रहा था और ना ही रमिया गाँव की अपनी खेती गृहस्थी में से समय निकाल पा रही थी । या यूँ कहें कि कुछ अधिक ही व्यस्त थे दोनों ही माँ-बेटे । और रमिया का पोता…
Added by Neelam Upadhyaya on September 11, 2011 at 8:30pm — 13 Comments
हो गगन के चन्द्रमा तुम क्यों अगन बरसा रहे
देख कर बिरही अकेला क्यों मगन मुस्का रहे
मेरी धरती ने तुम्हे आकाश पर पहुंचा दिया
तुम भटकते ही रहे अब तक न तुमने कुछ किया
आज कर लो व्यंग्य कल तुम देख कर जल जाओगे
आज हूँ परदेश में कल पार्श्व में होगी प्रिया
इसलिए आगे बढ़ो जाओ जहाँ तुम जा रहे हो
हो गगन के चन्द्रमा ...........................
विरह में कितनी व्यथा है ये वियोगी जानते हैं
कोई क्या जानेगा केवल भुक्त भोगी…
Added by Yogendra B. Singh Alok Sitapuri on September 11, 2011 at 4:05pm — 4 Comments
मुर्गे की बांग के साथ ही
प्रवेश किया मैंनें तुम्हारी नगरी में .
रुपहरी भोर ,सुनहरी प्रभात से ,
गले लग रही थी
लताओं से बने तोरणद्वार को पारकर आगे बढ़ी,
कलियाँ चटक रही थीं,
फूलों का लिबास…
ContinueAdded by mohinichordia on September 11, 2011 at 2:00pm — 10 Comments
1. छब अपनी
Added by Veerendra Jain on September 11, 2011 at 12:30am — 2 Comments
Added by Shashi Mehra on September 9, 2011 at 9:14pm — 1 Comment
हमने कुछ किया तो उसे फ़र्ज बताया गया
Added by mohinichordia on September 9, 2011 at 9:00pm — 1 Comment
अन्तर्मन में तू रम जाये,
सांस सांस तेरा गुण गाये।
कण कण में तुझको मैं देखूँ,
नज़र पराया कोई न आये।
द्वेष न हो कोई भी मन…
ContinueAdded by Kailash C Sharma on September 8, 2011 at 2:32pm — 3 Comments
दिल्ली जो कि दिलवालों कि नगरी कहलाती है उसपर एक के बाद एक मुसीबते टूटती जा रही है.
यहाँ पर गोलीबारी, लूटपाट, चोरी, अपहरण, हत्या जैसी समस्या आम हो गयी है, जहाँ पर दिल्ली दिलवालों का शहर हुआ करता था वही आज कल यह गुनाहों का शहर बन गया है.
जहाँ पर लोगो को घर से निकलते भी यह सोचना पड़ता है कि वो सही सलामत घर आ भी पाएंगे कि नहीं. अगर हम किसी भी तरह इस मानव निर्मित आपदाओ से बच भी जाये तो प्राकृतिक आपदा भी हमारा पीछा नहीं छोडती है.
ठीक इसी प्रकार कि घटना ०७/०९/२०११ को घटी पहले तो…
Added by Smrit Mishra on September 8, 2011 at 12:36am — No Comments
दीवानगी क्या चीज़ है, मालूम न था;
इश्कियां क्या चीज़, मालूम न था;
क्यों लोग खो जाते है ख्यालो में, मालूम न था;
क्यों हो जाते है लोग स्थिल, मालूम न था;
आज मेरे हर सवालों का जवाब मुझे मिला;
जिन्दगी का एक नया सबक मैंने सिख लिया;
सिख लिए मैंने प्यार करने के तरीके,
और सिख ली मैंने इश्क को जताने के सलीके;
आज एक हौसला दिल में नया जगा;
जिसने जिन्दगी जीने का हौसला दिला दिया;
आज नयी उमंगो ने दी है दिल में दस्तक;
जिनके…
ContinueAdded by Smrit Mishra on September 7, 2011 at 10:25pm — 1 Comment
कहते हैं
Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 9:42pm — 1 Comment
Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 8:48pm — 2 Comments
तुम करीब आये हो प्रियतम
मन बन गया मधुबन मेरा
तुमने प्रीत का रस उंडेला
Added by mohinichordia on September 7, 2011 at 5:10pm — No Comments
Added by Ambrish Singh Baghel on September 7, 2011 at 12:25pm — No Comments
हमें जो अर्थ प्रजातंत्र का बताए हैं
उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाए हैं
वही नसीहतें देते मिले गरीबों को
जो मुल्क बेच के खाए - पिए अघाए हैं
भला- बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ
सही, सही है गलत को गलत बताए हैं
यही किया है हमेशा कि अपने दिल की सुनी
यही हुआ है हमेशा कि चोट खाए हैं
- वीनस केशरी
Added by वीनस केसरी on September 7, 2011 at 2:00am — 4 Comments
Added by Smrit Mishra on September 6, 2011 at 3:00pm — No Comments
मौन निःशब्द रात्रि
चारों ओर सन्नाटा
नंगे पेड़ों पर गिरती बर्फ
रुई के फाहे सी
रात को और भी गंभीर बनाती
शायद तुम्हारे ही आदेश से |
गरजते समुद्र की उफनती लहरें …
ContinueAdded by mohinichordia on September 6, 2011 at 2:07pm — No Comments
हवा के पंखो पर चढ़कर
आती है तेरी खुशबू
नदियों के जल के साथ बहकर
कभी प्रपात बनकर, निनाद करती
अमृत सी झरती
आती है तेरी मिठास |
सूरज बनकर आता है कभी
सात घोड़ो के रथ पर सवार…
ContinueAdded by mohinichordia on September 6, 2011 at 11:30am — 1 Comment
Added by satish mapatpuri on September 6, 2011 at 12:30am — 5 Comments
Added by Smrit Mishra on September 5, 2011 at 11:53pm — No Comments
Added by Smrit Mishra on September 5, 2011 at 11:52pm — No Comments
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