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दोहा सलिला: जिज्ञासा ही धर्म है -------संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:



जिज्ञासा ही धर्म है



संजीव 'सलिल'

*

धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.

सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..



मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.

सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..



चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.

परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..



अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.

ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..



'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 11:30pm — 1 Comment

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?

फूल कही

हो खुशबु उसके साथ रहे ,

खुशबू हो जो वो भी हवा के साथ बहे

खुशबु से

हम सब का दामन भरता है ,

तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ,

कोई कैसे

तन्हा भी हो सकता है ?

दिल के साथ है धड़कन ,

आँख के साथ स्वप्न ,

सुखदुख

साथ में मिलके बनता है जीवन ।

जीवन धार में मिलके जीवन चलता है ,

तन्हाई

का कैसा यारो फंडा है ।

कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?

दीप के साथ

है… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 18, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,

क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,

ये सोच कर मेरा दिल जलता हैं ,

एक जन सेमसंग गुरु का रट लगाया ,

मेरे पॉकेट से अच्छा चूना लगवाया ,

एक बादशाह हैं अच्छा उल्लू बनाया ,

हप्ता क्या सालो मला ना चमक पाया ,

एक महानायक हमें जो बताया ,

हकीकत के पास उन्हें भी ना पाया ,

सर जी ने बोला आइडिया बदल देगी ,

नही पता था तीस रुपया वो काट लेगी ,

गलती से बेटा ने दबा दिया जो फोन आया ,

मेरे बैलेंस से तीस रुपया का चूना लगाया ,

बाद में पता चला १० और खा गया वो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 18, 2010 at 7:30pm — 5 Comments

मुफलिस ही रहने दो हमको

मुफलिस ही रहने दो हमको
हम न मांगे चांदी -सोना .
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना

जाहिद जाने रसमे -इबादत,
हमको उसके ,इश्क की आदत
जिसके नूर की एक शफक से,
रोशन दिल का कोना- कोना

इश्क- ए- खुदा हो जाने दे कामिल
उसकी नज़र में ,होकर शामिल
दिन भर रब की मैय को पीकर
रात में चादर तान के सोना

ये है सराय घर न तेरा
जिसमे लगाया तूने डेरा
कल आयेंगे , और मुसाफिर
मालिक बदले रोज बिछौना

आनंद तनहा

Added by anand pandey tanha on October 18, 2010 at 7:00pm — 4 Comments

धड़कते दिल की सदा है तू

धड़कते दिल की सदा है तू

मुहब्बतों की खुदा है तू



के तेरा नाम है मुहब्बत

किसे खबर है के क्या है तू



तेरी ज़रूरत है इस जहाँ को

दहकती हुई हर इक फ़िज़ा को



तू ही मंदिर तू ही मस्जिद

तू ही बच्चे की तोतली बोली



तू ही ममता का बे हिसाब साया

तू ही है पापा की डांट जानूं



तू ही चिड़ियों की चहचहाहट

तू ही है कलियों की मुस्कुराहट



तेरे दम से बहार क़ायम

मैं क्या गिनाऊँ तेरे गुणों को



के तू मुहब्बत है तू… Continue

Added by mohd adil on October 18, 2010 at 6:30pm — 2 Comments

धूप के दरिया में नहाता है गुलाब

धूप के दरिया में नहाता है गुलाब
फिर भी ताज्जुब है मुस्काता है गुलाब

जिनके चेहरों पर उदासी होती है
मुस्कुराना ऐसों को सिखाता है गुलाब

जब किसी के लिए बिखरता है
तब कहीं जाके चैन पाता है गुलाब

रास्ते में बिखेर कर खुद को
साथ राही के भी जाता है ग़ुलाब

जो ज़माने में नामवर थे कभी
वाक़ए उन के सुनाता है गुलाब

Added by mohd adil on October 18, 2010 at 6:00pm — 2 Comments

रिपोर्ट:जब बच्चन जी ने बेची 'मधुशाला'

दशहरा के अवसर पर १७ अक्टूबर २०१० को वाराणसी स्थित श्री शारदापीठ मठ सभागार में वरिष्ठ शायर श्री अनुराग शंकर वर्मा के ग़ज़ल संग्रह "कहने को जुबां है"का विमोचन और इस मौके पर कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया. मैं भी आमंत्रित था यह आयोजन कई मायनों में यादगार रहा. पहली बात यह कि श्री अनुराग जी अभी उम्र के ८३ वें वर्ष में चल रहे है और यह उनका पहला संग्रह है. जो उनकी स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि दूसरों के अधिक प्रयास से साकार रूप ले सका है. अनुराग जी का सारा लेखन उर्दू में है और उसे समेटना काफी मुश्किल था… Continue

Added by Abhinav Arun on October 18, 2010 at 4:30pm — 5 Comments

विशेष लेख- भारत में उर्दू : संजीव 'सलिल'

विशेष लेख-



भारत में उर्दू :





संजीव 'सलिल'



*



भारत विभिन्न भाषाओँ का देश है जिनमें से एक उर्दू भी है. मुग़ल फौजों द्वारा आक्रमण में विजय पाने के बाद स्थानीय लोगों के कुचलने के लिये उनके संस्कार, आचार, विचार, भाषा तथा धर्म को नष्ट कर प्रचलित के सर्वथा विपरीत बलात लादा गया तथा अस्वीकारने पर सीधे मौत के घाट उतारा गया ताकि भारतवासियों का मनोबल समाप्त हो जाए और वे आक्रान्ताओं का प्रतिरोध न करें. यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता. पराजित… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 9:56am — 3 Comments

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

तूफान है बज़ीद के डुबोना ज़रूर है


जो मैरे साथ साथ है साए की शक्ल मैं

महसूस हो रहा है वही मुझ से दूर है


मोजों का यह सुकूत न टूटे तो बात हो

दरया मैं डूबने का किसी को शऊर है


देखा है जब से तुमको निगाहों मैं बस गये

हद्दे निगाह सिर्फ़ तुम्हारा ज़हूर है


दामन मैं सिर्फ़ धूप के दरया समाए हैं

सहरा को इस वजूद पे फिर भी गुरूर है

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 17, 2010 at 7:00pm — No Comments

सच की जीत मनाएँ हम

सच की जीत मनाएँ हम



टूटे दिलों को एक मनाएँ हम



आज के दिन को एकता के रूप मैं मनाएँ हम



हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई एक होजाएँ हम



जीत हुई सच्चाई की



और रावण हार गया



छोड़ कर जीवन परलोक सिधार गया



सच्चाई के रखवालों ने



नेकी के करने वालों ने



एक एसा सबक़ सीखा दिया उसको



हमेशा के लिए मिटादिया उसको



सारे नेकी के करने वालों ने



उस को याद करेगें शेतानो मैं



राम का नाम रहेगा हर… Continue

Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30pm — 1 Comment

केशव माधव हरी हरी बोल ;



धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल

विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;



जन सेवा का लिया व्रत और स्वयमसेवक जो कहलाये

सघन पेड़ बरगद का जैसे ,फैलता फैलते ही जाएँ

श्रम साधित वन्दना हमारी मानवहित करते जाएं

बन कर भारती पूत अमोल केशव माधव हरी हरी बोल ;



धरा नागपुर की पावन पर चमत्कार हुआ अनमोल

विजयदशमी की पावन बेला पर केशव माधव हरी हरी बोल ;



डगर कठिन ये सफर कठिन हो हम को निज मंजिल… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 17, 2010 at 8:00am — 1 Comment

सच्चे मोती की हे तलब मुझ को

सच्चे मोती की हे तलब मुझ को
कितने दरया खंगालता हूँ मैं

ठोकरे एक सबक़ सिखाती हैं
खुद को गिर कर संभालता हूँ मैं

फिर भी तारों को छू नही पाता
लाख खुद को उछालता हूँ मैं

एक तबस्सुम सजा के होटो पर
दर्द को अपने पालता हूँ मैं

आओ दरयाओं पानी लेजाओ
अपने आँसू निकालता हूँ मैं

Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30am — 1 Comment

आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना

आँखों मैं चले आना सीने मैं उतर जाना
तुम दर्द अगर हो तो फिर मुझ मैं बिखर जाना

रस्ता ना बताए गा मंज़िल के इलाक़े को
तुम खूब समझते हो तुमको है किधर जाना

वो आग उठा लाया सूरज के इलाक़े से
मैने था कभी जिस को साए का शजर जाना

रुकती हैं कहाँ जाकर यह इल्म नहीं कोई
हमने तो हवाओं को मसरूफ़े सफ़र जाना

ए शाम के शहज़ादो क्यूँ जश.न मैं डूबे हो
क्या तुमने अंधेरों को सामने सहर जाना

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 16, 2010 at 10:30pm — 1 Comment

माँ मुझे अपना आसरा दे दे

माँ को क़ुदरत सलाम करती हॅ

माँ को फ़ितरत सलाम करती हॅ



प्यार के सब बने पुजारी हैं

आस्था के बने भिखारी हैं



जब दिया मैं जलता हूँ

देख कर तुझ को मुस्कुराता हूँ



अपने सीने से तू लगा मुझ को

और स्नेह से तू सजा मुझ को



अपनी ममता का आसरा दे दे

अपने चरणो मैं तू जगह दे दे



फूल बनकर महकता जाऊँ मैं

और स्नेह मैं गुनगुनाऊँ मैं



मेरी माता महान है कितनी

यह हक़ीक़त जवान है कितनी



दरदे दिल की मेरे दवा… Continue

Added by mohd adil on October 16, 2010 at 7:30pm — 2 Comments


प्रधान संपादक
वो भारत (लघुकथा)

आज वह अखबार पढते हुए ना जाने क्यों इतना उदास था ! इसी बीच उसकी नन्ही बच्ची ग्लोब लेकर उसके पास आ गई और कहने लगी:

"पापा, आज क्लास में बता रहे थे कि भारत ऋषि मुनियों और पीर फकीरों की धरती है, और उसको सोने की चिड़िया भी कहा जाता है ! आप ग्लोब देख कर बताईये कि भारत कहाँ हैं ?"

उसकी नज़र सहसा अखबार के उस पन्ने पर जा टिकी जो कि हत्या, लूटपाट,आगज़नी, दंगा फसाद, आतंकवाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भूख से होने वाली मौतों,धार्मिक झगड़ों और मंदिर-मस्जिद विवादों से भरा पड़ा था ! उसकी बेटी ने एक बार फिर… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:20pm — 18 Comments


प्रधान संपादक
बेग़ैरत (लघुकथा)

महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:

"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"

"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !

तो उधर से एक और आवाज़ आई:

"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"

द्रौपदी ने शर्म से… Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm — 23 Comments


प्रधान संपादक
मुलजिम (लघुकथा)

मुलजिम को संबोधित करते हुए न्यायधीश ने कहा:

"तुम पर आरोप है कि तुम सीमा पार से ५ लाख रुपये की जाली करंसी, १० लाख रुपये ने नशीले पदार्थ और भारी मात्रा में गोला बारूद लाते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किए गए हो ! इस से पहले कि अदालत कोई निर्णय सुनाये, क्या तुम अपनी सफाई में कुछ कहना चाहोगे?"

दोनों हाथ जोड़ कर मुलजिम ने जवाब दिया,

"केवल एक सवाल पूछने की इजाज़त चाहूँगा हुज़ूर !"

"इजाज़त है", न्यायधीश ने कहा

"जाली करंसी, नशीले पदार्थ और हथियारों का ज़िक्र तो आपने कर दिया, मगर मुझ से…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on October 16, 2010 at 7:00pm — 7 Comments

बला का चेहरा तमाशा दिखाई देता है

बला का चेहरा तमाशा दिखाई देता है
हक़ीक़तों मैं जनाज़ा दिखाई देता है

चमक रहा था जो आकाश पर बना सूरज
ज़मीं पे आन के बोना दिखाई देता है

किसी चिता की यह जल कर बढ़ाएगा शोभा
वो एक दरखत जो सूखा दिखाई देता है

हमारी धरती पे नफ़रत के बीज बो के कोई
हवा के दोश पे उड़ता दिखाई देता है

हुआ ना आज भी सेराब बद दुआ लेकर
वतन से दूर जो भागा दिखाई देता है

Added by mohd adil on October 16, 2010 at 6:30pm — 2 Comments

मिनौती





(हर नारी मिनौती है .. यहाँ दृश्य अरुणाचल का है , इसलिए बांस, धान , सूरज , सीतापुष्प , पहाड़ के बिम्ब भी उसी प्रदेश के हैं. बरई, न्यिओगा वहाँ के लोक जीवन से जुड़े गीत हैं - जैसे हम बन्ना- बन्नी , आला , बिरहा से जुड़े हैं ... इस संगीत को बांसों से जोड़ा है .. जैसे बांस के खोखल से निसृत होकर ये मिनौती की आत्मा में पैठ गए हैं ... नारी के मन और आत्म को समझाते हुए पुरुष से अंतिम प्रश्न पर कविता समाप्त होती है ...)

मेरे बांस



पहचानते… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on October 16, 2010 at 5:00pm — 6 Comments

यह तमन्ना है मुझे आज पुकारे वो भी

यह तमन्ना है मुझे आज पुकारे वो भी
मेरी आँखो के करे आके नज़ारे वो भी

सिर्फ़ बाक़ी हे तेरी याद का हल्का सा दिया
यादे माज़ी के छुपे सारे सितारे वो भी

खुदगर्ज़ जेहन से मिट जाए अना की तस्वीर
अपनी पोशाक रयाकार उतारे वो भी

चाँदनी रात हे खूशबू की महक हे हर सू
आके दरया पे ज़रा ज़ुल्फ संवारे वो भी

जो बहुत दूर है. नज़रों से तखय्युल के परे
फलसफा कहता हे रोशन हैं सितारे वो भी

Added by mohd adil on October 16, 2010 at 5:00pm — 1 Comment

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