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All Blog Posts Tagged 'ग़ज़ल' (728)

अपना इक मेयार बना (ग़ज़ल)

लफ़्ज़ों को हथियार बना
फिर उसमें तू धार बना

छोड़ तवज़्ज़ो का रोना
अपना इक मेयार बना

लंबा वृक्ष बना ख़ुद को
लेकिन छायादार बना

बेवकूफ़ियाँ बढ़ती गयीं
जितना बशर हुश्यार बना

शिकवा गुलों से है न तुझे?
तो कांटों को यार बना

जिसने दिखाई राह नई
वो दुनिया का शिकार बना

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by जयनित कुमार मेहता on July 9, 2024 at 7:53pm — 4 Comments

ग़ज़ल

2122    1212   112/22

*

ज़ीस्त  का   जो  सफ़र   ठहर   जाए

आरज़ू      आरज़ू      बिख़र     जाए

 

बेक़रारी    रहे     न    कुछ    बाक़ी

फ़िक्र   का   दौर    ही    गुज़र जाए…

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Added by Ashok Kumar Raktale on June 25, 2024 at 3:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल : आशिक़ों का भला करे कोई

अरकान : 2122 1212 22/112

आशिक़ों का भला करे कोई

मौत आए, दुआ करे कोई

पाँव में फूल चुभ गया उनके

जाए जाए दवा करे कोई

हाल पे मेरे रोता है शब भर

सुब्ह मुझ पर हँसा करे कोई

फ़र्क़ ज़ालिम पे कुछ नहीं पड़ता

चाहे कुछ भी कहा करे कोई

ये नहीं होता, ये नहीं होगा

हम कहें और सुना करे कोई

इन रईसों के शौक़ की ख़ातिर

मरता हो तो मरा करे कोई

बेवफ़ा मुझको कह रहा है…

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Added by Mahendra Kumar on November 4, 2022 at 1:37pm — 12 Comments

ग़ज़ल : ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ

अरकान : 2122 2122 212

ज़िन्दगी की है ये मेरी दास्ताँ

तुहमतें, रुसवाइयाँ, नाकामियाँ

आए थे जब हम यहाँ तो आग थे

राख हैं अब, उठ रहा है बस धुआँ

दिल लगाने की ख़ता जिनसे हुई

उम्र भर देते रहे वो इम्तिहाँ

सोचता हूँ क्या उसे मैं नाम दूँ

जो कभी था तेरे मेरे दरमियाँ

मैं अकेला इश्क़ में रहता नहीं

साथ रहती हैं मेरे तन्हाइयाँ

कहने को तो कब से मैं आज़ाद हूँ

पाँव में अब भी हैं लेकिन…

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Added by Mahendra Kumar on October 23, 2022 at 6:30am — 13 Comments

ग़ज़ल : यही इक बात मैं समझा नहीं था

बह्र : 1222     1222     122

यही इक बात मैं समझा नहीं था

जहाँ में कोई भी अपना नहीं था

किसी को जब तलक चाहा नहीं था

ज़लालत क्या है ये जाना नहीं था

उसे खोने से मैं क्यूँ डर रहा हूँ

जिसे मैंने कभी पाया नहीं था

न बदलेगा कभी सोचा था मैंने

बदल जाएगा वो सोचा नहीं था

उसे हरदम रही मुझसे शिकायत

मुझे जिससे कोई शिकवा नहीं था

उसी इक शख़्स का मैं हो गया हूँ

वही इक शख़्स जो मेरा नहीं…

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Added by Mahendra Kumar on October 10, 2022 at 6:27pm — 15 Comments

ग़ज़ल

 22  22  22  22  22  2

 

मोद-सुमन  जो नित्य हृदय के पास रहे

सौरभ  का  भी  जीवन  में  आवास  रहे

 

मार्ग भले  ही छोटा  या  फिर  लम्बा हो

पैरों पर  प्रति  पल  अपने  विश्वास  रहे…

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Added by Ashok Kumar Raktale on September 28, 2022 at 7:30pm — 12 Comments

ग़ज़ल

1222 1222 1222



मिला था जो हमें पल खो दिया हमने

मुलायम नर्म मखमल खो दिया हमने ।

*

बचा रख्खे हैं यादों के नुकीले शर

मज़े से झूमता कल खो दिया हमने ।

*

उड़ा दी खुशबुएँ जो साथ रहती थीं

गँवा दी उम्र संदल खो दिया हमने ।

*

मुहब्बत नाम से हर दिन जिहालत की

सुकूँ था एक आँचल खो दिया हमने ।

*

सवालों पर सवालों की थीं बौछारें

जवाब आए तो संबल खो…
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Added by Ashok Kumar Raktale on September 22, 2021 at 8:00pm — 9 Comments

मेरे किरदार को ऐसी कहानी कौन देता है...

जो पहले मौत दे, फिर जिंदगानी कौन देता है

मेरे किरदार को ऐसी कहानी कौन देता है

यहां तालाब नदियां जब कई बरसों से सूखे हैं

खुदा जाने हमें पीने को पानी कौन देता है

हमारी जिंदगी ठहरी हुई इक झील है लेकिन

ये उम्मीदों के दरिया को रवानी कौन देता है

जमीं से आसमां तक का सफर हम कर चुके लेकिन

नहीं मालूम मंजिल की निशानी कौन देता है

परिंदे भी समझते हैं कि पर कटने का खतरा है

इन्हें फिर हौसला ये आसमानी कौन देता…

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Added by atul kushwah on April 20, 2021 at 5:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल (और कितनी देर तक सोयेंगें हम)

पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम

और कितनी देर तक सोयेंगें हम।

रात काली तो कभी की जा चुकी

अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।

जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें 

रोशनी के बीज फिर बोयेंगे…

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Added by अजय गुप्ता 'अजेय on September 19, 2020 at 11:20pm — 16 Comments

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा

2122 1122 1122 22

***

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।

याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।

ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,

ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।

दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,

फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।



जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,

फिर…

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Added by Harash Mahajan on September 12, 2020 at 6:00pm — 12 Comments

जाने क्यूँ आज है औरत की ये औरत दुश्मन

2122 1122 1122 22(112)

जाने क्यूँ आज है औरत की ये औरत दुश्मन,

पास दौलत है तो उसकी है ये दौलत दुश्मन ।

दोस्त इस दौर के दुश्मन से भी बदतर क्यूँ हैं,

देख होती है मुहब्बत की हकीकत दुश्मन ।

माँग लो जितनी ख़ुदा से भी ये ख़ुशियाँ लेकिन,

हँसते-हँसते भी हो जाती है ये जन्नत दुश्मन ।

मैं बदल सकता था हाथों की लकीरों को मगर,

यूँ न होती वो अगर मेरी मसर्रत दुश्मन ।

ऐसे इंसानों की बस्ती से रहो दूर जहॉं,

'हर्ष' हो…

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Added by Harash Mahajan on September 8, 2020 at 11:00pm — 11 Comments

ये जिंदगी का हसीन लमहा

(12122)×4

ये ज़िंदगी का हसीन लमहा

गुजर गया फिर तो क्या करोगी

जो जिंदगी के इधर खड़ा है

उधर गया फिर तो क्या करोगी

तुम्हें सँवरने का हक दिया है

वो कोई पत्थर का तो नहीं है

लगाये फिरती हो जिसको ठोकर

बिखर गया फिर तो क्या करोगी

कि जिनकी शाखों पे तो गुमां है

मगर उन्हीं की जड़ों से नफरत

"वो आँधियों में  उखड़ जड़ों से"

शज़र गया फिर तो क्या करोगी

जिसे अनायास कोसती हो

छिपाए बैठा है पीर…

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Added by आशीष यादव on August 25, 2020 at 2:30am — 6 Comments

कभी मनाते भी नहीं

ग़म के आंसू पी लेते हैं जताते भी नही

सताना सह लेते हैं वो सताते भी नहीं

रूठना आदत है उनकी कोई उनसे सीखे

गर हम रूठ जाएं तो कभी मनाते भी नहीं

इश्क़ में अश्क़ का नशा बहुत गहरा होता है

ज़ाम अश्क़ का हो तो अर्क मिलाते भी नहीं

मेरे दिल की बात तो अक्सर कह देता हूँ मैं

उनके भीतर का ज़लज़ला वो बताते भी नहीं

उनके नूर केे दीदार का इंतज़ार कब से है

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी…

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Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 8, 2020 at 10:19am — 4 Comments

नन्ही सी चीटी हाथी कि ले सकती जान है

नन्ही सी चीटी  हाथी की ले सकती जान है

कोरोना ने कराया हमें इसका भान है।

हाथों को जोड़ कहता सफाई की बात वो

पर तुमको गंदगी में दिखी अपनी शान है।

बातें अगर गलत हों तो वाजिव विरोध है

सच का भी जो विरोध करे बदजुबान है।

नक़्शे कदम पे तेरे क्यूँ सारा जहाँ चले

बातों में बस तुम्हारी ही क्या गीता ज्ञान है

कोरोना की ही शक्ल में नफरत है चीन की

जिसके लिए जमीन ही सारी जहान है

मालिक के दर पे सज्दा वजू करके  ही…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on March 19, 2020 at 12:30pm — 4 Comments

फूलीं में रस था भवरों की चाहत बनी रही

जब तक भरे थे जाम तो महफ़िल सजी रही

फूलों में रस था भँवरों की चाहत बनी रही

वो सूखा फूल फेंकते तो कैसे फेंकते

उसमे किसी की याद की खुशबू बसी रही

उस कोयले की खान में कपड़ें न बच सके

बस था सुकून इतना ही इज्जत बची रही

कुर्सी पे बैठ अम्न की करता था बात जो

उसकी हथेली खून से यारों सनी रही

दौलत बटोर जितनी भी लेकिन ये याद रख

ये बेबफा न साथ किसी के कभी रही

'आशू' फ़कीर बन तू फकीरीं में है मजा

सब छूटा कुछ बचा…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2020 at 12:00pm — 7 Comments

ग़ज़ल : इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा

अरकान : 221 2121 1221 212

इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा

ख़ुद को लगा के आग धुआँ देखता रहा

दुनिया बनाने वाले को दीजे सज़ा-ए-मौत

दंगे में मरने वाला यही बोलता रहा

मेरी ही तरह यार भी मेरा अजीब है

पहले तो मुझको खो दिया फिर ढूँढता रहा

रोता रहा मैं हिज्र में और हँस रहे थे तुम

दावा ये मुझसे मत करो, मैं चाहता रहा

कुछ भी नहीं कहा था अदालत के सामने

वो और बात है कि मैं सब जानता…

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Added by Mahendra Kumar on December 10, 2019 at 10:00am — 4 Comments

ग़ज़ल : ख़ून से मैंने बनाए आँसू

अरकान : 2122 1122 22

चाहा था हमने न आए आँसू

उम्र भर फिर भी बहाए आँसू

कोई तो हो जो हमारी ख़ातिर

पलकों पे अपनी सजाए आँसू

मार के अपने हसीं सपनों को

ख़ून से मैंने बनाए आँसू

वक़्त बेवक़्त कहीं भी आ कर

याद ये किसकी दिलाए आँसू

कोई भी तेरा न दुनिया में हो

रात दिन तू भी गिराए आँसू

दुनिया में इनकी नहीं कोई क़द्र

इसलिए मैंने छुपाए आँसू

आपसे मिल के ये पूछूँगा मैं

आपने…

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Added by Mahendra Kumar on December 3, 2019 at 5:46pm — 4 Comments

बुलन्दी मेरे जज़्बे की - सलीम 'रज़ा' रीवा

1222 1222 1222 1222

बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी

फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी

.

अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब

करम फ़रमाँ है मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भी

.

जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू

वहां पे छोड़ देती हैं ये खुशियाँ आना जाना भी

.

बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का

कहीं पेड़ों पे भी मिलता नहीं वो आशियाना भी

.

हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से

हमारे साथ…

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Added by SALIM RAZA REWA on July 23, 2019 at 9:30pm — 1 Comment

ग़ज़ल (देते हमें जो ज्ञान का भंडार)

गुरु पूर्णिमा के विशेष अवसर पर:-

बह्र:- 2212*4

देते हमें जो ज्ञान का भंडार वे गुरु हैं सभी,

दुविधाओं का सर से हरें जो भार वे गुरु हैं सभी।

हम आ के भवसागर में हैं असहाय बिन पतवार के,

जो मन की आँखें खोल कर दें पार वे गुरु हैं सभी।

ये सृष्टि क्या है, जन्म क्या है, प्रश्न सारे मौन हैं,

जो इन रहस्यों से करें निस्तार वे गुरु हैं सभी।

छंदों का सौष्ठव, काव्य के रस का न मन में भान…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 16, 2019 at 3:30pm — 2 Comments

आदमीं हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ खुदा ...



2122-2122-2122-212

मतला:-

ख़ुश ही रहता हूँ शिकायत क्या करूँ क्या है अता।।

आदमी हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ ख़ुदा।।

हुश्न-ए-मतला:-

तेरे ज़ानिब से मुझे जो भी मिला अच्छा लगा ।

मैं तो मुफ़लिस था मेरी हिम्मत कहाँ कुछ माँगता।।

मेरा दम घुटने लगा जब महफिलों की शान में ।

यार आया हूँ उठा कर दूर खुद का मकबरा।।

मेरी मैय्यत में गुलों की बारिशें अच्छी नहीं।

शाइरी के भेष में करने लगा था इल्तिज़ा।।

देख़ो उल्फ़त के…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on May 31, 2019 at 12:20pm — No Comments

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