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Started by Saurabh Pandey. Last reply by PRAMOD SRIVASTAVA Sep 20, 2016.
Started by indravidyavachaspatitiwari. Last reply by KALPANA BHATT ('रौनक़') Jul 22, 2016.
Comment
dhanyavaad Shyam Narayan Verma ji.
सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई.... |
गीत
दिनवा ओराये लागल
रतिया हेराए लागल
बुते लागल असरा क. बरल. तु दियना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
का ओही देसवा मा-
बाटे, जे बिलमि गइल.
मइया क. बूढउती क.
बने तु अलमि गइल..
दूजि क. चाँद भइल. ,आंखी मोर सावना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
खेल कूद, लिखा पढ़ी
सबकर गवाही बा
इहवें क. धुरिया तोहरे
पोर-पोर समाइल बा
कइसे से उखरल बाबा दुलरवा क. सियना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
आम बउरे, मेघा चुये
माटी सोंधियाइल फेरू
कोयलिया क. कुहूक से
गूँजल अमराई फेरू
जोहे चउपाल, टोला, राह, साथी, संगना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
घरे घरे लट्टू,टीवी
डहर. कोलतारी
गाँव मनरेगा,चलल
विकास क. बयारी
गवई शहराए लागल, जाइ बाँच. सुगना
कि आइ हिये लाग. ना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
प्रमोद श्रीवास्तव, लखनऊ
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
गीत | |
बहियाँ छोड़ा के जाल राजा , मानेल ना कहना हमार | |
डार्लिंग दगाबाजी कईल , काहें करवल गवना हमार |, |
केकरा से आग मान्गबी , केकरा से मान्गबी पानी | |
केकरा से प्यार मान्गबी , चढ़ल बा जवानी | |
काहें करेल मनमानी सईयाँ , तोडी के जाल हियरा हमार | |
डार्लिंग दगाबाजी कईल , काहें करवल गवना हमार |, |
रोके तोहके खनकत चूड़ी , रोके तोहक कंगना | |
हमरा के छोडी के जाल , सूना कईके अंगना | |
ना सुनेल कवनो निहोरा , करेल ना मन में विचार | |
डार्लिंग दगाबाजी कईल , काहें करवल गवना हमार |, |
अब जब जईब पीया , कईसे बीती रतिया | |
संगवा में के करी , मीठी मीठी बतिया | |
वर्मा तोहरा पईयाँ पडीं , सुनिल अरजिया हमार | |
डार्लिंग दगाबाजी कईल , काहें करवल गवना हमार |, |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
बहुत नीमन लागता, पहली बार ऐजा आइल बानी ........ अद्भुत ........ बधाई आ शुभकामना बा ओपेन बुक्स ऑनलाइन के की उ अइसन मंच बनावलस ।
आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी आपकी रचना कमेंट बॉक्स में हो गई है , कृपया यह रचना कमेंट बॉक्स के ऊपर बने +Add Discussion बटन को क्लिक कर पोस्ट करें ।
भोजपुरी माई के समर्पित एगो गीत -
रहिया मोती बिछाइल बटोर ना .
चलली धीरे धीरे एक -एक डगरिया
लोगवा से गउवा आइ गइली नगरिया
समुन्दर हम होई गइली आइ के रजधानिया
हिलोर ना
भरल रतन हियरवा हिलोर ना
रहिया .......
घरवा में रहि के कुछु नाही कईली
देस विदेस जाई के नउवा कमईलीं
बिरह के घाव अब ई कईसों पुरवली
दिदोर ना घाऊ वा बाटे दिदोर ना
रहिया .........
जेइ सपनवा के ओढ़ी हम सुतलीं
एकरा अलावे कुछु बूझत न रहलीं
सपनवा संजवत जिनगिया बितवली
झिंझोर ना
अन्हिया से इ सपनवा झिंझोर ना
रहिया ............
मनवा के ताना बाना बीनत रहलीं
कतना त ताना मेहना सहत रहलीं
हार बाकि कबहूँ न रजको हं मनली
बिटोर ना
तनकी मिलल अंजोरिया बिटोर ना
रहिया ..............
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