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चर्चा के विषय

ज्यादा क्या कोई फर्क नहीं मिलता

हुक्के की गुड़गुड़ाहटों की आवाज़ में

चाहे वो आ रही हों फटी एड़ियों वाले ऊंची धोती पहने मतदाता के आँगन से

या कि लाल-नीली बत्तियों के भीतर के कोट-सूट से...

नहीं समझ आता ये कोरस है या एकल गान

जब अलापते हैं एक ही आवाज़ पाषाण युग के कायदे क़ानून की पगड़ियां या टाई बांधे

हाथ में डिग्री पकड़े और लाठी वाले भी

किसी बरगद या पीपल के गोल चबूतरे पर विराजकर

तो कोई आवाजरोधी शीशों वाले ए सी केबिन में..

गरियाना तालिबान को,…

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Added by Dipak Mashal on December 15, 2012 at 11:30pm — 7 Comments

हरसिंगार की खुशबू हो तुम

मेरे मन के दरख्त की डाली

झुकी झुकी सी, फूलों सी है

लरज लरज कर बाहों जैसी

याद तुम्हारी कर लेते हैं .

अब यादों की बदली से हम

भीग भीग कर सूख रहे हैं,

एक तुम्हारी चाहत ही है

जिसे अभी तक सींच रहे है

एक अंजुरी नयन नीर से,

एक एक पल जैसे हो पीर से

हर पल हरसिंगार की खुशबू

एक दिलासा मन के तीर (किनारा)…

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Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 10:00pm — 8 Comments

लघु कथा : "अधिकार"

सूरज  बदहवास सा खेतों के मेड़ों पर चला जा रहा था , बचपन में पिता का साया सर से छिन गया था , बहनों की शादी हो चुकी थी, जिनसे उसके उम्र का फासला बहुत था, उम्र अभी १७ वर्ष मगर जिम्मेदारियों का पहाड़ सर पर, गरीबी हो तो इंसान के लिए छोटी छोटी जरूरतें भी पहाड़ जैसी ही लगती हैं. छोटे चाचा ने सारी जमीने अपने नाम करा ली थी..सुरजू,,,,यही नाम था घर में सब प्यार से विषाद…

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Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 9:30pm — 2 Comments

छन्न पकैया : अविनाश बागडे

छन्न पकैया छन्न पकैया ,पढ़ते दांत पहाडा।

खड़ा हुआ है सर के ऊपर , डंडा लेकर जाड़ा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,पार तभी हो नाव।

सर्द हवा के बीच रात में, जलता रहे अलाव।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,ठिठुर रहें फुटपाथ।

काली कुतिया साथ ठिठुरती,सोती है जो साथ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,नहीं गल रही दाल।

शीत युद्ध के चलते पहनो,स्वेटर मफलर शाल।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,सड़कें हैं सुनसान।

ऊपर वाले का कर्फ्यू है ,लो अच्छे से जान।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,कहता है…

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Added by AVINASH S BAGDE on December 15, 2012 at 8:30pm — 9 Comments

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो



ठिठुरती शीत में सिमटी हुई सी रात है

अकेलेपन का गम ये इश्क की सौगात है

विरह ये लग रहा जैसे हृदय आघात है

वक़्त के सामने मेरी भी क्या औकात है



प्रिये तडपाओ न अब और जरा प्यार दो

मेरी चाहत की दुनिया आ के फिर संवार दो



सुबह है शबनमी प्यारी गुलाबी शाम है

हवा के हाथ में कोई तिलिस्मी जाम है

युगल स्वक्छंद फिरते दे रहे पयाम हैं

इश्क करते रहो ये आशिकों का काम है



प्रिये मेरे गले को बाहों का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 15, 2012 at 4:17pm — 12 Comments

मुक्ति.....

सौम्य शांत सी चली थी
निंद्रा से चिर निंद्रा की ओर
उसे निंद्रा से जगाने की कोशिश थी
थी भाग दौड़ !
उम्र भर की मानसिक यातना से
थी आज मुक्ति की ओर अग्रसर ,
अस्पताल के एक कोने में उसका
शरीर था पड़ा एक बिस्तर पर ,
बैठी थी पास ही उसके
उसकी बिटिया मूक दर्शक बनकर ,
रही थी माँ को एकटुक निहार !
और जैसे कह रही हो बारम्बार...
माँ, तुझे न रोकूंगी आज
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !

अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 15, 2012 at 4:00pm — 8 Comments

पड़ोसी

पड़ोसी



वर्मा, हो शर्मा, हो सिंह, हो या जोशी

किस्मत से मिलते हे, सज्जन पड़ोसी

पड़ोसी भले हो, ये किस्मत का खेल

नहीं तो घर भी, लगता हे जेल

पड़ोसी से न करें कोई शरम

कुछ ऐसे निभाएं पड़ोसी धरम

पडोसी की सब्र से करें समीक्षा 

समय समय पर लेते रहे. अग्नि परीक्षा 

पड़ोसी के घर के सामने पार्क करे गाड़ी

बक्त बेबक्त उसे करते रहे काडी

समय असमय उसकी घंटी बजाएं

ऊलजलूल बातों से उसे पकाएं

देर रात संगीत से…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 2:00pm — 7 Comments

में दरिया हूँ

में  दरिया हूँ

प्यार हर दिल के अंदर  ढूढता हूँ

नहीं कोई मेरा अपना ठिकाना

मगर घर सबको सुन्दर  ढूढता हूँ

टूट जाते हे जब सपने महल के

पिटे खुआबो में खंडहर  ढूढता हूँ

भरा दहशत अंदेशो से जमाना

में चेनो अमन के मंजर  ढूढता हूँ

नहीं आंधी तूफानों का भरोसा

हरेक कश्ती को लंगर  ढूढता…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:41pm — 4 Comments

अथिति देबोभवा

अथिति देबोभवा

पहले की सोच

अथिति होता था भगवान्

घर में होती थी खुशियाँ

और बनते थे पकबान

बदला अब परिवेश और…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments

इजहारे मुहब्बत

इजहारे मुहब्बत

प्यार करना पहिले हिम्मत का काम था

दर्दे दिल लेना मुहब्बत का नाम था

बर्षो करते थे केवल दीदार

हो नहीं पता था प्यार का इजहार

जब चारो और फ़ैल जाती थी, प्यार की खुशबु…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 4 Comments

बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते



बचपन की मेरी मेहबूबा

मिली मुझे बाजार में

मियां और बच्चों के संग

बैठी थी बो कार में

नजरे चार हुई तो बो

होले से मुस्कुरा पड़ी

उतर कार से झट फुर्ती से

सम्मुख मेरे आन खड़ी

स्पंदित हुआ तन बदन मेरा

पहले सा अहसास हुआ

सामने थी मेरे बो बाजी

हारा जिससे मुहब्बत का जुआ

किम्कर्ताब्यविमूढ़ खड़ा था में

ध्यान मेरा उसने खीचा

आओ मिलो शौहर से मेरे

आपके हे ये जीजा

दिल में मेरे मचा हुआ था

कोलाहल…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:30pm — 2 Comments

लघु कथा : गुमराह

श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का  लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ…

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Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

जिंदगी भर - ग़ज़ल

टूटता ये दिल रहा है जिंदगी भर,

दर्द भी हासिल रहा है जिंदगी भर,

अधमरा हर बार जिन्दा छोड़ देना,

मारता तिल-2 रहा है जिंदगी भर,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:07am — 14 Comments

कुण्डलिया - भारतरत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की पुण्यतिथि (१५ दिसंबर) पर विशेष

मोती-मोती जोड़ के, गूँथ नौलखा हार।
विश्वपटल पे रख दिया, भारत का आधार॥
भारत का आधार, भरा था जिसमें लोहा,
जय सरदार पटेल, सभी के मन को मोहा।
वापस लाये खींच, देश की गरिमा खोती,
सौ सालों में एक, मिलेगा ऐसा मोती॥

Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 15, 2012 at 10:50am — 16 Comments

दूर से जो अच्छा लगे ....

( कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लिखूं ........लेकिन जब कलम उठाया तो जो लिखा आपके सामने है ....आशा है आपको पसंद आएगी )

----------------------------------

दूर से देखने में जो अच्छा लगे ,

पास आने में वो ना अच्छा लगे ।।



जिन आँखों में चाहत हो प्यार की

कभी देखे या ना देखे अच्छा लगे ।।



जैसे बगिया हो कोई पहरों के बीच  

फूल तोड़े ना कोई तो अच्छा लगे ।।



नाम हो रोशनी से बहुत ही भला

काम आये सबको तो अच्छा लगे ।।



चाँद उतरे जमीं पे तो…

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Added by श्रीराम on December 15, 2012 at 10:00am — 4 Comments

स्वप्न तिरोहित मन की बातें

स्वप्न तिरोहित मेरी आँखें ,

क्या तुमको अच्छी लगती हैं?

कुछ डोरे भूले भटके से ,

नयनो में तिरते रहते हैं.

कुछ पलाश के फूल रखे हैं

सुर्ख लाल गहरे से रंग के

अग्निशिखा की छाया जैसी,

निशा द्वार पर जलते बुझते .

भटको मत अब नयन द्वार पर

भ्रमर भ्रमित से रह जाओगे

निशा भैरवी तान सुनेगी ,

अधर पटल सुन दृग खोलेंगे,

गीले बालों…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:00pm — 13 Comments

कुछ कहना था तुमसे ...इन्तजार

कुछ कहना था तुमसे मन की

जब आओगे तब कह दूँगी

कब मन ये मेरे पास रहा,

यादों को बाँध के रख लूँगी 



अब दूर देश के…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 6:00pm — 2 Comments

लघु कथा : पगली

आज ऑफिस के लिए निकलते हुए देर हो गयी थी, रास्ते के ट्रेफ्फिक सिग्नलों ने तो नाक में दम कर दिया था, जल्दी से हरे होने का नाम ही नहीं लेते थे, जब ऑफिस को देर होती है तब सारे नियम क़ानून भूल जाते हैं, कही ना कही गलत है मगर ये मानविक भाव है, मगर सिग्नल या सड़क जाम का एक फायदा है , बहुत सारे…

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Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 5:00pm — 2 Comments

असीमित ...

व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 4:00pm — 11 Comments

मन...

मन ही सवालों से उलझता है !
मन ही सवालों से कतराता है !
मन ही दर-बदर भटकता है!
मन ही भूलने की बात करता है !
झगड़ता है, चिल्लाता है , कोसता है!
यह मन ही तो है जो रोता है !
अनुभव है ,सच नहीं है,
जाने भी दो, जिंदगी है ,
समझकर सबकुछ खुद को ,
समझाने की कोशिश करता है !
कुछ पल तो शांत बैठता है
और फिर अचानक -
मन ही मन कह उठता है
आह! खट्टे अंगूर !

अन्वेषा

Added by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 3:30pm — 9 Comments

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