हवा के रुख को जो मोड़े वही बादल घनेरा था
जगह बारिश की जो बदले वही झोंका हवा का था
बदल मैं क्यूँ नहीं पाया मोहब्ब्बत इश्क की राहें
तुम्हे मुझसे रही उल्फत, मगर मुझे इश्क तुमसे था
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अगर मुझको मोहब्बत थी, तुम्हे फिर इश्क हमसे था
अधर में रह गया क्यूँ फिर मोहब्बत का मेरा किस्सा
लिखावट उस विधाता की , बदल…
Added by Ashish Srivastava on September 2, 2012 at 1:00pm — No Comments
मेरे इस दिल का हर साज उनका है,
इस दिल में दबा हर राज उनका है,
चाहे दिन हो या रात उनका है,
सबसे जुदा, अलग अंदाज उनका है,
मैं आज जो भी और जैसा भी हूँ,
मेरी सफलता के पीछे हाथ उनका है,
भले ही आज नाखुश हूँ अपनेआप से पर,
याद कर खुश होता हूँ वो हर याद उनका है,
वो जहाँ भी रहे सदा खुश रहे दुआ है मेरी
मेरा दिल आज भी सिर्फ तलबगार उनका है,
मेरे इस दिल का हर साज उनका है ऐ 'अनिश',
इस दिल में दबा आज भी हर राज उनका है....!
Added by Neelkamal Vaishnaw on September 2, 2012 at 10:30am — 3 Comments
जैसे
ठहरा हुआ समंदर कोई
गहरे नीले रंग से रंगा...ऐसा आसमाँ
दूर दूर तक फैला हुआ...
जिसके किसी छोर पर
तुम हो...
किसी छोर पर मैं हूँ
और
हम दोनों के बीच
ये तैरता हुआ सफ़ेद मोती....
सब कुछ वैसा ही है/ कुछ नहीं बदला
बस बदल गयीं हैं,
इस समंदर से अपनी शिकायतें |
पहले ये बहुत छोटा लगता था हमें,
और अब ये समन्दर ख़त्म ही नहीं होता
....मीलों तक......
-पुष्यमित्र उपाध्याय
Added by Pushyamitra Upadhyay on September 1, 2012 at 10:05pm — 4 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 5:35pm — 6 Comments
मुद्दत हो गई है कुछ भी लिखे, इक अधूरापन समा गया हो जैसे मेरे अन्दर, और गोया ये अधूरापन अपने अधूरेपन के अधूरेपन में ही मुतमईन हो. भोपाल से सफर पे आमादा हुए तीन हफ्ते गुज़र गए हैं और इन तीन हफ़्तों में कई मंज़िलात से गुज़रा- इंदौर-बैंगलोर-चेन्नई-बैंगलोर-मैसूर-बैंगलोर-चेन्नई- और फिर वापस बैंगलोर. आगे आने वाले दिनों में और भी कई जगहों का कयाम करना है- अहमदाबाद, पुणे, नॉएडा, जयपुर.... कभी हवा में थम से गए हवाई जहाज़, कभी लोहे की पटरियों पे दौड़ती रेल, कभी फर्राटे से भागती कार, तो कभी वोल्वो बस की…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on September 1, 2012 at 5:30pm — 6 Comments
Added by Rash Bihari Ravi on September 1, 2012 at 3:00pm — 5 Comments
"निवाले"
रामू के
विदीर्ण वस्त्रों में छुपी
कसमसाहट भरी मुस्कान
एहसास कराती है
खुश रहना कितना जरुरी है
दिन-रात
कचरा बीन बीन के
उससे दो चार निवाले निकाल लेना
कुछ फटी चिथी पन्नियों से
खुद के लिए और छोटी बहन के लिए भी
एहसास कराता है
कर्मयोगी होने का
रात उसके बगल में सोती है
कभी दायें करवट
कभी बाएं करवट
खुले आसमान के नीचे
उसका जबरन आँखों को मूंदे
भूख को मात देना
परिभाषित करता है आज़ादी…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 1, 2012 at 2:11pm — 9 Comments
(1) आजमाईश
न ख्वावों पे कर भरोसा कमबख्त टूट भी सकते है
और न यकीं दोस्तों पे कमबख्त लूट भी सकते हैं
हम यूँ ही नहीं कहते आजमाईश की है यारो
रिश्ते आज जो अपने से लगे ,कल छूट भी सकते हैं
(2) बेवजह
ताउम्र हम तेरी यादों में तड़पे
नज़रों से अपने तो आंसू भी बरसे
मगर तुमको हरगिज़ न आया तरस
पागल थे हम बेवजह ही जो तरसे
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 1:00pm — 3 Comments
इन्सान की जिंदगी भी
क्या जिंदगी है
पल में गम,
और क्षण में ख़ुशी है
कभी संघर्ष का दौर तो
कभी मस्ती भरी है
कभी अपने पराये तो
पराये अपने है
जिसको ख़ुशी दी
उसी ने दिल दुखायें है
फिर भी लोगो ने देखो
बंधन हर निभाए है
कभी सपने सजोंये और
कभी ख़ुशी के दीप जलाये है
विरह वेदना से छुड़ा
अनुभूति वक़्त दे जाती है
हर्ष उल्लास के गीत सुना
दुःख से मुक्त कराती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on September 1, 2012 at 12:18pm — 13 Comments
टूटा सा ख्वाव हूँ (गीत)
पूछो न कोई मुझसे क्यों पीता शराब हूँ-2
अब किसको क्या पता मैं इक टूटा सा ख्वाव हूँ-2
--पूछो न कोई मुझसे क्यों पी----------
(1) 'दीपक' था नाम जलना था,जलते रहे ऐ-दिल-2
बुझने से पहले बेवफा इक बार आके मिल-2
देती है ताहने दुनियाँ क्या सचमुच ख़राब हूँ
अब किसको क्या पता मैं इक टूटा सा ख्वाव हूँ-२
--पूछो न कोई मुझसे क्यों पी----------
(2) दो घूँट पी लिए अगर यहाँ किसका क्या गया -2
अपनें,बेगाने सबके ही दिल…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on September 1, 2012 at 11:00am — 8 Comments
भारती के झंडे तले, आए दिवा रात ढले,
देश के जवान चले, माँ की रखवाली में |
बाजुओं में शस्त्र धरें, मौत से कभी न डरें,
साथ-साथ ले के चलें, शीश मानो थाली में |
नाहरों की टोली बने, खून से ही होली मने,
शादियों में तोप चले, गोलियाँ दिवाली में |
भाग जाना दूर बैरी, वर्ना नहीं खैर तेरी,
काट-काट फेंक देंगे, एक-आध ताली में ||
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 1, 2012 at 9:17am — 10 Comments
जिसमे राष्ट्रिय मान भी हो!
दूजों के प्रति सम्मान भी हो!
अभिमान नही किंचित मन में,
पर दृढ़मय स्वाभिमान भी हो!
वाणी से केवल सत्य कहे!
जो सत्य हेतु हर कष्ट सहे!
निर्बल का जो बल बन जाए!
परदुख से जिसके नैन बहें!
उस अदृश्य को ही मैंने, मन समर्पित कर दिया है!
हाँ वही मेरी प्रिया है, हाँ वही मेरी प्रिया है!
जो अत्याचार विरोधी हो!
अन्याय-राह अवरोधी हो!
पथभ्रष्ट जनों की खातिर…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on September 1, 2012 at 7:00am — 10 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 7:30pm — 6 Comments
खूँटी पे लटकी
खाली पोटली
मुँह ताक रही है
कोई आएगा
जो झाड़ देगा
इसमें जमी धूल
बिलकुल वैसे ही
जैसे मुक्तिबोध
की कोई कविता
टंगी हो
समीक्षक के
इंतज़ार में
लेकिन उसे नहीं पता
अब कोई नहीं छेड़ेगा
उस खाली पोटली को
क्यूंकि वो एंटीक है
उसे म्यूजियम में रखा जायेगा
प्रदर्शनी की सोभा सा
क्यूँ कोई जीर्ण-उद्धार करेगा
फिर उदाहरण के लिए
क्या दिखाएगा
कुछ भी नहीं
अब तुम दुष्यंत की…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
मेरी सोच
तत्पर सी
जिज्ञासा शून्य
सब कुछ जानती हो जैसे
क्या होगा क्या नहीं ???
शब्दों में बिलबिलाती
भावों में छट-पटाती सी
स्वरों में मचलती सी
तोड़ने को चक्रव्यूह
बिलकुल अभिमन्यु की तरह
भेद जाती है चक्रव्यूह
पहुँच जाती है भीतर
पर लौटते वक़्त
तोड़ देती है दम
कौरवी छल से हुए आक्रमण
और दमन चक्र से
बच नहीं पाती है
"मेरी सोच"
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 2:42pm — 2 Comments
जहाँ जोर ना चले तलवार का
जहाँ मोल ना हो व्यव्हार का
तब सन्देश का माध्यम बन
समस्या करती छू मन्तर
कभी प्रेम प्रसंग का ताना बुन
शब्द लाती मैं चुन चुन
व्याकुल हो जब कोई मन
अंकुश लगाती शंकित मन
सूचक दे छवि विषाद का
आन्तरिक सुख को करूं अपर्ण
वीर रस का जब
ब्खान हूँ करती
मुर्दों में भी जीवन भरती
शब्दों के मैं मोती बना
भावना ऐसी व्यक्त करती
नीरस जीवन में जब
रंग रस मैं भरती
संकोची हृदय की जब व्यथा सुनती
उन्मुक्त…
Added by PHOOL SINGH on August 31, 2012 at 2:00pm — 5 Comments
देश की दारुण दशा हमसे सहन होती नहीं
सोन चिड़िया की कथा भी स्मरण होती नहीं
हो रहे पत्थर मनुज सब आँख का पानी सुखा
जल रहे हैं आग में लेकिन जलन होती नहीं
मर चुका ईमान सबका बेदिली है आदमी
फिर रहीं बेजान लाशें जो दफ़न होती नहीं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on August 31, 2012 at 1:00pm — 10 Comments
कहाँ बदन पर सजी रंगोली
कहाँ हुआ उसका खनन
कब कोई उसमे विलीन हुआ
कहाँ हुआ पूजा हवन
सब युगों युगों तक निशानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कहाँ प्यासे जिस्म में पड़ी दरारें
कहाँ निर्बाध जल में नहाया बदन
कहाँ इंसां ने बंजर बनाया
कहाँ लहलहाया मदमस्त चमन
जब तलक हवाओं में रवानी रहेगी
ये माटी सभी की कहानी कहेगी |
कहाँ मेढ़ों ने करे विभाजन
कहाँ जुड़े सांझे आँगन
कहाँ सुने मिलन के गीत
कहाँ बरसा विरह का सावन
इन…
Added by rajesh kumari on August 31, 2012 at 12:00pm — 15 Comments
मर्यादित आचरण ही,सद्चरित्र व्यवहार,
सद्चरित्र व्यवहार से,हो दर्शन करतार //
कर दर्शन करतार के, सदाचार सोपान,
सदाचार सोपान से, होगा बेडा पार //
होगा बेडा पार तब,परहित तेरे कर्म,
परहित तेरे कर्म हो, उसेही मनो धर्म //
पुरुषोत्तमश्री राम का, है मर्यादित चरित्र,
अनुशासित नित्कर्म, है आचरण पवित्र //
जीवन दर्शन तत्व को,कृष्ण ही समझाय
युक्ति संगत करम को, कर्मयोगी बतलाय //
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:30am — 16 Comments
(१)
कभी फुर्सत में चले आना,हँस के जी लेंगे
ज़िक्र उनका न करेंगे होंठ सी लेंगे
दिल तो आखिर दिल है उदास भी हो सकता है
दर्द गर बढ़ भी गया दिल का,जाम पी लेंगे
(२)
हम मुहब्बत के पुजारी हैं इश्क करते हैं
ग़म के सहरा पे चलनें का दम भरते है
दर्द का रिश्ता तो इस दिल पुराना है दोस्त
हम तो तन्हाई में जीने का हुनर रखते हैं
(3)
बेगुनाही का सबूत हमसे न मांगो यारो
हमने तो चाहा,खता इतनी सी थी…
Added by Deepak Sharma Kuluvi on August 31, 2012 at 11:00am — 5 Comments
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